5 नैतिक शिक्षा से भरपूर हिंदी कहानियाँ

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1. गाँव और शहर के जीवन में फर्क – Difference Between Village and City Life:

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सोहन एक बड़े शहर में रहता था। उसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। सोहन धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। एक बार गर्मी की छुट्टियों में उसके पिता उसे बाहर की दुनिया दिखाने के लिए अपने गाँव ले गए। सोहन के पिता उसको यह समझाना चाहते थे कि आप शहर में कितना अच्छा जीवन जी रहे हो। यहाँ गाँव वालों को देखो कि वह अपना परिवार किस तरह से पालते हैं। जिनके पास पैसे नहीं होते हैं, वें लोग कैसे परेशान रहते हैं।

सोहन वहाँ के रहन-सहन को करीब से समझ सकें, उसके पिता उसे खेतों में ले गए। खेतों के पास छोटे-छोटे घर बने हुए थे, जिसमें उन खेतों में काम करने वाले लोग रहते रहते थे। सोहन एक सप्ताह तक गाँव में रुका। वहाँ पर गाँव के बच्चों के साथ खूब खेला और उनके जानवरों के साथ खूब मौज मस्ती की। पेड़ों पर चढ़ा, कुत्तों के साथ खेला, फल खाये, भेड़ों के साथ खेला।

जब एक सप्ताह बीत गया तो वहाँ से वपास आते समय पिता ने सोहन से कहा,”सोहन बेटा, देखा आपने गाँव के लोगों के पास कम पैसे होने के कारण, कितना मुश्किल भरा जीवन बिताते हैं। तब बच्चे ने जबाब दिया, नहीं पापा पहले तो आपको मैं धन्यवाद करना चाहता हूँ कि आपने मुझे दिखाया कि अमिर लोग कैसे रहते हैं।

देखिए न हमारे पास तो सिर्फ एक कुत्ता हैं, इनके पास तो दस-दस कुत्ते हैं। हमारे पास तो सिर्फ एक गाय हैं, इनके पास तो कितनी सारी गायें हैं। हमारे पास तो एक भी भेड़ नहीं हैं, इनके पास तो बहुत सारी भेंड़े हैं। हमारे पास तो कार पार्क करने की जगह तक नहीं है। इनके पास तो कितनी सारी जगह और खाली खेत पड़े हैं।

इस कहानी का मकसद सिर्फ इतना हैं कि अमीरी सिर्फ देखने के नजरिए से हैं। सच्ची अमीरी समझने के लिए आपको यह सोचना पड़ेगा कि आप क्या खो रहे हैं? वे लोग जो गाँव घर परिवार छोड़कर, अपने खेतों को बेचकर शहर में एक 10 बाई 10 के कमरें में रह कर अपने आपको बहुत अमीर समझ रहे हैं, क्या वें सच में अमीर हैं या फिर वें सिर्फ दिखावा कर रहे हैं।

नैतिक शिक्षा:

इस कहानी से यही सीख मिलती हैं कि जीवन में कुछ करने के लिए ऐसा नहीं हैं कि अगर हम अपना घर परिवार छोड़कर दूसरे शहर नहीं जाएंगे तो हम कुछ नहीं कर सकते। यह सिर्फ सोच का फर्क हैं। आप जहाँ हैं, वहीं से कुछ शुरू करो और पूरी शिद्दत और लगन से करो। सफलता एक दिन आपकी कदम चूमेंगी।   

2. कब्रिस्तान में छोटे बच्चे की कहानी – Story of the Little Child in the Cemetery:

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यह कहानी आपको सीखाती हैं कि मानो या न मानो भगवान हर किसी का साथ जरूर देता हैं, वह जरिया बनता हैं, बस उसको सच्चे मन और मासूमियत से याद करें तो। यह कहानी एक गरीब छोटे बच्चे की हैं। जोकि, लगभग दस साल का हैं। उस बच्चे के पिता की मृत्यु हुए कुछ महीने हुए थे।

एक बार वह बच्चा कब्रिस्तान में किसी कब्र के पास बैठ कर बोल रहा था कि पापा उठिए न, पता हैं आपको आज मेरे टीचर ने मुझे बहुत डांटा और कहा अगर तुम्हारी फीस 2 दिन में नहीं जमा हुई तो मैं तुम्हें स्कूल से निकाल दूँगी। मुझे फीस चाहिए पापा, अब आप बताओ न, मैं किससे पैसे मांगू। आप जल्दी से आ जाइए न।

