विष्णु शर्मा संस्कृत के विद्वान लेखक था। उन्होंने ने पंचतंत्र की कहानियों को पाँच भागों बाँटा था। जिसका प्रमुख कारण राजा के तीन बेटों का ज्ञानवर्धन करना था। इसलिए, पंडित विष्णु शर्मा ने पशु-पक्षियों से जुड़ा हुआ सरल और आसान छवि के माध्यम से कहानी सुनाकर बुद्धिमानी और चतुराई के साथ नैतिक सीख बताना चाहते थे। उनके द्वारा लिखित पाँच कहानियां इस प्रकार से हैं:
1. पंचतंत्र की कहानी – बंदर और मगरमच्छ:

एक नदी के किनारे जामुन के पेड़ पर एक बंदर रहता था। उसी नदी में एक मगरमच्छ रहता था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। क्योंकि, बंदर मगरमच्छ को मीठे-मीठे जामुन तथा अन्य फल खिलता था। मगरमच्छ भी बंदर को अपनी पीठ पर बैठाकर नदी की सैर करवाता था। इस तरह से दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे।
एक दिन बंदर ने मगरमच्छ को खूब जामुन खिलाया। मगरमच्छ ने पेट भरकर जामुन खाने के बाद सोच क्यों न कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिए ले चलू। मगरमच्छ जामुन को लेकर अपनी पत्नी के पास पहुँचा। उसकी पत्नी जामुन खाकर बहुत खुश हुई। उसने अपने पति से कहा, “तुम्हारा दोस्त इतने मीठे-मीठे फल खाता हैं। उसका दिल कितना स्वादिष्ट होगा। मुझे तुम्हारे दोस्त का दिल खाना हैं।
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मगरमच्छ अपनी पत्नी को कई बार समझता हैं कि ‘उसका दिल मिलन असंभव हैं।’ मैं अपने दोस्त के साथ धोखा नहीं कर सकता। मगरमच्छ की पत्नी नाराज हो जाती हैं। मगरमच्छ न चाहते हुए भी बंदर के पास जाता हैं और उसे नदी की सैर कराने के बहाने पीठ पर बैठाकर अपनी पत्नी के पास ले आता हैं।
मगरमच्छ कहता हैं, “मेरी पत्नी को तुम्हरा दिल खाना हैं। बंदर को अपने दोस्त की बात सुनकर जोर का झटका लगा।” लेकिन, बंदर बीच नदी में था। वह चाहकर भी कुछ कर नहीं सकता था। उसने धैर्यपूर्वक मगरमच्छ की पत्नी से कहा- “इतनी छोटी सी बात, मैं अपने दोस्त के लिए दिल क्या, अपनी जान भी दे सकता हूँ।”
बंदर ने अपने दोस्त को फटकार लगाते हुए कहा- “तुम कितने बडे मूर्ख हो अगर तुम मुझे पहले बता दिए होते तो मैं अपना दिल अपने साथ ले आया होता। मै अपने दिल को तो पेड़ पर छोड़ आया हूँ। चलो मेरे साथ, लेकर आते हैं।”
मगरमच्छ और बंदर नदी के किनारे की तरफ जाने लगे। बंदर भगवान से प्रार्थना किये जा रहा था। बंदर जैसे नदी के किनारे पहुँचा उसने छलांग लगाकर पेड़ पर चढ़ गया। उसने मगरमच्छ से कहा, “तुम धोखेबाज हो, आज तो मैं अपने जान से हाथ धो बैठा था। तुम विश्वास योग्य दोस्त नहीं हो। आज से तुम्हारी और मेरी दोस्ती खत्म।”
नैतिक शिक्षा:
मुश्किल परिस्थितियों में बुद्धिमानी और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए।
2. पंचतंत्र की कहानी – मूर्ख ब्राम्हण:

एक बार की बात हैं। श्रीपुर गाँव मे चार दोस्त रहते थे। धीरे-धीरे चारों बडे हो रहे थे। अब उनके माता-पिता को लगाने लगा था कि चारों हमेशा एक साथ रहते हैं। क्यों ने चारों को एक साथ एक ही पाठशाला में दाखिला करवा दिया जाए। चारों के माता-पिता अपने-अपने बच्चे को एक आश्रम में विद्या ग्रहण करने के लिए छोड़ दिये।
