हिंदी कहानियां बच्चों के लिए भाषा के विकास में सहायक होती हैं। जबकि, कहानियों से बच्चे का मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी होता हैं। बच्चे के अंदर जागरूकता पैदा करने के लिए कहानी एक बहुत ही सरल माध्यम हैं।
जिससे बच्चे के मानसिक विकास को भी बढ़ावा मिलता हैं। इसलिए, हम कहानीज़ोन के हर लेख में बच्चों की समझ के अनुसार कहानियां बताने की कोशिश करते हैं। कहानीज़ोन की आज की कहानी कुछ इस प्रकार से हैं:
1. यमदूत और मूर्तिकार – Yamdoot aur murtikar:

बात बहुत पुरानी हैं, किसी गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। जोकि, अपने पिता और दादा से मूर्तिकारी करना सीखा था। धीरे-धीरे जब वह बड़ा हो गया तो उसके हाथों में ऐसी कला आ गई कि वह मूर्ति को किसी भी व्यक्ति के समान हू-बहू तराश सकता था। वह सुबह से शाम तक मूर्तियों को तराशता रहता था। धीरे-धीरे अब वह बुढ़ा हो चुका था। वह अपने आप से बहुत प्यार करता था।
लेकिन, उसे लगने लगा था कि उसका अब अंतिम समय आने वाला हैं। इसलिए, उसने अपने ही रूप की तरह कई मूर्तियाँ तैयार कर ली। उसने मूर्तियों को इस तरह से तैयार किया कि लोग मूर्ति और मूर्तिकार के बीच कोई अंतर नहीं कर पा रहे थे। मूर्तिकार ने सोचा कि इस तरह से वह यमदूत को भी असमंजस में डाल देगा। जिससे वह मुझे स्वर्ग नहीं ले जा सकता।
एक दिन यमदूत उसके घर पर आए। मूर्तिकार ने अपने आपको मूर्तियों के बीच खड़ा किया था। कई सारी मूर्तियों को देखकर यमदूत भी घबरा गया। उसने सोचा कि अगर हम बिना मूर्तिकार को लिए वापस स्वर्गलोक में जाएंगे तो यमराज हमें माँफ नहीं करेंगे। जबकि, यमदूत उन मूर्तियों को तोड़कर कला को क्षति भी नहीं पहुंचाना चाहता था। यमदूत मूर्तियों के सामने आकर कहता हैं।
बनाने वाले ने मूर्तियाँ कितनी खूबसूरत बनाई हैं। लेकिन, एक गलती कर दी हैं। जिससे असली और नकली में पहचान हो सके। काश! मूर्ति बनाने वाला इंसान मेरे सामने होता तो मैं उसके द्वारा की गई कमियों के बारे में बात सकता था। यमदूत की बातों को सुनकर मूर्तिकार अभिमान से भर गया। वह सोचता हैं कि मैंने इतनी मेहनत करके इन मूर्तियों को तराशा हैं। इन सभी मूर्तियों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं हो सकती।
वह तुरंत मूर्तियों के बीच से बाहर आकर कहा- “इन मूर्तियों में कोई कमी हो ही नहीं सकती” क्योंकि मेरे जैसा मूर्तिकार इस दुनिया में कोई नहीं हैं। यमराज तुरंत मूर्तिकार को पकड़ लिया। और उससे कहता हैं- “यही कमी हैं! इन मूर्तियों के अंदर अभिमान नहीं हैं। जबकि, तुम अभिमान से भरे हो जिसके कारण तुम पकड़े गए। यमराज तुरंत मूर्तिकार की आत्मा को लेकर यमलोक के लिए चले गए।
नैतिक सीख:
अभिमान हमेशा बने हुए कार्य को खराब कर देता हैं।
2. गुस्सा खतरनाक होता हैं – Gussa khatarnak hota hain:

