नैतिक कहानियाँ बच्चों को अच्छी अच्छी सीख देने के साथ-साथ नई राह प्रदान करने में सहायक होती हैं। जबकि, कहानियों से बच्चे के जीवन में अनेकों प्रकार की प्रेरणा मिलती हैं। इसलिए कहानीज़ोन आपके प्यारे बच्चों के लिए मनोरंजन से भरपूर कहानियां लाते रहते हैं। आज के इस लेख की कहानियाँ कुछ इस प्रकार से हैं।
1. संगत का प्रभाव – Effect of accompaniment:
प्रतिदिन राहुल अपने घर से कच्ची सड़क से होते हुए स्कूल जाता था। उसी सड़क के किनारे दीपू अपने पिता के साथ चाय और समोसे बेचता था। दीपू बहुत ही बुद्धिमान और मेहनती लड़का था। लेकिन, उसके पिता उसे स्कूल नहीं जाने देते थे। क्योंकि उन्हें पढ़ाई का महत्त्व नहीं पता था। दीपू जब भी राहुल को देखता तब उसे भी पढ़ाई करने का मन करता था।
एक दिन दीपू ने अपनी माँ से पढ़ाई करने के लिए कहा। उसकी माँ भी जानती थी कि दीपू के पिता उसे स्कूल नहीं जाने देंगे। ऐसे में दीपू को स्कूल कैसे भेजे? तभी उसकी माँ को राहुल दिखाई दिया। दीपू की माँ ने तेज आवाज देकर राहुल को अपनी दुकान पर बुलाया। उसे एक समोसा देते हुए कहा, “राहुल बेटा! तुम मेरे बेटे को स्कूल के बाद एक घंटे पढ़ा दोगे क्या? मैं तुम्हारे माता-पिता से बात कर लूँगी।”
राहुल ने कहा, हाँ…हाँ! क्यों नहीं। स्कूल के बाद अब राहुल, दीपू को पढ़ाने लगा था। दीपू, राहुल से कुछ दिन में ही बहुत कुछ सीख चुका था। उसने राहुल के दोस्तों के साथ दोस्ती भी कर ली थी। एक दिन दीपू के पिता जी ने गाँव के किसी सेठ से कुछ पैसे उधार लिए। सेठ ने उन्हे पैसे देते हुए एक कागज पर दस्तखत करने के लिए कहा।
दीपू ने उस पेपर को देखकर बोला, “पापा! आप पैसा नहीं चुका पाओगे तो सड़क के किनारे की दुकान सेठ को दे दोगे?” दीपू के पिता ने कहा, “मैंने ऐसा कब कहा?” दीपू ने अपने पिता से कहा, पापा आप जिस पेपर पर दस्तखत कर रहे हैं, उसमें ऐसा ही लिखा हैं। दीपू के पिता ने सेठ को छल और विश्वासघात करने के कारण उससे पैसा लेने के लिए मना कर दिया।
दीपू को अपनी गोद में उठाते हुए कहा, “बेटा अब तुम स्कूल जाओगे। मुझे पता चल गया हैं कि अशिक्षित होने पर लोग कैसे उसका फ़ायदा उठाते हैं।” अपने पिता की बात को सुनते ही दीपू दौड़कर अपनी माँ के गले से लग गया, वह बहुत खुश था। उस दिन के बाद से दीपू ने स्कूल जाना शुरू कर दिया।
कहानी से नैतिक सीख:
शिक्षा के बिना व्यक्ति पशु समान होता हैं। जिसे कोई भी चाहे अपने अनुसार चला सकता हैं।
2. हिरण और बाघ – Deer and Tiger:
बचपन में हमारी दादी माँ हम लोगों को अक्सर हिरण और बाघ की कहानी सुनाया करती थी। जिसमें बाघ हिरण का शिकार कर लेता था। लेकिन अब समझ में आता हैं कि बाघ हिरण का शिकार क्यों कर पता था। जबकि, देखा जाए तो बाघ की भागने की क्षमता लगभग 60 किलोमीटर प्रति घंटा और हिरण की लगभग 90 किलोमीटर प्रति घंटा होती हैं। लेकिन, फिर भी हिरण मारा जाता हैं।
