कहानियों से मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी आसानी से ग्रहण किया जा सकता हैं। बच्चों को हिन्दी कहानियाँ सुनाने से बच्चे के अंदर भाषा के विकास के साथ-साथ सही और गलत में अंतर करना भी आसानी से जान लेता हैं। इसलिए यह कहा जा सकता हैं कि कहानियों से बच्चों के अंदर भौतिक ज्ञान के अलावा आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ उसे व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त होता हैं। आज के इस लेख की कहानी कम शब्दों बड़ा ज्ञान दे जाएंगी, जोकि निम्न प्रकार से हैं:
1. परछाई का डर:
गोलू की उम्र लगभग दस साल रही होगी। उसे अंधेरे से बहुत डर लगता था। जिसके कारण वह रात को अकेले कही नहीं जाता था। यहाँ तक कि गोलू को अपनी परछाई से भी डरता था। एक शाम दिन ढल रहा था। गोलू के दादा आराम करने के लिए अपना बिस्तर लगा रहे थे। तभी गोलू के चिल्लाने की आवाज आई। गोलू के दादा कमरे में जाकर देखे तो गोलू तेज भागते हुए कमरे में चक्कर लगा रहा था।
दादाजी ने पूछा, ”क्या हुआ गोलू क्यों चिल्ला रहे हो? दादा की आवाज सुनते ही गोलू अपने दादा से लिपट गया और तेज-तेज रोने लगा। उसके दादा ने फिर से पूछा, ‘आखिर बात क्या हैं जो तुम रो रहे हो।’ गोलू सिसकते हुए कहा, “दादा जी कोई मेरे पीछे-पीछे भाग रहा हैं। वह मुझे पकड़ना चाहता हैं।” उसकी बातों को सुनकर दादा जी जोर से ठहाके लगाकर हँस पड़े।
गोलू का डर दूर करने के लिए उसके दादा ने कहा, “वे भगवान हैं जो हर वक्त हमारे साथ रहते हैं। वे हमारे अच्छे और बुरे कार्यों को देखते रहते हैं। इसलिए हमें उनसे डरने की जरूरत नहीं हैं, वे सभी के साथ रहते हैं। लेकिन, अगर तुमने किसी से झूठ बोला, चोरी किया, या फिर कोई भी गलत काम किया तो भगवान तुम्हारे सारे गलत कार्यों को लिखते जाते हैं। उस दिन से गोलू का परछाई से डर दूर हो गया। कोई भी गलत काम करने से पहले सोचता था कि उसे भगवान देख रहा हैं।
कहानी से सीख:
हमें प्रभु परमात्मा को अपने आस-पास महसूस करना चाहिए। जिससे हम जाने अनजाने में गलतियाँ नहीं करेंगे।
2. टपका का डर:
बारिश का मौसम था। एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी में खाना बना रही थी। अचानक तेज बारिश होने लगी। जिसकी वजह से बुढ़िया के छप्पर से पानी टपकने लगा। बुढ़िया परेशान हो उठी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। तभी एक बाघ कही से भटकते हुए बुढ़िया के दरवाजे के सामने आ गया। दरवाजा खुला था, उसे लगा आज तो बाघ उसे अपना शिकार बन लेगा।
बुढ़िया ने दिमाग चलाया उसने तेज आवाज में कहा, ”मुझे इस टपका से जितना डर लगता हैं, उतना बाघ से नहीं लगता” बुढ़िया की आवाज बाघ के कानों तक चली गई। बाघ ने सोच, “लगता हैं झोपड़ी के अंदर कोई टपका हैं। जोकि, मुझसे भी बड़ा जानवर हैं। इसलिए बुढ़िया मुझसे नहीं डरती। बाघ तेजी से छलांग लगाते हुए जंगल की तरफ भाग निकला। बुढ़िया की बुद्धिमानी से उसकी जान बच गई।
