छोटी हिन्दी कहानी – कछुआ और भूखा मगरमच्छ

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किसी तालाब में एक मगरमच्छ रहता था। वह धीरे-धीरे पूरे तालाब की मछलियों को खाकर खत्म कर चुका था। जिसकी वजह से अब उसे तालाब में कुछ खाने को नहीं मिल रहा था। एक दिन वह तालाब के किनारे बैठकर जोर-जोर से रो रहा था। उसकी आवाज सुनकर उस तालाब का सबसे बुजुर्ग कछुआ बाहर आया।

मगरमच्छ को रोते हुए देखकर कछुआ ने पूछा- “मगरमच्छ भाई क्या हुआ, क्यों रो रहे हो?” मगरमच्छ कछुए से कहा- “क्या बताऊँ कछुआ भाई मैं कई दिनों से बहुत भूखा हूँ, अब मुझसे भूख बर्दाश्त नहीं हो रही हैं।” कछुआ ने कहा- “क्या हुआ तालाब में मछलियाँ खत्म हो गई क्या? “हाँ, कछुआ भाई अब तालाब में मछलियाँ नहीं बची, जिसे मैं कब का खा कर खत्म कर चुका हूँ।” मगरमच्छ ने कहा।

अब मैं दूसरे तालाब में भी नहीं जा सकता हूँ, क्योंकि अधिक भूखा होने के कारण अब मुझसे चला भी नहीं जा रहा हैं। काश! कोई भेड़िया आ जाता तो आज मैं भरपेट भोजन कर लेता। कछुआ, मगरमच्छ को समझाते हुए कहा- “मगरमच्छ भाई शायद तुमने चींटी और टिड्डे की कहानी जरूर सुनी होगी? उस कहानी में चींटी अपने आने वाले दिनों के लिए खाना बचा कर रखती हैं। जबकि, टिड्डा प्रतिदिन जो मिला उसे खाकर खत्म कर देता था।

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टिड्डे की तरह ही तुमने गलती की हैं। अगर तुमने कुछ मछलियों को बचाकर रखा होता तो आज उससे अपनी भूख मिटा सकते थे। मगरमच्छ कछुए की बात को सुनकर रोने लगता हैं। वह कहता हैं- “कछुआ भाई आज तुम मेरे लिए खाने की व्यवस्था कर दो। मैं आपसे वादा करता हूँ, कि मैं भविष्य में अपने लिए थोड़ा-थोड़ा कर के आने वाले दिनों के लिए खाने की व्यवस्था करके रखूँगा।

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मगरमच्छ की हालत देख, कछुए को उसके ऊपर दया आ गई। कछुआ मगरमच्छ से कहा- “तुम यहाँ पर अपनी साँस को रोककर लेट जाओ।” मगरमच्छ ने कछुए के कहने के अनुसार ही किया। कुछ देर बाद तालाब में पानी पीने के लिए एक भेड़िया आता हुआ दिखाई दिया। कछुआ उसके पास बैठकर रोने लगा, देखो-देखो मेरे दोस्त को क्या हो गया। कछुआ और जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

कछुए को चिल्लाते देख भेड़िया थोड़ा नजदीक आकर पूछता हैं- “क्या हुआ कछुआ दोस्त तुम इतना ज्यादा चिल्ला क्यों रहे हो? कछुआ भेड़िए से कहने लगा, मैं और मेरा दोस्त मगरमच्छ इस तालाब में रहते थे। दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी, दोनों एक दूसरे के सुख-दुख में काम आते थे। लेकिन आज मेरा दोस्त स्वर्ग सिधार गया, अब मैं इस तालाब में अकेला कैसे रहूँगा?

भेड़िया कछुए की बातों को सुनकर बहुत खुश हुआ। भेड़िया कछुए से कहता हैं- “चलो अच्छा हुआ, जो भी होता हैं अच्छे के लिए होता हैं” कछुए ने भेड़िए से पूछा- इसमें क्या अच्छा हुआ? भेड़िया कछुए से कहता हैं, इस मगरमच्छ की वजह से मैं कभी-कभी तालाब का पानी पीने से वंचित रह जाता था। अब मैं आराम से कभी भी पानी पी सकता हूँ।

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लेकिन, चतुर भेड़िया पूरी तरह से यह पता करना चाहता था कि क्या वास्तव में मगरमच्छ मरा हैं या नहीं? उसने कछुए से तेज आवाज में कहा- “तुम्हारा दोस्त तो जिंदा हैं! मैंने सुना है कि मरे हुए मगरमच्छ की पूँछ हिलती रहती हैं” देखो, देखो इसकी पूँछ नहीं हिल रही हैं।मगरमच्छ भेड़िए की आवाज सुनकर अपनी पूँछ को हिलाने लगता हैं।

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भेड़िए को पता चल गया कि मगरमच्छ जिंदा हैं। वह लंबी छलांग लगाते हुए भाग निकलता हैं। भेड़िया कुछ दूर आगे जाने के बाद एक सुरक्षित स्थान पर जाकर रुकता हैं और अपने आप से कहता हैं “जान बची सो लाखों पाएं।” आज अगर मैंने बुद्धि और दिमाग से काम नहीं लिया होता तो अपनी जान से हाथ धो बैठता।

इधर कछुए ने मगरमच्छ को फटकार लगाते हुए कहा- “तुम्हें भेड़िए ने मूर्ख बना दिया” क्या जरूरत थी तुम्हें अपनी पूँछ हिलाने की, तुम्हारा अब कुछ नहीं हो सकता। अब तुम भूखे मरो,”मैं चला” कहते हुए कछुआ पानी में चला गया। मगरमच्छ को अपने किए पर पछतावा होने लगता हैं।

नैतिक सीख:

अगर मगरमच्छ अपनी पूँछ नहीं हिलाता तो उसके भोजन का इंतजाम हो गया था। मगर वह बिना सोचे समझे जल्दबाजी में अपनी पूँछ हिलाने लगा, जिससे भेड़िए को पता चल गया कि मगरमच्छ जिंदा हैं। इसलिए, हमें जल्दबाजी में नहीं, हमेशा धैर्य के साथ काम लेना चाहिए।

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