5 Small story in hindi language – छोटी नैतिक कहानियाँ हिन्दी में

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बच्चों को हिन्दी कहानियाँ सुनाने से खेल-खेल में उनके अंदर भाषा का विकास हो जाता हैं। जबकि, कहानियों का प्रमुख उद्देश उससे मिलने वाली सीख होनी चाहिए। इसलिए, कहानीज़ोन हमेशा कम शब्दों में सरल वाक्य में लिखे कहानियाँ सुनने का प्रयास करते हैं। आज की कहानियाँ कुछ इस प्रकार से हैं:

1. जहाँ चाह, वहाँ राह – Wherever you want, there is a way:

रामदास अपनी पत्नी और बेटे के साथ गंगापुर नामक गाँव में रहता था। वह एक चौराहे पर पाव भाजी का ठेला लगता था। एक दिन सुबह-सुबह रामदास और उसकी पत्नी नाश्ता कर रहे थे। तभी उसका बेटा अभिनव स्कूल के लिए निकल रहा था। रामदास ने कहा, “बेटा! अभिनव अब तुम्हारी परीक्षा नजदीक हैं, मन लगाकर मेहनत करो। जिससे तुम अपनी कक्षा में प्रथम आओ। ठीक हैं पापा जी! मैं अच्छे से पढ़ाई करूँगा, अभिनव ने कहा।

उसी शाम रामदास देर रात ठेला लेकर वापस घर आ रहा था। बीच रास्ते में अचानक उसका एक्सीडेंट हो गया। जिससे उसके एक पैर में फैक्चर हो गया। उसकी पत्नी सरिता और अभिनव उसे देखने के लिए अस्पताल गए। रामदास को देखकर दोनों की आँखें भर आई। रामदास कुछ दिन अस्पताल में रहा। उसकी पत्नी हमेशा इसी चिंता में रहती थी कि उसका घर कैसे चलेगा? कुछ समय बाद रामदास हॉस्पिटल से घर आ गया।

एक दिन अभिनव मम्मी पापा को अपने अंक पत्र दिखाते हुए कहा, “देखो! मैं अपनी कक्षा में प्रथम आया हूँ। उसकी मम्मी ने कहा ठीक हैं। लेकिन अब तुम्हें आगे पढ़ाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं।” अभिनव अपनी माँ की बात को सुनकर उदास हो गया। अगली सुबह उसने अपनी माँ से कहा, “मम्मी! क्योंं न हम फिर से पापा के ठेले पर पाव भाजी बेचना शुरू कर दे। उसकी माँ को अभिनव की बात ठीक लगी। अगले दिन दोनों बाजार जाकर समान खरीद लाए और ठेले लगाने शुरू कर दिए।

कुछ ही दिनों में सरिता और अभिनव की मेहनत रंग लाई उनकी ठेले की दुकान पहले जैसी चलने लगी। जिससे शाम तक उन्हें अच्छे पैसे भी मिल जाते थे। अभिनव के पिता भी अब छड़ी लेकर चलने लगे थे। वे भी दुकान पर बैठने लगे। अभिनव की लगन पढ़ाई में देखकर माँ ने उसका दाखिल अगली कक्ष में करवा दिया, जिससे अभिनव को आगे की पढ़ाई करने का मौका मिल गया।

नैतिक सीख:

परिस्थतियाँ हमेशा एक समान नहीं होती। आज दुख हैं तो कल सुख जरूर आएगा। लेकिन अपने संघर्ष को जारी रखो।

2. बुद्धिमत्ता की जीत – Victory of intelligence:

एक साहूकार के तीन बेटे थे। साहूकार बहुत ही धनवान था। उसका कारोबार अच्छा चल रहा था। लेकिन साहूकार के तीनों बेटे अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते थे। इस बात को लेकर साहूकार बहुत चिंतित रहता था। साहूकार एक दिन गल्ले पर बैठे-बैठे सोच रहा था कि अब मैं दिनों प्रतिदिन बूढ़ा होता जा रहा हूँ। अगर मेरे बच्चे अपनी-अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे तो मेरा बनाया हुआ धन दौलत यों ही लूट देंगे।