कहानी से सीख:
विषम परिस्थितियों में दिमाग से काम लेना चाहिए।
3. परिश्रम का फल:
बारिश के दिन आने वाले थे। चींटी अपने खाने की जतन में लगी थी। उसी रास्ते में एक टिड्डा घाँस पर लेटा धूप सेकते हुए गाना गा रहा था। चींटी, टिड्डे को घास पर लेटे हुए देख बोली, “टिड्डे भाई बारिश का मौसम आने वाला हैं, अपने खाने का इंतजाम करके रख लो।” टिड्डे ने कहा, “चींटी बहन अभी तो बारिश शुरू होने में काफी दिन हैं। आराम से कर लूँगा।
चींटी ने मन ही मन में सोची इस तरह के लोग को समझना उचित नहीं हैं, जो बात न माने। चींटी दिन-रात एक करके मेहनत करती रही। इस बार बारिश जल्दी शुरू हो गई। हर जगह पानी ही पानी भर गया। अब टिड्डे को खाने के लाले पड़ गए। किसी तरह एक दो दिन बीता। अब टिड्डे को खाने की अधिक जरूरत पड़ रही थी। वह चींटी से मदद मांगने के लिए गया।
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चींटी ने टिड्डे को डांट कर भगा दिया। उसने कहा, “जब मैं तुम्हें खाना इकट्ठा करने के लिए बोली थी तो तुमने कहा था, ‘अभी बारिश आने में काफी दिन हैं। और तुम घाँस पर लेटे रहे। फिर आज मेरे पास मदद के लिए क्यों आए हो। टिड्डे को अपनी गलती पर बहुत पछताव हुआ।
कहानी से सीख:
हमें भविष्य की तैयारी करके चलना चाहिए।
4. नेकी का फल:
गर्मियों की छुट्टी में सोनू अपने मामा के घर गया हुआ था। एक दिन वह बच्चों के साथ बाग में खेल रहा था। शाम होने को आ चुकी थी, अधिकतर बच्चे अपने-अपने घरों को जा चुके थे। अचानक सोनू ने देखा कि एक बच्चा जिसका नाम राजू था, उसके पैर में साँप कट लिया। सोनू बिना देरी किए उसे अपनी पीठ पर उठाकर गाँव के अस्पताल की तरफ भागा।
अस्पताल में डाक्टर ने राजू का इलाज किया और राजू ठीक हो गया। कुछ समय बाद राजू के माता-पिता भी अस्पताल पहुँच गए। उन्होंने डॉक्टर से मिलकर राजू की तबीयत के बारें में पूछा। डॉक्टर ने कहा, “तुम्हारा बेटा किस्मत वाला था जो समय से अस्पताल पहुँच गया। थोड़ी देर और हुई होती तो राजू का पूरा शरीर काला पड़ जाता। फिर राजू को बचा पाना मुश्किल होता।
राजू के माता-पिता सोनू के ऊपर ऐहसान जताया। रात हो चुकी थी सोनू के मामा सोनू को खोजने निकले हुए थे। तेज आंधी तूफान चल रहा था। सोनू अपने घर को जा रहा था। घर पहुंचकर सोनू ने देखा कि वह जिस छप्पर के नीचे सोता था, उसके ऊपर नीम का पेड़ गिर गया। जिससे छप्पर पूरी तरह से तहस-नहस हो गया।
सोनू को याद आया की आज अगर मैं राजू को लेकर अस्पताल नहीं गया होता तो जरूर मैं इसी छप्पर के नीचे होता। नीम गिरने के कारण मेरा क्या हाल होता। तभी उसे याद आया की उसके दादा जी कहा करते थे कि “नेकी का फल एक न एक दिन जरूर मिलता हैं।”
कहानी से सीख:
हमें हमेशा निस्वार्थ भावना से दूसरों की मदद करनी चाहिए।
5. लालच बुरी बला:
