शिक्षाप्रद कहानियाँ किसी भी व्यक्ति के जीवन में बड़े बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं। इसके अलावा इस तरह की कहानियाँ प्रमुख तौर पर व्यक्ति के जीवन में अनेकों प्रकार की शिक्षा प्रदान करती हैं। जबकि शिक्षाप्रद कहानी का उद्देश बच्चे के जीवन में सकारात्मकता लाने का प्रयास करती हैं। इस तरह से देखा जाए तो कुछ कहानियाँ निम्न प्रकार से लिखित हैं।
1. खुशी घर में हैं:

मायाराम नाम का एक सेठ था। उसके पास अत्यधिक धन दौलत थी। लेकिन मायाराम उसे बिल्कुल नहीं खर्च करता था। वह अपने परिवार और बच्चों पर भी पैसे नहीं खर्च करता था। उसका एक ही लक्ष्य था कि ज्यादा से ज्यादा पैसे जोड़े जाए। उसे धन से बहुत लगाव था। कुछ साल बाद सेठ मायाराम अचानक परेशान रहने लगा। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो चुका था।
अगर उसकी पत्नी और बच्चे उससे किसी भी काम के लिए पैसे माँगते थे वह चिल्ला पड़ता था। मायाराम को लगने लगा था कि उसके साथ कुछ तो गड़बड़ चल रहा हैं। उसने अपने मन को शांत करने की बहुत कोशिश की। लेकिन उसका मन शांत नहीं हो रहा था। वह हमेशा पैसों को लेकर चिल्ला पड़ता था। उसने सोचा ऐसा ठीक नहीं हैं, मुझे शांति और खुशी चाहिए।
यही सोचकर सेठ मायाराम अपने गाँव के एक महात्मा से मिलने चले गए। महात्मा जी सेठ की सभी हरकतों से अच्छे से वाकिफ थे। उनके पास पहुंचकर सेठ ने अपने मन की व्यथा सुना दी। महात्मा जी कहा, कल तुम ठीक इसी समय आना मैं तुम्हारे सभी सवालों के जवाब दे दूंगा। सेठ मायाराम खुश होकर अपने घर को चला गया।
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अगले दिन महात्मा के बताए समय पर सेठ मायाराम कुटिया में पहुँच गए। महात्मा जी कुटिया के बाहर उपवन में कुछ खोज रहे थे। सेठ महात्मा जी के पास जाकर पूछा, महाराज आप क्या खोज रहे हैं? महात्मा जी ने कहा, “मैं अंगूठी खोज रहा हूँ। सेठ भी महात्मा जी के साथ अंगूठी खोजने में लग गया।” काफी देर तक महात्मा जी और सेठ अंगूठी खोजते रहे। लेकिन अंगूठी मिली नहीं।
सेठ ने कहा, महात्मन आपकी अंगूठी कब और कहाँ गिरी थी। महात्मा जी ने कहा, “मेरी अंगूठी कल मेरी कुटिया में गिर गई थी।” महात्मा की बात सुनकर सेठ आश्चर्य से पूछते हुए कहा, महराज जब अंगूठी कुटिया में गिरी हैं तो वहाँ खोजों उपवन में क्यों खोज रहे हो। महात्मा जी ने कहा, यही तो हैं आपके प्रशन का जबाब, जब आपकी खुशी आपके घर में हैं तो उसे हमारी कुटिया में क्यों खोज रहे हो। महात्मा की बात सुनकर सेठ का सिर शर्म से झुक गया।
नैतिक सीख:
बाहरी खुशियां खोजने से पहले आंतरिक खुशियां खोजने का काम करना चाहिए।
2. संगत का प्रभाव:

