किसी वन में एक तपस्वी रहते थे। वे बहुत पहुँचे हुए ऋषि थे। उनकी तपस्या बहुत कठिन थी। वह रोज सुबह नदी के किनारे आकर स्नान करते तथा एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर तपस्या करते थे। उनकी कुटिया नदी के निकट ही थी। जहाँ पर उनकी पत्नी भी रहती थी। एक दिन तपस्वी महात्मा के साथ एक घटना घटी।
सुबह-सुबह महात्मा जी स्नान करके ईश्वर को प्राणम करके अपने दोनों हाथ खोले ही थे कि आसमान से एक चुहिया उनके हाथों में आ गिरी। जब तपस्वी ने ऊपर सिर उठकर देखा तो आसमान में चील मँडरा रही थी। उसे देखते ही महात्मा जी समझ गए कि यह चुहिया चील के चंगुल से छूटकर नीचे गिरी हैं। महात्मा जी ने चुहिया को देखा वह मौत के डर से काँप रही थी।
महात्मा की पत्नी को कोई बच्चा नहीं था। इस बात का उसकी पत्नी को हमेशा दुख रहता था। जोकि, कई बार संतान प्राप्ति के लिए इच्छा प्रकट कर चुकी थी। लेकिन, महात्मा जी को पता था कि उसकी पत्नी के कोख में संतान का सुख नहीं लिखा हुआ हैं। इस बात को वह कैसे अपने पत्नी को बताए। क्योंकि महात्मा सच्चाई बता कर अपनी पत्नी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे।
अपने हाथ में लिए हुए नन्ही चुहिया को देखकर महात्मा को दया आ गई। उन्होंने अपनी आँखें बंद की और मंत्र पढ़ा उस चुहिया को बच्ची बना दिया। उसे अपने दोनों हाथों में उठाकर अपनी पत्नी के पास लेकर पहुँचा। बच्ची को अपनी पत्नी को देते हुए कहा, “जानकी आज तुम्हारी प्रार्थना भगवान ने सुन ली, लो इस बच्ची को इस अपनी बच्ची समझकर इसका पालन पोषण करो।”
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बच्ची को देखकर उसकी पत्नी का दिल खुश हो गया। उसने बच्ची को अपने गले से लगा लिया और उसके माथे को चूमते हुए कहा। मैं इसे अपने बच्चे से बढ़कर प्यार करूंगी। इस तरह चुहिया मानव के रूप में उस तपस्वी के घर में पलने लगी। महात्मा ने उस बच्ची का नाम अंबिका रखा। महात्मा और उसकी पत्नी उस बच्ची को खूब प्यार और दुलार दिये।
अंबिका की परवरिश बहुत अच्छे ढंग से हुई। धीरे-धीरे वह सोलह वर्ष की एक सुंदर और सुशील कन्या हो गई। एक दिन महात्मा की पत्नी ने कहा, “अब हमारी बेटी शादी के योग्य हो चुकी हैं। कही अच्छा सा वर देखकर शादी कर दो।” महात्मा ने कहा, “हाँ! मैं अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर खोजूँगा।
उन्होंने अपने तपो विद्या से सूर्यदेव का आवाहन किया सूर्य देव तपस्वी के सामने प्रकट हुए- “प्रणाम करते हुए सूर्यदेव ने तपस्वी से कहा, कहिए महात्मन कैसे याद किया मुझे?” तपस्वी अपनी बेटी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “यह मेरी बेटी अंबिका हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम इससे विवाह कर लो।”
तभी अंबिका बोली- “तात, यह बहुत तेज और गर्म हैं, मैं न तो इनको देख पाऊँगी न ही इनके साथ रह पाऊँगी।” तपस्वी ने कहा, “ठीक हैं बेटी मैं कोई और रिश्ता देखता हूँ। उसने सूर्यदेव से फिर पूछा, कोई आप से श्रेष्ठ रिश्ता बताओ। सूर्यदेव ने कहा, मुझसे श्रेष्ठ तो बादल हैं जो मेरे रोशनी को भी ढक लेता हैं।
तपस्वी ने बादल को बुलाया जिसे देख अंबिका ने कहा- “तात, यह तो काला हैं, मैं गोरी हूँ। मैं इससे शादी नही कर सकती।” तपस्वी ने बादल से पूछा तुम ही कोई उत्तम वर बताओ। उसने कहा, “पवन मुझसे भी श्रेष्ठ हैं जो मुझे भी उड़ा ले जाता हैं।”
तपस्वी ने पवन को बुलाया, अपनी बेटी अंबिका से पूछा, “बेटी तुम्हें यह रिश्ता पसंद हैं? “बेटी ने कहा, “जिसका कोई आकर और रूप न हो उसे मैं कैसे प्यार कर सकती हूँ। इसलिए, मुझे यह वर नहीं पसंद हैं।”
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तपस्वी ने पवन से कहा, “तुम मुझे कोई श्रेष्ठ रिश्ता बताओ, “पवन ने कहा मुझसे श्रेष्ठ तो पर्वत हैं, जो मेरा भी रास्ता रोक लेता हैं। तपस्वी ने पर्वत को आवाज लगाई। पर्वतराज प्रकट हुए। उन्होंने तपस्वी से कहा, महात्मन आपने मुझे कैसे याद किया। उन्होंने अपनी पूरी बात पर्वतराज से बता दिया। पर्वतराज ने कहा, “एक बार आप अपनी बेटी से पूछ लो कि उसे मैं पसंद हूँ या नही।
तपस्वी के पूछने पर बेटी ने कहा, “यह तो पत्थर ही पत्थर हैं इनके अंदर क्रूरता होगी। इसका दिल भी पत्थर का होगा।” यह कहते हुए इस रिश्ते को भी मना कर दिया। तपस्वी ने पर्वतराज से पूछा, आप मुझे अपने से श्रेष्ठ वर बताइए। पर्वतराज ने कहा, “चूहा मुझसे भी श्रेष्ठ हैं। वह मुझमें भी बिल बना देता हैं।
तभी पर्वतराज के कान के पास बिल से एक चूहा निकला जिसे देखकर अंबिका खुशी से उछाल पड़ी और बोली मेरा पति तो यही बनेगा। तपस्वी ने अपने तपो विद्या से अंबिका को फिर से चुहिया बना दिया और उसी से चूहे की शादी करके उसका घर बसा दिया।
सीख:
जीव जिस योनि में जन्म लेते हैं उसी में योनि के साथ जीवन निर्वाहन करते हैं।