तीन मूर्ख ब्राह्मण और शेर – Three Foolish Brahmins and Lion

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आज की कहानी बहुत ही रोचक हैं जो बच्चों की सबसे पसंदीदा कहानियों में से एक हो सकती। यह कहानी आपके बच्चे के अंदर बौद्धिक परिवर्तन ला सकती हैं। जबकि, इस कहानी के माध्यम से आपके बच्चे के अंदर सोचने और समझने की प्रवृत्ति में बदलाव दिख सकता हैं। यह कहानी बच्चे के मनोरंजन के साथ-साथ सही और गलत में अंतर करने में सहायक सिद्ध होगी जोकि इस प्रकार हैं:

ब्राम्हण का परिचय:

भरतपुर नामक गाँव में हरीराम नाम का एक पंडित रहता था, जो बहुत विद्वान और ज्योतिष था। उसके पास दूर-दूर से लोग अपने भविष्य को जानने के लिए आते थे। हरीराम अपने आसपास तथा दूर के गाँव तक पूजा-पाठ करवाने जाता था। पंडित हरीराम के चार बच्चे थे, जो बहुत छोटे थे। जो अपनी शिक्षा अपने माता-पिता से ही ले रहे थे।

एक दिन पंडित हरीराम भोजन कर रहे थे, तब उनकी पत्नी जानकी ने बोला ”स्वामी अब तो हम लोग धीरे-धीरे बूढ़े होते जा रहे हैं और हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं। जिनको हम कब तक ऐसे घर में शिक्षा देते रहेंगे”। हमें अपने बच्चों को गुरुकुल में शिक्षा दिलवानी चाहिए, जिससे हमारे बच्चों का सम्पूर्ण विकास हो सके

पंडित जी ने बोला,” हाँ जानकी आप ठीक कह रही हो” आज मैं गुरुकुल जाकर अपने बच्चों का दाखिला करवा देता हूँ। क्योंकि अब मुझे भी अपनी जजमानी मे पूजा-पाठ करवाने में कठिनाई होती हैं। अगर मैं घर पर बैठा रहा, तो हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा। जबकि यदि हमारे बच्चे ज्योतिष विद्या सीख कर हमारे साथ पूजा पाठ करेंगे तो हमारे घर की आय दुगुनी हो जाएगी।

पंडित के बच्चों की शिक्षा:

अगली सुबह पंडित हरीराम अपने चारों बच्चों को लेकर गुरुकुल गए। वहाँ पर कुछ साधारण से सवाल जवाब के बाद चारों बच्चों का दाखिला हो गया। चारों बच्चों ने खूब मन लगा कर ज्योतिष विद्या ग्रहण की और उनकी पढ़ाई पूरी हो गई। अब बच्चे बड़े हो गये थे, जोकि अपना हाथ अपने पिता जी की जजमानी में बटाने लगे। पंडित जी के चारों बच्चों में तंत्र तथा ज्योतिष विद्या का अथाह ज्ञान था। जिसके कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई थी।

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पंडित के बच्चों की प्रशंसा सुन, उस साम्राज्य के राजा ने अपने दरबार में पंडित के चारों बेटों को आने के लिए आमंत्रण भिजवाया। पंडित के बच्चों ने राजा का आमंत्रण पाकर अपनी बुद्धि का अभिमान करने लगे और चारों बेटे हंसने लगे और बोलें,” चलो आज राजा की हस्त रेखा को देखने चलते हैं”। और चारों भाई एक साथ जंगल के रास्ते से निकल गए। बीच जंगल में पहुँच कर चारों भइयों ने एक मरे हुए शेर की खाल पड़ी हुई देखी, आगे और जाने पर शेर के अस्थिर-पंजर भी दिखाई दिए।

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तीनों भाइयों की मूर्खता:

सबसे बड़े भाई ने कहा, कि हम लोग पैदल जा रहे हैं अगर हम इस शेर को जिंदा करके, इसके ऊपर बैठ कर राजा के महल में जाएंगे तो हमारी इज्जत बहुत बढ़ जाएगी। मैं इस शेर को उसकी खाल और अस्थि पंजर से जोड़ सकता हूँ। दूसरे भाई ने बोला मैं इसके अंदर रक्त संचार और शरीर को पहले जैसा बना सकता हूँ। तीसरे भाई ने बोला मैं इसको तंत्र विद्या के माध्यम से जीवित कर सकता हूँ। चौथे भाई ने बोला हमें ऐसा नहीं करना चाहिए हमें सीधे राजा के दरबार में जाना चाहिए। क्योंकि अगर शेर जिंदा हो गया तो वह हम सभी को मार कर खा जाएगा।

उसकी बातें सुन तीनों भाई जोर-जोर से हँस पड़े और बोले मेरे डरपोक भाई अगर हम शेर को जिंदा कर सकते हैं तो उसको अपने अनुसार चला सकते हैं। शेर वही करेगा जो हम कहेंगे। सबसे छोटे भाई की बात किसी ने नहीं मानी और शेर की खाल अस्थि पंजर को एकट्ठा करके, तीसरे भाई ने अपने कमंडल से जल निकाल कर शेर को जीवित करने के लिए मंत्रों का उच्चारण करना शुरू करने वाला ही था तो सबसे छोटे भाई से बोला रुको मैं पेड़ पर चढ़ जाता हूँ, उसके बाद शेर को जिंदा करो।

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छोटे भाई से सीख:

सबसे छोटा भाई पेड़ पर चढ़ जाता हैं और तीनों भाई अपनी तंत्र विद्या से शेर को जिंदा कर देते हैं। शेर उठ खड़ा होता हैं और दहाड़ मारकर तीनों भाइयों को एक-एक कर के खा जाता हैं। यह सब पेड़ के ऊपर चढ़ा छोटा भाई देख रहा होता हैं। जो अपने मन के अंदर बहुत दुखी होता हैं। शेर के जाने के बाद छोटा भाई पेड़ से नीचे आकर देखता हैं तो सिर्फ हाँड़ मांस के लोथड़े दिखते हैं।

वह तेजी से अपने घर की तरफ भागता है और घर जा कर सारा दृष्टांत अपने माता-पिता को सुनता हैं। देखते ही देखते पूरे गाँव में हाहाकार मच जाता हैं और पंडित हरीराम और उनकी पत्नी, यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और दिल का दौरा पड़ने के कारण दोनों की मृत्यु हो जाती हैं।

कहानी से नैतिक सीख:

हमें अपने बुद्धि और विवेक के साथ काम करना चाहिए। क्योंकि, जब शेर जानवर होकर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता, वह पहले की तरह ही शिकार करेगा। तो हमें अपनी विद्या का प्रयोग ऐसी जगह क्यों करना चाहिए, जो हमें हानि पहुंचाए।

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