रमेश और सुरेश स्कूल से वापस घर को जा रहे थे। रमेश को अचानक एक सिक्का गिरा हुआ दिखाई दिया। उसने झट से उस सिक्के को उठा लिया और वह बहुत खुश हुआ। चार कदम और चलने पर उसे एक और सिक्का गिरा दिखाई दिया। रमेश वही खड़े होकर देखता हैं कि कुछ सिक्के और पड़े हैं जोकि झाड़ी की तरफ जा रहा हैं।
सुरेश ने कहा, “रमेश तुम सिक्कों को उठाने उधर मत जाओ” इसमें जरूर कोई साजिश हैं। लेकिन रमेश ने उसकी बात नहीं मानी। वह सिक्के को उठाते हुए झाड़ी की तरफ बढ़ता गया। सुनसान जगह पर पहुचने के बाद उसे कोई सिक्का नहीं दिखाई दे रहा था। अचानक दो बदमाश झाड़ी से निकलकर रमेश को पकड़ लिए। रमेश की आवाज सुनकर सुरेश समझ गया की उसका दोस्त मुसीबत में फँस गया हैं।
सुरेश जोर-जोर से शोर मचाने लगा तभी गाँव के मुखिया सुरेश को दिखाई दिए। सुरेश की बातों को सुनकर मुखिया जी झाड़ी की तरफ दौड़े। बदमाशों ने अपनी तरफ मुखिया जी को आते देख रमेश को छोड़कर भाग गए। मुखिया रमेश के पास पहुंचकर देखा तो उसके हाथ-पैर और मुँह बंधे हुए थे। उसके हाथों में कुछ सिक्के थे। मुखिया जी रमेश को झाड़ी से बाहर लेकर आए। उसे बहुत फटकार लगाई तुम्हें इस तरह से लालच नहीं करना चाहिए।
कहानी से सीख:
लालच के चक्कर में पड़कर बड़ी मुसीबत मोल लेते हैं।
6. सच्चे दोस्त की पहचान:
मोहित, वैभव, अभिषेक और अरुण चार दोस्त थे। चारों दोस्त हमेशा एक साथ रहते थे। चारों दोस्तों में अरुण बहुत ही गरीब था। उसके पास ठीक से खाने को नहीं हो पाता था। एक दिन अरुण ने मोहित से कहा, “भाई मोहित मेरे घर की स्थिति ठीक नहीं हैं। हम लोग ऐसे ही घूमते रहते हैं। चलो हम कुछ काम सीख ले जिससे हमें नौकरी भी मिल जाए।” मोहित ने कहा, “मेरे पापा इस गाँव के सबसे धनी व्यक्ति हैं। मुझे कोई नौकरी करने की जरूरत नहीं हैं।” और हाँ अगर तुम्हें करना हो तो तुम कर सकते हो।
अगले दिन अरुण ने वैभव से पूँछा, “क्यों भाई वैभव अगर हम कही नौकरी करना शुरू कर दे तो कैसा रहेगा।” अरुण ने कहा, “क्या जरूरत हैं नौकरी करने की सब कुछ ठीक तो चल रहा हैं। मैं तो नहीं करूंगा, तुम्हें करना हो तो कर लो। अरुण ने कहा, “मेरा पूछने का मकसद हैं कि तुम लोगों को भी कुछ न कुछ करना चाहिए।
ऐसे कब तक खाली बैठे रहोगे। रही बात नौकरी करने की तो मैं अकले भी नौकरी कर सकता हूँ। मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं। लेकिन दोस्ती के नाते मेरा फर्ज बनता हैं कि एक बार मैं तुमसे भी पूछ लूँ।
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अरुण अपने दोनों दोस्तों की बातों को सुनकर निराश था। वह जनता था कि उसका तीसरा दोस्त अभिषेक भी वही जबाब देगा। फिर भी उसने सोचा चलो एक बार पूछ लेता हूँ। देखो अभिषेक क्या कहता हैं। अरुण ने जैसे अपनी बात अभिषेक के समाने रखी। उसने कहा, “तुम्हारी अच्छी सोच हैं। खाली बैठने से अच्छा हैं कुछ न कुछ करते रहना चाहिए।” लेकिन समस्या यह हैं की मुझे मेरे घर वाले अभी नौकरी नहीं करने देंगे।
