ज्ञानवर्धक छोटी कहानियां | मनोरंजन और प्रेरणा के साथ

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कहानियाँ बच्चों को सीखाने का एक सबसे आसान माध्यम हैं। जबकि, कहानियाँ प्रेरणा से भरपूर होना चाहिए। इसके अलावा कहानी बहुत कम शब्दों में बड़ी सीख देने वाली होनी चाहिए। सबसे प्रमुख बात, कहानी के अंत में उससे मिलने वाली नैतिक शिक्षा जरूर होनी चाहिए। आज की कहानी कुछ इसी प्रकार से लिखित हैं। जिसे पढ़ने के बाद आपके बच्चे के आत्मविश्वास में वृद्धि हो सकती हैं।

1. कुएं का मेंढ़क:

एक मेंढ़क जोकि समुद्र में रहता था। एक दिन कही से एक कुएं में आ गया। उसने बहुत जल्द कुएं के चारों दिशा का चक्कर लगाकर बैठे-बैठे कुछ सोच रहा था। तभी उसके पास एक मेंढक आया। उसने उस मेंढ़क से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो”? तुम इस कुएं के मेंढ़क नहीं लग रहे हो। उस मेंढ़क ने जबाब दिया मैं समुद्र से आया हूँ।

कुएं के मेंढ़क ने कहा, “यह समुद्र क्या होता हैं? कितना बड़ा होता हैं।” उस मेंढ़क ने कहा, “समुद्र बहुत बड़ा होता हैं। वहाँ पर अनेकों प्रकार के जीव-जन्तु और बड़ी-बड़ी मछलियाँ होती हैं। कुएं के मेंढ़क ने थोड़ी दूर उछाल कर छलांग लगाई। उसने पूछा, “समुद्र इतना बड़ा होता हैं?” समुद्र के मेंढ़क ने कहा, नही बहुत बड़ा होता हैं।

कुएं के मेंढक ने थोड़ी-थोड़ी दूर उछाल कर पूरे कुएं का चक्कर लगा दिया। फिर पूछा समुद्र इतना बड़ा होता हैं। लेकिन वह हमेशा यही कहता रहा कि समुद्र बहुत बड़ा होता हैं। कुछ देर बाद उस कुएं के मेंढ़क ने यह कहते हुए समुद्र के मेंढ़क के ऊपर हँसना शुरू कर दिया कि, “इससे बड़ा और कुछ नहीं हो ही नहीं सकता।

हमारा कुआ कितना बड़ा हैं।” समुद्र के मेंढ़क ने कहा, “तुम कुएं के मेंढ़क हो तुम्हें कौन समझाए कि समुद्र कितना बड़ा होता हैं।”

नैतिक शिक्षा:

दुनिया बहुत बड़ी हैं कुछ भी सीमित नहीं हैं।

2. अंधविश्वास:

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दीपक और सूरज दोनों में अच्छी दोस्ती थी। दोनों ने अपनी-अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। दोनों नौकरी तलास में थे। वे दोनों एक कंपनी में एक साथ नौकरी करना चाहते थे। दोनों हर जगह एक साथ इंटरव्यू देने जाते थे। दीपक अपनी कमियों को ध्यान रखकर उसपर काम करने की कोशिश करता था। जबकि, सूरज हमेशा किस्मत के सहारे रहता था। वह हर एक बात के लिए अपनी किस्मत को दोष देता था।

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किसी कंपनी में तीन सौ पदों के लिए भर्ती होनी थी। जिसके लिए इंटरव्यू रखा गया था। दीपक और सूरज उस कंपनी में इंटरव्यू देने जा रहे थे। अचानक बीच रास्ते में एक काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया। उसे देख सूरज ने कहा, भाई दीपक बिल्ली ने रास्ता काट दिया, मैं इंटरव्यू देने नहीं जाऊंगा। बिल्ली का रास्ता काटना बहुत ही अपशगुन माना जाता हैं। कल को कोई अनहोनी न हो जाए। इसलिए मैं आगे नहीं जाऊंगा।

उसकी बातों को सुनकर दीपक को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने उसे समझाते हुए कहा, क्या मूर्खों जैसी बातें करते हो। ऐसा कुछ नहीं होता। तुम पढे-लिखे व्यक्ति होकर इस तरह की बातें कर रहे हो। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। लेकिन, सूरज ने दीपक की एक बात नहीं मानी। उसने कहा, “मुझे पक्का विश्वास हैं कि अगर मैं इंटरव्यू देने जाऊंगा तो कुछ अनहोनी जरूर हो जाएगी।

