प्रेरणादायक कहानियाँ व्यक्ति के जीवन प्रेरणा और आत्मविश्वास भरने का काम करती हैं। इसके अलावा हमें जीवन में जब भी कोई राह नहीं दिख रही होती हैं तो हम अपने आप को प्रेरित करने के लिए प्रेरणा से भरपूर कहानियाँ पढ़ने या फिर सुनने की कोशिश करते हैं। कहानीज़ोन के इस लेख में हम आपको 5 सफलता की प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाने जा रहे हैं। जोकि, निम्न प्रकार से लिखित हैं:
1. सफलता का मंत्र – Success Mantra:

विशाल अपने माता-पिता का एकलौता बेटा था। वह बहुत ही जिम्मेदार तथा बुद्धिमान था। वह अपने लक्ष्य के प्रति हमेशा केंद्रित रहता था। विशाल अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। वह किसी शहर में रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। विशाल की मेहनत और लगन देख उसके माता-पिता को भी लगने लगा था कि हमारा बेटा जरूर एक दिन हमारा नाम रोशन करेगा।
लेकिन, कुछ समय बाद विशाल दिशाहीन बच्चों के साथ रहने लगा। उन बच्चों का कोई लक्ष्य नहीं था। उन्हें अपने माता-पिता के पैसे बर्बाद करने में मजे आते थे। देखते-देखते विशाल के स्वभाव में परिवर्तन आना शुरू हो चुका था। जिसके कारण विशाल अब पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। वह हमेशा उन्ही बच्चों के साथ अपने समय को जाया करता रहता था।
एक दिन अचानक सुबह-सुबह विशाल के पिता उससे मिलने रूम पर गए। सुबह के दस बजे थे, अभी विशाल अपना कमरा बंद करके सोया हुआ था। उसके पिता ने दरवाजा खटखटाया विशाल अपनी आँखे रगड़ते हुए दरवाजा खोला। उसे देख उसके पिता ने पूछा, बेटा विशाल कल रात ज्यादा देर तक पढ़ाई कर ली थी क्या? विशाल ने कुछ नहीं बोला।
विशाल के पिता कमरे में अंदर जाकर देखा कि विशाल के कई दोस्त भी सोये हुए थे। उस रात कमरे में पार्टी हुई थी जिसके कारण शराब बोतले और सिगरेट जैसी चीजें विशाल के पिता को देखने को मिली। यह सब देख विशाल के पिता को पूरी बात समझ में आ गई। उन्होंने घर से लाए समान को विशाल को देते हुए कहा, बेटा मैं चलता हूँ।
उसके पापा ने कहा, बेटा विशाल! मेरी एक बात याद रखना, अगर इस समय मेहनत कर लिए तो पूरी जिंदगी आराम से कटेगी। अगर अभी जिंदगी में एंजॉय करोगे तो पूरी जिंदगी मेहनत करनी पड़ेगी। इतना कह कर उसके पिता घर को चले गए। उस दिन विशाल बहुत दुखी हुआ। उसी दिन से वह दिशाहीन बच्चों का साथ छोड़ दिया और जीतोड़ मेहनत करने लगा। एक दिन वह रेलवे में लोकोपायलट की नैकारी प्राप्त करके घर गया।
नैतिक सीख:
सफलता का मूल मंत्र जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो अपनी दिशा से मत भटको।
2. चुनौतियों का सामना करो – Face Challenges:

रामू नाम का एक धोबी था। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। बहुत ही मुश्किल से उसके घर का गुजर-बसर हो रहा था। उसके परिवार में उसकी पत्नी तथा एक बच्चा रहते थे। बच्चे का नाम सुरेश था। सुरेश अपने घर की स्थिति को देख चिंतित रहता था। वह अपने घर के हालात को बदलना चाहता था। लेकिन उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वह अपने घर की स्थिति कैसे बदले।
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एक दिन सुरेश कुछ बच्चों को देखा जोकि स्कूल जा रहे थे। उन्हें देख वह भी अपने माता-पिता से स्कूल जाने की जिद करने लगा। उसके माता-पिता ने कहा, “बेटा हमारी हैसियत इतनी नहीं हैं कि हम तुम्हें पढ़ा सके।” तुम्हें पढ़ने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। सुरेश स्कूल जाने के लिए कोई न कोई साधन निकलने की कोशिश करने लगा। उसने अपने रिस्तेदारों से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने ज्यादा खर्च बता कर मना कर दिया।
सुरेश ने फिर भी हार नहीं मानी उसने अपने गाँव के मुखिया से मदद मांगी। लेकिन मुखिया जी कहा, बेटा थोड़ा बहुत आपकी मदद कर सकता हूँ। लेकिन पूरे साल की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं कर सकता। सुरेश ने अपने पिता के काम में हाँथ बटाना शुरू कर दिया, जिससे उसके पिता की आमदनी थोड़ी बहुत बढ़ गई। उसकी लगन देख उसके पिता ने किसी तरह उसका दाखिला स्कूल में करवा दिया।
अब सुरेश के सपनों को पंख मिल चुके थे। उसने पूरी मेहनत से पढ़ाई शुरू कर दी। देखते-देखते उसे कई और रास्ते मिलते गए, जोकि उसकी पढ़ाई में मदद करने लगे। इस तरह से सुरेश एक दिन अपनी पढ़ाई पूरी कर अध्यापक बना। उसने गरीब बच्चों को फ्री में शिक्षा देना शुरू कर दिया। जिससे उसके प्रति लोगों का सम्मान और अधिक बढ़ गया। क्योंकि वह बहुत संघर्ष के बाद ही सफलता प्राप्त की थी।
नैतिक सीख:
चुनौतियों से हमें पीछे नहीं भागना चाहिए बल्कि आगे उसका बढ़कर सामना करना चाहिए।
3. लक्ष्य का निर्धारण – Goal Setting:

एक बार एक ऋषि महात्मा कही प्रवचन देने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक बच्चा मिला जोकि उदास बैठा था। महात्मा जी ने बच्चे को अपने पास बुलाकर पूछा क्या बात हैं बेटा? तुम कुछ उदास लग रहे हो। बच्चे ने कहा, “महात्माजी मैं जीवन में कुछ करना चाहता हूँ। लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ। महात्माजी ने कहा, “आखिर तुम करना क्या चाहते हो।” बच्चे ने कहा, कुछ भी।
महात्माजी मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, सबसे जरूरी चीज तुम अपने लक्ष्य का निर्धारण करो।” तुम अपनी कुशलता को पहचानो, तुम्हें क्या पसंद हैं। जिसके लिए तुम अपना सबकुछ देने के लिए तैयार हो। बच्चे ने कुछ देर सोचकर बोला, “महात्मन मुझे दौड़ना बहुत पसंद हैं।” अगर मैं दौड़ना शुरू करता हूँ तो मैं सब कुछ भूल जाता हूँ। मैं अपने लक्ष्य को बिना प्राप्त किए नहीं रुकता।
महात्माजी ने कहा, “फिर तुम अपने आपको एक कुशल धावक क्यों नहीं बनाते, तुम अपने देश के लिए बहुत कुछ कर सकते हो।” महात्माजी की बातें बच्चे के दिमाग में बैठ गई। उसने उसी दिन से अपना लक्ष्य निर्धारित किया। वह अपने आपको एक कुशल धावक के रूप में देखने लगा। देखते-देखते वह अपने शहर ही नहीं पूरे देश का एक महान धावक बन गया।
नैतिक सीख:
बिना निर्धारित लक्ष्य के कोई भी अपना मुकाम हशील नहीं कर सकता।
4. सफलता प्राप्त करने के साधन – Means of Achieving Success:

सफलता शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता हैं। लेकिन क्या आपको पता हैं कि सफलता प्राप्त करने के सही और सटीक साधन कौन से हैं। राहुल अपने कैरियर को लेकर बहुत परेशान रहता था। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपने कैरियर को सही दिशा में कैसे ले जाए। एक दिन उसकी मूलाकात स्कूल के अध्यापक से हुई। राहुल ने अपने मन की सारी बात अध्यापक से बता दिया।
अध्यापक उसे समझाते हुए कहा, “सफलता को एक दो दिन में नहीं प्राप्त की जा सकती।” बल्कि इसके लिए तुम्हें कई चीजों का बलिदान देना पड़ेगा। सफलता प्राप्त करने के लिए, सही दिशा में मेहनत और लगन के साथ काम करना अनिवार्य होता हैं। इसके अलावा सफलता सकारात्मक सोच के साथ निरंतर प्रयास और धैर्य मांगती हैं। किसी भी विषम परिस्थितियों में पीछे मुड़कर न देखने से सफलता प्राप्त होती हैं।
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सफलता, के लिए सफल लोगों की संगत तथा उनसे सीखकर आगे बढ़ने पर सफलता मिलती हैं। सफलता का मूल मंत्र अपने आपको सफल लोगों की तरह देखना। राहुल अध्यापक की बात सुनकर बहुत प्रेरित हुआ। वह अपने बनाए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास करने लगा। बहुत जल्द एक दिन वह एक सफल व्यक्ति बन गया।
नैतिक सीख:
निर्धारित लक्ष्य, निरंतर प्रयास, सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास और धैर्य सफलता प्राप्त करने के कुछ प्रमुख साधन हैं।
5. सकारात्मक सोच का प्रभाव – Effect of Positive Thinking:

सूरज और मोहित दो दोस्त थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनों दोस्त के स्वभाव लगभग समान थे। लेकिन दोनों दोस्तों एक बात की कमी थी। सूरज अपनी सकारात्मक सोच के लिए जाना जाता था। जबकि, मोहित का नजरिया किसी भी पहलू के नकारात्मक कारणों पर होता था। जिसके कारण उसे हर जगह मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।
सूरज और मोहित परीक्षा होने वाली थी। सूरज की तैयारी अच्छी थी। वह पढ़ें हुए चैपटर का बार-बार रिवीजन कर रहा था। जबकि मोहित हमेशा कोई नया चैपटर पढ़ने की कोशिश करता था। फिर एकएक उसके दिमाग में बात आती थी कि इस चैपटर से प्रश्न नहीं आ सकता और फिर उस चैपटर को छोड़कर किसी और चैपटर को पढ़ने लगता। इस तरह से उसकी किसी भी चैपटर पर पकड़ मजबूत नहीं थी।
एक दिन सूरज ने मोहित को समझाया कि अब अपने पास अधिक समय नहीं हैं। जिस चैपटर पर तुम्हारी पकड़ मजबूत हैं उसी को बार-बार पढ़ो। जिससे तुम्हारी समझ अच्छी हो जाएगी। लेकिन, मोहित हमेशा यही सोचता था कि इस चैपटर से प्रश्न नहीं आया तो। परीक्षा हुई, परीक्षा हाल में पेपर देखकर मोहित का सिर चकरा गया। प्रश्नपत्र में छोड़े हुए चैपटर में से कई प्रश्न पूछे गए थे। जिसे मोहित ने अच्छे से नहीं पढ़ा था। इस तरह से उसका पेपर अच्छा नहीं हुआ। नतीजा मोहित परीक्षा में फेल हो गया।
नैतिक सीख:
सकारात्मक सोच के साथ लिया गया फैसला सफलता की तरफ ले जाता हैं।