एक समय की बात हैं किसी गाँव में हरीराम नाम का एक लोहार रहता था। उसका एक बेटा था, जिसका नाम सुरेश था। जिसे बात-बात में गुस्सा आ जाता था। वह बहुत गुस्सैल स्वभाव का बच्चा था। एक दिन उसके पिता ने उसके गुस्से से होने वाले नुकसान के बारें में समझाने के लिए कीलों से भरा एक डिब्बा दिया। उसने कहा- “बेटा जब भी तुम्हें गुस्सा आए तो एक कील निकाल कर इस बोर्ड पर ठोक देना।”
सुरेश ने पहले ही दिन बोर्ड पर कई कीलें ठोक दी। धीरे-धीरे कीलें कम होती गई। इस तरह से एक दिन ऐसा भी आया कि उसे एक भी कील ठोंकने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सुरेश के पिता ने उसे समझाते हुए कहा कि अब जिस दिन तुम्हें गुस्सा न आए, उस दिन इस बोर्ड में से एक कील बाहर निकाल देना। इस तरह से कुछ दिनों में उस बोर्ड की सारी कीलें निकल गई।
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एक दिन उसके पिता ने उसे लकड़ी का बोर्ड दिखाते हुए समझाया कि- “जिस तरह गुस्से में तेजी से ठोंकी गई कीलों से पूरा बोर्ड खराब हो गया। ठीक उसी प्रकार से तुम्हारा गुस्सा तुम्हारे मस्तिष्क में कीलें ठोंकने का काम करता हैं। जरा सोचो! तुम्हारे शांत होने के बाद तुम्हारे मस्तिष्क का भी बोर्ड की तरह ही हाल होता होगा। जोकि तुम्हारे लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता हैं।
नैतिक सीख:
गुस्से में लिया गया फैसला व्यक्ति को जल्दी पतन की ओर ले जाता हैं।
3. आलसी व्यक्ति – Alsi vykti:

डाकू ने लूटने के चक्कर में एक आलसी व्यक्ति को पकड़ लिया। जब वे लोग उसे अपने गिरोह में ले गए तो सघन तालाशी के बाद उसके पास कुछ भी नहीं मिला। डाकुओं को अब बहुत पछतावा होने लगा। उन लोगों ने सोचा चलो अब इस व्यक्ति से कुछ काम ही करवा लिया जाए। आलसी व्यक्ति को लूटे हुए पैसों को गिनने का काम दिया गया। लेकिन, वह उस काम को भी ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा था।
डाकुओं के सरदार ने उसे एक रेगिस्तान में छुड़वा दिया। आलसी व्यक्ति ने वहाँ पहुंचकर देखा तो उसे दूर-दूर तक कुछ नजर नहीं आ रहा था। उसने आसमान की तरफ देखा और भगवान को कोसते हुए कहा- “हे भगवान! इतनी खाली बंजर जमीन पड़ी हैं, यदि यहाँ पर कुछ पानी की व्यवस्था होती तो यह जमीन हरी-भरी हो जाती। इतना कहकर वह कुछ दूर और आगे बढा।
अचानक उसे एक कुआँ दिखाई दिया। जोकि पानी से लबालब भरा हुआ था। उसे विश्वास नहीं हुआ कि इस रेगिस्तान में कुआँ भी हो सकता हैं। उसने भगवान का धन्यवाद किए बिना कहने लगा कि कुआँ तो ठीक हैं लेकिन उससे पानी निकालने और इन जमीनो की जुताई के लिए भी कुछ जतन होना चाहिए था।
तभी वह पीछे मुड़कर देखा तो ऊँट खड़ा हुआ था। जिसके साथ खेत जोतने के लिए हल लगे होते हैं। इसके अलावा वही एक पाइप भी रखी होती हैं। यह सब देख वह घबरा गया। वह आलसी व्यक्ति सोचने लगता हैं कि कही हमें यहाँ पर खेती करनी न पड़ जाएं। अब वह बिना कुछ बोले चुप-चाप अपने घर का रास्ता खोजने के लिए निकल गया।
