छोटे बच्चों के लिए नई नई प्रेरणा और मनोरंजन से भरपूर शिक्षाप्रद कहानियां। इस तरह की कहानियां बच्चे का मन बहलाने के साथ-साथ उसका ज्ञानवर्धन भी करती हैं। कहानीज़ोन के हर लेख में हम बच्चे के रुचि के अनुसार कहानी सुनाने का प्रयास करते हैं। जिससे बच्चे को उबाऊ महसूस न हो। तो चलिए आज के इस लेख की नई कहानियां देखते हैं, जोकि निम्न प्रकार से लिखित हैं।
1. गिरकर उठना सीखो:

वैभव और सूरज दो भाई थे। वैभव बड़ा भाई तथा सूरज छोटा था। वैभव बहुत ही समझदार बच्चा था। वह अपनी मम्मी-पापा की बातों को मानता था। इसके अलावा वह अपने छोटे भाई सूरज की देखभाल भी बहुत अच्छे ढंग से करता था। धीरे-धीरे दोनों बड़े हो रहे थे। वैभव की उम्र लगभग दस साल तथा सूरज की उम्र सात साल थी। दोनों हमेशा एक साथ खेलते थे।
एक दिन वैभव और सूरज दोनों घर के सामने खेल रहे थे। सूरज को अचानक एक तितली उड़ती हुई दिखाई दी। उसने अपने बड़े भाई से तितली पकड़ने के लिए कहा। वैभव तितली का पीछा करने लगा। अचानक से सूरज भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। उसका पैर किसी पत्थर से टकरा जाने के कारण वह गिर गया। उसके पैर से थोड़ा खून निकलने लगा। जिसे देख सूरज जोर-जोर से चिल्लाने लगा।
वैभव उसके पास आकर देखा कि सूरज के पैर में मामूली सी चोट लगी थी। उसने सूरज को समझाते हुए कहा, “मेरे भाई! ठोकरे हमें चलना सीखाती हैं।” उसने अपने पैर में लगे चोट के निशान दिखाते हुए कहा, “देखो मैं भी कई बार गिरा था, तभी आज मैं तेज दौड़ पा रहा हूँ। उसने अपने छोटे भाई को और समझाते हुए कहा, “हमें गिरकर उठना सीखना चाहिए।” जो हो गया सो हो गया। उसी सोच में पड़े नहीं रहना चाहिए। अपनी गलतियों को पहचानो उसे दुबारा से दोहराओ मत।
कहानी से सीख:
ठोकरे हमे चलना सीखाती हैं।
2. डर का सामना करो:

अभय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। जिसके कारण घर में उसका दुलार अधिक होता था। उसके परिवार में उसे सभी उसे बहुत प्यार करते थे। अभय को उसके माता-पिता घर से बाहर बहुत कम ले जाते थे। कभी-कभी तो उसके ऊपर सूरज की किरण भी नहीं पड़ती थी। धीरे-धीरे अभय लगभग बारह साल का हो चुका था। उसके माता-पिता उसकी हर जरूरते पूरी करने में लगे रहते थे।
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कुछ दिन बाद अभय बाहरी दुनिया के हर एक छोटी-छोटी चीजों से डरने लगा। अगर कोई कुत्ता उसके पास आ जाए तो वह उससे भी डर जाता था। वह जानवरों था तेज आवाज और अंधेरे से भी डरने लगा था। उसके माता-पिता यह सब देख परेशान रहने लगे। उन्हे लगने लगा कि अगर हमारा बच्चा इसी तरह से डरता रहा तो आगे कैसे बढ़ पाएगा।
अभय के माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा, “आपके बच्चे के अंदर दिमागी डर बैठा हैं।” इसे किसी भी दवाई से ठीक नहीं किया जा सकता हैं। इसके साथ आप लोगों को काम करना पड़ेगा। अब उसके माता-पिता अभय को अनेकों जगह पर दिखाना शुरू कर दिया। लेकिन उसके अंदर कोई बदलाव नहीं आ रहा था।
एक दिन उनके गाँव में एक साधु बाबा आए हुए थे। अभय को लेकर उसके माता-पिता बाबा जी के पास गए। बाबा जी ने अभय के माता-पिता की पूरी बात बहुत ध्यान से सुनी। उन्होंने कहा, आप अपने बच्चे को कुछ दिन के लिए हमारे आश्रम में छोड़ दो। हो सकता हैं कि आपका बच्चा ठीक हो जाए। उसके माता-पिता ने बाबा के कहने के अनुसार ही किया।
अगले दिन आश्रम ने साधु महात्मा ने अभय को अपने पास बुलाकर बहुत सारी बातें की। महात्मा जी ने बातों-बातों में अभय के अंदर चल रहे विचारों के बारे में पता लगा लिया। उसी शाम महात्मा जी ने अभय को लेकर जंगल की तरफ निकल गए। उन्हें वापस आते समय अंधेरा हो चुका था। रास्ते में चलते हुए अभय को बहुत डर लग रहा था। साधु महात्मा ने अचानक उसी जंगल में एक पेड के नीचे बैठ गए।
उन्हें पेड़ के नीचे बैठा देख अभय ने कहा, “मुनिवर जल्दी आश्रम चलो मुझे बहुत डर लग रहा हैं।” महात्मा जी ने अभय से पूछा किस बात का डर लग रहा हैं तुम्हें। अभय ने कहा, “मुझे भूत से बहुत डर लगता हैं।” अगर वह यहाँ आ गया तो हम दोनों में से कोई नहीं बचेगा। महात्मा जी कहा, “आज तो हमें भूत देखना हैं।” अभी तक तो हमने भूत कभी नहीं देखा हैं।
महात्मा जी ने अभय को कई तरह से समझाते हुए कहा, “डर नाम की कोई चीज नहीं होती हैं।” हम अपने दिमाग में सिर्फ वहम बनाए रखते। हमें आगे बढ़कर किसी भी मुश्किलों का सामान करना चाहिए, न की हमें पीछे भागना चाहिए। इस तरह से कई दिनों तक महात्मा जी ने अभय को तरह-तरह से उसके अंदर छिपे डर को निकालते रहे। एक दिन अभय डर का सामान डटकर करने लगा।
कहानी से सीख:
डर कायर लोगों के पीछे पड़ती हैं। बहादुर लोग डर का सामना डटकर करते हैं।
3. सफलता की जिद्द:

रोहन एक गरीब परिवार से था। उसके पिता ईंट के भट्टे पर मजदूरी किया करते थे। उसकी माँ अक्सर बीमार रहती थी। उसके दो छोटे भाई-बहन भी थे। रोहन की उम्र लगभग बारह साल रही होगी। वह अपने माता-पिता की भरसक मदद करने की कोशिश करता था। एक दिन उसके पिता सुबह-सुबह जल्दी काम पर निकल गए। जिसके कारण वे दोपहर का खाना नहीं ले जा सके।
रोहन दोपहर में खाना लेकर अपने पिता के पास गया। वह ईंट के भट्टे पर पहुँच ही था कि एक चमचमाती कार उसके सामने से होकर भट्टे पर रुकी। उस कार में से एक व्यक्ति उसकी पत्नी और दो बच्चे निकले। उन्हें देख रोहन आश्चर्यचकित हो उठा। तभी उसके पिता ने उसे देख लिया। उसने रोहन से पूछा, “बेटा रोहन तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” रोहन ने कहा, “पिताजी माँ ने आपके लिए दोपहर का खाना भेजवाया हैं।
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रोहन के पिता ने खाने का डिब्बा लेकर खाना खाने बैठ गए। रोहन भी अपने पिता के सामने बैठा था। रोहन ने अपने पिता से पूछा, “पापा इस कार में कौन हैं। रोहन के पिता ने कहा, “बेटा वे इस भट्टे के मालिक हैं।” उनके साथ उनकी पत्नी और बच्चे हैं। उसने पूछा, “हमारे पास ऐसी कार क्यों नहीं हैं।” उसके पिता ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा, “हम गरीब हैं, वे अमीर हैं इसलिए वे कार में चलते है और हम मजदूरी करते हैं।”
इसी तरह से रोहन अपने पिता से कई तरह के सवाल करता रहा। जिसका जबाब उसके पिता देते रहे। बातों-बातों में उसके पिता ने उसे भी एक रोटी सब्जी उसे खाने के लिए दे दिया। रोहन रोटी सब्जी को अपने हाथों में ही पकड़े रहा और वह बहुत सारी बातें भट्टे के मालिक के बारें में पूछता रहा। काफी देर बाद उसे समझ आ गया की अमीर इंसान बनने के लिए पढ़ाई ही एक रास्ता हैं।
उसे समझ में आ गया कि सफलता का मूल मंत्र क्या हैं। उसने अपने पिता के सामने दोनों हाथों में रोटी लिए हुए वादा करते हुए कहा, “पिता जी चाहे जो भी हो जाए एक दिन मैं अपने परिवार की तकदीर बदलकर रहूँगा।” उसे इस तरह का प्राण लेते हुए देख उसके पिता के आँखों से खुशी की आँसू छलक पड़े। उसने रोहन को अपने गले से लगाते हुए वादा किया बेटा तुम्हारे रास्ते में मैं किसी तरह की बाधा नहीं आने दूंगा।
उस दिन से रोहन अपनी पढ़ाई में अपने आप को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। उसे खाने पीने का बिल्कुल ध्यान नहीं रहता था। देखते-देखते रोहन अपने से दो-तीन क्लास आगे की सारी किताबों को पढ़कर खत्म कर चुका था। धीरे-धीरे वह अपने स्कूल में सबसे होनहार बच्चा बन चुका था। उसकी महेनत और लगन देख उसके अध्यापक उसे बहुत प्रोत्साहित करते थे।
इस तरह से उसने अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने आप को सफलता की बुलंदियों पर खड़ा कर दिया। एक दिन वह अपने बचपन में ईंट के भट्टे पर देखी कार खरीदकर उसी भट्टे पर गया और उस भट्टे के मालिक को बहुत आभार व्यक्त किया। उसने सारी कहानी उस मालिक से बता दी। मालिक उसके प्राण को देखकर उसे अपने गले से लगा लिया। उसने कहा, “आज तुमने साबित कर दिया कि अगर किसी के अंदर कुछ करने की दिली इच्छा हो तो वह इस दुनिया की कोई भी चीज हासिल कर सकता हैं।
कहानी से सीख:
सही दिशा, महेनत और लगन के सहारे इस दुनिया में कुछ भी हासिल किया जा सकता हैं।