वही पास में एक आदमी फोन पर किसी कब्र पर फूल चढ़ाने की बात कर रहा था। तभी उसने इस बच्चे की बात सुनी और तुरंत उसने फोन पर बोला की मुझे अब फूलों की जरूरत नहीं हैं, फूल मुझे मिल गए हैं। वह व्यक्ति उस बच्चे के पास गया और बोला, बेटा मुझे आपके पापा ने भेजा हैं। आपको फीस चाहिए न, ये लो पैसे।

कई बार जब हम मुसीबत में होते हैं, परेशान होते हैं तो लगता हैं कि क्या ईश्वर हैं। लेकिन जब किसी के साथ इस तरह से घटनाएं घटती होती हैं तब विश्वास होता हैं कि हाँ, ईश्वर हैं। 

नैतिक शिक्षा:

यह कहानी हमें सिखाती हैं कि पूरे मन और आस्था के साथ की गई प्रार्थना जरूर स्वीकार होती हैं। बस जरूरत इस बात की होती हैं कि आप का विश्वास कितना हैं। आपका विश्वास जितना मजबूत होगा, आपकी प्रार्थना उसी के अनुसार स्वीकार होगी।

इन्हें भी पढ़ें: तीन मूर्ख ब्राह्मण और शेर – Three Foolish Brahmins and Lion

3. सुनहरे भविष्य के लिए आज का बलिदान देना – Sacrifice Today for a Bright Future:

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एक समय की बात हैं एक छोटा बच्चा अपने घर के बगल में रहने वाले एक बुजुर्ग अंकल को अक्सर देखा करता था कि वें हमेशा पौधों को पानी देते थे। वक्त बीतता गया और अचानक से एक दिन उस बच्चे को लगा कि क्यों न इन अंकल से एक सवाल पूछा जाए तभी वह उस बुजुर्ग अंकल के पास गया। उन्हें एक छोटा सा पेड़ लगाते उसपर पानी देते देख बोला।

अंकल जी जब तक यह पौधा बड़ा होगा तब तक आप तो रहेंगे ही नहीं और फिर आपको इसका फ़ायदा क्या होगा। बच्चे की इस भोली बात को सुनकर वह बुजुर्ग अंकल बहुत जोर से हँसे और बोले “बेटा मैं जनता हूँ कि इस वृक्ष के फल और न ही इसकी छाया मुझे मिलेगी”। लेकिन, यह तुम जो सैकड़ों हजारों पेड़ देखते हो, इन्हे भी किसी ऐसे इंसान ने लगाए होंगे जिसे उसका फल नहीं मिला होगा।

मैं भी यही सोच कर इस पौधे को लगा रहा हूँ कि कल जब तुम बड़े होंगे तो इसका फल तुम्हें मिलेगा और तुम मजे से इसका आनंद ले सकोगे। बच्चे को बुजुर्ग अंकल की बात समझ में आ गई कि कई बार भविष्य की योजना करने के लिए आज का बलिदान देना पड़ता हैं। जैसा कि बुजुर्ग अंकल अपने आज के समय को भविष्य बनाने के लिए खर्च कर रहे हैं। जिसका फ़ायदा आगे आने वाली पीढ़ी को होगा। ठीक इसी प्रकार, यदि एक दूसरे के लिए सोचते जाए तो आज भी सुखद होगा, आने वाला कल भी सुखद होगा, और बीता हुआ कल भी सुखद होगा।

नैतिक शिक्षा:

कभी-कभी हमें हमारे किए गए कार्य का लाभ तुरंत नहीं मिलता। लेकिन, कुछ समय अगर धैर्य के साथ इंतजार कर लिया तो उसका लाभ बहुत बड़ा और आश्चर्यजनक मिलता हैं।

4. अच्छाइयों और बुराइयों को स्वीकार करना – Accepting the Good and the Bad:

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एक बार की बात हैं किसी जंगल में एक मोर रहता था। वह बहुत सुंदर था जब भी पानी बरसता वह नाचने लगता, पर न जाने क्यों वह नाचते-नाचते हमेशा उदास हो जाता। वहीं नदी के किनारे एक कछुआ रहता था जो मोर को ऐसा करते हमेशा देखता और सोचता कि आखिर बात क्या है? एक दिन उससे रहा नहीं गया और उसने मोर से पूछ ही लिया।

मोर भाई तुम इतने खूबसूरत हो और इतना शानदार नाचते भी हो, तो अचानक ऐसे क्यों उदास हो जाते हो। मोर ने कछुए की बात सुनी और कहा कि “क्या खाक मैं नाचता हूँ? काश मैं गा भी सकता, जब भी मैं गाने के लिए अपना मुहँ खोलता हूँ तो आसपास के सारे जानवर मेरे पास से भाग जाते हैं। उन्हें लगता हैं कि मैं चीख रहा हूँ। देखो न कुक्कू चिड़िया कितना अच्छा गाती हैं”। कछुए को समस्या समझ में आ गई।