मैं अपने घर वालों को यह कहते हुए राजी करा लूँगा कि मैं अपने दोस्त अरुण के साथ कुछ स्किल सीख रहा हूँ। दोनों अगले दिन से नौकरी की खोज ने लग गए। एक दिन दोनों को डाटा इंट्री की नौकरी मिल गई। उस नौकरी में उन दोनों को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था। इसके अलावा उन्हें कुछ पैसे भी मिलते थे।
कहानी से सीख:
सच्चा दोस्त वही होता हैं जो हर समय एक दूसरे के काम आए।
7. लकड़हारा और बच्चे:
एक लकड़हारा जो आए दिन जंगल के हरे-हरे पेड़ काटकर बाजार में बेच आता था। उसे लोगों ने कई बार समझाया की तुम हरे पेड़ों को मत काटा करो, बल्कि सूखे पेड़ों को काटा करो। लेकिन, लकड़हारा अधिक पैसे कमाने के चक्कर में हरे-हरे पेड़ भी काट देता था। एक दिन उसी जंगल में बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने देखा कि लकड़हारा हरे पेड़ काट रहा हैं। बच्चों ने एक योजना बनाई।
अगले दिन बच्चे उसी पेड़ के पास झाड़ी में छिपे थे। जब लकड़हारा पेड़ काटने आया। उसने जैसे ही पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाई ही थी कि बच्चे दर्द भारी आवाज निकलने लगे। लकड़हारा रुक गया। वह अपने चारों तरफ देखने लगा कि यह आवाज कहाँ से आ रही हैं। लेकिन उसके आसपास कुछ दिखाई नहीं दिया।
लकड़हारे ने दुबारा से फिर कुल्हाड़ी पेड़ पर चलाई। बच्चों ने भूत जैसी तेज आवाज निकली। लकड़हारा डर के कारण भयभीत हो उठा। उसने इधर-उधर देखा फिर उसे कोई नहीं दिखा। वह समझ गया यह आवाज भूत की हैं। वह कुल्हाड़ी फेकते हुए अपने घर की तरफ भाग निकला। बच्चे झाड़ी से बाहर आकर खुशियां मनाने लगे। उस दिन से लकड़हारे ने हरे पेड़ काटना छोड़ दिया।
कहानी से सीख:
पेड़ हमारे लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इनकी रक्षा करना हमारा फर्ज हैं।
8. ईमानदारी का फल:
रामू अपने बकरियों को लेकर पहाड़ी के टीले पर गया हुआ था। बकरियाँ घास चर रही थी। रामू इधर-उधर घूमें जा रहा था। अचानक उसे कही से किसी के फुसफुसाने की आवाज आई। उसने दबे पाँव इधर-उधर देखा। तभी उसे एक गुफानुमा चट्टान दिखा। उस गुफे में कुछ लोग बैठे थे। जिनके हाथों में सोने-चांदी के आभूषण और उनके पास कुछ पैसे भी थे। जिसे वे आपस में बाँट रहे थे।
रामू तुरंत समझ गया की सुबह आते समय हमारे गाँव के बगल वाले गाँव में लोग चोरी की बात कर रहे थे। ये लोग जरूर उसी गाँव से समान चोरी करके लाए हुए हैं। रामू तेजी से भागते हुए उस गाँव के लोगों के पास गया। उसने सारी कहानी बता दी। गाँव वाले लाठी-डंडे लेकर पहाड़ी वाले गुफा की तरफ आ पहुंचे। गाँव वालों ने उस गुफे को चारों तरफ से घेर लिया।
अंदर बैठे चोरों को पकड़कर बंदी बना लिया। लूटे हुए पैसों को गाँव वालों ने ले लिया। गाँव वालों ने राजू को उसकी बहादुरी के लिए सम्मानित किया। उसे अपने गाँव का चौकीदार बना दिया। जिसके बदले में उसे हर महीने कुछ पैसे भी मिलने लगे।