आश्रम में भौतिक, आध्यात्मिक, व्यवहारिक, सांस्कृतिक और तांत्रिक विद्या भी प्रदान की जाती थी। चारों दोस्त हमेशा एक साथ रहते और शिक्षा को बढ़-चढ़ कर मन लगाकर ग्रहण किया करते थे। शिक्षा खत्म होती हैं। चारों दोस्त अब ब्राम्हण कहलाने लागते हैं। चारों ने अपने आचार्य को प्राणम करके अपने घर को जाने लगते हैं। चारों ब्राम्हण में से तीन को लगने लगा था कि मुझसे बड़ा कोई विद्वान नहीं हैं।
चलते-चलते रास्ते में उन्हें एक मरा हुआ शेर दिखाई दिया। पहले दोस्त ने कहा- “चलो हम अपने विद्या का प्रयोग करके इस शेर को जिंदा कर दे और फिर इसके ऊपर बैठकर घर चलेंगे। तीनों दोस्त इस कार्य के लिए सहमत हो गए। शेर के अस्थिर-पंजर को इकट्ठा करके उसे जीवित करने जा रहे थे। तभी चौथे ब्राम्हण ने कहा रुको! ऐसा मत करो, शेर हमें हानि पहुँचा सकता हैं।
तीनों ब्राम्हण उस पर हँसने लगे और बोले हम इसको जिंदा करके अपने अनुसार चला सकते हैं। चौथे ब्राम्हण ने कहा, मुझे पेड़ पर चढ़ जाने दो, तब शेर को जिंदा करो। वह पेड़ पर चढ़ गया। तीनों ब्राम्हण ने अपने-अपने तंत्र विद्या से शेर को जिंदा कर दिए। शेर उठकर अपने सामने तीनों ब्राम्हण को देखा और उन पर बारी-बारी से टूट पड़ा और उन्हें मारकर खा गया। चौथा दोस्त पेड़ पर चढ़ा यह सब देख रहा था।
नैतिक शिक्षा:
बुद्धि का प्रयोग बहुत सोच समझकर करना चाहिए।
3. पंचतंत्र की कहानी – नीला सियार:

एक बार एक सियार जंगल से भटक गया। वह घूमते-घूमते किसी गाँव में जा पहुँचा। रात अधिक हो चुकी थी, उसने सोचा क्यों न आज इसी गाँव में आराम कर लूँ, सुबह-सुबह जंगल की तरफ चला जाऊँगा। इसी सोच में वह गाँव में छिपने की जगह खोजने लगा। उसे भूख अधिक लगी थी। उसने खाने की खोज में इधर-उधर देखा। उसे एक हौदा दिखा जोकि, एक बोरी से ढकी हुई थी।
उस हौदे में दीवार की पुताई करने के लिए नीला रंग घोलकर रखा था। उसने जैसे उस हौदे के अंदर झाँकना शुरू किया। अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आने लगी। सियार तुरंत उसी हौदे में छिप गया। पूरी रात उस हौदे में छिपे होने के कारण सियार का रंग नीला हो गया था। सुबह-सुबह बचते-बचाते किसी तरह वह जंगल जा पहुँचा। उसे देख जंगल के सभी जानवर भागने लगे। क्योंकि, उसका रंग बदल चुका था।
जब वह नदी में पानी पीने के लिए गया तो पानी में अपनी परछाई देखकर उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने सोच क्यों न मैं जंगल के जानवरों का राजा बन जाऊँ। सियार ने लोमड़ी को पूरी बात समझाते हुए कहा, “तुम मेरे मंत्री बन जाओ। मैं जैसा कहूँगा वैसे करते जाओ, देखना बहुत मजा आएगा।”
लोमड़ी ने पूरे जंगल में खबर फैला दिया कि इस जंगल में किसी दूसरे लोक के भगवान आए हैं। हमें उन्हें अपना देवता मानकर उनके आज्ञा का पालन करना चाहिए। अगलें दिन सियार और लोमड़ी ने एक सभा लगाई। सियार अपनी बात लोमड़ी के कान में कहता था। जिसे लोमड़ी सबको बताती थी। इसी तरह सियार और लोमड़ी दोनों मिलकर जंगल के जानवरों को कई दिनों तक मूर्ख बनाते रहे।