साहूकार को एक तरकीब सूझी। वह घर आकर अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलकर कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम तीनों में से कोई एक मेरा कार्य भार संभाल लो। जिसके लिए तुम लोगों को एक छोटा सा काम करना हैं। सब को कुछ पैसे देते हुए कहा, “तुम लोगों को कम से कम पैसों में इस इस कमरे को भरना हैं।

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बड़ा बेटा झट से रुई का बड़ा गट्ठर ले आया और उसे पूरे कमरे में फैला दिया। उसने कहा, “पिता जी मैंने सिर्फ 1000 रुपये में आपका कमरा भर दिया। कमरा देख साहूकार मुस्कुराकर दूसरे बेटे से पूछा, बेटा तुम क्या लाए हो? दूसरे बेटे ने कहा, “पिता जी मैंने कमरे को फूल पत्तों से भर दिया हैं। जिसमें सिर्फ दो हजार रुपये लगे हैं। उसकी बातों को सुनकर साहूकार जोर से हँसा और सबसे छोटे बेटे के पास बढ़ गया।

तीसरे बेटे से मिलने के बाद साहूकार ने कहा, “यह क्या? तुम कुछ नहीं लाए, तुम्हारा कमरा खाली क्योंं हैं? सबसे छोटे बेटे ने अपने पॉकेट से एक मोमबत्ती निकालकर जला दिया। जिससे पूरे कमरे में रोशनी फैल गई। उसने कहा, “पिता जी मैंने पूरे कमरे को भरने के लिए 2 रुपये खर्च किए हैं। उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण बातों को सुनकर साहूकार उस दिन से अपने सबसे छोटे बेटे को अपना उत्तराधिकारी बना दिया।

नैतिक सीख:

बुद्धिमानी के साथ किया गया काम हमेशा ऊंचा दर्जा दिलाती हैं।

3. झूठ छुपता नहीं – Lies do not hide:

सुबह के सात बज चुके थे वैभव अभी सो रहा था। जबकि, उसकी मम्मी दो बार उसे जागकर जा चुकी थी। वैभव की नीद हल्की सी खुली। उसने सोच अगर उठ गया तो स्कूल जाना पड़ेगा। क्योंं न आज कोई बहाना बना लेते हैं, जिससे स्कूल न जाना पडे। सुबह-सुबह उसने अपना पेट पकड़कर बैठ गया। मम्मी के पूछने पर कहने लगा, मेरे पेट में दर्द हो रहा हैं, आज मैं स्कूल नहीं जाऊँगा।

उसकी मम्मी समझ चुकी थी कि यह स्कूल नहीं जाने का एक बहाना हैं। उसने कहा, “ठीक हैं! जल्दी से तैयार हो जाओ हम डॉक्टर के पास चलते हैं। वैभव ने सोचा, चलो घूम आते हैं। डॉक्टर के पास पहुंचकर उसकी माँ ने वैभव की चतुराई बता दिया। डॉक्टर ने वैभव से कहा, “बेटा! इस बेड पर लेट जाओ। उसने पूछा, लेकिन क्यों? डॉक्टर ने कहा- “तुम्हें इन्जेक्शन लगेगा तभी तुम्हारा पेट ठीक होगा।”

इन्जेक्शन का नाम सुनते ही वह रोते हुए कहने लगा, “मेरा पेट अब ठीक हैं, मुझे इन्जेक्शन नहीं लगवाना।” वैभव ने अपनी मम्मी से बहानेबाजी के लिए माँफी माँगने लगा। उसने कहा, “आज से मैं कोई बहाने नहीं बनूँगा प्रतिदिन स्कूल जाऊँगा। प्लीज मुझे यहाँ से घर ले चलो।

नैतिक सीख:

झूठ छिपता नहीं, बहुत जल्द सच सामने आ जाता हैं।

4. पेड़ का महत्त्व – Importance of tree:

