श्रीपुर गाँव में एक धोबी रहता था। जोकि बहुत कंजूस था। वह पैसे बचाने के चक्कर में अपने परिवार वालों को ढंग से खिलाता-पिलाता नहीं था। धोबी प्रतिदिन अपने गाँव में घर-घर से कपड़ों को इकठ्ठा करके उसे धुलने के लिए नदी पर ले जाता। धुलाई से जो भी पैसे मिलते उसे बचाने के लिए, धोबी नदी के किनारे एक पोटली में पैसों को डालकर जमीन में छिपा देता था।
धोबी बहुत लालची था, जब भी वह कपड़े धुलने नदी पर आता था तो वह अपने पैसोंं को जमीन से खोदकर एक बार जरूर देखता था। एक दिन एक कुम्हार, मिट्टी का बर्तन बनाने के लिए नदी के किनारे मिट्टी खोदने के लिए गया। मिट्टी खोदते समय उसे धोबी के पैसों की पोटली मिल गई। जिसे वह अपने साथ घर ले आया। वह अपने गाँव के मुखिया के पास जाकर पूरी बात बताते हुए पैसे की पोटली सौंप दिया।
अगले दिन धोबी नदी के किनारे कपड़े धुलने गया। वह छिपाए हुए पैसों की पोटली बहुत खोजा, लेकिन उसे मिली नहीं। धोबी जोर-जोर से चिल्लाने लगता हैं- ‘मैं लूट गया, मैं बर्बाद हो गया’ उसकी आवाज सुनकर एक चरवाहा उसके पास आता हैं। उसने धोबी से पूछा “क्या हुआ भाई क्यों चिल्ला रहे हो?”
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धोबी सारी बात उस चरवाहे से बता दिया। चरवाहा धोबी से कहा- “कल जब मैं अपनी भेड़ों को पानी पिलाने नदी पर आया था तो तुम्हारे गाँव के कुम्हार को इसी जगह पर मिट्टी खोदते हुए देखा था, हो सकता हैं तुम्हारे पैसोंं की पोटली कुम्हार को मिली होगी।” धोबी कुम्हार के घर गया उसके ऊपर पैसे चुराने का आरोप लगाया। कुम्हार धोबी को लेकर गाँव के मुखिया के पास जाता हैं।
मुखिया के पास पहुँचकर धोबी गुस्से से लाल-पीला होते हुए कुम्हार के बारे में भला-बुरा कहता हैं और उसके ऊपर चोरी का इल्जाम लगाता हैं। मुखिया धोबी की बातों को सुनकर, धोबी को कुम्हार के ऊपर चोरी का इल्जाम लगाने के लिए फटकार लगाता हैं। मुखिया ने कहा- “कुम्हार ईमानदार हैं, कल जब मिट्टी की खुदाई करते समय उसे पैसे से भरी पोटली मिली थी, वह ईमानदारी से मुझे सौंप गया था।” ये लो तुम्हारे पैसे की पोटली।
इतने में धोबी की पत्नी अपने बच्चों के साथ वहाँ आ पहुंची। वह कहती हैं- “रुकिये! मुखिया जी पहले आप हमारा न्याय करो। पैसों की कमी के कारण कितने दिन हो गए मैं और मेरे बच्चे भर पेट भोजन नहीं किए। इसके अलावा बच्चों की स्कूल फीस न भर पाने की वजह से स्कूल से भी बच्चों को निकाल दिया गया।
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इतना पैसा मेरे पति के पास कहाँ से आया? यह पैसा हमारा नहीं हो सकता। इस पैसे को कुम्हार को ही दे दिया जाए। धोबी अपनी पत्नी के ऊपर गुस्सा करते हुए कहा- “नहीं-नहीं मुखिया जी इस पैसे का मालिक मैं ही हूँ” मैं जो भी पैसे कमाता था खर्च के डर से घर पर नहीं रखता था। इसलिए मैं नदी के किनारे जमीन में छिपा दिया था।
मुखिया धोबी से कहता हैं- तुम पैसे की बचत करने के चक्कर में अपनी पत्नी और बच्चों का ख्याल क्यों नहीं रखते हो? तुम्हारे बच्चों को स्कूल से भी निकाल दिया गया हैं। ऐसे में तुम इन पैसों को बचाकर क्या करोगे? मुखिया अपना फैसला सुनाते हुए कहता हैं- आज से तुम्हारे घर को तुम्हारी पत्नी चलाएगी। तुम जो भी पैसे कमा कर लाओगे उससे तुम्हारी पत्नी घर का खर्च चलाएगी।
इस तरह से धोबी की कंजूसी छूट जाती हैं। उसके बच्चे फिर से स्कूल जाने लगते हैं। अब धोबी के घर खाने पीने की अच्छी व्यवस्था हो जाती हैं।
नैतिक शिक्षा:
जरूरत से ज्यादा कंजूसी अच्छी नहीं होती हैं।