5 शिक्षा और मनोरंजन से भरपूर पंचतंत्र की कहानियाँ

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बच्चों के ज्ञान में वृद्धि के लिए पंचतंत्र की कहानियाँ बहुत ही लाभदायक होती हैं। क्योंकि, इस तरह की कहानियां बहुत ही सरल और मनोरंजन से भरपूर होती हैं। पंचतंत्र की कहानियां विष्णु शर्मा के द्वारा लिखी गई थी। उन्होंने अपनी कहानी के अधिकतर पात्र में पेड़ पौधे और पशु-पक्षियों को शामिल किया था। इसके अलावा पंचतंत्र की कहानी छोटी और प्रेरणादयक भी होती हैं। जिससे बच्चा कहानी सुनते समय ऊबता नहीं हैं। तो चलिए पंचतंत्र की पाँच कहानियां देखते हैं, जोकि इस प्रकार से हैं:

1. चिड़िया और हाथी:

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महक वन एक बहुत ही सुंदर वन था। उस वन में सभी पशु-पक्षी मिलजुलकर रहते थे। कोई भी जानवर किसी दूसरे जानवर को परेशान नहीं करता था। उसी वन में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर गौरैया अपने घोंसले में रहती थी। वह अंडे दी हुई थी। एक दिन वह अपने अंडे को से रही थी। कही से गजराज नाम का एक हाथी उस वन में आ गया।

उसने अपनी सूँड से उस विशाल पेड़ को गिराने की बहुत कोशिश की। लेकिन वह पेड़ को नहीं गिरा सका। वह बहुत शैतान हाथी था। उसने उस पेड़ की डाल को पकड़कर हिलाने लगा। गौरैया उड़कर किसी और डाल पर बैठ गई। उसका घोंसला नीचे गिर गया जिससे उसके अंडे टूट गए। गौरैया नीचे टूटे हुए अंडों को देखकर बहुत उदास हुई।

वह उसी वन के तलाब के पास जाकर बैठ गई। गौरैया को उदास देख एक चींटी ने पूछा, बहन! तुम उदास क्यों हो? गौरैया ने पूरी कहानी उस चींटी से बता दी। चींटी ने गौरैया से कहा, “बहन हम तुम्हारे दुख-दर्द में शामिल हैं। हमें उस शैतान हाथी को सबक सीखना ही होगा।” गौरैया ने कहा, “लेकिन बहन वह हाथी बहुत बड़ी हैं। हम उसका कुछ भी नहीं कर सकते।”

चींटी ने कहा, “बहन इस दुनिया में कोई ऐसा काम नहीं जो नहीं हो सकता, बशर्ते उसे करने का तरीका आना चाहिए। चींटी गौरैया को अपने दोस्त किसान के पास ले गई। चींटी ने अपना पूरा प्लान उस किसान को बता दी। एक दिन किसान अपने खेत से गन्ने काटकर उसी वन में रख आया। गन्ने की मीठास के कारण उस गन्ने में बहुत सारे चींटी लग गए।

उसी दिन गजराज हाथी उस रास्ते से गुजर रहा था। वह गन्ने को देख बहुत खुश हुआ। वह उस सभी गन्ने को अपनी सूँड में उठाकर चूसने लगा। सभी चींटियाँ अपने प्लान के अनुसार उसके सूँड में घुसकर काटने लगी। दर्द के कारण गजराज हाथी वही लोटने-पोटने लगा। उसने अपनी सूँड को पेड़ में मार-मारकर घायल कर दिया। इस तरह से उसकी मृत्यु हो गई। उसी पेड़ की डाल पर बैठी गौरैया यह सब नजारा देख रही थी। उसने कहा, जैसे को तैसा। वह चींटी को धन्यवाद कह कर उड गई।

नैतिक सीख:

अहंकार का एक दिन बुरा अंत होता हैं।

2. कछुआ और मछली:

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एक बार की बात हैं किसी नदी के किनारे एक कछुआ रहता था। कछुआ बहुत ही बुद्धिमान और मददकारी था। उसकी बातों को सभी मछलियाँ मानती थी। कछुआ दिन में दूर-दूर तक घूम आता था। जबकि मछलियाँ सिर्फ उसी नदी तक ही रहती थी। एक दिन कछुआ कही घूमने गया हुआ था। उसने देखा कि उसकी तरफ बहने वाली नदी पर बांध बनाया जा रहा हैं। जिससे उसकी तरफ नदी का पानी नहीं बहेगा।

