शिक्षा और मनोरंजन से भरपूर बच्चों की मनपसंद छोटी नैतिक कहानियाँ। इस तरह की कहानियों से बच्चों के बौद्धिक विकास में बढ़ावा मिलता हैं। इसके अलावा बच्चे को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। इसलिए आज हम आपको 5 छोटी नैतिक कहानियाँ सुनाने जा रहे हैं जोकि, निम्नलिखित प्रकार से हैं:
1. प्रबल आत्मविश्वास – Prbal atmvishvas:

राजेन्द्र पढ़ने में बहुत तेज था। उसकी परीक्षाएं खत्म हो चुकी थी कुछ दिन बाद परिणाम घोषित हुआ। वह अपने प्रिंसपल के पास गया। प्रिंसपल राजेन्द्र से कहते हैं- राजेन्द्र परीक्षाफल घोषित हो गया हैं। लेकिन, तुम्हारा नाम नहीं हैं। राजेन्द्र प्रिंसपल से कहता हैं- “सर ऐसा असंभव हैं, आप एक बार फिर से मेरा नाम परीक्षाफल में देखे, मुझे पूरा विश्वास हैं कि मेरा नाम जरूर होगा।”
प्रिंसपल राजेन्द्र के ऊपर गुस्सा दिखते हुए कहते हैं- “अब तुम मुझे बताओगे कि मुझे कहाँ पर देखना चाहिए, तुम अनुत्तीर्ण हो गए हो।” राजेन्द्र ने फिर से प्रिंसपल से कहा, श्रीमानजी! कृपया आप एक बार फिर से परीक्षाफल देख ले, मेरा नाम जरूर होगा। क्योंकि, मेरी परीक्षा अच्छी हुई थी।
प्रिंसपल ने कहा- “अगर तुम परीक्षा में उत्तीर्ण हुए होते तो परीक्षाफल में तुम्हारा नाम अवश्य होता। तुम अब कक्षा में जाओ फिर से पढ़ाई करो और मेरा समय खराब मत करो। मैं तुम पर मेरा समय खराब करने के जुर्म में दस रुपये का जुर्माना लगाता हूँ। अब मेरा और अधिक समय खराब किया तो तुम्हारा जुर्माना बढ़ा दूंगा।
राजेन्द्र ने फिर से प्रिंसपल को याद दिलाते हुए कहा- “सर हो सकता हैं गलती से मेरा नाम छूट गया हो, कृपया एक बार आप फिर से चेक करवा ले, तो मेरे लिए अच्छा होगा। प्रिंसपल, गुस्से में उसके जुर्माने को बढ़ाकर पचास रुपए तक कर दिया। प्रिंसपल और राजेन्द्र की बातचीत चल रही थी, इतने में स्कूल का हेड क्लर्क प्रिंसपल से मिलने आया।
उसने प्रिंसपल से कहा, “सर एक गलती हो गई, स्कूल का एक बच्चा जिसके मार्क्स सबसे अधिक हैं। उसका नाम परीक्षाफल में अंकित होने से रह गया। प्रिंसपल कहता हैं वह छात्र कौन हैं? हेड क्लर्क कहता हैं- ”सर उस बच्चे का नाम राजेन्द्र प्रसाद हैं।” वहीं खड़े बच्चे ने कहा- “सर मैं आप से कह रहा था कि परीक्षा परिणाम में कही गलती हुई हैं।”
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प्रिंसपल अपनी कुर्सी से उठकर बच्चे को अपने गले से लगा लिए। वह बच्चे से कहता हैं ऐसा मजबूत आत्मविश्वास अपने जीवन में हमेशा तथा हर परिस्थितियों में बनाए रखना। क्या आपको पता हैं वह बच्चा कौन था? वह बच्चा भारत का प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे।
नैतिक शिक्षा:
अपनी महेनत और लगन के साथ-साथ अपने आत्मविश्वास को भी मजबूत और अडिग बनाए रखना चाहिए।
2. बुढ़ा और बुढ़िया – Budha aur budhiya:

किसी गाँव में एक बुढ़ा और बुढ़िया रहते थे। दोनों बहुत आस्थावान थे, जो हमेशा पूजा-पाठ किए बिना खाना-पीना नहीं खाते थे। धीरे-धीरे दोनों अधिक बुजुर्ग होते जा रहे थे। एक दिन बुढ़ा ने बुढ़िया से कहा- “मेरा मन तीर्थयात्रा पर चलने का कर रहा हैं।” बुढ़िया कहती हैं, लेकिन अपने घर में इतना पैसा नहीं हैं कि हम दोनों तीर्थयात्रा पर जा सके।
बुढ़ा कहता हैं- “क्यों न हम अपनी गाय को बेच दें, जिसके हमें अच्छे पैसे मिल जाएंगे। उन्ही पैसों से हम तीर्थयात्रा पर चले जाएंगे। बुढ़ा और बुढ़िया को गाय बेचने के बारे में बात करते हुए उसके गाँव के कुछ ठग सुन लेते हैं और वे सभी बुढ़े को ठगने की योजना बनाते हैं। अगली सुबह जब बुढ़ा गाय को लेकर बाजार बेचने जा रहा था।
एक ठग उसे रास्ते में मिला और उसने कहा- “बाबा इस बकरी को कहाँ लेकर जा रहे हो? बुढ़ा कहता हैं- “मूर्ख तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा क्या? यह गाय हैं, बकरी नहीं।” यह कहते हुए बुढ़ा आगे बाजार की ओर बढ़ जाता हैं। बुढ़ा कुछ दूर और आगे चलने के बाद उसे एक और ठग मिला- “उसने कहा, “बाबा इस बकरी को कहाँ लेकर जा रहे हो। बुढ़ा आदमी फिर से गुस्से में आ जाता हैं।
वह कहता हैं- “मूर्ख इंसान यह गाय हैं, बकरी नहीं।” इसी तरह से ठगों ने दो तीन आदमी और खड़े कर रखे थे। जोकि, इसी तरह के प्रश्न पूछ रहे थे। तभी किसी ठग ने पूँछ ही लिया बाबा इस बकरी को मुझे बेच दो। वह बुजुर्ग व्यक्ति लोगों की बातों में आ गया। वह अपनी गाय को बकरी के मूल्य में तीसरे ठग को बेचकर वापस घर चला आया।
नैतिक शिक्षा:
हमें कभी किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
3. कछुआ, लोमड़ी और भेड़िया – Kachua lomadi aur bhediya:

किसी नदी के किनारे एक कछुआ और लोमड़ी रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। लोमड़ी प्रतिदिन दूर किसी जंगल से कछुए से मिलने आती थी। एक दिन कछुए ने कहा- “लोमड़ी बहन तुम प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर मुझसे मिलने आती हो, कभी अगर आपके ऊपर किसी भेड़िए की नजर पड़ जाए तो अनर्थ हो जाएगा। क्यों न यहीं अपने रहने के लिए एक गुफा बना लो।
लोमड़ी को अपने दोस्त की बात बहुत पसंद आई। लोमड़ी ने अपने रहने के लिए उसी नदी के किनारे एक गुफा की खोज कर ली। एक दिन नदी के किनारे लोमड़ी और कछुआ बैठे बात कर रहे थे। अचानक लोमड़ी की नजर एक भेड़िए के ऊपर पड़ी। लोमड़ी तुरंत अपनी गुफा में छिप गई। जबकि कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण पानी में नहीं जा पाया।
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भेड़िए ने कछुए को दबोच लिया। उसने उसकी खोल पर कई बार वार किए। लेकिन, कछुए की खोल मजबूत होने के कारण उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा। लोमड़ी अपनी गुफा में छिपकर यह सब देख रही होती हैं। उसे अपने दोस्त के ऊपर दया आ रही थी। लोमड़ी अपना दिमाग चलाती हैं, वह कहती हैं- “भेड़िया भईया आप कछुए को इस तरह से पटक कर बाहर नहीं निकाल सकते।
आप चाहो तो इस तालाब के पानी में कछुए को डाल दो, पानी में कछुए का खोल गल जाएगा, जिससे आप इसे आसानी से खा सकते हो। भेड़िए ने कछुए को पानी में डाल दिया। मौका पाते ही कछुआ पानी में तैर कर भाग गया।
नैतिक शिक्षा:
सच्चा मित्र वही होता हैं, जो मुश्किल वक्त में काम आए।
4. चतुर लोमड़ी मूर्ख कौवा – Chatur lomadi murkh kauva:

एक समय की बात हैं एक कौवा कई दिनों से भूखा था। उसने आसमान में उड़ते-उड़ते एक घर के आँगन में देखा कि एक छोटा बच्चा रोटी खा रहा हैं। कौवा आँगन में नीचे आता हैं वह बच्चे के पास रखी रोटी लेकर उड़ जाता हैं। कौवा उड़ते-उड़ते नदी के किनारे एक पेड़ पर जाकर बैठता हैं। कौवा बहुत भूखा था। उसे अपनी भूख बर्दाश नहीं हो रही थी। उसने सोचा चलो जल्दी से रोटी को खा लेते हैं।
इतने में उस पेड़ के नीचे एक लोमड़ी आती हैं। लोमड़ी कौवे को रोटी लिए हुए देख, उसके मुँह में पानी भर आता हैं। वह सोचने लगती हैं कि उसे रोटी कैसे मिल सकती हैं। लोमड़ी अपना दिमाग लगाती हैं और नीचे से मधुर आवाज में कौवे से कहती हैं- “कौवा भईया मुझे चीकू बंदर ने बताया हैं कि आप बहुत अच्छा गाना गाते हैं। जंगल के लोग आपके गाने की बहुत तारीफ करते हैं।
लोग ये भी कह रहे हैं कि आपकी आवाज तो इस जंगल के कुक्कू कोयल से भी अच्छी हैं। कौवा लोमड़ी की बात सुन फुले नहीं समाया। वह कांव-कांव करने लगा और उसकी चोंच से रोटी नीचे गिर जाती हैं। लोमड़ी झट से रोटी लेकर जंगल की तरफ भाग जाती हैं। कौवा अपनी मूर्खता के लिए अपने आप से नफरत करने लगता हैं।
नैतिक शिक्षा:
हमें हर परिस्थिती में अपने आपको एक समान रखना चाहिए।
