मनोरंजन से भरपूर मजेदार कहानियाँ जो बच्चों को नैतिक सीख के साथ-साथ जीवन के कई अहम पहलू का बोध करवाता हैं। कहानियाँ एक ऐसा माध्यम हैं जिससे अच्छे और बुरे की समझ बहुत आसानी से हो जाती हैं। लेकिन, कहानी बहुत कम और सरल शब्दों में लिखी होनी चाहिए। जिससे उसका प्रमुख उद्देश्य समझा जा सके। कहानीज़ोन, इन्ही बातों को लेकर नई-नई कहानियाँ लाते रहते हैं। आज की कहानियाँ कुछ इस प्रकार से हैं:
1. दयालु राजा:
बादशाह हजरत उमर के राज्य में एक धोबी रहता था। जोकि, बादशाह और उनकी बेगम के कपड़े को धुलता था। एक बार बादशाह हजरत उमर का एक कपड़ा प्रेस करते हुए धोबी से जल गया। धोबी बहुत चिंतित हुआ, उसने इस समस्या का हल निकालने के लिए। बादशाह के सबसे करीबी नाई से बात की। नाई बहुत चापलूस था।
उसने धोबी को बादशाह हजरत उमर के बारें में गलत धारणा रखते हुए कहा, “एक बार एक नाई से बादशाह हजरत की दाढ़ी बनाते समय गलती से गले के पास कट गया। जिसके कारण बादशाह ने उसे फाँसी पर चढ़ा दिया।” अब तुमसे बादशाह हजरत का पसंदीदा कपड़ा जल गया। मुझे लगता हैं बादशाह तुम्हें भी फाँसी पर चढ़ा देंगे।
नाई की बात सुनकर धोबी बहुत डर गया। वह अपने परिवार को लेकर इस राज्य को छोड़कर दूर किसी राज्य को चला गया। वर्षों बाद एक बार बादशाह हजरत कई राज्यों का भ्रमण करके वापस आ रहे थे। संयोग से धोबी की मुलाकात बादशाह हजरत उमर से हुई। धोबी ने देखा कि एक व्यक्ति ऊँट पर बैठा हैं तथा दूसरे व्यक्ति ने ऊँट की नकेल को पकड़ा हुआ हैं।
धोबी ने ऊँट पर बैठे व्यक्ति को बादशाह हजरत उमर समझकर सलाम करने गया, तो उस व्यक्ति ने घबराकर कहा- “बादशाह हजरत उमर तो ऊँट की नकेल पकड़े हैं मैं तो उनका गुलाम हूँ। उसकी बातों को सुनकर धोबी हैरान हो गया। उसने सच्चाई बताने के लिए बादशाह से अनुरोध किया।
बादशाह ने कहा, “बात साफ हैं, हम लोग लंबे सफर से आ रहे हैं। लगभग पाँच कोस “मैं ऊँट पर बैठता हूँ तो ऊँट की नकेल मेरे गुलाम के हाथों में होती हैं। अगले पाँच कोस मेरा गुलाम ऊँट पर बैठता हैं तो नकेल मेरे हाथों में होती हैं।” इस बार मेरे गुलाम के बैठने की बारी थी इसलिए नकेल मेरे हाथों में हैं।
जब यह बात धोबी ने सुनी तो वह दंग रह गया। उसने सोचा इतना दयालु बादशाह जो अपने गुलाम के हित के बारें में सोचता हो, वह किसी को कैसे फाँसी दे सकता हैं। तभी बादशाह ने धोबी से पूछा, “तुम हमारे राज्य को क्यों छोड़कर यहाँ चले आए? धोबी ने बादशाह को पूरी घटना सच-सच बता दी।
