प्रेरणादायक हिंदी कहानियां – Inspirational hindi stories

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बच्चों के लिए तीन शिक्षाप्राद मनोरंजन और प्रेरणादायक हिंदी कहानियां। इस तरह की कहानियाँ बच्चे के बौद्धिक विकास में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। प्रेरणादायक कहानियां बच्चे का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उन्हे अनेकों प्रकार की नैतिक सीख प्रदान करती हैं। कहानीज़ोन के इस लेख की कहानी निम्नलिखित प्रकार से हैं:

1. चित्रकार की चतुराई:

महाराजा माधो सिंह को बचपन से एक आँख से दिखाई नहीं देता था। वह आँख बंद पड़ी रहती थी। लेकिन, अगर किसी ने राजा माधो सिंह को काना कहा दिया तो वह उसे मृत्युदंड देता था। राजा को चित्रकारी से बहुत लगाव था। इसलिए उसने अपने दरबार में दो चित्रकार को रखा था। दोनों चित्रकार हूबहु चित्र बनाते थे।

एक दिन राजा ने अपने दोनों चित्रकार से कहा, “तुम दोनों मेरा हूबहु चित्र बनाओ। जिसका चित्र अच्छा होगा, उसे मुँह माँगा इनाम मिलेगा। पहला चित्रकार जिसका नाम हरी था, उसी दिन से राजा का चित्र बनाना शुरू कर दिया। जबकि दूसरा चित्रकार जिसका नाम दर्पण था, वह चतुर और बुद्धिमान था। उसने सोचा कि अगर चित्र में राजा को काना दिखा दिया तो राजा जरूर मृत्यु दंड देगा।

वह इस समस्या का समाधान खोजने लगा। उस दिन वह चिंतन करता रहा कि राजा की चित्रकारी कैसे करें? अगले दिन पहला चित्रकार हरी ने राजा का चित्र बनाकर दरबार में पेश किया। राजा ने अपना चित्र देखा, जिसमें उसकी एक आँख दबी हुई थी। चित्र देखकर वह आग बाबुला हो उठा। उसने उस चित्रकार को फाँसी की सजा सुना दी।

दो दिन बाद दूसरा चित्रकार दर्पण राजा का चित्र रेशम के कपड़ों से ढँककर दरबार में पेश हुआ। उसे देख दरबार में बैठे सभी मंत्री और दरबारियों को ऐहसास हो गया कि आज इस चित्रकार की भी जान जानी निश्चित हैं। जैसे ही राजा ने चित्र के ऊपर से रेशम के कपड़े को हटाया। उस चित्रकार की अद्भुत चित्रकारी देखकर राजा अचंभित हो गया।

चित्र में राजा एक आँख बंद करके खुली आँख से धनुष-बाण से पेड़ पर बैठे एक पक्षी पर निशाना लगा रहे थे। चित्रकार की बुद्धिमानी और चतुराई का कोई जबाब नहीं था। राजा अपना चित्र देखकर गदगद हो उठा। उसने चित्रकार को एक हजार सोने के सिक्के इनाम में दिए। चित्रकार अपनी जान बचाकर बहुत खुश हुआ।

नैतिक सीख:

सोच समझकर शांत दिमाग से लिया गया फैसला व्यक्ति को कामयाबी की तरफ ले जाता हैं।

2. आज्ञाकारी मंत्री:

चंपक वन में कौवों का एक बहुत बड़ा साम्राज्य था। उन्ही कौवों में एक कौवा उन सभी का राजा था। वह सभी के सुख-दुख में साथ देता था। अन्य कौवे भी उसकी बात का कहना मानते थे। एक बार कौवा अपनी पत्नी के साथ राजा के महल के ऊपर से उड़ते हुए जा रहा था। कौवा की पत्नी को महल में स्वादिष्ट मछलियाँ बनते हुए देख उसके मुँह में पानी आ गया।

लेकिन पहरा बहुत सख्त था। इसलिए वह वहाँ से सीधा अपने घोंसले में वापस चली आई। अगले दिन कौवा ने अपनी पत्नी से कहा, “भूख लग रही हैं, चलो भोजन की तलाश में चलते हैं। उसकी पत्नी ने कहा, “मुझे राजा के महल में बन रहे मछलियाँ ही खानी हैं, नहीं तो मैं अपने प्राण को त्याग दूँगी। पत्नी की बात सुनकर कौवा चिंतित हो उठा।

तभी उसके दरबार का मंत्री आया। उसने कहा, “महराज की जय हो! क्या बात हैं, आप किसी चिंता में डूबे हुए लग रहे हैं। कौवा ने अपने मंत्री से सारी बात बता दी। मंत्री ने कहा, महाराज आप घबराओ मत। मैं रानी के मनपसंद भोजन लाकर दूंगा। वह कौवा राजा को प्रणाम करके महल की तरफ उड़ गया।

