प्राचीन काल की बात हैं मगध राज्य में एक बहुत ही खूंखार डाकू रहा करता था। वह जंगल के राहगीरों को मारकर उनकी अंगुलियों की माला बनाकर अपने गले में पहन लेता था। इसलिए, लोग उसे ‘डाकू अंगुलिमाल’ के नाम से जानते थे। अंगुलिमाल के बचपन का नाम ‘अहिंसक’ था। जोकि, पढ़ने-लिखने और सीखने में बहुत मेधावी था।
जिसके कारण उसके कुछ साथियों को उससे ईर्ष्या होने लगी थी। लेकिन, उसके आचार्य ने उसकी गलती के कारण उसे श्राप दिया कि जब तक तुम सौ लोगों की अंगुलियों को काटकर नहीं लाओगे तब तक तुम्हारी अंतिम शिक्षा पूरी नहीं होगी। उसी दिन से अहिंसक ने अंगुलियाँ काटने के लिए लोगों को मारना शुरू कर दिया।
अब पूरे मगध राज्य में उसके डर का खौफ रहने लगा था। कोई भी नहीं चाहता था कि उसकी मुलाकात उस अंगुलिमाल से हो। देखते-देखते उसका आतंक बहुत अधिक बढ़ता चला जा रहा था। वह रास्ते में किसी को भी लूट लेता और उसे मारकर उसकी अंगुलियों की माला बनाकर अपने गले में पहन लेता था।
एक बार उसी राज्य में भगवान गौतम बुद्ध उपदेश देने के लिए एक गाँव में गए थे। उन्होंने उस गाँव के लोगों से मिलकर देखा कि वहाँ के लोग बहुत उदास और परेशान दिख रहे है। भगवान गौतम बुद्ध ने सभी गाँववासियों से पूँछा कि आप लोग उदास और परेशान क्यों हो? सभी ने बुद्ध को अंगुलिमाल के बारे में बताया।
भगवान गौतम बुद्ध गाँव वालों को उपदेश न देकर जंगल की तरफ जाने लगे। वहाँ के लोग भगवान गौतम बुद्ध को जंगल जाने से रोकने का प्रयास किए। लेकिन, गौतम बुद्ध यह कहते हुए लोगों को मना कर दिए कि आप लोग मेरी चिंता न करें। और वें जंगल कि तरफ चले गए। वे जंगल में इधर-उधर भटकते रहते हैं। अचानक अंगुलिमाल की नजर भगवान गौतम बुद्ध पर पड़ी।
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वह कहता हैं ठहरो! कौन हो तुम? और वह बुद्ध को मारने के लिए तेजी से उनकी तरफ आया। उसे देख गौतम बुद्ध मुस्कान भरी आवाज में कहते है- मैं तो ठहर गया, आप कब ठहरोगे? गौतम बुद्ध पीछे पलट कर देखते हैं तो एक खूंखार व्यक्ति उनके पीछे हाथ में तलवार लिए खड़ा होता हैं। जोकि, अपने गले में इंसानों की अंगुलियों से बनी माला पहना हुआ होता हैं।

अंगुलिमाल को देखकर गौतम बुद्ध बिल्कुल घबराए नहीं, वें शांत थे। उनकी शालीनता देख अंगुलिमाल, ”कहता हैं, मुझे लोग अपने सामने खड़ा देख अपनी मौत का इंतजार करने लगते हैं। जिसके कारण लोगों की हालत खराब हो जाती हैं। मेरे अंदर इतनी क्षमता हैं कि मैं एक साथ आठ दस लोगों को मार सकता हूँ।
लेकिन तुम्हारे चेहरे पर ये मुस्कान कैसी हैं? तुम्हें मुझसे डर नहीं लग रहा। क्या तुम अपने आप को मुझसे ज्यादा ताकतवर समझते हो? भगवान गौतम बुद्ध उससे कहते हैं, “इंसान को इंसान से डरना क्यों? आप भी इंसान हो और मैं भी इंसान हूँ।” इतना सुनते ही डाकू अंगुलिमाल भगवान गौतम बुद्ध को मारने के लिए अपनी तलवार लेकर आगे बढ़ा।
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गौतम बुद्ध अंगुलिमाल से कहते हैं, आप मुझे मारना चाहते हो? आप अपनी इच्छा पूरी कर लेना। लेकिन, इससे पहले आप मेरे लिए चार-पाँच पत्ते तोड़ लाओ। उसने कहा, “चार-पाँच पत्ते क्या, मैं तो चार-पाँच पेड़ उखाड़ कर आपको दे सकता हूँ।” और वह पत्ते तोड़ने चला गया। पत्ते लेकर वापस लौटा तो गौतम बुद्ध ने उससे कहा, “अगर आप सच में ताकतवर हो तो तुम इन पत्तों को दुबारा पेड़ से जोड़ दो।”
भगवान बुद्ध की बातों को सुन अंगुलिमाल क्रोधित हो गया, उसने कहा- “भला एक बार पेड़ से पत्ते टूट जाए तो कैसे जुड़ सकते हैं” भगवान गौतम बुद्ध ने बहुत ही प्रेम पूर्वक उससे कहा, “यही बात तो मैं आपको समझाना चाहता हूँ, कि जब आप किसी को जीवन नहीं दे सकते तो आपको उसके जीवन को समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं हैं।
इस तरह से बुद्ध कि बातें उसके जहन तक चली जाती हैं। और वह अपनी तलवार सहित गौतम बुद्ध के चरणों में नतमस्तक हो जाता हैं। वह कहता हैं, “हे महापुरुष, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, कृपया मुझे माँफ कर दें। मूझे सत्य का मार्ग दिखलाओ। इस तरह से वह भगवान बुद्ध कि शरण में चला जाता हैं। और वह डाकू अंगुलिमाल से एक बड़ा साधु बन जाता हैं।
