एक राजा के दो बेटे थे – ज्ञानदेव और सोमदेव। ज्ञानदेव बड़ा था और सोमदेव छोटा। राजा की मृत्यु के पश्चात छोटे बेटे सोमदेव ने गद्दी हथिया ली। ज्ञानदेव एक सीधा-सादा राजकुमार था। अपने छोटे भाई के व्यवहार से वह जरा भी क्रोधित नहीं हुआ, बल्कि आनन्द के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
धीरे-धीरे दिन गुजरते रहे। सोमदेव के कुछ दरबारी ज्ञानदेव से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने राजा सोमदेव के कान भरने शुरू कर दिए- “महाराज, आपके बड़े भाई चुपके-चुपके विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं। आपको समय रहते ही इसका निदान करना चाहिए। आप अपने बड़े भाई को कारागार में बंद करवा दीजिए।”
सोमदेव दरबारी के कहने पर आकर अपने भाई ज्ञानदेव को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। इस बात की खबर राजकुमार ज्ञानदेव को लग गई। वह दुखी मन से अपने पिता के बनाए महल को छोड़कर किसी और राज्य को चला गया।
ज्ञानदेव धनुष चलाने में बड़ा निपुण था। पेट भरने के लिए उसे कुछ करना था। वह उस राज्य के राजा के पास पहुंचा और अपना तीरंदाज के रूप में परिचय दिया। राजा ने उसे अपनी सेना में भर्ती कर लिया। एक दिन राजा अपने बाग में टहलने गए थे। टहलते-टहलते राजा की नजर एक आम के पेड़ पर गई। पेड़ पर ढेर सारे आम लदे थे।
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राजा को आम खाने की इच्छा हुई। इसी बहाने उसने अपने तीरंदाजों की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उसने अपने सभी तीरंदाजों को बुलवाया। फिर बोला- “आज मैं अपने तीरंदाजों का कौशल देखना चाहता हूँ। जो सबसे बढ़िया तरीके से आम मुझे लाकर देगा, उसे मैं एक हजार सोने की मोहरें इनाम में दूंगा।”

एक-एक करके सभी तीरंदाज आए उन्होंने सीधे तरीके से आम को धरती पर गिरा दिया। राजा इससे जरा भी प्रभावित नहीं हुए। इस प्रकार तीर चलाने में विशेष कौशल का प्रदर्शन नहीं हुआ। अंत में ज्ञानदेव की बारी आई। उसने राजा से पूछा- “महाराज, आम को ऊपर जाने वाले तीर से गिराऊँ या नीचे आने वाली तीर से?”
राजा और अन्य तीरंदाजों को यह बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। अभी तक उन्होंने ऊपर से जाने वाले तीर को देखा था। लेकिन, नीचे से जाने वाला तीर कैसा होता है, उनकी समझ में नहीं आ रहा था। राजा ने नीचे आने वाली तीर का प्रदर्शन करने को कहा। राजकुमार ज्ञानदेव ने आम पर निशाना लगाकर कर तीर छोड़ दिया। तीर आम को छूता हुआ आगे निकल गया, फिर लौटा तो आम लेकर नीचे जा गिरा।
राजा और अन्य तीरंदाजों ने इस कौशल को देखकर दाँतों तले अंगुलियाँ दबा ली। वे सब ज्ञानदेव की प्रशंसा करने लगे। राजा ने एक हजार सोने की मोहरें देकर ज्ञानदेव को पुरस्कृत किया और मुख्य तीरंदाज का पद प्रदान किया।

उधर सोमदेव की गलत व्यवहार के कारण उसके पड़ोसी राजा उसे बैर करने लगे। पाँच राजाओं ने मिलकर सोमदेव के राज्य पर हमला करने की योजना बनाई। यह सुनकर सोमदेव की होश उड़ गए। पाँच राजाओं का मुकाबला करना उसके वश की बात नहीं थी।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि इस संकट से कैसे छुटकारा पाए? अगर ज्ञानदेव उसके साथ होता तो किसी राजा की हिम्मत नहीं थी, जो आँख दिखाता। वह अपने दरबारियों पर बड़ा नाराज हो रहा था। जिनकी वजह से उसके बड़े भाई ने उसका साथ छोड़ दिया था।
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उसने अपने बड़े भाई ज्ञानदेव का पता लगाने के लिए चारों दिशाओं में सिपाहियों को भेज दिए। बड़े प्रयास के बाद उसका पता लगा। सोमदेव ने तुरंत अपने बड़े भाई से माँफी माँगी। और कहा, “भैया मैं गलती के लिए आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ। आपका अधिकार छीन कर खुद राजा बन बैठा। मुझ पर पाँच राज्य के राजा हमला करने वाले हैं। कृपया आप मेरी मदद कीजिए।”
ज्ञानदेव आखिर सोमदेव का बड़ा भाई था। उसने अपने भाई से कहा तुम बिल्कुल चिंता मत करो। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ, अपना कर्तव्य निभाना मुझे आता है। तुम निर्भय होकर राज करो। मैं यही से तुम्हारी मदद करूँगा।
ज्ञानदेव ने पाँच छोटी-छोटी पर्ची तैयार की उस पर लिखा- “तुम लोग मेरे भाई सोमदेव पर हमला करने का विचार त्याग दो, वरना यही से तीर चला कर तुम लोगों को स्वर्ग पहुँचा दूँगा। उसने इन पर्चियों को तीर में लगाकर उन पाँचों राजाओं के पास भेज दिया।”
तीर पर्चियों को लेकर अलग-अलग राजाओं के पास जा गिरे राजाओं ने पर्ची को पढ़ कर डर गए। उन्होंने सोमदेव के राज्य पर हमला करने का विचार छोड़ दिया।
नैतिक सीख:
हमें किसी के अधिकार को हड़पना नहीं चाहिए।