वह तेजी भागते हुए नदी में जा पहुँचा। उसने सारी बात मछलियों को बता दी। मछलियाँ परेशान हो उठी। उसने कहा, “हमें कुछ भी करके इस नदी को छोड़ना पड़ेगा अन्यथा हम सभी मारे जाएंगे।” मछलियों ने कहा- “कछुआ भैया आप ही बताओ हम कैसे बचे।” कछुए ने कहा, “मैं सबसे पहले कोई नदी पता करता हूँ, जिसमें पानी भरा हो।”

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कछुआ नदी की तलाश में निकल पड़ा। काफी दूर चलने के बाद उसे एक बहुत ही शानदार सरोवर दिखा। उस सरोवर को देख उसके मन में उम्मीद की नई किरण जग उठी। वह सोचने लगा की उस नदी से मछलियों को कैसे यहाँ तक लाया जाए। अचानक उसने देखा कि एक किसान उसी सरोवर के पास वाले खेत में नदी से पानी ला रहा था।

कछुए ने सोचा अगर मछलियाँ इसी नाली के रास्ते यहाँ तक आ जाए तो वे आसानी से इस सरोवर में उछाल कर जा सकती हैं। कछुआ तेजी से भागते हुए उस नदी में जा पहुँचा। उसने सारी बात मछलियों को बता दी। उस नदी की सभी मछलियाँ नाली के रास्ते किसान के खेत तक पहुँच गई। कछुआ वहाँ पहले से खड़ा था।

उसने मछलियों को सरोवर में छलांग लगाने के लिए कहा। एक-एक कर मछलियाँ उस सरोवर में चली गई। वे वहाँ पहुंचकर बहुत खुश थी। कछुआ सरोवर के किनारे रहने लगा। सभी मछलियों ने उसका बहुत ऐहसान जताया।

नैतिक सीख:

मुश्किल समय में साथ देने वाले दोस्त से बढ़कर कोई दोस्त नहीं होता।

3. चालक लोमड़ी:

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किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वह लोमड़ी बहुत ही चालाक थी। वह लोमड़ी अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझती थी। एक दिन वह जंगल में घूम रही थी। उसे अचानक लगा की उसके पीछे शेर पड़ गया हैं। वह तेजी से अपने घर की तरफ भागने लगी। वह भागते हुए एक सघन झाड़ी में जाकर छिप गई। कुछ देर बार उसने देखा की वहाँ कोई नहीं था।

लोमड़ी उस झाड़ी से निकलने लगी। लेकिन वह झाड़ी कंटीली थी। जिसके कारण वह बुरी तरह से उसमें फँस चुकी थी। वह लोमड़ी काफी मशक्कत के बाद बाहर निकल पाई। उसने बाहर आकर देखा तो उसकी पूँछ काटकर झाड़ी में गिर चुकी थी। लोमड़ी परेशान हो उठी उसे बेइज्जती होने का डर सताने लगा। उसने सोचा की लोग उसके बारे में क्या-क्या कहेंगे।

उस रात लोमड़ी सो न सकी। उसे एकाएक विचार आया कि क्यों ने कुछ तरीका अपनाया जाया। उसने जंगल के सभी लोमड़ियों को दावत के लिए निमंत्रण भेजवा दिया। सभी लोमड़ी उसके घर पर पहुँच गई। उसने बहुत अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट खाना बनवाए थे। लोमड़ियों ने उससे पूछा कि आपने किस खुशी में दावत रखी हैं।

और कहानी देखें: चालाक लोमड़ी की कहानी – Chalak Lomdi Ki Kahani

उस लोमड़ी ने कहा, “कल मैं जंगल में भाग रही थी तो मेरी पूछ कंटीले झाड़ी में फँसकर गिर गई। आगे आई तो मुझे कुछ आदिवासीयों ने पकड़ लिया। वे मुझे मारकर खाना चाहते थे। तभी एक आदिवासी ने कहा, “इस लोमड़ी को हम नहीं खा सकते क्योंकि इसके पूँछ नहीं हैं, इसे छोड़ दो।” आदिवासीयों का झुंड पूरे जंगल में घूम रहा हैं। मैंने अपना नया जीवन पाया हैं, इसलिए मैंने यह पार्टी रखी है।

अगर आप लोगों को अपनी जान प्यारी हो तो आप लोग भी अपनी-अपनी पूँछ कटवा दीजिए नहीं तो वे तुम लोगों में से किसी को नहीं छोड़ेंगे। उसकी बातों को सुनकर सभी लोमड़ी ने कहा, “हम लोग भी चाहते हैं कि अपनी पूँछ कटवा दे।” सभी लोमड़ी एक-एक करके अपनी पूँछ कटवा दी। इतने में वही किसी पेड़ पर बैठा झबरु बंदर यह सब नजारा देख रहा था।

