कई वर्षों पहले की बात हैं किसी पहाड़ी पर चोरों का एक बहुत बड़ा ग्रुप रहता था। उनका काम किसी भी गाँव में जाकर चोरी करना होता था। लूटे हुये धन को चोर अपने सरदार को लाकर देते थे। उस समान को चोरों का सरदार चोर बाजार में बेचकर सभी के लिए खाने-पीने का इंतजाम करता था। तथा उन्हें कुछ पैसे भी दे देता था। प्रतिदिन ऐसा ही चलता रहता था।

चोरों के ग्रुप में दो दोस्त रहते थे। जिनका नाम सुखदेव सिंह और सुखचयन सिंह था। दोनों दोस्त कहीं भी चोरी करने एक साथ जाते थे तथा हमेशा एक साथ रहते थे। एक दिन दोनों को चोरी करने के लिए पहाड़ी से दूर रहमतपुर नामक गाँव में भेजा गया। वह गाँव पहाड़ी से बहुत दूर होने के कारण दोनों दोस्त चोरी करने के लिए जल्दी निकल गए।
रहमतपुर गाँव में पहुंचकर दोनों ने देखा कि उस गाँव में एक सत्संग चल रहा था, जिसके कारण गाँव के सभी लोग जग रहे थे। दोनों दोस्तों ने सोचा कि अभी किसी घर में चोरी करना खतरे से खाली नहीं होगा। हम लोग पकड़े जा सकते हैं, जिसके कारण हमारी पिटाई भी हो सकती हैं।सुखदेव और सुखचयन कुछ देर वही बैठ कर सत्संग सुनने लगे।
सत्संग में गुरुजी अच्छी-अच्छी बातें सुना रहे थे। गुरुजी की बातें दोनों चोरों को बहुत अच्छी लग रही थी। सत्संग आधी रात को खत्म हो गया। सभी लोग अपने-अपने घर चले गये। दोनों दोस्त भी चोरी करने के लिए घर की तलाश में लग गए। उन दोनों को एक ऐसा घर दिखाई दिया जहाँ पर सभी लोग सो गये थे। उस घर में घुसने के लिए उनको एक आसान रास्ता भी मिल गया था।
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दोनों दोस्त जल्दी से उस घर में घुस गए और बहुत सारा समान एकठ्ठा करके बांध लिया। जब दोनों दोस्त उस घर से बाहर निकल रहे थे, तभी सुखदेव को रसोई घर दिखाई दिया, जहाँ पर अच्छे-अच्छे पकवान बना कर रखे हुए थे। दोनों दोस्त को जोरों की भूख लगी थी। जिसके कारण रसोई घर में जाकर खूब सारा खाना खा लिया।
सुखदेव ने कहा, चलो जल्दी समान उठाओ, यहाँ से निकलते हैं। तभी सुखचयन को गुरुजी की बातें याद आई उसने कहा, “जो खाना हमने खाया हैं उसमे नमक था। सत्संग में गुरुजी बोल रहे थे कि हम जिसका नामक खाते हैं उसके साथ नमक हरामी नहीं करनी चाहिए।

दोनों दोस्तों ने हाँ में हाँ भरी और चोरी किया हुआ गट्ठर उसी घर में छोड़कर पहाड़ी के लिए चले गए। दोनों दोस्तों को खाली हाथ देख सरदार ने कारण जानना चाहा। सुखदेव और सुखचयन ने अपने सरदार को सारी बातें सच-सच बता दी। उन दोनों की बातों को सुनकर चोरों का सरदार बहुत गुस्सा हुआ। उन दोनों को अपने गिरोह से निकाल दिया। अब दोनों दोस्त बहुत परेशान हो गये और सोचने लगे कि हमें अब खाने-पीने को कहाँ से मिलेगा।
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सुखदेव ने कहा, “घबराओ मत जो भी होगा अच्छा होगा। दोनों दोस्त फिर से उसी गाँव में गए और उन्ही गुरुजी से मिलकर सारी बातें सच-सच बता दी। उन दोनों की बातें सुनकर गुरुजी बहुत खुश हुए। दोनों को अपने सेवादार के रूप में रख लिए, जहाँ पर उनको अच्छा-अच्छा खाने-पीने को मिलने लगा। इस तरह से दोनों दोस्तों ने सच्चाई का दामन थाम लिया और अपना पूरा जीवन भक्ति में लगा दिया।
नैतिक सीख:
संगत ही इंसान को बनाती या बिगाड़ती है। इसलिए कहा जाता हैं जैसी संगत वैसी रंगत।
Nice story