उसकी बातों को सुनकर बादशाह हजरत उमर ठहाके लगाकर हँसने लगे। उन्होंने कहा, आज तक हमारे पूर्वजों ने किसी को फाँसी नहीं दी हैं। भला मैं किसी को कैसे फाँसी दे सकता हूँ। गलतियाँ तो सभी से होती हैं। चाहे वह राजा, रंक और फकीर क्यों न हो।
अगर इस बात को लेकर तुम हमारे राज्य को छोड़कर यहाँ रह रहे हो तो तुम पुनः मेरे साथ अपने राज्य में चल सकते हो। बादशाह हजरत उमर और धोबी अपने राज्य में पहुँच गए। बादशाह ने धोबी को गुमराह करने के जुर्म में नाई को महल से बाहर निकाल दिया।
नैतिक सीख:
बिना हकीकत जाने किसी भी फैसले को लेना हानिकारक होता हैं।
2. Hindi tales with moral – त्याग के बिना विद्या नहीं:

किसी जंगल में एक ऋषि रहते थे। उनके आश्रम में बच्चे शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। उन्ही बच्चों में एक लालची बच्चा था। उसकी नजर गुरुजी की कीमती चीजों पर रहती थी। एक बार गुरुजी और बच्चे किसी यात्रा पर निकले थे। रास्ते में गुरुजी को एक पारस पत्थर मिला। गुरुजी ने बच्चों से कहा, “देखो बच्चों! यह कोई साधारण पत्थर नहीं हैं।”
तभी एक शिष्य ने कहा, “गुरुजी! इस पत्थर की खासियत क्या हैं? गुरुजी ने कहा, “इस पत्थर को हम पारस पत्थर के नाम से जानते हैं।” यह पत्थर लोहे के संपर्क में आने से उस लोहे को सोना बना देता हैं। इतना सुनते ही वह शिष्य आश्चर्यचकित हो गया। उस पत्थर को लेकर गुरुजी और सभी शिष्य वापस आश्रम आ गए।
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गुरुजी ने उस पत्थर को कपड़े की पोटली में बांधकर एक बॉक्स में रख दिया। वह शिष्य उस पत्थर को हथियाना चाहता था। एक दिन गुरुजी कहीं गए हुए थे। शिष्य गुरुजी की झोपड़ी में जाकर पारस पत्थर को खोजने लगा। बहुत खोजने के बाद उसे एक बॉक्स मिला, जिसमें एक ताला लगा हुआ था।
चाभी न होने की वजह से वह ताला तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन, वह उस ताले को तोड़ नहीं सका। तभी अचानक उसके दिमाग में एक बात आई कि अगर इस बॉक्स में पारस पत्थर रखा होता तो यह लोहे का बॉक्स सोने का बन चुका होता। वह उस बॉक्स को वही पर छोड़कर अन्य जगहों पर पारस पत्थर को खोजने लगा।
शिष्य थक हारकर बैठ गया। उसे वह पारस पत्थर नहीं मिला। एक दिन गुरुजी अपने शिष्यों से आश्रम की सफाई करवा रहे थे। तभी गुरु जी ने उस बॉक्स को खोलते हुए, पारस पत्थर को बाहर निकाला। जिसे देख शिष्य ने पूछा, “मुनिवर! यह पत्थर लोहे के बॉक्स में ही रखा था। लेकिन लोहे का यह बॉक्स सोना नहीं बना! ऐसा क्यों?