एक दिन नीलू बंदर को सभा में कुछ संदेह हुआ कि सियार क्यों बोलता नहीं। बंदर ने एक योजना बनाई उसने कई सियार को इकट्ठा कर सभा के पीछे झाड़ी में छिपकर हुआ…हुआ… की आवाज निकालने के लिए कहा, “जैसे नीले सियार को हुआ…. हुआ…. की आवाज आती सुनाई दी उसने भी सभा में जोर-जोर से हुआ…. हुआ…. की आवाज निकलना शुरू कर दिया।
सभी जानवर समझ गए यह कोई देवता नहीं बल्कि एक सियार हैं। जो हम लोगों को मूर्ख बना रहा हैं। सारे जानवर उस नीले सियार के ऊपर टूट पड़े और उसे मर डाला।
नैतिक सीख:
छाल, कपट और झूठ बोलकर ली गई सफलता ज्यादा दिन तक नहीं छिपता।
4. पंचतंत्र की कहानी – बगुला और केकड़ा:

एक नदी में बहुत सारी मछलियाँ रहती थी। उसी नदी के किनारे कई बगुले भी रहते थे। गर्मी का मौसम आने वाला था। वहाँ के सारे बगुले उड़कर किसी दूसरे नदी के पास रहने चले गए। उन्ही बगुलों में एक बगुला उस नदी को छोड़कर नहीं गया। क्योंकि, वह बहुत आलसी था। वह चाहता था कि उसे बैठे-बैठाये वही भोजन मिल जाए।
लेकिन, और बगुलों के चले जाने के बाद उसे खाने-पीने की भी दिक्कत होने लगी। क्योंकि, वह बगुला अन्य बगुलों की चापलूसी करके कुछ खाने-पीने का जतन कर लेता था। एक दिन वह बगुला एक टीले पर बैठकर जोर-जोर से रो रहा था। उसकी आवाज नदी के सबसे बुजुर्ग केकड़े के कान में पड़ी। उसने बाहर निकलकर देखा तो बगुला तेज-तेज आवाज में रो रहा था।
केकड़े ने बगुले से कहा, “क्यों बगुले भाई क्या हुआ? इतनी तेज-तेज क्यों रो रहे हो? बगुले ने पहले तो कुछ बताने से माना कर दिया। लेकिन, केकड़े के बार-बार कहने पर बगुले ने कहा- ”क्या बताऊँ मामा जी कल रात मेरे पास इस नदी की जलदेवी आई, मुझसे बोली तुम इस नदी को छोड़कर कही और चले जाओ। यह नदी बहुत जल्द सूख जाएगी।
मेरा क्या मैं तो कही भी चला जाऊँगा। लेकिन, इस नदी की मछलियाँ और आप लोग मेरे भाई-बहन के समान हो। आप लोगों का क्या होगा। इतना कहकर वह फिर जोर-जोर से रोने लगा। इतने में उस नदी की सारी मछलियाँ इकट्ठा हो गई। उन्होंने कहा बगुले भाई आप ही हम लोगों को बचाने का कोई रास्ता बताओ नहीं तो हम लोग मारे जाएंगे।
बगुला कुछ देर सोचकर कहा, “मेरे पास एक उपाय हैं। लेकिन, आप लोगों को पता नहीं पसंद आएगा या नहीं।” सभी मछलियों ने बगुले से कहा, बताओ…बताओ…। बगुले ने कहा, “आप लोगों को एक-एक करके अपनी पीठ पर बैठाकर सामने वाली पहाड़ी के पीछे बड़ी नदी में छोड़ आता हूँ।” केकड़े ने बगुले से कहा, हम लोग तुम्हारे ऊपर कैसे विश्वास करे। क्या पता तुम बीच रास्ते में मारकर खा गए तो?
बगुले ने कहा मामा! मैंने अब मछलियों को खाना छोड़ दिया हैं। आप खुद मुझे देखकर समझ सकते हैं कि मैं दिनों प्रतिदिन क्यों इतना पतला होता चला जा रहा हूँ। मैं मंत्र ले चुका हूँ, जिसके कारण लोग मुझे बगुला भगत भी कहने लगे हैं। मेरे जीवन के कुछ ही दिन बचे हैं। “मैं सोच रहा हूँ कि कुछ परोपकार भी कर लिया जाए नहीं तो भगवान के पास क्या जबाब दूँगा?”
