कहानियों के माध्यम से बच्चे बहुत जल्द सीख जाते हैं। क्योंकि कहानी ही एक ऐसा माध्यम हैं जो बच्चे का मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी करता हैं। इसलिए हम हमेशा ध्यान रखते हैं कि बच्चों की कहानी कम शब्दों में बड़ा उपदेश दे जाए। कहानीज़ोन के आज के इस लेख में हम आपको मजेदार स्टोरी इन हिंदी नैतिक शिक्षा के साथ में बताने जा रहे हैं। जोकि, निम्न प्रकार से लिखित हैं:
1. आलसी व्यक्ति और सेफ्टी पिन – Idler and safety pin:

एक आलसी व्यक्ति था, जिसका नाम वाल्टर था। वह कोई काम धंधा नहीं करता था। पूरे दिन किसी पार्क में बैठकर लोगों के साथ गप्पे मारता, बच्चों के साथ खेलता। शाम को थक हारकर घर आता और खाना खाकर पैर पसार कर सो जाता था। अगले दिन फिर उसका वही हाल रहता था। वह आलस के कारण किसी काम धंधे को करने की भी नहीं सोचता था।
उसका घर बड़ी मुश्किल से उसकी पत्नी चलाती थी। वह घर चलाने के लिए पेपर, सब्जियाँ और फलों को बेचती थी। घर-घर जाकर झाड़ू पोंछा भी करती थी। लेकिन, अगर कभी उसने अपने पति से कुछ पैसे मांग लिए तो वह उसके ऊपर चिल्ला उठता था। आगे से बोलता था, “तुम इतने पैसे कमाती हो उसका क्या करती हो।” उसकी बातों को सुनकर वह चुप हो जाती थी।
एक दिन सुबह-सुबह उसकी पत्नी को काम पर जाना था। उसने अपने आलसी पति से कहा, “जल्दी उठो और बाजार जाकर बटन ले आओ। मुझे काम पर जाना हैं, मेरे कपड़े की बटन टूट गई हैं।” आलसी पति ने सोचा, “इतनी सुबह-सुबह उठकर बाजार कैसे जाऊँ? उसने अपने पास पड़े दो तीन इंच के तार को मोड़कर एक आकर बना दिया। उसे अपनी पत्नी को देते हुए कहा, “लो बटन की जगह इसको लगा लो।”
उसकी पत्नी जल्दी में थी उसने उस मुड़े हुए तार को लगा लिया। वाल्टर को उस तार से एक आइडिया आया उसने तार को एक पेपर पर उतारकर एक कंपनी के पास गया। उसने अपना आइडिया कंपनी के मालिक को बताया। मालिक ने उसका फार्मूला 500 डॉलर में खरीद लिया।
उस आइडिया को थोड़ा और सुधार करके उसका नाम सेफ़्टी पिन दे दिया। कंपनी के मालिक ने पहले सप्ताह में लगभग 30,000 सेफ़्टी पिन बेचे। लेकिन जैसे-जैसे लोगों को पता चला। सेफ़्टी पिन की मांग और बढ़ने लगी। कंपनी का मालिक वाल्टर को अब 800 डॉलर की रॉयल्टी भी देने लगा। वाल्टर अब घर बैठे-बैठे अपना गुजारा करने लगा।
नैतिक शिक्षा:
आवश्यकता आविष्कार की जननी हैं।
2. वाणी का प्रभाव – Effect of speech:

एक बार राजा रंजीत सिंह अपने मंत्रियों और सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार करने निकलने थे। शिकार खेलकर राजा वापस महल को जा रहे थे। राजा को जोरों की प्यास लगी। रास्ते में एक झोपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी में एक अंधा व्यक्ति रहता था। राजा ने झोपड़ी से एक लोटा पानी लाने के लिए अपने सिपाही को भेजा।
सिपाही ने झोपड़ी में पहुंचकर अंधे व्यक्ति से कहा, “ओ अंधे! एक लोटा पीने के लिए पानी देना।” अंधे ने कहा, “जा…जा तू सिपाही होगा अपने घर का, तेरे जैसे लोग को एक बूंद पानी नहीं दूँ। सिपाही खाली हाथ वापस राजा के पास लौट आया। राजा ने अपने मंत्री को पानी लेने के लिए झोपड़ी में भेजा। मंत्री झोपड़ी में पहुंचकर बोला, काना महाराज! क्या मुझे एक लोटा पानी मिलेगा?
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अंधे ने कहा, “क्षमा करे! मंत्री जी मैं आपको पानी नहीं पीला सकता। कहीं और पानी का जतन करने की कोशिश करें। झोपड़ी से मंत्री भी खाली हाथ वापस चले आए। राजा खुद झोपड़ी में पहुँचे, उन्होंने अपने दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते हुए कहा, “महात्मन! क्या मुझ जैसे तुच्छ प्राणी को एक लोटा पीने का जल मिल जाएगा।” प्यास के कारण मेरे कंठ सूखे जा रहे हैं। मुझ पर आपका बहुत बड़ा ऐहसान होगा।
राजा की बातों को सुनकर अंधे व्यक्ति ने राजा से कहा, “हे राजन! आपके लिए मेरा सर्वश निछावर हैं।” उसने राजा को एक लोटा जल पिलाकर कहा, “महाराज! मेरे लिए कोई और सेवा हो तो बताए।” राजा ने कहा, आप मेरे सिपाही और मंत्री को कैसे पहचान गए? अंधे व्यक्ति ने कहा, वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति की वास्तविकता का पता चल जाता हैं।
नैतिक शिक्षा:
इंसान का परिचय उसकी भाषा करवा देती हैं।
3. विद्वत्ता का घमंड – Pride of scholarship:

एक बार की बात हैं चंपक वन में चीकू नाम का एक बूढ़ा खरगोश रहता था। वह बहुत पढ़ा-लिखा शास्त्री और प्रचंड विद्वान था। जिसके कारण उस जंगल के सभी पशु-पक्षी और जानवर उसका बहुत आदर और सत्कार करते थे। यहाँ तक कि जंगल के राजा शेर सिंह भी उसकी शरण में विद्या सीखने जाते थे। उसे शास्त्रों का अथाह ज्ञान होने के कारण लोग उसकी विद्वता का लोहा मानते थे।
चीकू खरगोश ने शास्त्रों के ज्ञान में जंगल के सबसे बुद्धिमान पक्षी कोयल और मैना को भी हरा दिया था। इसलिए वह जंगल के राजा शेर सिंह का सबसे प्रिय दोस्त भी बन चुका था। चीकू खरगोश को अपनी बुद्धिमता के ऊपर घमंड होने लगा था। एक दिन चीकू खरगोश तैयार होकर कहीं कथा सुनाने जा रहा था। रास्ते में उसे एक पेड़ पर काले-काले जामुन लदे हुए दिखाई दिए।
जामुन को देखकर पंडित चीकू के मुँह से पानी टपकने लगा। उसने देखा कि उसी जामुन के पेड़ पर तोतों का एक झुंड बैठा था। चीकू खरगोश ने पेड़ के पास जाकर कहा, “मेरे प्यारे बच्चों! क्या कुछ जामुन मुझे भी खाने को मिलेगा?” उन तोतों में मिट्ठू नाम का एक शैतान तोता भी था। उसने कहा, जरूर मिलेगा पंडित जी।
लेकिन “सबसे पहले आप मुझे बताइए कि आप कौन सा जामुन खाएंगे, गर्म जामुन या फिर ठंडा जामुन?” पंडित खरगोश, मिट्ठू तोते की बात सुनकर हँसने लगा। उसने कहा- “गर्म जामुन पेड़ पर कहाँ लगते हैं? मजाक मत करो, जल्दी से जामुन खिला दो।” मुझे लोमड़ी के घर पर कथा सुनाने जाना हैं।
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मिट्ठू तोते ने फिर से कहा, “पंडित महाराज! आप ठहरे इतने बड़े विद्वान, फिर भी आपको पता नहीं हैं कि जामुन गर्म और ठंडे भी होते हैं।” बिना बताए, मैं आपको कौन सा जामुन खिलाऊँ! पंडित महाराज को देर हो रही थी उन्होंने कहा,”चलो देखते हैं गर्म जामुन कैसे होते हैं?” बच्चों मुझे गर्म जामुन ही खिला दो, ठंडे तो बहुत खाएं हैं।
शैतान मिट्ठू तोते ने जामुन की टहनियों को पकड़कर जोर-जोर से हिलाने लगा। जिससे जामुन जमीन पर गिर गए और उनमे मिट्टी लग गई। चीकू खरगोश जामुन उठा-उठाकर फूंक मारकर खाने लगा। चीकू ने हँसते हुए कहा, “बेटा तुम लोगों को विद्वान पंडित चीकू महाराज को ही मूर्ख बनाना था।
ये तो ठंडे जामुन ही हैं। मिट्ठू तोते ने कहा, “पंडित महराज, जब जामुन ठंडे हैं तो फिर आप फूंक मार-मार के क्यों खा रहे हो?” ऐसे तो कोई गर्म चीज ही खाई जाती हैं। मिट्ठू तोते की बातों को सुनकर पंडित चीकू का सिर शर्म से झुक गया। वह अपने आप से बहुत शर्मिंदा हुआ। उसकी विद्वता का घमंड चूर-चूर हो गया। वह बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया।
नैतिक सीख:
घमंड व्यक्ति को हमेशा नीचा दिखाता हैं।