1. Best Hindi Story – आत्मविश्वास:
राघवपुर गाँव में रामलाल नाम का एक धोबी अपने परिवार के साथ रहता था। रामलाल के परिवार का जीवन यापन लोगों के कपड़े धुलकर चलता था। लेकिन, सबसे बड़ी समस्या यह थी कि रामलाल के गाँव में पीने के पानी का संकट था। यही वह कारण था कि उस गाँव से पाँच किलोमीटर दूर दूसरे गाँव के कुएं से लोगों को पानी लाना पड़ता था।
किसी दूसरे गाँव से पानी लाना किसी को अच्छा नहीं लगता था। लेकिन कुआँ खोदने की हिम्मत किसी में नहीं थी। पानी का संकट दिनों-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। अब नदी भी सूख चुकी थी। जिससे रामलाल को कपड़े धुलने में और अधिक परेशानी होने लगी। अब रामलाल और उसके परिवार को पानी के लिए दिन में दूसरे गाँव के कई चक्कर लगाने पड़ते थे।
एक दिन रामलाल और उसके परिवार के लोग घड़े लेकर दूसरे गाँव के कुएं पर पानी भरने के लिए पहुँचे। उस कुएं पर उसी गाँव के लोग पानी भर रहे थे। तभी किसी ने रामलाल से कहा, “तुम लोग इंतजार करो, पहले इस गाँव के लोग पानी भरेंगे फिर तुम लोग पानी भरना। इस बात का रामलाल ने विरोध किया तो दूसरे गाँव वालों ने कहा, “इतनी जल्दी रहती हैं तो तुम लोग अपने गाँव में कुआँ क्यों नहीं खोद लेते।”
उन लोगों की बातें रामलाल के दिल से लग गई। उसी दिन रामलाल ने निश्चय किया कि चाहे जो हो जाए। वह गाँव में कुआँ खोदकर ही मानेगा। उसने अपने घर के सामने कुआँ खोदना शुरू किया। गाँव वालों ने कहा, “रामलाल तुम्हारा दिमाग तो ठीक हैं न, अपने गाँव की जमीन कंकड़ और पत्थर से भरी हुई हैं। यहाँ पर कुआँ खोदना आसान नहीं होगा।
रामलाल ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने जिद्द करके एक जगह पर कुएं की खुदाई करना शुरू कर दिया। उसके घर वालों ने रामलाल का साथ दिया। जिससे रामलाल का काम कुछ आसान होता चला गया। धीरे-धीरे उस गाँव के नवजवान लड़को ने भी रामलाल का साथ देना शुरू कर दिया। जिससे राम लाल को साहस के साथ बल मिल गया।
कई दिनों के अथक प्रयास के बाद एक दिन रामलाल और उसके गाँव वाले लोगों की मेहनत रंग लाई। जिस काम को असंभव समझ रहे थे। वह रामलाल की कोशिशों से संभव हो गया। उन्हें कुएं में पानी मिल गया। जिससे पूरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ पडी। अब रामलाल को पानी के लिए दूसरे गाँव जाने की जरूरत नहीं थी। इस तरह रामलाल की मेहनत और आत्मविश्वास के कारण गाँव के लोगों को मीठा पानी मिलने लगा।
नैतिक सीख:
मेहनत लगन और आत्मविश्वास सफलता की राह दिखाती हैं।
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2. सच्चा देशप्रेम:
आरव, रोहित और समीर तीनों बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। एक दिन उनकी मैडम ने देशप्रेम की एक कहानी सुनाई। कहानी सुनकर आरव बोला, “मैडम जी! मैं भी पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बनकर सेना में जाऊँगा। अपने देश की सीमा पर डटकर देश की रक्षा करूँगा।” ‘शाबाश!’ मैडम ने कहा।
रोहित ने कहा मैडम जी मैं भी पढ़-लिखकर नेता बनूँगा। जिससे अपना और देश का नाम दुनिया में रौशन करूँगा। मैडम ने कहा, अच्छी बात हैं। इस तरह से सभी बच्चों ने अपनी-अपनी इच्छाएं बताई।
सबसे आखिर में समीर ने कहा, “मैडम जी मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करना चाहता हूँ। तभी आरव और रोहित बोल पड़े,”गरीब की सेवा करना कोई देशप्रेम थोड़ी हैं” यह तो पैसा कमाने का एक जरिया हैं। तभी मैडम जी ने कहा, “मरीजों की सेवा करना भी देशप्रेम हैं। क्योंकि, वे भी देश के नागरिक हैं।
मैडम ने आरव और रोहित से पूछा कि जब सैनिक घायल होते हैं तो उनका इलाज कौन करता हैं? जब नेता बीमार होते हैं तो उनका इलाज कौन करता हैं? यदि देश में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आती हैं तो उनका इलाज कौन करता हैं। सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा, “डॉक्टर!” मैडम ने कहा, तो आप कैसे कह सकते हैं कि डॉक्टर का काम देशप्रेम से नहीं जुड़ा हैं।
मैडम ने कहा, “कोई भी काम, पूरी लगन और ईमानदारी के साथ डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, किसान, शिक्षक करते है तो वह देश प्रेम के अंतर्गत ही आता हैं। क्योंकि, सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। सभी मिलकर एक उन्नत देश के निर्माण में सहयोग करते हैं।
नैतिक सीख:
एक मजबूत देश के लिए हर वर्ग के लोगों का योगदान जरूरी होता हैं।
3. पेड़ का महत्त्व:
बंटी, खेलकर घर वापस आया तो देखा उसके घर के सामने पीपल के पेड़ के नीचे बहुत सारी औरतें पूजा कर रही थी। उसने अपने दादाजी से पूछा, “मम्मी, बुआ और आँटी जी सभी इस पेड़ की पूजा क्यों कर रहे हैं? बंटी ने कहा, दादाजी मैंने लोगों को मंदिर में पूजा करते हुए देखा हैं। लेकिन पेड़ की पूजा! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।
दादा जी बंटी को उसकी अंगुली पकड़कर पीपल के पेड़ के पास ले गए। बंटी ने देखा कि पीपल के पेड़ के तने पर बहुत सारे लाल धागे बंधे हुए थे। उस पेड़ के नीचे दीपक जल रहा था। औरतें पेड़ के सामने अपने दोनों हाथों को जोड़कर कुछ प्रार्थना कर रही थी। यह सब दिखाते हुए दादा जी ने पूछा, “हम भगवान की पूजा क्यों करते हैं?