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जिसका प्रमुख कारण हिरण बार-बार रुककर पीछे देखता रहता हैं। इसलिए उसकी गति धीमी हो जाती हैं। हमें अपने मन को सीधा एक दिशा में लगाकर अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए। जब तक हम अपना लक्ष्य न प्राप्त कर ले, हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए।
बाघ और हिरण दोनों की सुबह एक ही सोच से होती हैं। हिरण सोचता है कि अगर आज तेज नहीं भागा तो ”मैं मारा जाऊँगा”। जबकि, बाघ सोचता हैं कि अगर आज मैं तेज नहीं भागा तो “मैं भूखा मारा जाऊँगा।”
कहानी से नैतिक सीख:
सफलता के लिए अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान को केंद्रित रखना चाहिए।
3. ईश्वर के ऊपर विश्वास – Faith in God:
एक बार एक गुरु और शिष्य जंगल के रास्ते यात्रा पर जा रहे थे। रास्ता बहुत सुनसान था। किनारे-किनारे जंगली झाड़ियाँ और घने पेड़ पौधे लगे हुए थे। चलते-चलते दोनों को शाम होने को आ चुकी थी। जंगल के रास्ते में जंगली जानवरों की आवाज आ रही थी। गुरु निडर होकर अपने कदम बढ़ाते जा रहे थे। जबकि शिष्य डर के कारण सहमा हुआ था।
कुछ दूर और चलने पर उन्हें आगे का रास्ता दिखना बंद हो चुका था। गुरु जी ने एक सुरक्षित स्थान देखकर वहाँ रुकने का मन बनाया। नदी के पानी से हाथ मुँह धुलकर गुरुजी साधना के लिए पेड़ के नीचे बैठ गए। शिष्य बहुत डरा हुआ था। वह अपने गुरु के बगल बैठकर ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था।
तभी, उसे सामने से एक शेर आता हुआ दिखाई दिया। शिष्य झट से पेड़ पर चढ़ गया। पास आकर शेर ने देखा गुरु जी ध्यान में लीन थे। वह गुरु जी के चारों तरफ चक्कर लगाकर वापस जंगल की तरफ चला गया। उसे ऐसा करते हुए शिष्य देख रहा था। ध्यान से उठकर गुरु जी और शिष्य दोनों कंदमूल फल खाकर आराम करने लगे।
सुबह फिर से दोनों लोग अपनी यात्रा पर निकल गए। रास्ते में गुरुजी को एक मधुमक्खी ने काट लिया। गुरु जी मारे दर्द के कराह रहे थे। उन्हें देख शिष्य ने पूछा गुरुजी! जब मौत आपके सामने खड़ी थी तब आपको डर नहीं लगा। अभी एक मधुमक्खी ने क्या काट लिया? “आप दर्द से कराह रहे हैं।”
गुरु जी ने जबाब दिया, “शिष्य जब मैं ध्यान लगाए हुए था, उस समय परमात्मा मेरे साथ था।” लेकिन, अभी परमात्मा मेरे साथ नहीं हैं, इसलिए मेरी चीख निकल रही हैं।
कहानी से नैतिक सीख:
ईश्वर का सहारा लेकर चलने से रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं हट जाती हैं।
3. गेहूँ के दाने की कीमत – Price of wheat grain:
एक बार किसी राज्य का राजा नगर भ्रमण पर निकला हुआ था। उसके साथ घोड़े पर उसके मंत्री, दरबारी और सैनिक भी थे। राजा ने रास्ते में देखा कि एक किसान गेहूँ के बोरे को अपनी बैलगाड़ी में डालकर ले जा रहा था। उन्ही बोरो में से किसी एक बोरे में छेद होने के कारण बैलगाड़ी के नीचे गेहूँ गिरता जा रहा था।