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उसने अपने साथ पाँच ताकतवर और बुद्धिमान कौवे को भी ले लिया। सभी कौवे महल के रसोई घर के ऊपर जाकर बैठ गए। मंत्री कौवे ने अपने सभी साथी को आदेश दिया कि जैसे ही रसोइयाँ राजा के लिए भोजन का प्लेट लेकर निकलेगा। मैं अपनी चोंच से उसके सिर पर चोट पहुंचा दूंगा। तुम दो लोग अपनी-अपनी चोंच में चावल रख लेना। और तुम तीनों लोग अपनी चोंच में मछली को रखकर उड़ जाना।

मंत्री कौवे ने अपने बनाए प्लान के अनुसार रसोइयाँ के ऊपर झपट पड़ा। बाकी के कौवे भी अपना-अपना काम काम करके उड़ गए। लेकिन, मंत्री कौवा पकड़ा गया। उसे राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने उस कौवे से पूछा, “तुमने मेरे खाने पर झपट्टा क्यों मार? मंत्री कौवे ने कहा, “महराज! मेरे राज्य की रानी की मांग थी कि आपको परोसा जाने वाला मछली चावल उन्हे खाना हैं।”

मैंने अपनी रानी को वचन दिया था, “चाहे मुझे अपने प्राण की आहुति क्यों न देना पड़े। मैं आपको भोजन जरूर प्रदान करूंगा।” इसलिए मैंने ऐसा किया। आप चाहे तो हमें कुछ भी सजा दे सकते हैं। राजा ने हुक्म सुनते हुए कहा, “ऐसे आज्ञाकारी मंत्री को तो इनाम मिलना चाहिए।” इसे रिहा कर दो और हाँ, इसके राजा और उसकी प्रजा को दवात पर महल में बुलवाओ। मंत्री कौवा राजा को प्राणम करके उड़ गया।

नैतिक सीख:

अपने कर्तव्य के प्रीत ईमानदार और निष्ठावान होना चाहिए।

3. चतुर राजकुमार:

एक बार राजकुमार विक्रम सिंह शिकार खेलने निकले हुए थे। वे शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल चुके थे। शाम होने को आ चुकी थी। राजकुमार ने सोचा, चलो अब वापस घर चलते हैं। उन्हें जोरों को भूख भी लगी थी। राजकुमार सोच रहे थे कि कही रास्ते में उन्हे कुछ खाने को मिल जाता तो अच्छा होता। लेकिन उन्हे दूर-दूर तक कोई घर नहीं दिखाई दे रहा था।

काफी दूर चलने के बाद उन्हें एक झोपड़ी दिखाई दिया। राजकुमार अपने घोड़े से उतारकर उस झोपड़ी के दरवाजे को खटखटाया। कुछ देर बाद उस झोपड़ी से एक बूढ़ी औरत निकली। राजकुमार ने कहा, “दादी जी मुझे भूख लगी हैं, कुछ खाने को मिल जाएगा क्या। बुढ़िया ने उखड़े मन से कहा, मेरे पास कुछ खाने को नहीं हैं और न ही मैं कुछ बन सकती हूँ।”

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राजकुमार ने कहा, कोई बात नहीं, “मैं इस तलवार का हलवा बनूँगा और आप को भी चखाऊँगा। बुढ़िया बुदबुदाते हुए चूल्हे में आग जलाकर एक पतीले में पानी रख दिया।” राजकुमार उबलते पानी में तलवार डालकर चलाने लगा। कुछ समय बाद तलावर से दो तीन बूंद पानी अपने हाथ पर गिरकर चखा। उसने कहा, ‘वाह-वाह’ क्या बात हैं! अगर थोड़ा आटा मिल जाता तो और हलवे का स्वाद और बढ़ जाता।

बुढ़िया ने रूठे मन से एक कटोरी आटा राजकुमार को दिया। राजकुमार पानी में आटा डालकर चलाते रहे। थोड़ी देर बाद राजकुमार ने तलवार के कोने से थोड़ा हलवा निकालकर चखा। उसने कहा, आज तक मैंने ऐसा हलवा अपने जीवन में कभी नहीं खाया। “दादी, अगर थोड़ा चीनी मिल जाता तो सोने पर सुहागा होता। बुढ़िया बड़बड़ाते हुए एक कटोरी चीनी देती हैं। राजकुमार पतीले में चीन डालकर तलवार से चलाते रहे।

देखते-ही-देखते हलवा तैयार हो गया। राजकुमार और बुढ़िया ने मिलकर हलवा खाए। बुढ़िया हलवा खाकर खुश हो उठी। राजकुमार ने अपनी भूख मिटा ली। बुढ़िया की चतुराई धरी की धरी रह गई।

नैतिक सीख:

प्रेम और नम्रता से बिगड़ते काम भी बन सकते हैं।

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