इतने में ऊपर से उसे आवाज आई, ठहरो! तुमने जो कामना की वह तुम्हें मिल गया। अब इस जमीन को हर-भरा बनाना तुम्हारे हाथ में हैं या फिर इसे बंजर रहने दो। इस तरह से वह अपने आलस को त्याग कर उसी जमीन पर खेती करने लगा हैं। धीरे-धीरे वह उस बंजर जमीन को हरा-भरा बना दिया।
नैतिक सीख:
आलस के कारण हम अपने अंदर छिपे गुणों को नहीं पहचान पाते हैं। हमें अपने आलस का त्याग करना चाहिए।
4. सच्चा दोस्त कौन – Sachcha dost kaun:

किसी गाँव में सुंदर लाल नाम का व्यक्ति रहता था। उसके घर के साथ में तीन और परिवार रहते थे। सुंदर लाल का तीनों परिवारों से बहुत अच्छा तालमेल था। सभी चारों परिवार के लोग दोस्त की तरह रहते थे। धीरे-धीरे समय बीता सुंदर लाल का एक दोस्त महेश अपना घर वहाँ से बेचकर किसी और शहर में बस गया। अब उसका उस गाँव में आना-जाना नहीं होता था।
लेकिन, सुंदर लाल बहुत ही अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे। वें महेश को महीने में एक बार पत्र लिखकर हालचाल जरूर लेते थे। कुछ समय बाद दूसरे घर में रहने वाले व्यक्ति मुन्ना की नौकरी शहर में लगने के कारण, उसका सप्ताह में एक बार रविवार के दिन घर आना होता था। लेकिन, सुंदर लाल हर रविवार को मुन्ना से मिलकर उसका हालचाल जरूर लेता था।
जबकि, सुंदर लाल के बगल में रह रहे मोहन से प्रतिदिन मुलाकात हो ही जाती थी। इस तरह से चारों परिवार अलग-थलग जरूर हो गए थे। लेकिन, वही मिठास अभी चारों के अंदर देखने को मिलती थी। एक साल में चारों एक बार जरूर मिलते थे। जिनको मिलाने में सबसे अहम भूमिका सुंदर लाल की होती थी।
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एक बार सुंदर लाल किसी की पंचायत में गए हुए थे। वहाँ बात कुछ ज्यादा बिगड़ गई, जिससे सुंदर लाल के ऊपर केस हो गया। सुंदर लाल के वकील ने एक गवाह बुलाने के लिए कहा जो तुम्हें जानता हो। उसने सबसे पहले अपने पड़ोसी दोस्त मोहन से गवाही देने के बारे में कहा- “मोहन ने यह कहते हुए सुंदर लाल को मना कर दिया कि यारी-दोस्ती अपनी जगह हैं, पर मैं किसी भी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहता।
आप किसी और से गवाही देने के बारे में बात कर लो। मोहन की बात सुनकर सुंदर लाल को अच्छा नहीं लगा। सुंदर लाल ने अब मुन्ना से बात की, जोकि सप्ताह में एक दिन घर आते थे। मुन्ना ने भी यह कहते हुए मना कर दिया कि “मेरी सरकारी नौकरी हैं, कल को कुछ हो जाए तो मुझे दिक्कत हो जाएगी।” हाँ अगर कहो तो आपके साथ कोर्ट के गेट तक चल लूँगा। अब सुंदर लाल को और अधिक निराशा हाथ लगी।
उसने सोचा जब मुझे अपने इतने करीबी दोस्त साथ देने से मना कर रहे हैं तो दूर के लोग तो तुरंत मना कर देंगे। अगले दिन उसके दिमाग में आया कि उसके घर के पास पहले महेश रहता था। जोकि, अब वहाँ से जा चुका हैं। उससे उसने आधे-अधूरे मन से गवाही देने के लिए कहा तो- “वह आगे से कहता हैं- कब, कहाँ और किसके सामने गवाही देना हैं। मैं तैयार हूँ बताओ कब आना हैं।”
नैतिक शिक्षा:
मुसीबत में जो काम आए वही सच्चा मित्र कहलाता है।