छोटे बच्चों के लिए हिंदी कहानियां – Hindi Story for Kids

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1. राजा के न्याय की कहानी – The story of the king’s justice:

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एक समय की बात हैं, हरीनगर राज्य में एक राजा रहता था। जोकि, बहुत बुद्धिमान और न्यायप्रिय था। उसके राज्य में लोग बहुत ही खुशी-खुशी अपना जीवन यापन कर रहे थे। राजा अपनी प्रजा की हमेशा देख-रेख करता रहता था। एक बार राजा अपने साम्राज्य को छोड़कर कुछ दिन के लिए किसी दूसरे राज्य में जा रहा था। उसने सोचा मेरे न रहने पर राज्य को कौन संभालेगा। राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि उस राज्य के लिए मुख्य दरबारी की आवश्यकता हैं। जोकि इस राज्य की, कुछ दिनों के लिए देख-भाल करेगा।

घोषणा सुनकर राजा के दरबार में कई दरबारी आए। जोकि, उस राज्य को कुछ दिनों के लिए संभालना चाहते थे। राजा सभी लोगों से सवाल जबाब कर उनकी बुद्धिमत्त्वा की परख करना चाहता था। लेकिन, कोई भी व्यक्ति राजा की इच्छा के अनुरूप नहीं मिला। राजा की घोषणा सुन एक पंडित राजा के पास आता हैं। जोकि, किसी और राज्य से आया हुआ था। उसने राजा से कहा “हे राजन अगर आप की इजाजत हो तो मैं आपके राज्य की कुछ दिन देख-भाल कर सकता हूँ”।

राजा उसकी बुद्धि और ज्ञान को जानना चाहता था। राजा ने पंडित से अपना पहला सवाल पूछा, “क्या आप हमें बता सकते हो कि दूध सबसे अच्छा किसका होता हैं, और क्यों?” पंडित ने राजा को जबाब दिया “राजन दूध सबसे अच्छा माँ का होता हैं, क्योंकि माँ का दूध हमें जीवनदान देता हैं।

राजा ने पंडित से दूसरा सवाल पूछा, पत्ता सबसे अच्छा किसका होता हैं? पंडित ने राजा को जबाब देते हुए बोला “महाराज पत्ता सबसे अच्छा पान का होता हैं। क्योंकि, यह वही पत्ता होता हैं जिसे गरीब, अमीर, राजा, रंक, फकीर सभी खाते हैं। यह पत्ता सभी को एक तरह से लाल रंग प्रदान करता हैं”।

राजा ने तीसरा प्रश्न पंडित से पूछा, मिठास किसकी अच्छी होती हैं? “पंडित कुछ देर विचार करने के बाद कहता हैं। राजन वाणी की मिठास सबसे अच्छी होती हैं। क्योंकि यह वही मिठास हैं, जोकि एक दूसरे को करीब लाती हैं”। राजा ने पंडित से आखिरी प्रश्न किया कि फूल किसका अच्छा होता हैं? “पंडित ने कहा फूल कपास का सबसे अच्छा होता हैं। जोकि, गरीब, अमीर सभी का तन ढकती हैं और उन्हें ठंड से बचाती हैं।”

राजा सभी सवालों के जबाब अपनी इच्छा अनुरूप पाकर बहुत खुश होता हैं। वह अपने राज्य की देखभाल के लिए पंडित को नियुक्त करता हैं।

2. राजकुमार सिद्धार्थ और देवदत्त की कहानी – The Story of Prince Siddhartha and Devadatta:

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एक बार राजकुमार सिद्धार्थ इस दुनिया की दुर्दशा देख अपने आपको इस आवागमन के चक्कर से मुक्ति पाने के लिए एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे थे। अचानक उनके पास एक फाख्ता आकर गिरता हैं। जोकि, बहुत ही लहुलुहान अवस्था में था। उसके पेट में एक तीर भी चुभा हुआ था। राजकुमार सिद्धार्थ ने फाख्ता को देख उसको गोद में उठा लिया और तीर को निकाल कर उसके घाव को अपनी धोती फाड़कर बांध दिया।

इसके बाद फाख्ता को पानी पिलाया। लेकिन, कुछ समय बाद सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त उनके पास आता हैं। सिद्धार्थ के हाथ में फाख्ता देख, देवदत्त ने सिद्धार्थ से कहा इस पक्षी पर मैंने तीर चलाया हैं इसलिए यह पक्षी मेरा हैं, लाओ इसे मुझे दे दो। लेकिन, सिद्धार्थ ने उसे यह समझाते हुए देने से मना कर दिया कि मैंने इस पक्षी की जान बचाई हैं इसलिए, यह पक्षी मेरा हैं।