जिसे देख अचानक राजा ने अपने सैनिकों से बोला रुको! रास्ते में हीरे बिखरे पड़े हैं। मंत्री ने चारों तरफ देखा और कहा, “महाराज! यहाँ तो किसी भी प्रकार के हीरे नहीं हैं। आपको भ्रम हो गया हैं। राजा घोड़े से उतरकर गेहूँ के गिरे दाने को उठा-उठाकर एक पोटली में रखने लगा। तभी मंत्री ने कहा, “महाराज अपने पास अधिक अन्नभंडारण हैं यह आप क्या कर रहे हैं।”
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राजा ने कहा, “हमें अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए।” क्योंकि पानी की तरह एक-एक दाने से भंडार भरता हैं। तभी किसान ने अपनी बैलगाड़ी रोकी और राजा के पास आया। राजन! मैं तो किसान हूँ। अपनी मेहनत से कुछ लोगों का पेट भरता हूँ। आप इस पूरे राज्य के मालिक हैं। आप को अच्छे से पता हैं कि अन्न की क्या कीमत होती हैं।
कहानी से नैतिक सीख:
हमें अन्न को बर्बाद नहीं करना चाहिए।
5. बड़ों का सम्मान – Respect for elders:
सोनू ने स्कूल से घर आकर देखा कि आज पापा ऑफिस से जल्दी आ गए थे। तभी पापा ने आवाज दी, बेटा! “सोनू स्कूल से आ गए! जल्दी तैयार हो जाओ, हमें पार्टी में चलना हैं। पार्टी का नाम सुनते ही सोनू खुश होकर जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा। सूट-बूट पहनकर सोनू ने अपने मम्मी-पापा के साथ मैरेज हाल के गेट पर पहुंचकर देखा कि दरबारी बड़ी-बड़ी मूँछे लगाए भाला लिए खड़े थे।
वे सभी गेस्ट का हाथ जोड़कर अभिवादन कर रहे थे। गेट पर पर पहुँचते ही सोनू ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर दरबारियों को नमस्ते बोलते हुए मैरेज हाल में चला गया। वहाँ पर सोनू के पापा के दोस्त अपने परिवार और बच्चों के साथ पहले से पहुंचे हुए थे। उनसे मिलकर सोनू ने चरण स्पर्श करते हुए नमस्ते कहा।
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सोनू को देखकर उसके पापा के दोस्त ने उसे गोद में उठा लिया। सोनू पार्टी को अच्छे से इन्जॉय कर रहा था। उसका बात व्यवहार लोगों को खूब पसंद आया। सोनू कुछ भी खाने की चीज लेता तो उसे खा कर प्लेट को डस्टबिन में ही डालता था। जबकि, अन्य बच्चे ऐसा नहीं कर रहे थे। सोनू खाना खा चुका था। वह हाथ धुलने के लिए नल के पास पहुँचा तो देखा अधिक भीड़ थी।
सोनू किसी तरह से नल के पास पहुंचकर एक गिलास में पानी लेकर हाथ धुलने के लिए निकला। तभी वह देखता हैं कि उसके सामने एक बुजुर्ग अंकल खड़े थे। उनकी हिम्मत भीड़ में जाने की नहीं हो रही थी। सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ पानी से भरा गिलास बुजुर्ग अंकल को देकर दूसरा गिलास पानी लेकर निकला ही था कि उसके पापा के दोस्त पानी के लिए बहार खड़े थे।
सोनू ने तुरंत वह गिलास अपने पापा के दोस्त को देकर और पानी लाने चला गया। इसी तरह वह अपने पापा और मम्मी को भी पानी पिलाया। जब सभी अपने-अपने घर जाने के लिए मैरेज हाल के गेट से बाहर मिले तो सोनू ने देखा की बुजुर्ग अंकल उसके पापा के दोस्त के पिता थे। उन्होंने सोनू को देखकर कहा, “बेटे तुम्हें संस्कार और सभ्यता की अच्छी पहचान हैं।
कहानी से नैतिक सीख:
बड़ों का आदर और सम्मान करना हमारे अंदर की सभ्यता से परिचय करवाता हैं।