रहबरपुर नामक गाँव में मोहित और विशाल दो दोस्त रहते थे। मोहित एक कुम्हार का लड़का था। जबकि, विशाल के पिता एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। मोहित गरीब तो जरूर था। लेकिन वह बहुत बुद्धिमान और ईमानदार था। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद और तैराकी में बहुत निपूर्ण था। जबकि, विशाल थोड़ा आलसी स्वभाव का बच्चा था। उसे खेल-कूद में भाग लेना अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन स्कूल में फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजित हुई। उस प्रतियोगिता के लिए सभी बच्चों से कहा गया कि जिसे भाग लेना हो अपना नाम अपने क्लास टीचर के पास लिखवा दे। स्कूल में लंच की छुट्टी होती हैं। बच्चे जल्दी-जल्दी लंच करके क्लास टीचर के पास चले जाते हैं। फुटबॉल प्रतियोगिता को लेकर बच्चे उत्साहित थे।
लेकिन उस दिन मोहित ने लंच नहीं किया। वह लाइब्रेरी में जाकर मायूस बैठा था। तभी उसे खोजते हुए। उसका दोस्त विशाल आया। उसने पूछा, “मोहित क्या हुआ! तुम यहाँ पर अकेल क्यों बैठे हो?” आज तुमने लंच भी नहीं किया। मोहित ने विशाल से कहा, “क्या बताऊँ दोस्त, स्कूल में फुटबॉल प्रतियोगिता होने वाली हैं। इस प्रतियोगिता में मैं भाग लेना चाहता हूँ।”
तभी लंच समाप्त होने की घंटी बजती हैं। दोनों कक्षा में चले जाते हैं। शाम को छुट्टी होने पर मोहित उदास होकर अकेले घर को निकल जाता हैं। विशाल ने उसे खोजा लेकिन वह नहीं मिला। अगले दिन मोहित खेल के मैदान के किनारे बैठा था। सभी बच्चे मैच के लिए तैयार हो रहे थे। जिन्हें देख मोहित की आँखें भर आई। तभी टीचर ने मोहित का नाम पुकारा।
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मोहित अपना नाम सुनकर आश्चर्यचकित हो उठा। उसे लगा कोई और लड़का होगा। क्योंकि, उसने मैच में भाग लेने के लिए अपना नाम नहीं दिया था। तभी उसका दोस्त विशाल भागते हुए उसके पास आया। उसने कहा, “मोहित तुम्हारा नाम बुलाया जा रहा हैं, जल्दी चलो।” विशाल उसे जूते देते हुए कहा, “मैंने कल तुम्हारा नाम क्लास टीचर के पास लिखा दिया था।” मोहित अपने दोस्त के हाथ में जूता देख उसे अपने गले से लगा लिया।

उस दिन फुटबॉल प्रतियोगिता में मोहित ने कई गोल किए। टीचर मोहित का खेल देखकर बहुत प्रभावित हुए। पुरस्कार के तौर पर उसे ड्रेस और जूते मिले। मोहित बहुत खुश था। उसने अपने इस खुशी का श्रेय अपने दोस्त विशाल को दिया। घर जाकर मोहित ने सारी बात बता दी। उसकी मम्मी ने उसे जूते के लिए पैसे दिया। उन्होंने कहा, ‘तुम इस पैसे को अपने दोस्त को दे देना।’
अगले दिन स्कूल में मोहित अपने दोस्त विशाल के पैसे देते हुए कहा, “कल तुमने फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए जूते देकर मेरी मदद की उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद” विशाल ने मोहित से पैसे लेने के लिए मना करते हुए कहा, “जूते मैंने अपने पॉकेट मनी से खरीदे थे।” इसलिए यह पैसा मैं नहीं ले सकता। मोहित ने कई बार पैसे देने की कोशिश की लेकिन विशाल ने नहीं लिया।
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उसी दिन शाम को दोनों स्कूल से वापस घर जा रहे थे। बीच रास्ते में एक नदी पड़ती थी। उस नदी पर लकड़ी का पुल बना हुआ था। बैलगाड़ी जाने की वजह से अचानक वह पुल टूट गया। विशाल उस नदी में गिर गया। मोहित ने जल्दी से अपने कपड़े उतारकर एक दूसरे से बांध दिया। उसे नदी में फेंककर विशाल को पकड़ने के लिए कहा। लेकिन, वह विशाल तक नहीं पहुँच पा रहा था।

मोहित ने बिना कुछ सोचे समझे नदी में झालंग लगा दी। उसे तैराकी बहुत अच्छे से आती थी। उसने अपने दोस्त को पकड़कर नदी से बाहर खींच लाया। बहार आकर विशाल ने अपने दोस्त के गले लग गया। उसने कहा, “मेरी जान बचाकर तुमने मेरे ऊपर बहुत बड़ा ऐहसान किया हैं।” मोहित ने कहा, “मेरे दोस्त! मैंने कोई ऐहसान नहीं किया। बल्कि, एक दोस्त को दूसरे दोस्त के लिए जो करना चाहिए मैंने वही किया हैं।”
दोनों दोस्त घर जाकर अपने माता-पिता से सारी बात बता दी। उसी दिन विशाल के मम्मी-पापा मोहित के घर आए। उन्होंने मोहित को विशाल की जान बचाने के लिए बहुत आभार व्यक्त किया। इसके अलावा उसे कुछ कपड़े और पैसे भी दिए। उन्होंने विशाल और मोहित को ऐसे ही दोस्ती जीवन पर्यंत बनाए रखने के लिए कहा।
नैतिक सीख:
दोस्ती हमेशा निस्वार्थ भाव से की जाती हैं।