आज की कहानी रोमांचक और मनोरंजन से भरपूर हैं। इस तरह कि कहानी बच्चों की सबसे पसंदीदा कहानियों में से एक हो सकती। यह कहानी बच्चे के अंदर बौद्धिक विकास में सहायक हो सकती हैं। जबकि, इस कहानी के माध्यम से आपका बच्चा सही और गलत में फर्क समझ सकता हैं, जोकि निम्न प्रकार से हैं:
कहानी की रूपरेखा:
भरतपुर नामक गाँव में गंगाराम नाम का एक पंडित रहता था। वह बहुत विद्वान और ज्योतिषी था। उसके पास दूर-दूर से लोग अपने भविष्य को जानने के लिए आते थे। गंगाराम अपने आसपास तथा दूर के गाँव तक पूजा-पाठ करवाने जाता था। पंडित गंगाराम के चार बच्चे थे, जो बहुत छोटे थे। वे अपनी शिक्षा अपने माता-पिता से ही ले रहे थे।
एक दिन पंडित गंगाराम भोजन कर रहे थे। तभी उसकी पत्नी जानकी ने कहा, ”स्वामी! अब तो हम लोग धीरे-धीरे बूढ़े होते जा रहे हैं और हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं। जिन्हे हम कब तक ऐसे घर में शिक्षा देते रहेंगे”। हमें अपने बच्चों को गुरुकुल में शिक्षा दिलवानी चाहिए। जिससे हमारे बच्चों का सम्पूर्ण विकास हो सके।
पंडित जी ने कहा,”हाँ! जानकी आप ठीक कह रही हो” आज मैं गुरुकुल जाकर अपने बच्चों का दाखिला करवा देता हूँ। क्योंकि अब मुझे भी अपनी जजमानी मे पूजा-पाठ करवाने में कठिनाई होती हैं। अगर मैं घर पर बैठा रहा, तो हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा। जबकि यदि हमारे बच्चे ज्योतिष विद्या सीख कर हमारे साथ पूजा पाठ करेंगे तो हमारे घर की आय दुगुनी हो जाएगी।
पंडित के बच्चों की शिक्षा:
अगली सुबह पंडित गंगाराम अपने चारों बच्चों को लेकर गुरुकुल गए। वहाँ पर कुछ साधारण से सवाल जवाब के बाद चारों बच्चों का दाखिला हो गया। चारों बच्चों ने खूब मन लगा कर ज्योतिष विद्या ग्रहण की और उनकी पढ़ाई पूरी हो गई। अब बच्चे अपने पिता की जजमानी में अपना हाथ में बटाने लगे थे।
और कहानी पढ़ें: Hindi Tales with Moral – मजेदार कहानियाँ नैतिक सीख के साथ
पंडित जी के चारों बच्चों को तंत्र तथा ज्योतिष विद्या का अथाह ज्ञान हो गया। जिसके कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई थी। पंडित के बच्चों की प्रशंसा सुन, उस राज्य के राजा उदयभान सिंह ने अपने दरबार में पंडित के चारों बेटों को आने के लिए आमंत्रण भिजवाया। पंडित के बच्चों ने राजा का आमंत्रण पाकर अपनी बुद्धि का अभिमान करने लगे।
चारों बेटे हँसते हुए कहने लगे, “चलो आज राजा की हस्त रेखा को देखने चलते हैं”। चारों भाई एक साथ जंगल के रास्ते से निकल गए। बीच जंगल में पहुँच कर चारों भइयों ने एक मरे हुए शेर की खाल पड़ी हुई देखी, आगे और जाने पर शेर के अस्थिर-पंजर भी दिखाई दिए।

तीनों भाइयों की मूर्खता:
सबसे बड़े भाई ने कहा, “हम लोग पैदल जा रहे हैं। अगर हम इस शेर को जिंदा करके, इसके ऊपर बैठ कर राजा के महल में जाएंगे तो हमारी इज्जत और बढ़ जाएगी। मैं इस शेर को उसकी खाल और अस्थि पंजर से जोड़ सकता हूँ।” दूसरे भाई ने कहा, “मैं इसके अंदर रक्त संचार और शरीर को पहले जैसा बना सकता हूँ।” तीसरे भाई ने कहा, “मैं इसको तंत्र विद्या के माध्यम से जीवित कर सकता हूँ।”
चौथे भाई ने कहा, “नहीं…नहीं हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें सीधे राजा के दरबार में जाना चाहिए। क्योंकि अगर शेर जिंदा हो गया तो वह हम चारों को मार कर खा जाएगा। उसकी बातों को सुनकर तीनों भाई जोर-जोर से हँस पड़े और बोले, “मेरे डरपोक भाई अगर हम शेर को जिंदा कर सकते हैं तो उसको अपने अनुसार चला भी सकते हैं।”
और देखें: दो भइयों की कहानी – विजय का त्याग और सुरेश की सफलता
शेर वही करेगा जो हम कहेंगे। सबसे छोटे भाई की बात किसी ने नहीं मानी और शेर की खाल अस्थि पंजर को एकट्ठा करके, तीसरे भाई ने अपने कमंडल से जल निकाल कर शेर को जीवित करने के लिए मंत्रों का उच्चारण करना शुरू करने वाला ही था तो सबसे छोटे भाई से कहा, रुको! मैं पेड़ पर चढ़ जाता हूँ, उसके बाद शेर को जिंदा करो।
छोटे भाई से सीख:
सबसे छोटा भाई पेड़ पर चढ़ जाता हैं और तीनों भाई अपनी तंत्र विद्या से शेर को जिंदा कर देते हैं। शेर दहाड़ मारकर उठ खड़ा होता हैं। वह अपने सामने तीनों भाइयों को देख, उन पर टूट पड़ता है। तीनों को मारकर खा जाता हैं। यह सब पेड़ के ऊपर चढ़ा छोटा भाई देख रहा होता हैं। वह बहुत दुखी होता हैं। शेर के जाने के बाद छोटा भाई पेड़ से नीचे आकर देखता हैं तो सिर्फ हाँड़ मांस के लोथड़े दिखते हैं।
वह तेजी से अपने घर की तरफ भागता है और घर जा कर सारा दृष्टांत अपने माता-पिता को सुनता हैं। देखते ही देखते पूरे गाँव में हाहाकार मच जाता हैं। पंडित हरीराम और उनकी पत्नी, यह सदमा बर्दाश्त न कर सके उन्हें दिल का दौरा पड़ने के कारण दोनों की मृत्यु हो जाती हैं।
नैतिक सीख:
हमें अपने बुद्धि और विवेक के साथ काम करना चाहिए।