दोनों में बहस होने लगी, कुछ समय बाद दोनों पक्षी को लेकर राजा शुद्धोधन के दरबार में गए और अपनी-अपनी बातों को बताया। राजा शुद्धोधन ने न्याय करते हुए कहा कि इस पक्षी को नीचे छोड़ दो, यह पक्षी जिसके पास जाएगा उसके पास ही रहेगा। पक्षी को दरबार में छोड़ा गया। पक्षी राजकुमार सिद्धार्थ के पास फिर से चला गया। इस तरह से उस पक्षी का असली हकदार राजकुमार सिद्धार्थ को माना जाता हैं। राजा शुद्धोधन दोनों को यह समझाते हैं कि मारने वाले से कई गुना बड़ा बचाने वाला होता हैं।

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3. किसान और उसके बुद्धिमान लड़के की कहनी – Story of the Farmer and His Wise Boy:

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खुशीराम नाम का एक किसान था जोकी बुद्धिमान और नेक इंसान था। उसके पास बहुत अधिक जमीन थी। जिसमें वह अनाज पैदा करता था। खुशीराम के तीन बच्चे थे। एक बार वह सोचता हैं कि इस संपत्ति को उसका कौन सा बच्चा संभाल सकता हैं। खुशीराम अपने तीनों बच्चों को बुलाता हैं और उन्हें एक-एक पोटली देते हुए कहता हैं कि इन सभी पोटली में बीज हैं।

मैं चार या पाँच साल के लिए तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूँ। आप लोग इस बीज को बहुत संभाल कर रखना। जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे यही बीज लौटा देना। खुशीराम के जाने के बाद उसके बच्चे अपनी-अपनी पोटली को संभाल कर रखते हैं। धीरे-धीरे समय बीता, पाँच वर्ष बाद जब खुशीराम वापस अपने गाँव आता हैं और अपने तीनों बच्चों को बुलाकर अपनी दी हुई पोटली को माँगता हैं।

सबसे पहले बड़े बेटे से कहता हैं कि आप पोटली को वापस करो। वह कुछ समय के लिए अपने कमरे में जाता हैं और तिजोरी खोलकर वही पोटली लेकर आता हैं। जब किसान उस पोटली को खोलता हैं तो देखता हैं कि बीज तो वही थे लेकिन सड़ चुके थे, उसमें कीड़े चल रहे थे और बदबू भी आ रही थी। किसान ने बोला- यह क्या किया, आपने इन बीजोंं को सड़ा दिया। बेटा बोलता हैं कि आपने इन बीजों को संभाल के रखने के लिए कहा था, मैंने वही किया।

खुशीराम अपने दूसरे बेटे को बुलाता हैं और उससे अपनी दी हुई पोटली वापस माँगता हैं। वह कुछ घंटों बाद वापस आता हैं और बीज की पोटली अपने पिता को देता हैं। खुशीराम जब बीज की पोटली को खोलता हैं तो देखता हैं कि यह बीज उसका दिया हुआ नहीं है। बेटे से पूछता हैं कि जो बीज मैंने दिया था वह कहाँ हैं। बेटे ने जबाब दिया पिता जी जब तक आप वापस आते यह बीज सड़ जाता इसलिए मैंने उसको बाजार में बेच दिया। आज जब आपने वापस मांगा तो बाजार से दूसरे बीज खरीदकर लाया हूँ।

अब किसान अपने तीसरे लड़के को बुलाता हैं और उससे कहता हैं कि उसका दिया हुआ बीज वापस करें। तीसरा लड़का अपने पिता को अपने साथ ले जाता हैं और खेत में लगी लहलहाती फसल को दिखाता हैं और कहता हैं “ये रहा आपका बीज, आपके दिए एक पोटली बीज से मैंने कितने अनाज एकठ्ठा कर लिया”। वह अपने पिता को एक कमरे में लेकर गया और अनाज को दिखाया और बोला यह अनाज आपके दिए हुए बीज के ही हैं।

आगे अपने पिता से यह कहते हुए बताया कि मेरे पास इस बीज को सुरक्षित रखने का और कोई साधन नहीं था। अगर मैं बीज को तिजोरी में रखता तो सड़ जाते जैसा की बड़े भाई ने किया। जबकि, अगर मैं बाजार में बेच देता तो वह बीज बदल जाता। इसलिए मैंने आपके दिए हुए बीज को खेतों में डलवा दिया जिसका नतीजा आपके सामने हैं।

किसान अपने सबसे छोटे बेटे की बुद्धिमानी देख उसे अपनी जमीन की देखभाल करने के लिए कहता है। इस प्रकार से धीरे-धीरे वह उन्ही खेतों से अत्याधिक अनाज उत्पादन करने लगा जिससे उसके गाँव के लोग उसके पास से अनाज लेकर जाने लगे।

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4. सूझबुझ तथा ईमानदारी की कहानी – Story of wisdom and honesty:

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एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम प्रेमदास था। वह व्यक्ति बहुत गरीब था मुश्किल से उसका घर चलता था। उसके घर में उसकी पत्नी और बच्चे रहते थे। प्रेमदास बहुत मेहनती था लेकिन उसके पास ऐसी कोई जमीन नहीं थी कि उस पर वह खेती कर सके। एक दिन प्रेमदास भोजन कर रहा था। उसके पास उसकी पत्नी आती हैं और कहती हैं कि स्वामी क्यों न आप अपने राज्य के राजा के पास जाकर अपनी गरीबी के बारे में बताए। क्या पता राजा को हमारी स्थिति देखकर दया आ जाए और हमें खेती करने के लिए खेत दे दें।

