निर्भरता से आत्मनिर्भरता तक – The story of Grandmother and Bird

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भूमिका:

किसी जंगल में नदी के किनारे एक बूढ़ी दादी छोटी सी झोपड़ी में रहती थी। उस जंगल में उसका कोई नहीं था। वह बगल के गाँव से कुछ खाने के लिए मांग कर लाती थी। जिसे वह चिड़िया और उसके बच्चों के साथ मिलकर खाती थी। चिड़िया और उसके बच्चे बूढ़ी दादी की झोपड़ी के बगल में पेड़ पर रहते थे। इस प्रकार से उन चिड़ियाँ को बैठे बैठाए खाने को मिल जाता था। जिसके कारण वें सभी चिड़ियाँ कही खाने की खोज में भी नहीं जाती थी। वे आकाश में उड़ान भरना भी भूल चुकी थी।

धीरे-धीरे दिन बीतते गए। अब बूढ़ी दादी को गाँव जाने में परेशानी होने लगी थी। क्योंकि उसके हाथ पैर पहले की तुलना में अब काम नहीं कर रहे थे। लेकिन, बूढ़ी दादी हमेशा यही सोचती थी, अगर मैं गाँव से खाना लाने नहीं गई तो मेरे सहारे बैठी चिड़िया क्या खाएँगी। एक दिन बूढ़ी दादी ने चिड़िया से कही, “देखो मेरी उम्र बहुत ज्यादा हो गई हैं। मेरा कोई भरोसा नहीं हैं कब प्राण तन से निकल जाए। तुम लोग कहीं और चले जाओ और अपने बच्चों को दूर आकाश में भी उड़ना सिखाओ जिससे वें अपने लिए खाने की व्यवस्था कर सके।

बूढ़ी दादी की मृत्यु:

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लेकिन चिड़िया ने उस बूढ़ी दादी की बात नहीं मानी। उन्होंने कहा, “आप का साथ छोड़कर हम कही नहीं जाएंगे, हम आप के साथ ही रहेंगे। अगले दिन सुबह बूढ़ी दादी अपने घर से बाहर नहीं निकली। चिड़िया ने सोचा क्या हुआ, आज दादी हमारे लिए खाना लेकर नहीं आई। जब चिड़िया ने झोपड़ी में जाके देखा तो बूढ़ी दादी की मृत्यु हो चुकी थी।

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अब चिड़िया और उसके बच्चे परेशान हो उठे और सोचने लगे की उनका जीवन कैसे चलेगा। उनके पंख तो ज्यादा ऊंचाई भी नहीं नाप सकते हैं। उस रात चिड़िया और उसके बच्चे भूखे ही सो गए। अगली सुबह चिड़िया ने प्लान बनाया कि हम जंगल के बगल वाले गाँव में जाएंगे वहाँ पर हमें कुछ खाने को मिल जाएगा।

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चिड़िया और उसके सभी बच्चों ने एक साथ गाँव जाने के लिए उड़ान भर दी। लेकिन, कुछ दूर उड़ने के बाद उनके बच्चों के अंदर उड़ने की क्षमता खत्म हो चुकी थी। जिसके कारण वे सभी एक पेड़ पर कुछ समय के लिए रुक गए। उसी पेड़ पर उस जंगल की बहुत बुजुर्ग पंछी रहती थी। चिड़िया और उसके बच्चों को देख, उसने कहा, “आप लोग बहुत परेशान लग रहे हो, क्या मैं आप की कोई मदद कर सकती हूँ।”

चिड़िया और बुजुर्ग पंछी:

चिड़िया ने अपनी सारी बात उस बुजुर्ग पंछी को बता दी। जिसको सुनकर उस पंछी ने कहा,”आप लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी हैं। आप लोगों को बूढ़ी औरत की बात मानकर समय रहते अपने जीने का सहारा ढूँढ लेना चाहिए था। बैरहाल, मैं आपको एक ऐसी जगह ले चलूँगी जहाँ पर आपको और आपके बच्चों को खाने और पीने को अच्छा-अच्छा खाना मिल जाएगा।

लेकिन आपको और आपके बच्चे को मुझसे एक वादा करना पड़ेगा। भूखी चिड़िया बोली,”हमें आप की सारी शर्त मंजूर हैं, बताओ वह शर्त क्या हैं।” बुजुर्ग पंछी ने कहा, “आप अपने बच्चे को दूर आकाश में उड़ना सीखाओगी और उन्हे खुद अपना खाना एकठ्ठा करने के लिए बोलोगी, चिड़िया बोली ठीक हैं। अब जल्दी चलो हमें उस जगह को दिखा दो जहाँ पर हमें खाने को कुछ मिल सके।

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बुजुर्ग पंछी, चिड़िया और उसके बच्चों को लेकर गाँव के बगल एक खेत में चली गई जहाँ पर फसल लगी हुई थी। वहाँ पर बैठकर चिड़ियाँ और उसके बच्चों ने अपनी भूख मिटाई और उसके आस-पास की फसल देख कर सभी चिड़िया खुशी से झूम उठी। लेकिन, चिड़िया अपने बच्चों को बुजुर्ग पंछी से किए गए वादे के अनुसार हमेशा समझाती रहती और उन्हें आकाश की ऊँचाइयों को नापने में महारथ हासिल करवा दिया।

इस प्रकार चिड़िया को बहुत बड़ी सीख मिली, जिसके लिए उसने उस बुजुर्ग पंछी को धन्यवाद कहा और आगे से सतर्क रहने तथा आलस को त्यागने का वचन भी दिया। अब चिड़िया और उसके बच्चों के जीवन में खुशियों की बाहर आ गई थी।

नैतिक सीख: 

हमें किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहना चाहिए, हमें अपने समर्थ और शक्ति का प्रयोग करके अपने जीवन का निर्वाह करना चाहिए।

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