बच्चों का ध्यान केंद्रित कराने का एक सरल और आसान माध्यम कहानियाँ हैं। कहानियों के माध्यम से बच्चे सुनने पर अधिक ध्यान देते हैं। इसके अलावा कहानियाँ बच्चों को खेल-खेल में मनोरंजन भी कराती हैं। लेकिन कहानी बच्चे के उम्र के अनुसार लिखी होनी चाहिए। जिससे बच्चा आसानी से उस कहानी का उद्देश समझ सके।
1. कुछ भी असंभव नहीं हैं
सुंदरपुर एक छोटा और खुशहाल गाँव था। उस गाँव के लोग हमेशा एक दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। क्योंकि उस गाँव का हर व्यक्ति एक दूसरे को अपने परिवार जैसे मानते थे। उसी गाँव में धरमा नाम की एक औरत अपने पाँच साल के बच्चे के साथ रहती थी। उस बच्चे का नाम विशाल था। धरमा का उस बच्चे के अलावा उसके परिवार में कोई नहीं था। बीमारी के कारण उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी।
धरमा अपने बच्चे को एक नेक इंसान बनाना चाहती थी। जिसके लिए वह सुबह शाम अपने गाँव से दूर शहर जाकर घरों में झाड़ू-पोंछा का काम करती थी। धीरे-धीरे उसका बच्चा बड़ा हुआ। धरमा उसे अच्छे-से-अच्छे स्कूल में पढ़ना चाहती थी। एक दिन विशाल अपनी माँ से कहा, “माँ मुझे पढ़ाई करना अच्छा नहीं लगता, मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। मैं आपके साथ काम करूंगा।”
उसकी बातों को सुनकर धरमा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे ऐसे लगा मानो उसके उम्मीदों पर किसी ने पानी फेर दिया हो। लेकिन धरमा बहुत ही साहसी औरत थी। वह अपने बेटे को पढ़ाई के बारे में बताई। लेकिन उसने एक ही जिद्द लगा रखी थी कि मैं स्कूल नहीं जाऊंगा। उसकी माँ ने कहा ठीक हैं! आज स्कूल मत जाओ घर बैठकर सोचो, तुम्हें स्कूल क्यों नहीं जाना हैं।
उसकी माँ काम पर चली गई। पूरे दिन उसका काम में मन नहीं लगा। जिसके कारण उसे मालकिन की बात भी सुननी पड़ी। धरमा बिल्कुल खोई-खोई लग रही थी। वह शाम को घर आकर अपने बेटे से पूछी क्या हुआ विशाल क्या फैसला लिया तुमने। विशाल ने कहा, मैंने फैसला कर लिए हैं। मैं आपके साथ काम पर जाऊंगा, स्कूल नहीं जाऊंगा। अगले दिन विशाल को उसकी माँ अपने साथ शहर काम पर ले गई।
विशाल एक चौक पर खड़ा था। उसके साथ बहुत सारे मजदूर काम की तलास के लिए खड़े थे। जब भी कोई व्यक्ति आता तो उसे मजदूर यह कहते हुए घेर लेते कि मुझे ले चलो, मुझे ले चलो। विशाल की उम्र कम थी इसलिए उसे कोई काम पर ले जाने को तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से एक व्यक्ति ईटें उठवाने के लिए विशाल को अपने साथ ले गया।
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पूरे दिन उसने विशाल से काम लिए शाम को आते समय दस रुपये दिए। विशाल घर आकर खूब रोया। उसने उसी दिन उसने निर्णय कर लिया चाहे कुछ भी हो जाए स्कूल जाना नहीं छोड़ूँगा। अगले दिन से विशाल स्कूल जाना शुरू कर दिया। वह खूब मेहनत करता था। धीरे-धीरे विशाल की गिनती उसके क्लास के सबसे तेज छात्रों में होने लगी।
उसकी मेहनत और लगन देखकर उसे आगे की पढ़ाई के लिए उसकी माँ ने अपने गहने और जमीन तक बेच दिए। विशाल पढ़ाई में सबकुछ लगा चुका था। वह किसी भी परिस्थितियों में वापस पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता था। आगे चलकर विशाल एक दिन डॉक्टर बना। उसे डॉक्टर बने देख उसकी माँ के दिल को तसल्ली मिली। उसने कहा, “बेटा विशाल आज तुमने कर दिखाया कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं हैं।”
नैतिक सीख:
मेहनत के बल पर कोई भी उपलब्धि हासिल की जा सकती हैं।
2. मजबूत इच्छाशक्ति :
किसी गाँव में राजू नाम का एक लड़का रहता था। राजू का गाँव बहुत छोटा था। राजू एक गरीब परिवार से था। लेकिन उसके सपने बहुत बड़े थे। उसकी सोच बहुत ऊंची थी। वह एक बड़ा व्यापारी बनना चाहता था। लेकिन उसके पास न तो बहुत पैसे थे और न ही उसका कोई मार्गदर्शन करने वाला था।