नैतिक सीख:
ईमानदारी व्यक्ति को ऊँचा दर्जा दिलाती हैं।
9. मेहनत रंग लाई:
शोभित एक बहुत ही गरीब घर का लड़का था। बहुत मुश्किल से उसके घर का खर्च चलता था। लेकिन शोभित बहुत ही होशियार और बुद्धिमान लड़का था। वह पढ़ना चाहता था। लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। वह स्कूल के बाहर खड़े होकर मास्टरजी को देखता था कि वें बच्चों को कैसे पढ़ा रहे हैं। प्रतिदिन वह स्कूल के बाहर बैठकर मास्टरजी को पढ़ाते हुए देखता रहता था।
एक दिन मास्टर ने सभी बच्चों से पढ़ाए हुए विषय के बारें में पूछ रहे थे। लेकिन कोई बच्चा बता नहीं पा रहा था। तभी स्कूल के बाहर बैठे शोभित ने कहा, ‘गुरुजी मैं बताऊँ’ उसने बीते दिनों पढ़ाए सभी चैपटर के बारें में एक-एक करके बता दिया। गुरु जी ने शोभित से पूछा, “यह सब तुम्हें कैसे पता हैं? बच्चे ने कहा, “गुरुजी प्रतिदिन जब आप पढ़ते हैं तो मैं स्कूल के बाहर बैठकर आपकी बातों को सुनता रहता हूँ।”
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मुझे पढ़ने का बहुत शौक हैं। लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। इसलिए मैं स्कूल में दाखिल नहीं ले सका। उसकी बातों को सुनकर गुरुजी भाव-विभोर हो उठे। उन्होंने कहा, “कल से तुम स्कूल आओ तुम्हारे स्कूल का खर्च मैं अपने जेब से दूंगा।” बच्चा अगले दिन से स्कूल आने लगा। एक दिन वही बच्चा पढ़ – लिखकर किसी बड़े स्कूल का प्रिंसिपल बना। वह गरीब बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दिलाने की कोशिश करता था।
कहानी से सीख:
कुछ करने वालों को कोई न कोई रास्ता जरूर मिल जाता हैं। जबकि न करने वाले अपनी किस्मत को दोष देते रहते हैं।
10. खुद पर विश्वास:
एक बच्चा अपनी झोपड़ी के सामने खेल रहा था। वह खेलते-खेलते सड़क पर चल गया। वह अचानक एक छोटी कार के नीचे चला गया। एकाएक उसकी माँ की नजर बच्चे के ऊपर पड़ी। वह तेजी से भागती हुई आई और उसने कार के पहिये को पकड़कर पलट दिया। और अपने बच्चे को उठाकर अपनी झोपड़ी की तरफ चली गई। तभी उसे याद आया कि उसने एक कार को पलट दिया। उसे अपने आप पर विश्वास नहीं हो रहा था कि यह काम उसने खुद कि हैं।
उसने वापस सड़क के किनारे जाकर देखा तो कार पलटी थी। उसके चारों पहिये ऊपर की तरफ थे। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने कार को पलट दिया। तभी एक व्यक्ति ने उसे समझाते हुए कहा, “बात यह नहीं हैं की तुमने कार पलट दी। बात यह हैं की तुमने कार क्यों पलट दी। क्योंकि तुम्हें अपने बच्चे की जान प्यारी थी। इसलिए तुम्हारे आत्मविश्वास और हौसले ने इस कार को पलटने में देरी नहीं लगाए।
कहानी से सीख:
किसी भी चीज को पाने की चाहत पूरी सिद्दत से होती हैं तो उसे पाने से भगवान भी नहीं रोक सकते।