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बंटी ने कहा, “दादा जी! मम्मी ने मुझे बताया था कि भगवान हमारा पालन-पोषण करते हैं, हमें जीवन देते हैं। इसलिए हम भगवान की पूजा करते हैं।” बेटा इसी तरह पेड़ पौधे भी हमें फल, फूल, छाया, और लकड़ियाँ देते हैं। इन सबसे बड़ी चीज पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं, जिसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते। इसलिए, हम पेड़ की पूजा करते हैं। उन्हें बचाते हैं, जिससे हमारा जीवन सुरक्षित रहे।
दादाजी बंटी को और समझाते हुए कहते हैं, “हमारे वायुमंडल में तरह-तरह की दूषित गैसें जैसे, कार्बन डाई-आक्साइड भी होती हैं। जिसे पेड़ चूस लेता हैं। उसके बदले मे हमें ऑक्सीजन देकर हवा को साफ रखने में मदद करता हैं। बंटी ने कहा दादाजी मैं समझ गया कि हम पेड़ की पूजा क्यों करते हैं तथा पेड़ हमारे लिए कितना आवश्यक हैं। अब से मैं भी पेड़ लगाऊँगा और लोगों को भी प्रेरित करूँगा।
नैतिक सीख:
पेड़ हमारे जीवन को बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
4. आम का पेड़:
तनुज, एक छोटा सा बच्चा था और उसका मित्र आम का पेड़ था। दोनों एक दूसरे को बहुत अधिक चाहते थे। तनुज उसी पेड़ के साथ खेलता था। धीरे-धीरे तनुज बड़ा होने लगा। अब वह आम के पेड़ के पास खेलने कभी-कभी ही जाता था। एक दिन आम के पेड़ ने तनुज को मिलने के लिए बुलाया। तनुज उससे मिलने के लिए आया। आम के पेड़ ने कहा, “दोस्त! आओ साथ खेलते हैं। मैं अकेला महसूस कर रहा हूँ।”
“नहीं,… मुझे खिलौने से खेलना हैं। मेरे पास पैसे भी नहीं हैं कि मैं खिलौने खरीद सकूँ। तनुज ने मुँह फूलाकर बोला। पेड़ ने तनुज से कहा, “दोस्त! मुझमें लगे इन रसीले आमों को बेचकर तुम अपने लिए खिलौने ले सकते हो।” तनुज रसीले आमों को लेकर चला गया। तनुज कई महीनों तक वापस नहीं लौटा पेड़ उदास रहने लगा।
अचानक एक दिन तनुज वापस लौटा। पेड़ ने खुश होकर कहा, आओ मेरे दोस्त दोनों बातें करें। देखो मैं तुम्हारे बिना उदास रहता हूँ। तनुज ने कहा, “मेरे पास समय नहीं हैं। मुझे अपने परिवार के लिए घर बनाना हैं। लेकिन मेरे पास लकड़ी नहीं हैं। पेड़ ने अपने मित्र को सबसे मजबूत टहनी दे दी। वह लकड़ी लेकर चला गया। पेड़ उसके लौटने का इंतजार करता रहा। लेकिन तनुज उसका हाल-चाल तक लेने नहीं आया।
कुछ महीनों बाद एक दिन तनुज अपने परिवार के साथ पेड़ के पास आया। पेड़ अपने दोस्त को देख फूले नहीं समाया। उसने अपने दोनों हाथ उसके सामने फैलाते हुए कहा, “दोस्त एक बार मेरे गले लग जा, वर्षों हो गए, मुझे तुम्हारे साथ खेले हुए।
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लेकिन, तनुज ने पेड़ से कहा, “मुझे एक सीधा और लंबा तना चाहिए, जिससे मुझे नाव बनवानी हैं। पेड़ ने दोस्त को पाने की खुशी में तना काटने के लिए कह दिया।” लेकिन तनुज एक बार फिर पेड़ से दूर चला गया। पेड़ फिर से अकेला और उदास हो गया।
एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति पेड़ के पास आया, वह तनुज ही था। पेड़ ने उसे देखकर निराशा से कहा, “मित्र, अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं हैं।” तनुज ने कहा- “दोस्त अब मुझे कुछ नहीं चाहिए मैं बहुत थक चुका हूँ। मैं सिर्फ तुम्हारे पास आराम करना चाहता हूँ।”
दयालु पेड़ ने कहा, मित्र तुम मेरे ठूँठा का सहारा लेकर आराम कर सकते हो। पेड़ अपने पास अपने दोस्त को देखकर बहुत खुश था। तनुज मन ही मन सोचने लगा हमें भी इस पेड़ की तरह दयालु होना चाहिए।
नैतिक सीख:
हमें स्वार्थी नहीं दयालु होना चाहिए।