गुरुजी ने शिष्य को समझाते हुए कहा, “जिस तरह इस पत्थर और बॉक्स के बीच में कपड़े की यह पोटली लोहे के बॉक्स को सोना नहीं बनने दे रहा हैं। ठीक इसी प्रकार से, विद्या और विद्यार्थी के बीच में लालच, लोभ, मोह उसे शिक्षा प्राप्त नहीं करने देती। जबकि, कपड़ा हटा देने पर बॉक्स सोना बन जाता। इसी तरह से लालच, लोभ, मोह का त्याग करने पर ही विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर पाता हैं।
नैतिक सीख:
शिक्षा प्राप्त करने के लिए आलस, निद्रा और बहाने को अपने दिमाग से निकालना होगा।
3. Hindi tales with moral – किसान और गौरैया:

भोला नाम का एक किसान था। उसके पास पाँच बडे-बडे खेत थे। जिसकी जुताई बुआई मजदूर लगाकर करता था। एक बार भोला ने अपने खेत में गेंहू की बुआई करवाई। भोला समय-समय पर खेतों में खाद-पानी डालता रहा। इस साल भोला की फसल अच्छी हुई थी। एक दिन वह खेत में गया। उसने देखा कि फसल पक चुकी थी। खेत के चारों ओर चक्कर लगाते हुए भोला एक स्थान पर खड़ा होकर कहने लगा।
फसल तैयार हैं अगर समय से कटाई नहीं हुई तो बारिश के कारण खराब हो सकती हैं। कल मैं मजदूरों को लाकर फसल की कटाई करवाना शुरू कर देता हूँ। उसी खेत में एक गौरैया अपने बच्चों के साथ रहती थी। उस समय गौरैया भोजन की तालाश में बाहर गई हुई थी। शाम को जब गौरैया वापस अपने घोंसले में आई तो देखा उसके बच्चे सहमें हुए थे।
उसने पूछा क्या हुआ तुम लोग इतने डरे हुए क्यों हो? गौरैया के बच्चों ने कहा, “माँ, आज किसान आया था। वह कह रहा था कि कल मजदूर लेकर आऊँगा और फसल की कटाई करूँगा। गौरैया ने कहा, “डरो मत बच्चों! कल कोई नहीं आएगा।”
किसान अगले दिन मजदूरों को खोजने गया, लेकिन उसे कोई मजदूर नहीं मिला। कुछ दिन बाद किसान खेत देखने फिर आया। उसने फिर से खेत के किनारे खड़े होकर कहा, “मजदूर तो मिल नहीं रहे हैं।” कल मैं अपने परिवार के लोगों को लेकर फसल को काटने के लिए आऊँगा।
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किसान की बात गौरैया के बच्चों ने सुन ली। शाम को जब उनकी माँ आई तो गौरैया के बच्चों ने माँ से कहा, “माँ! आज किसान फिर आया था उसने कहा, कल फसल काटने के लिए अपने परिवार के लोगों को लेकर आऊँगा। गौरैया ने अपने बच्चों को कहा, तुम लोगों को कुछ नहीं होगा। कल भी कोई नहीं आएगा।
अगले दिन किसान के घर वाले फसल काटने के लिए तैयार नहीं हुए। इस तरह से दो तीन दिन बीत गया। एक दिन फिर से किसान अपनी लहलहाती फसल को देखने आया। उसने कहा, “मैं, मजदूर और परिवार वालों के सहारे रहूँगा तो फसल नहीं कट पाएगी। ऐसे में बारिश से बहुत अधिक नुकसान हो सकता हैं। कल मैं ही फसल काटने के लिए आऊँगा।
शाम को फिर गौरैया के बच्चों ने किसान के बारें में बताया। इस बार गौरैया ने कहा, “बच्चों अब हमें यहाँ से निकलने का समय आ गया हैं।” अब जितनी जल्दी हो निकल चलते हैं। गौरैया के बच्चों ने दुबारा से पूछा कि किसान तो कई बार ऐसे ही बोल के जा चुका हैं, इस बार भी नहीं आएगा। अब आप इतना परेशान क्यों हो रही हो।
गौरैया बोली किसान अपनी फसल को काटने के लिए अभी तक दूसरो के ऊपर निर्भर था। लेकिन अब वह इस काम को खुद करेगा। इसलिए वह कल फसल काटने जरूर आएगा। गौरैया ने अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया। अगले दिन गौरैया ने खेत में आकर देखा तो किसान अकेले फसल की कटाई कर रहा था।
नैतिक सीख:
हमें किसी काम को दूसरे के ऊपर नहीं छोड़ना चाहिए।