बच्चों आप लोगों ने अपने बड़ों बुजुर्गों को यह शब्द कहते हुए जरूर सुना होगा “जैसी संगत वैसी रंगत”! आज हम आपको अच्छी और बुरी संगत से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में एक छोटी सी कहानी सुनाने जा रहे हैं। हमें उम्मीद हैं कि यह कहानी आपके लिए प्रेरणादायक साबित होगी। जोकि, आपको सही मार्ग को चुनने, सच्चाई और ईमानदारी के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगी। इस कहानी के माध्यम से आपको सत्संग का महत्त्व भी पता चलेगा, तो चलिए देखते हैं आज की कहानी को।
एक समय की बात हैं हिमगिरी पहाड़ी पर चोरों का बहुत बड़ा समूह रहता था। जिनका काम किसी भी गाँव में जाकर चोरी करना होता था। चोर चोरी किए हुए समान को लाकर पहाड़ी पर रखते थे। उस समान को, चोरों का सरदार चोर बाजार में बेचकर सभी के लिए खाने- पीने का इंतजाम करता था। प्रतिदिन ऐसा ही चलता रहता था।

चोरों के ग्रुप में दो दोस्त भी थे जिनका नाम सुखदेव सिंह और सुखचयन सिंह था। दोनों दोस्त कहीं भी चोरी करने एक साथ जाते थे तथा हमेशा एक साथ रहते थे। एक दिन दोनों को चोरी करने के लिए पहाड़ी से दूर श्रीपुर गाँव में भेजा गया। यह गाँव पहाड़ी से बहुत दूर होने के कारण दोनों दोस्त चोरी करने के लिए जल्दी निकल गये।
श्रीपुर गाँव में दोनों दोस्तों ने पँहुच कर देखा कि उस गाँव में एक सत्संग चल रहा था, जिसके कारण गाँव के सभी लोग जाग रहे थे। दोनों दोस्तों ने सोचा अभी किसी घर में चोरी करना खतरे से खाली नहीं होगा। हम लोग पकड़े जा सकते हैं जिसके कारण हमारी पिटाई भी हो सकती हैं। सुखदेव और सुखचयन कुछ देर वही बैठ कर सत्संग सुनने लगे। जहाँ पर उनको बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिली और दोनों चोरों को बहुत अच्छा भी लगा।
सत्संग आधी रात को खत्म हो गया। सभी लोग अपने-अपने घर चले गये। दोनों दोस्त भी चोरी करने के लिए घर की तलाश में लग गये। उन दोनों को एक ऐसा घर दिखाई दिया जहाँ पर सभी लोग सो गये थे और उस घर में घुसने के लिए उनको एक आसान रास्ता भी मिल गया था। दोनों दोस्त जल्दी से उस घर में घुस गये और बहुत सारा समान एकठ्ठा करके बांध लिया।
अब दोनों दोस्त उस घर से निकल रहे थे तभी सुखदेव को रसोई घर दिखाई दिखा जहाँ पर अच्छे-अच्छे पकवान बना के रखे हुए थे। दोनों दोस्त बहुत भूखे थे जिसके कारण रसोई घर में जाकर पेट भर कर खाना खा लिया। अब सुखदेव ने कहा, चलो समान जल्दी उठाओ, यहाँ से निकलते हैं। लेकिन, सुखचयन ने बोला जो हमने खाना खाया था उसमे नमक भी था। आज के सत्संग में बाबाजी बोल रहे थे कि हम जिसका नामक खाते हैं उसके साथ नमक हरामी नहीं करनी चाहिये।

दोनों दोस्तों ने हाँ में हाँ भरी और चोरी किया हुआ गट्ठर उसी घर में छोड़कर हिमगिरी पहाड़ी के लिए चले गये। दोनों दोस्तों को खाली हाथ देख सरदार ने कारण जानना चाहा। सुखदेव और सुखचयन ने अपने सरदार को सारी बातें सच सच बता दी। जिसके लिए चोरों का सरदार बहुत नाराज हुआ और उन दोनों को अपने गिरोह से निकाल दिया। अब दोनों दोस्त बहुत परेशान हो गये और सोचने लगे कि हमें अब खाने-पीने को कहाँ से मिलेगा।
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सुखदेव ने बोला घबराओ मत जो भी होगा अच्छा होगा। दोनों दोस्त फिर से उसी गाँव में गये और उन्ही बाबाजी से मिलकर सारी बातें सच सच बता दिये। उन दोनों की बातें सुनकर बाबाजी बहुत खुश हुए और दोनों को अपने सेवादार के रूप में रख लिए जहाँ पर उनको अच्छा-अच्छा खाने-पीने को मिलने लगा। इस तरह से दोनों दोस्तों ने सच्चाई का दामन थाम लिया और अपना पूरा जीवन भक्ति में लगा दिया।
नैतिक सीख:
हमें हमेशा अच्छे परिवेश और अच्छे दोस्तों के साथ रहना चाहिए। क्योंकि, कहा जाता हैं कुसंग का ज्वार भयानक होता हैं। इसलिए, संगत हो तो अच्छे लोगों की नहीं तो अकेला रहना बहुत अच्छा होता हैं। इस कहानी में दो संगत आपने देखी एक चोरों की संगत जिसका सरदार चोरी करना सीखाता हैं। दूसरी संगत साधु की संगत जो सच्चाई का पाठ पढ़ाता हैं।
Nice story