एक दिन राजू अपने गाँव के किनारे लगे एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठा था। वह उदास था, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा हैं। एक बूढ़ा व्यक्ति उसी रास्ते से कही जा रहा था। उसने देखा की एक बच्चा जिसकी उम्र लगभग बारह साल रही होगी। वह पेड़ के नीचे अपना सिर झुकाए बैठा हुआ हैं।
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बूढ़ा व्यक्ति राजू के पास गया। उसने पूछा क्या बात हैं बेटा! तुम बहुत उदास लग रहे हो। राजू ने कहा, “बाबा मैं जीवन में कुछ करना चाहता हूँ। लेकिन मुझे कोई सही मार्ग दिखाने वाला नहीं हैं न ही मेरे पास पैसे हैं। उस व्यक्ति ने राजू से कहा, “बेटा सफलता पैसों और सही मार्ग दिखलाने से नही आती बल्कि सफलता मजबूत इच्छाशक्ति के कारण मिलती हैं।
बूढ़े आदमी ने राजू को एक कहानी सुनाते हुए कहा, “बेटा तुम जिस पीपल के पेड़ के नीचे बैठे हो यह पेड़ ऐसे ही नहीं बड़ा हुआ हैं। इसने भी बहुत आंधी, तूफान, बारिश और गर्मियों की तपन को झेला तभी आज इतना बड़ा विशाल पेड़ बन सका। ठीक इसीप्रकार से आज तुम अपने जीवन में सघर्ष कर रहे हो।
अगर तुम एक व्यापारी बनान चाहते हो तो कोई भी छोटी-मोटी दुकान खोलकर बैठ जाओ। अब तुम्हें सोचना होगा की उस दुकान को हम बड़ा कैसे करें। देखना तुम्हारी मेहनत और लगन एक दिन जरूर तुम्हें ऊंचाइयों पर ले जाएगी। बूढ़े बाबा की बात राजू को दिल से लग गई। उसी दिन से राजू एक छोटी सी दुकान खोल दी।
राजू अपने अथक मेहनत और प्रयास से बहुत कम समय में उस दुकान को एक बड़े स्टोर के रूप में बदल दिया। राजू को हमेशा बाबा की बातें याद रहती थी। जो उसे प्रेरित करती रहती थी।
नैतिक सीख:
- कभी हार मत मानो।
- अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत रखो।
- अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करो।
- हमेशा दूसरों की मदद करो।
- अच्छी सेवा प्रदान करो।
3. कर्म का फल:
रोहन को किसी भी चीज की कमी नहीं थी। उसके पापा उसके लिए अच्छे-से-अच्छे खिलौने लाकर देते थे। लेकिन वह हमेशा उदास रहता था। वह जब भी बाहर जाता और बच्चों को देखता तो उसे रोना आता था। रोहन के पिता कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि उनके बेटे को क्या हो गया हैं। वह जब से स्कूल जाने लगा वह बहुत उदास रहता हैं।
उसके पिता ने रोहन दिखाने डॉक्टर के पास ले गए। उन्होंने सारी कहानी बता दी। लेकिन डॉक्टर ने कहा, आपका बच्चा बिल्कुल ठीक हैं। इसे कोई परेशानी नहीं हैं। उसके पिता रोहन को लेकर घर वापस चले आए। लेकिन अभी भी रोहन के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं हो रहा था।
एक दिन रोहन अपने पिता के साथ गाड़ी में कही जा रहा था। बीच रास्ते में रेड लाइट होने पर गाड़ी रुकी। तभी एक लड़का अपनी गोद में एक छोटा बच्चा लिए हुए दूसरे हाथ से गुब्बारे पकड़े हुए उसकी कार के पास आया। वह लड़का कार में बैठे रोहन को गुब्बारे लेने के लिए कहता हैं। रोहन समझ जाता हैं कि यह लड़का यह सबकुछ पैसों के लिए कर रहा हैं।
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रोहन ने कर में पड़े पर्स से सारे पैसे निकल कर उस लड़के को दे दिया। उसे पैसा देकर रोहन बहुत खुश हुआ। वह जोर-जोर से हँस रहा था। उसकी खुशी देख रोहन के पापा ने पूछा, “बेटा! क्या तुम इन लोगों की मदद करना चाहते हो?” रोहन ने कहा, “हाँ, पापा! ये बच्चे ऐसे पैसा क्यों माँगते हैं।” इनके पास हमारे जैसी सुविधाएं क्यों नहीं होती हैं।
रोहन के पिता अपने बेटे को समझाते हुए कहते हैं, “बेटा! जब हम जन्म लेते हैं तो भगवान हमें एक समान बनाकर भेजते हैं।” हम अपने कर्म के आधार पर बड़ा-छोटा तथा गरीब और अमीर बनते हैं। अगर इसी बच्चे यह ठान ले की मुझे अपने हालात बदलने हैं तो बहुत जल्द इसके हालात बदल जाएंगे। रोहन समझ गया की हमारी तरह सभी समान क्यों नहीं होते।
नैतिक सीख:
खाली बैठकर सोचने से अच्छा होता हैं एक रास्ता पकड़कर उस पर चलना एक दिन मंजिल जरूर मिलेगी।