अगले दिन प्रेमदास अपनी पत्नी के कहने के अनुसार राजा के दरबार में जाकर अपनी स्थिति को बताता हैं। राजा को उसके परिवार के ऊपर दया आ जाती हैं और उसे उसके घर के पास खाली पड़े एक खेत में खेती करने के लिए कहता हैं। प्रेमदास अपने घर पर आ कर अपनी पत्नी को यह बात बताता हैं। दोनों के चेहरे खुशी से खिल उठते हैं।

सुबह प्रेमदास और उसकी पत्नी खेत में जाते हैं और खेत की जुताई करना शुरू करते हैं। खेत की जुताई करते समय उस खेत में से उन्हे एक सोने की ओखली मिलती हैं। जिसे देख प्रेमदास बोलता हैं, इसे हमें राजा को देना चाहिए। लेकिन उसकी पत्नी उसे समझाती हैं कि अगर आप इस ओखली को राजा के पास लेकर जाओगे तो राजा इसकी मूसली भी आप से ही मांगेगें, फिर आप कहाँ से दोगे।

लेकिन, प्रेमदास ने अपनी पत्नी की बात नहीं मानी। उस ओखली को लेकर राजा के दरबार में पहुंचकर सारी बात सच-सच बता दी। वही बैठे एक दरबारी ने राजा को समझते हुए कहा कि महाराज ओखली और मूसली दोनों एक साथ रहते हैं जरूर इसने मूसली को छिपाकर रखा हैं। राजा ने अपने दरबारियों को आदेश दिया कि इसे कारागार में डाल दो और तब तक मत छोड़ना जब तक यह मूसली के बारें में न बता दे।

प्रेमदास को कारागार में डाल दिया गया इसके अलावा उसे बहुत परेशान किया गया। एक बार राजा उस कारागार के पास से गुजर रहे थे तो प्रेमदास अपने आप से बोला काश! मैंने अपनी पत्नी की बात मान ली होती तो आज मेरा यह हाल नहीं होता। उसकी आवाज राजा के कान में पड़ जाती हैं। उसकी पत्नी ने उसे क्या कहा था, उसके बारें में जानने के लिए राजा ने उसे अपने पास बुलाया।

प्रेमदास राजा से बताता हैं कि उसकी पत्नी उसे इस ओखली को आपके पास ले जाने के लिए मना कर रही थी। वह कह रही थी कि अगर आप इस ओखली को राजा के पास ले जाओगे तो राजा आपसे मूसली भी माँगेंगे और आप कहाँ से दोगे। राजा उसकी पत्नी को दरबार में बुलाता हैं और उसकी बुद्धिमत्त्वा के लिए उसे सम्मानित करता हैं। इसके अलावा उस खेत को प्रेमदास को हमेशा के लिए दे देता हैं। अब दोनों मिलकर उस खेत में बहुत सारे अनाज पैदा करने लगते हैं। जिससे प्रेमदास खाने-पीने के अलावा बाजार में बेचने भी लगा। इस तरह से उसकी आर्थिक स्थित सुधार गई।

5. बगुला और कोयल की कहानी – Story of the heron and the cuckoo:

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एक बार आम के पेड़ पर एक कोयल अपनी सुरीली आवाज से सबका मन मोहित कर रही थी। तभी उसके पास एक बगुला आता हैं। बगुला कोयल से कहता हैं। कोयल बहन तुम्हारी आवाज तो बहुत मीठी हैं। काश! तुम्हारा शरीर भी मेरी तरह चमकदार होता, तो और अच्छा होता। कोयल उसे समझाते हुए कहती हैं। यह शरीर नश्वर हैं। हमें इसका अभिमान नहीं करना चाहिए। क्योंकि, लोगों की पहचान उसके कर्म और बोली भाषा से होती हैं।

इसके अलावा अगर किसी को उसकी इच्छा अनुरूप सभी चीजें मिल जाए तो उसके अंदर कितना घमंड आ जाएगा, कभी आपने सोचा हैं? आप अपने उजले रंग पर इतना नाज करते हो, जरा सोचो अगर आपकों मेरी जैसी आवाज मिल जाती तो आपका घमंड किस स्तर पर होता। कोयल की बातों को सुनकर बगुले का सिर शर्म से नीचे को झुक गया।

इसलिए कहा जाता हैं हम जैसे भी हैं, जहाँ भी हैं उसी रूप में अपने आप को स्वीकार करना चाहिए। किसी को देखकर उसके जैसी इच्छाओ की चाहत नहीं रखनी चाहिए। बल्कि हमें अपने अनुरूप अपनी इच्छा को बढ़ाना चाहिए।

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