दीपक ने सूरज को फिर समझाते हुए कहा, “भाई तीन सौ पद खाली हैं, ऐसा मौका जल्दी नहीं मिलता, चलो सिलेक्शन हो जाएगा। सूरज वापस अपने घर को चला गया। दीपक इंटरव्यू देने के लिए चला गया। सूरज घर बैठकर सोचे जा रहा था कि आज दीपक के साथ कुछ न कुछ अनहोनी जरूर घटेगी। उसके दिमाग में तरह-तरह की बातें चल रही थी। सूरज अपने घर के दरवाजे की तरफ ही देखे जा रहा था की वह कब आएगा।

तभी दीपक उसकी तरफ आते दिखाई दिया। उसने अपने दोनों हाथों को फैलाए हुये सूरज को अपने गले से लगा लिया। दीपक ने कहा, “मेरे दोस्त! पच्चीस हजार महीने की सैलरी पर मेरी नौकरी लग गई।” तीन सौ पद खाली थे, लेकिन सिर्फ दो सौ लोग ही आए थे। आज अगर तुम अंधविश्वास में नहीं पड़ते तो तुम्हारा भी सिलेक्शन हो जाता। सूरज उसके हाथ पैर को देखे जा रहा था कि दीपक कैसे सही सलामत हैं।

नैतिक सीख:

अंधविश्वास के चक्कर पड़ने से बहुत बड़ा नुकसान होता हैं।

3. कल्पना की रस्सी:

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एक बार की बात हैं। रेगिस्तान के निकट किसी गाँव में एक व्यापारी ऊँट खरीदने गया। उसे सस्ते दाम में तीन ऊँट मिल गए। व्यापारी उसी दिन तीनों ऊंटों को लेकर अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ता दूर था, ऊंटों से चला नहीं जा रहा था। व्यापारी ने सोचा, चलो किसी ढाबे पर रात गुजार लेते हैं। कल फिर से यात्रा शुरू करेंगे। ऊँट भी थक चुके थे, व्यापारी एक ढाबे पर रुक। उसने पेड़ से अपने दो ऊँट को बांध दिया।

उसके पास रस्सी न होने की वजह से तीसरे ऊँट को वह नही बांध पा रहा था। तभी उसे एक साधु महात्मा जाते हुए दिखाई दिए। महात्मा जी ने व्यापारी पूछा, “क्या बात हैं! तुम कुछ परेशान दिख रहे हो।” व्यापारी ने कहा, “महराज! क्या बताऊँ मैं अपने घर से एक ऊँट के लिए रस्सी लाया था। लेकिन मैंने तीन ऊँट खरीद लिया। इस रस्सी में दो ऊँट को बांध दिया।

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लेकिन एक ऊँट अभी भी बच रहा हैं। उसको बांधने के लिए मेरे पास रस्सी नहीं हैं। महात्मा जी कहा, “इस ऊँट को अनुमानों की रस्सी से बांध दो।” व्यापारी ने ऊँट के गर्दन के ऊपर से नीचे तक हाथ लाते हुए अनुमानों की रस्सी से पेड़ में बांध दिया। व्यापारी जाकर ढाबे में सो गया। सुबह अपने दोनों ऊंटों की रस्सी खोलकर घर ले जाने लगा। तीसरा ऊँट वहाँ से चलने के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था।

व्यापरी ने कई बार कोशिश किया कि तीसरा ऊँट वहाँ से आगे नहीं बढ़ रहा था। व्यापारी परेशान हो उठा। तभी देखा की वही महात्मा जी उसी रास्ते से जा रहे थे। व्यापारी महात्मा जी के पास गया उसने कहा, “महाराज अनुमानों की रस्सी से कल मैंने अपने तीसरे ऊँट को बांध दिया था। लेकिन आज वही तीसरा ऊँट चलने को तैयार नहीं हो रहा। कृपया मुझे कोई रास्ता बताएं।

व्यापारी की बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराते हुए कहा, “जब तक आप अनुमानों की रस्सी ऊँट के गर्दन से नहीं खोलोगे ये ऊँट अपने आप को स्वतंत्र नहीं मानेंगे। महात्मा की बातों को सुनकर व्यापारी अनुमानों की रस्सी अपने हाथों से खोल दिया। ऊँट वहाँ से चल पड़ें।

नैतिक शिक्षा:

पुरानी प्रथा को जब तक नहीं छोड़ेंगे आगे नहीं बढ़ सकते।

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