किसी गाँव में महेश और माधव दो पड़ोसी रहते थे। महेश बहुत ही सीधा-साधा, नेक और ईमानदार इंसान था। अक्सर गाँव के लोग महेश की तारीफ करते थे। जबकि, माधव हमेशा महेश की नकल करने की कोशिश करता रहता था। वह महेश की तरह इज्जत कमाना चाहता था। लेकिन, उसकी नियत अच्छी नहीं थी। एक दिन महेश बाजार से एक तोता खरीदकर लाया। उसे देख माधव ने भी अगले दिन एक तोता खरीद घर लाया।
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महेश जो भी चीज अपने तोतो को खिलता, वही चीज माधव भी अपने तोते को खिलता था। धीरे-धीरे दोनों के तोते बड़े हो चुके थे। एक दिन एक फकीर बाबा अपने शिष्य के साथ महेश के घर पर भिक्षा मांगने आए। फकीर बाबा को देख तोते ने कहा, आइए फकीर बाबा आपका दर्शन पाकर हम जैसे तुच्छ प्राणी धन्य हो गए। बैठिए, मैं अपने मालिक को बुलाता हूँ।
तोते की बात सुनकर फकीर और उसका शिष्य बहुत खुश हुए। तोते ने आवाज लगाई, “मेरे मालिक घर पर कोई बाबा जी आए हैं।” कृपया उन्हने भिक्षा देने का कष्ट करें। महेश भिक्षा लेकर घर से बहार निकला वह फकीर को प्रणाम करते हुए भिक्षा दे दिया। फकिर बाबा खुशी-खुशी चले गए।
फकीर बाबा महेश के बगल माधव के घर पर पहुँचे उसके घर के बहार भी तोते का पिंजरा टंगा था। वह तोता फकीर बाबा को देखकर बोला, “सुबह हुआ नहीं भिक्षा मांगने आ गए, मेरे मालिक नहीं हैं। जाओ-जाओ कल आना। तभी अंदर से माधव निकला उसने भी यही बात बोली फकीर बाबा और उनके शिष्य बिना भिक्षा लिए किसी और द्वार पर चले गए।
शिष्य ने फकीर बाबा से पूछा, “बाबा दोनों तोते एक तरह के थे।” लेकिन दोनों तोतो का वार्ताव अलग तरह से क्यों हैं। फकीर बाबा ने कहा, “बेटा यह संगत का प्रभाव हैं।” पहला वाला व्यक्ति (महेश) की नीयत देने हैं। इसलिए उसके तोते में वही प्रभाव देखने को मिला। जबकि, दूसरा व्यक्ति (माधव) की नियत सिर्फ चीजों को इकट्ठा करने की हैं। इसलिए उसके तोते का वार्ताव भी उसके जैसी हैं।
नैतिक सीख:
अकसर लोग कहते हैं, जैसी संगत वैसी रंगत इसलिए हमें अच्छे लोगों के साथ रहना चाहिए।
3. डर का सामना करो:

किसी जंगल में एक खरगोश रहता था। वह खरगोश हमेशा भयभीत रहता था। उसे हमेशा डर लगा रहता था की कोई जंगली जानवर उस पर हमला न कर दे। जिसके कारण वह मारा जाए। धीरे-धीरे उसका डर इतना अधिक बढ़ गया की वह अपने भोजन की तलाश में भी नहीं जाता था। एक दिन वह खरगोश भूखे बैठा सोच रहा था कि ऐसे डर-डर के जीने से क्या फ़ायदा एक दिन तो मारा जाऊंगा।
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इससे अच्छा हैं खुद ही अपने प्राण को त्याग दूँ। उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। वह तेजी से भागते हुए जंगल के किनारे तालाब के पास जा पहुँचा। उसने सोचा क्यों न इसी तलाब में कूदकर अपने जीवन का अंत कर लेता हूँ। तभी उसे देख एक खरगोश वहाँ आ पहुँचा। उसने उस खरगोश से पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो। उसने अपने सारी कहानी सुना दी।
डरे हुए खरगोश को दूसरा खरगोश समझाते हुए कहा, “आपको इतना डरना नहीं चाहिए।” क्योंकि डरने से कुछ नहीं होने वाला हैं। इसका सबसे आसान तरीका हैं। उसका डटकर सामना करो। ऐसे हिम्मत हारने वाले को दुनिया डरपोक और कायर कहती हैं। तुम से भी निर्बल लोग इस दुनिया में हैं। जिनकी हालत तुमसे भी खराब हैं। लेकिन वे अपनी जिंदगी हंसी-खुशी जीते हैं। उस खरगोश की बात सुनकर डरे हुए खरगोश के जीवन में एक जीने की नई उम्मीद जग गई।
नैतिक सीख:
जीवन में चुनौतियाँ हर किसी के सामने हैं, कोई उसका डटकर तो कोई डरकर सामना करता हैं।