बगुले की लाई-चुपड़ी बात सुनकर सभी को विश्वास हो गया कि बगुला हमारी मदद करना चाहता हैं। “सभी ने बगुला भगत की जय…. बोलते हुए कहा, ले चलो हम लोगों को दूसरे नदी में।” इस तरह से अब बगुला मछलियों को दूसरी नदी में ले जाने के बहाने उसे पहाड़ी के पीछे ले जाकर खा जाता था।
देखते-देखते बगुले के स्वस्थ में भी सुधार होने लगा। अब बगुला कभी-कभी दिन के दो तीन चक्कर भी लगा देता था। बगुले की सेहत को देख केकड़े को आशंका हुआ। उसने कहा, “बगुला भगत आज हमें नदी छोड़ने ले चलो। बगुले ने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठाकर उड़ चला। पहाड़ी के पीछे पहुँचने पर केकड़ा पूंछता है। यह सब अथिर-पंजर किसका हैं। यहाँ तो हड्डियों के ढेर लगे हुए हैं।
बगुले ने कहा, “मूर्ख मामा! मैं यही पर तालाब की मछलियों को लाकर खाता हूँ। आज तुम्हारा नंबर हैं। केकड़े ने बिना देरी किये अपने नुकीले पंजों से बगुले का गर्दन दबा कर पकड़े रहा जब तक कि बगुले ने दाम नहीं तोड़ दिया। केकड़ा भागते हुए नदी आकर सारी घटना मछलियों को बताई। मछलियाँ को अपने शत्रु पर भरोसा करने का बहुत पछतावा हुआ।
नैतिक सीख:
दुश्मन पर भरोसा करना हानिकारक हो सकता हैं।
5. पंचतंत्र की कहानी – चतुर खरगोश:

प्रेमवन नाम का एक जंगल था। उस जंगल के सभी जानवर आपस में प्रेम से मिलजुल कर रहते थे। कोई जानवर किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता था। एक बार उसी जंगल में कही से भटकता हुआ एक शेर आ गया। उसने पहले दिन ही कई जानवरों को मारकर खा गया। अब उस जंगल के सभी जानवरों के अंदर दहशत फैल गई थी।
उसी रात प्रेमवन के सभी जानवरों ने एक बैठक की। सभी ने शेर से बचने के लिए अपने-अपने मत प्रकट किये। लेकिन, किसी के मत से कोई सहमत नहीं हुआ। तभी चीकू खरगोश ने कहा, “मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ, अगर आप लोगों की इजाजत हो तो।” आदेश पाकर चीकू खरगोश ने कहा, “आज जिस तरह से हमारे दोस्त मारे गए हैं। कल सिंहराज हममें से किसी को अपना शिकार बना सकता हैं। हमे शेरसिंह से बात करनी होगी।
अगले दिन जंगल के सभी जानवर एकत्र होकर शेरसिंह से मिलने के लिए जाते हैं। चीकू खरगोश कहता हैं, “हे! जंगल के राजा, हम सभी आपकी सेवा के लिए बाध्य हैं। हम लोगों बारी-बारी से आपके गुफा में आ जाएंगे। आप हम लोग को अपना भोजन बना लेना। लेकिन, आप जंगल में आने का कष्ट मत किया करो।
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इस तरह से जंगल के जानवर बारी-बारी से शेर की गुफा में जाने लगे। एक दिन चीकू खरगोश दुखी मन से शेर की गुफा में जा रहा था। गुफा पहुँचने से पहले वह कुएं के पास बैठकर कुछ सोचने लगा। तभी उसके दिमाग में एक विचार आया। जब शेर की गुफा में पहुँचा तो उसे देख शेर ने गरज कर कहा, “मुझे बहुत जोर की भूख लगी हैं। तुम आने में इतनी देर क्यों लगा दी।
खरगोश ने चतुराई भरे स्वर में कहा, “महाराज! क्या बताऊँ, मैं आप की गुफा में पहुँचने वाला ही था कि एक आप से भी भयानक और ताकतवर शेर मुझे रोकने कोशिश करने लगा। मैं किसी तरह से बचते हुए आपके पास आया हूँ। खरगोश की बातों को सुन शेर दहाड़ मारकर बोला, इस वन में मुझसे ज्यादा ताकतवर शेर कहाँ से आ गया? वह कहाँ हैं! मुझे बताओ।
खरगोश ने राजा शेर सिंह को अपने साथ कुए पर ले गया। कुए में झाँकते हुए। शेर की परछाई दिखाई। शेर ने दहाड़ लगाया, परछाई में भी तेज दहाड़ दिखा। शेर उसे मारने के लिए कुएं में छलांग लगा दी। कुआं गहरा होने के कारण वह उस कुएं से कभी नहीं निकल सका। इस खबर को सुनकर वन के सभी जानवरों के अंदर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। सभी ने चीकू खरगोश को उसकी चतुराई और बुद्धिमानी के लिए पुरस्कृत किया।
नैतिक शिक्षा:
धैर्य, चतुराई और बुद्धिमानी के बल पर किसी भी मुश्किल का हल निकाला जा सकता हैं।