कछुए ने उसे बहुत शांति से इसका जबाब दिया। तुम सबसे सुंदर पक्षी हो, सबसे सुंदर नाचते भी हो। भगवान हमें हमारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ भेजता हैं। हमें अपनी अच्छाईयों और बुराइयों को एक साथ एक भाव से स्वीकार करना चाहिए। अगर सब में सारी खूबियाँ हो जाएंगी तो फिर सब एक जैसे हो जाएंगे। फिर आप मोर नहीं रह जाओगे और मैं कछुआ नहीं रह जाऊंगा। मोर को कछुए की बात समझ में आ गई और वह फिर खुशी-खुशी नाचने लगा।

नैतिक शिक्षा:

हमें अपनी अच्छाइयों और बुराइयों दोनों को स्वीकार करना चाहिए। हमेशा अपनी तुलना किसी और के साथ नहीं करनी चाहिए। अपने आपको निखारते जाओ, आप लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाएंगे।

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5. गुस्सैल लड़का और सन्यासी की कहानी – The Story of the Angry Boy and the Monk:

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एक समय की बात हैं एक बच्चा जो बहुत गुस्सैल था। ठीक उसके विपरीत उसके माता-पिता उतने ही विनम्र स्वभाव वाले थे। बच्चे को छोटी-छोटी बातों में गुस्सा आ जाता था। जिसके कारण उसके आसपास और पड़ोस के लोगों के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं था। यही कारण था कि उसको कोई भी पसंद नहीं करता था। इस बात को लेकर बच्चे के माता-पिता बहुत चिंतित रहते थे कि बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन कैसे लाया जाए।

एक बार उस गाँव में एक सन्यासी का आगमन होता हैं। सन्यासी के बारे में यह धारणा थी कि वह बहुत ही अजीबो-गरीब तरह से लोगों के जीवन में बदलाव लाते हैं। उनके बारे में सुन, उस बच्चे के माता-पिता बच्चे को लेकर सन्यासी के पास जाते हैं और अपनी समस्या को बताते हैं। सन्यासी बच्चे के माता-पिता से बोलता हैं कि आज दिनभर के लिए अपने बच्चे को हमारे पास छोड़ जाओ। बच्चे के माता-पिता ठीक ऐसे ही करते हैं।

सन्यासी लड़के से बोलता हैं कि क्या आप मेरा एक काम करोगे। लड़का भी बहुत परेशान था वह चाहता था की उसकी यह खराब आदत छूट जाए जिससे वह एक अच्छा जीवन जी सके। लड़के ने बोला हाँ बाबा जी बताइए जरूर करूंगा। सन्यासी ने उस लड़के को, बगल के एक कुम्हार के पास भेजा और उसे बोला तुम मिट्टी से एक दिल बनाओ और उसमें रंग भरकर कुम्हार की भट्टी में पका कर लाओ। लड़के ने ठीक ऐसे ही किया। जिसको करने में उस लड़के को पूरा दिन लग गया। जब वह दिल बनकर तैयार हो गया तो वह बहुत सुंदर लग रहा था।

जिसको लेकर वह लड़का बाबा के पास पहुंचा। उस लड़के को सन्यासी ने एक हथौड़ा दिया और बोला इस दिल पर मारो। लड़के ने न चाहते हुए भी ऐसा किया। जिसकी वजह से उसके पूरे दिन की मेहनत बेकार गई और वह दिल टूट कर बिखर गया। उसके बाद सन्यासी ने लड़के को एक बहुत मुलायम रुई से बना हुआ दिल दिया, जिस पर लड़के को हथौड़े से चोट करने के लिए बोला। लड़के ने कई बार हथौड़े से उस दिल पर चोट किया लेकिन वह दिल नहीं टूटा।

अब लड़का परेशान हो गया और सोचने लगा कि मेरे माता-पिता ने मेरे गुस्से को शांत करने के लिए यहाँ भेजा था। लेकिन यह सब करके मेरा गुस्सा और बढ़ गया। सन्यासी ने लड़के को समझाया कि अपने दिल को गुस्से की भट्ठी में मत तपाओ। आप अपने दिल को बहुत शांत और मुलायम रखो जिस पर गुस्से का कोई प्रभाव न पड़ सके। लड़के को बाबा की बात समझ में आ गई और उस दिन से लड़के ने दिन-प्रतिदिन गुस्सा करना कम कर दिया।

नैतिक शिक्षा:

गुस्से में लिया गया निर्णय हमें हमेशा गर्त में ले जाता हैं। इसलिए हमें, अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए।

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