भावुक कर देने वाली कहानी – गरीब की दिवाली

You are currently viewing भावुक कर देने वाली कहानी – गरीब की दिवाली
Image sources: bing.com

दिनेश ईंट के भट्टे पर मजदूरी करता था। उसके परिवार में तीन बच्चे और उसकी पत्नी रहते थे। दिनेश की कमाई कुछ ज्यादा नहीं थी। वह अपने बच्चों को अच्छे कपड़े जूते दिलाने के लिए कई बार सोचा लेकिन वह दिला नहीं सका। क्योंकि उसकी आमदनी सिर्फ कमाने खाने तक ही रह जाती थी। दिनेश भी लाचार था, वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

उसकी पत्नी सविता बहुत ही समझदार थी। वह किसी तरह एक-एक पैसे बचाती रहती थी। जिसे वह मुश्किल समय में उपयोग करती थी। सविता अपने बच्चों को घर पर कोई न कोई हुनर सीखाती रहती थी। एक दिन दिनेश रात्री का भोजन कर रहा था। उसकी पत्नी ने कहा, “दिवाली का त्योहार आने वाला हैं। इस बार हम कैसे भी करके अपने बच्चों को नए कपड़े दिलाएंगे।”

दिनेश ने कहा, “ठीक हैं, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि दिवाली के इस त्योहार पर हमारे बच्चे नए कपड़े जरूर पहने।” दिनेश अब और अधिक मेहनत करने लगा। जिससे वह दिवाली तक कुछ अधिक पैसे जुटा सके। उधर सविता अपने बच्चों की खुशी के लिए लोगों के घर में जाकर झाड़ू-पोंछा करना शुरू कर दी। दिनेश और सविता दोनों मिलकर पैसे जोड़ने लगे।

लेकिन दिवाली के कुछ दिन पहले दिनेश के बच्चे की तबीयत खराब हो गई। वह अपने बच्चे को लेकर हॉस्पिटल गया। डॉक्टर ने उसके बच्चे को ऐड्मिट कर लिया। दिवाली के एक दिन पहले डॉक्टर ने कहा, “अब आपका बच्चा ठीक हैं, तुम इसे ले जा सकते हो। दिनेश हॉस्पिटल का बिल जमा करने ले लिए चला गया।

इसे भी पढ़ें: पति और पत्नी का अनमोल रिश्ता

दिनेश की पत्नी सविता अस्पताल के बाहर अपने तीनों बच्चों के साथ मायूस बैठी थी। अचानक एक कार आकर उसके सामने रुकी। उस कार से हॉस्पिटल का मालिक निकला, वह अंदर जाने लगा। उसने देखा कि सविता अपने बच्चों के साथ मायूस बैठी थी। वह सविता के पास गया और उसके उदासी का कारण पूछा।

सविता ने सारी बात सच-सच बता दी। हॉस्पिटल के मालिक ने कहा, “तुम्हारा नाम सविता हैं क्या? तुम मेरे घर के बगल वाली कोठी में झाड़ू पोंछा करने आती हो न। उसने कहा हाँ, साहब मैं वही सविता हूँ।” मालिक अपने जेब से कुछ पैसे निकल कर उसे दे कर चला गया। इतने में सविता का पति दिनेश उसके पास आया उसने कहा, “सविता कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं, हॉस्पिटल का बिल ज्यादा बना हुआ हैं।”

सविता ने कहा- “ये लो मेरे पास कुछ पैसे हैं। इससे बिल भर दो।” दिनेश बिल भरकर बाहर आ गया। वह अपने पत्नी और बच्चों को लेकर घर चला आया। उसकी पत्नी अपने पति को पकड़कर जोर-जोर से रोने लगी। उसने कहा, “हम दोनों ने सोचा था कि इस बार दिवाली पर हम अपने बच्चों को नए कपड़े दिलाएंगे। लेकिन अब हमारे पास खाने तक के पैसे नहीं बचे हैं, कपड़े कहाँ से आएंगे।”

दिनेश ने कहा, “सविता भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा।” अगले दिन दिवाली थी सभी लोग अपने घरों को सजा रहे थे। लेकिन दिनेश के पास समान लाने के लिए पैसे तक नहीं थे। आज के दिन वह किसी से उधार भी नही लेना चाहता था। सविता फूलों को तोड़कर उसके माले से अपने घर को सजा दी थी। वह दूध में चावल डालकर खीर बना रही थी। शाम होने को आ चुकी थी आसपास के बच्चे नए-नए कपड़े पहनकर पटाखे फोड़ रहे थे।

और भी देखें: Best Hindi Long Story – प्रकृति के साथ चलो

दिनेश घर के बहार मायूस बैठा था। उसके पास सविता आई उसे समझने लगी। कोई बात नहीं अगर भगवन की मर्जी नहीं हैं तो हम दिवाली नहीं मनाएंगे। चलो कुछ खा लो। इतने में कार से हॉस्पिटल का वही मालिक दिनेश के घर पर आया। उसे देख सविता डर गई। उसने सोच कही हॉस्पिटल का और बिल तो नहीं रह गया। जिसे लेने मालिक आए हैं।

हॉस्पिटल का मालिक अपने ड्राइवर से कहा, “कार से समान निकालकर लाओ। वह दिनेश, सविता और उसके बच्चों के लिए नए-नए कपड़े और मिठाइयां लाया था। वह उन्हें उपहार भेंट करते हुए कहा, “यह छोटा सा दिवाली का उपहार मेरी तरफ से आपके लिए हैं।” मालिक ने कहा, “ये रहे पैसे जो आपने हॉस्पिटल में खर्च किए थे।” इसके अलावा ये कुछ पैसे मेरी तरफ से आपको दिवाली की भेंट हैं।

यह सब देख दिनेश, सविता और उसके बच्चों के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। उन्होंने हॉस्पिटल के मालिक का तहे दिल से धन्यवाद किया। सविता अपने बच्चों के साथ खुशी-खुशी दिवाली मनाई। उस दिन उसे विश्वास हो गया कि जिसका कोई सहारा नहीं होता। उसका भगवान जरूर साथ देता हैं।

Leave a Reply