मोहित को गर्मियों की छुट्टी का बहुत बेसब्री से इंतजार था। उसने सोच रखा था कि वह गाँव जाएगा और अपने दादा-दादी के साथ खूब सारी बातें करेगा। गाँव पहुंचकर उसने देखा कि कितने बडे-बडे खेत खलिहान हैं। जिसमें सब्जियाँ लगाई गई हैं। शाम के समय गाँव की ताजी ठंडी हवा उसे सकून पहुँचा रही थी। एक दिन वह अपने दादा के साथ घर के बाहर खाट पर लेटा बातें कर रहा था। दादा जी उसे अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुना रहे थे।

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तभी मोहित ने पूछा, “दादा जी इस तरह की शुद्ध और ताजी हवा हमें शहर में क्यों नहीं मिलती?” मुझे तो यहाँ की हवा शहर में चलने वाले एसी से भी ज्यादा आनन्द पहुँचा रही हैं। दादाजी मोहित को समझाते हुए कहते हैं, “बेटा! मोहित ताजी और शुद्ध हवा के लिए खूब सारे पेड़-पौधे की जरूरत होती हैं। जोकि, शहर में बहुत कम देखने को मिलता हैं। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना चाहिए जिसके हमें अनगिनत लाभ मिलते हैं।”

पेड़-पौधे से हमें शुद्ध हवा, फल-फूल, कीमती लकड़ियां आदि प्राप्त होती हैं। मोहित अपने दादा की बातों को सुनकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा, दादा जी जब भी मैं गाँव आऊँगा एक पेड़ जरूर लागाऊँगा।

नैतिक सीख:

पेड़ हमें जीवन देते हैं। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए।

5. ईमानदारी की राह – Path of honesty:

रमेश और सुरेश दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनों हमेशा एक साथ रहते थे। एक दिन स्कूल से वापस आते समय रास्ते में एक पर्स पड़ा हुआ मिला। रमेश उसे उठाने वाला ही था कि सुरेश उसे मना करने लगा। लेकिन, रमेश उसकी बातों को नहीं माना। रमेश पर्स खोलकर देखा तो उसमें कुछ पैसे और पहचान पत्र थे। सुरेश ने रमेश से कहा, “यह तो अपने गाँव के मुखिया का पर्स हैं। चलो हमें उन्हे दे देंगे।

लेकिन, रमेश यह कहते हुए मना कर दिया कि -‘हमने चोरी थोड़ी की हैं, मुझे तो यह पर्स गिरा हुआ मिला हैं।’ सुरेश उसे कई बार समझाया कि वह उस पर्स को वापस मुखिया जी को दे। लेकिन, रमेश पर्स वापस करने के लिए तैयार नहीं हुआ। दोनों अपने अपने-अपने घर को चले गए। सुरेश को रमेश की हरकते अच्छी नहीं लगी। वह घर जाकर अकेले बैठकर सोचे जा रहा था कि रमेश को कैसे समझाए।

तभी सुरेश की माँ उसे अकेले बैठे देख पूछी, क्या हुआ सुरेश तुम परेशानी में लग रहे हो। सुरेश ने अपनी माँ से सारी बातें बता दिया। उसकी माँ ने कहा, “बेटा! हमेशा ईमानदारी और सच्चाई का साथ देना चाहिए।” तभी मुखिया जी उसके घर आए और पूछने लगे, बेटा कल शाम रास्ते में मेरा पर्स गिर गया। क्या तुम्हें स्कूल से वापस आते समय मिला था। सुरेश कुछ देर के लिए चुप सा हो गया।

लेकिन उसने सोचा एक सच को छिपाने के लिए पता नहीं कितने झूठ बोलने पड़ेंगे। उसने सारी बातें सच-सच मुखिया जी बता दी। मुखिया जी रमेश के घर पर जाकर अपने पर्स वापस ले आए। उस दिन से सुरेश ने रमेश से दोस्ती यह कहते हुए खत्म कर लिया कि तुम्हारी संगत मेरे ऊपर भी तुम्हारे जैसा प्रभाव डाल सकती हैं।

नैतिक सीख:

संगत का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता हैं। इसलिए हमें अपना परिवेश अच्छा बनाए रखना चाहिए।

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