वह लोमड़ियों की मूर्खता पर खी-खी करके हँसने लगा। सभी लोमड़ियों ने उससे पूछा, “क्या बात हैं तुम हम लोगों पर क्यों हँस रहे हो।” उसने उस लोमड़ी के बारे में पूरी कहानी सुना दी। बंदर की बात सुनकर सभी लोमड़ी क्रोधित हो उठी। उसने उस लोमड़ी को मार-मार कर लहलुहान कर दिए।

नैतिक सीख:

जरूरत से ज्यादा चालाकी अच्छी नहीं होती।

4. चापलूस बंदर:

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चिंटू नाम का एक बंदर था। वह जंगल के राजा शेर सिंह के पास रहता था। राजा शेर सिंह उसे अपने दरबार का मंत्री बना रखा था। वह राजा के खाने-पीने का इंतजाम करता था। उसकी चापलूसी से राजा शेर सिंह अच्छे से वाकिफ था। एक दिन राजा के खाने का भोजन नहीं था। चिंटू बंदर उछलते-कूदते जंगल में निकल गया।

उसने एक बकरी को बहला-फुसला कर राजा शेर सिंह के गुफा तक लेकर आया। राजा शेर सिंह की नजर एकाएक उस बकरी पर पड़ी उसने उसे मारकर खा गया। राजा चिंटू बंदर के ऊपर बहुत खुश हुआ। उसने और कई सारे कार्य-भार चिंटू बंदर को सौप दिया। चिंटू बंदर अपने आपको कामों में व्यस्त रहने लगा। एक दिन राजा शेर सिंह के खाने की व्यवस्था नहीं हुई।

चिंटू बंदर को पता चला कि राजा शेर सिंह के खाने के लिए कुछ नहीं हैं। वह भागते हुए जंगल मे जा पहुँचा। लेकिन इस बार उसके साथ कोई आने को तैयार नहीं हुआ। क्योंकि उसकी चापलूसी जंगल के सभी जानवरों को पता चल चुकी थी। राजा शेर सिंह की भूख बढ़ती ही जा रही थी। उधर चिंटू बंदर खाली हाथ जंगल से वापस आया। उसे देख राजा शेर सिंह क्रोधित हो उठा। वह चिंटू बंदर के ऊपर टूट पड़ा और उसे मारकर खा गया।

नैतिक सीख:

चापलूस व्यक्ति एक दिन धोखा जरूर खाता हैं।

5. पुजारी और भिखारी:

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किसी मंदिर में एक पुजारी रहता था। वह उस मंदिर की देखभाल और पूजा-पाठ करता था। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। पुजारी सुबह-सुबह मंदिर की सफाई कर रहा था। एक भिखारी कही से टहलते हुए मंदिर के पास आ पहुँचा। उसने देखा कि पुजारी मंदिर की धुलाई कर रहा हैं। भिखारी के तन पर फटे पुराने कपड़े थे। वह ठंड से काँप रहा था। उसने पुजारी से खाने के लिए कुछ माँगा।

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पुजारी ने उसे अलाव जलाकर आग के सामने बैठा दिया। पुजारी तुरंत उस भिखारी के लिए चाय बनाकर लाया। उसे तन ढकने के लिए एक कंबल दिया। इस तरह से पुजारी उस भिखारी की खूब सेवा की। उसकी खिदमत देख भिखारी बहुत खुश हुआ। उसने अपना रूप किसी देवता के रूप में बदलते हुए कहा, “आज आपने यह साबित कर दिया कि “नर पूजा, नारायण पूजा” होती हैं। क्योंकि नर के अंदर ही नारायण का वास होता हैं।

देवता का रूप देखते ही पुजारी उनके चरणों में नतमस्तक हो गया। उसने कहा, “हे प्रभु इस तरह हमारी परीक्षा मत लिया करो।” मैं आपकी परीक्षा में सफल नहीं हो पाऊँगा। उस देवता ने पुजारी को बहुत आशीर्वाद दिया। उस दिन से पुजारी का विश्वास प्रभु-परमात्मा के प्रति और बढ़ गया। वह अपने द्वार पर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी का हमेशा आदर-सत्कार करता था।

नैतिक सीख:

हमें बच्चे, बड़े और बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए।

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