ईमानदारी का फल : सुधीर कैसे बना अधिकारी

You are currently viewing ईमानदारी का फल : सुधीर कैसे बना अधिकारी
Image sources: bing.com

सुधीर एक बहुत ही ईमानदार लड़का था। उसके परिवार में उसकी माँ और उसका एक छोटा भाई रहते थे। सुधीर के जन्म के कुछ साल बाद उसके पिता का देहांत हो गया। उसकी माँ घरों में झाड़ू-पोंछा करके पैसे कमाती थी। सुधीर लगभग बारह साल का हो चुका था। उसकी माँ की तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी। जिसके कारण कभी-कभी वह काम पर नहीं जाती थी।

सुधीर बहुत ही बुद्धिमान और होनहार लड़का था। लेकिन अपने घर की परिस्थितियों के आगे वह बेसहारा था। एक दिन उसने सोचा ऐसे हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुछ भी नहीं मिलने वाला। मुझे ही कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा। सुधीर अपने पिता के बंद पड़े दुकान को देखने गया। उसके पिता एक नाई थे। वे बाल काटने का काम किया करते थे। उसने सोचा क्यों न अपने पिता की दुकान को फिर से शुरू करें।

उसने कुछ दिन अपने चाचा के पास जाकर बाल काटना सीख लिया। सुधीर ने बंद पड़े दुकान को साफ करके बाल काटना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी दुकान पर लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। सुधीर का व्यवहार अच्छा होने के कारण उसकी दुकान चलने लगी। क्योंकि सुधीर पूरी लगन के साथ काम करता था।

story-of-a-poor-boy
Image sources: bing.com

एक दिन सुधीर की दुकान पर बाल कटाने एक व्यापारी आया। उसने बातों ही बातों में सुधीर से इतनी कम उम्र में काम करने की वजह पूछा। सुधीर ने उस व्यापारी से अपनी पूरी कहानी बात दी। व्यापारी बहुत धनी था। उसने अपना पैसों से भरा बैग उसकी दुकान पर छोड़कर चला गया। कुछ समय बाद जब सुधीर की नजर बैग पर पड़ी तो उसने देखा की पूरा बैग पैसों से भरा पड़ा था।

इन्हें भी देखें: संगत का प्रभाव – Motivational kahani in hindi

सुधीर ने उस बैग को लेकर अपने दुकान के आस-पास उस व्यापारी को खोजने लगा। लेकिन व्यापारी वहाँ से जा चुका था। वह शाम को पैसों से भरा बैग लेकर घर गया। सुधीर अपनी माँ को सारी बात बता दी। उसकी माँ ने कहा, “बेटा ये पैसे हमारे लिए कागज के टुकड़े हैं। हम इन पैसों को नहीं ले सकते। तुम इस बैग को अपनी दुकान पर ही रखो। एक दिन वह व्यक्ति जरूर अपना बैग लेने आएगा।

धीरे-धीरे महीनों बीत चुके थे। वह बैग सुधीर की दुकान में ही पड़ा रहता था। एक दिन वह व्यापारी फिर से सुधीर की दुकान पर बाल कटाने के लिए आया। सुधीर उसे देखकर कहा, “साहब! उस दिन आप अपना बैग मेरी दुकान में ही भूल गए थे।” आपके जाने के बाद मैंने चारों तरफ आपको खोजा लेकिन आप दिखाई नहीं दिए। ये लो अपना बैग।

सुधीर की ईमानदारी देख व्यापारी ने कहा, “यह सभी पैसे तुम रख लो” अभी तुम्हारी उम्र पढ़ाई करने की हैं न की काम करने की। अब तुम कल से दुकान पर मत आना। अगर तुम्हें किसी भी प्रकार की जरूरत पड़ें तो मुझे इस नंबर पर फोन कर लेना। व्यापारी ने सुधीर और उसके भाई को स्कूल में दाखिल दिलवा दिया। जबकि उसके घर खर्च को खुद संभाल लिया।

सुधीर खूब मेहनत और लगन से पढ़ाई किया। आगे चलकर सुधीर एक दिन बड़ा अधिकारी बन गया। वह व्यापारी के द्वारा किए गए मदद को अपने जीवन पर्यंत कभी नहीं भूला। वह उस व्यापारी को भगवान से बढ़कर मानता था।

नैतिक शिक्षा:

ईमानदारी के साथ मेहनत, लगन और कठोर परिश्रम से कुछ भी हासिल किया जा सकता हैं।

Leave a Reply