बच्चों को कहानी सुनाने प्रमुख उद्देश्य बच्चे का स्क्रीन टाइम कम करना होता हैं। लेकिन, कहानी छोटी मनोरजंक प्रेरणा से भरपूर होनी चाहिए। इसके अलाव कहानी से मिलने वाली सीख जरूर होना चाहिए। जबकि, कहानी बच्चों के अंदर डर और भय पैदा करने वाली नहीं होनी चाहिए। ठीक इन्ही उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए हम कहानी सुनाने का प्रयास करते हैं। आज की कहानी निम्न प्रकार से लिखित हैं:
1. ईमानदार लड़का:

रोहन नाम का एक लड़का था। जिसकी उम्र लगभग सोलह साल थी। उसके घर में उसकी माँ और एक बहन रहती थी। रोहन अपने घर का खर्च चलाने के लिए गाँव-गाँव में जाकर खिलौने और स्टेशनरी के सामान बेचता था। एक दिन रोहन सामान बेचने किसी गाँव में जा रहा था। बीच रास्ते में उसे कुछ बच्चे दिखाई दिए, जोकि स्कूल जा रहे थे। रोहन ने सोचा क्यों न बच्चों को खिलौने और स्टेशनरी दिखाए।
रोहन उन बच्चों को रोककर उन्हें सामान दिखाने लगा। उन्ही बच्चों में रवि नाम का एक बच्चा था। उसने रोहन से पूछा, “मेरी और तुम्हारी उम्र लगभग सामान हैं, फिर तुम स्कूल क्यों नहीं जाते हो। रोहन ने रवि को सारी बात बता दी। रवि ने कहा, “तुम्हें एक बार हमारे गाँव के सरपंच जी से मिलना चाहिए वे बहुत नेक इंसान हैं। वे जरूर तुम्हें कोई रास्ता बताएंगे।
रोहन रवि के गाँव में ही जा रहा था। गाँव पहुंचकर उसकी मुलाकात उस गाँव के सरपंच से हुई। रोहन ने अपनी सारी कहानी सरपंच जी से बता दी। सरपंच जी ने कहा, “तुम प्रतिदिन कितने पैसे कमा लेते हो।” रोहन ने कहा, “यही कोई सौ रुपये के आसपास।” सरपंच जी ने कहा, “क्या तुम मेरे खेत की रखवाली करोगे मैं तुम्हें दो सौ रुपये दूंगा। रवि खेत की रखवाली करने के लिए तैयार हो गया।
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उसी रात खेत में कुछ चोर आए। वे खेत में लगे सब्जियां चुराने लगे। रोहन डंडा लेकर खेत की तरफ गया। उसने देखा कि कुछ लोग सब्जियां चोरी कर रहे थे। रोहन ने कड़क आवाज में पूछा कौन हो तुम? सब्जियां क्यों चोरी कर रहे हो। वे लोग रोहन को समझाते हुए कहा, तुम्हारे पहले जो व्यक्ति खेत की रखवाली करता था उसे हम लोग कुछ पैसे देते थे। तुम भी अपने हिस्से का पैसा ले लिया करो।
रोहन ने कहा, मैं किसी भी प्रकार का घुस नहीं लेता। तुम्हारे लिए अच्छा यही होगा कि सारी सब्जियां यही छोड़कर चले जाओ नहीं तो मैं तुम्हें मार-मार कर लहलुहान कर दूंगा। उसकी कड़क आवाज सुनकर चोर सब्जियां छोड़कर वहाँ से चले गए। अगले दिन रोहन ने सरपंच जी को रात की सारी घटना बता दी। सरपंच जी ने रोहन की बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया और उसे कुछ पैसे और भी देना शुरू कर दिया।
नैतिक सीख:
ईमानदारी व्यक्ति को उचाइयों के शिखर पर ले जाती हैं।
2. गिरकर उठना सीखो:

रमेश अपनी माँ के साथ एक झोपड़ी में रहता था। उसका सहारा देने वाला और कोई नहीं था। उसकी माँ उसे हमेशा बहादुर लोगों की कहानी सुनाया करती थी। जिसे सुनकर रमेश का आत्मविश्वास बढ़ जाता था। एक दिन मौसम खराब था। रमेश और उसकी माँ झोपड़ी में बैठे हुए थे। तभी अचानक तेज तूफान, गरज और चमक के साथ बारिश होने लगी। तूफान बहुत तेज हो चुका था। जिसकी वजह से पेड़ पौधे गिरने लगे।
तूफान अपने साथ रमेश के घर का छप्पर भी उड़ा ले गया। रमेश और उसकी माँ कई घंटों घर के एक कोने में भीगते हुए बैठे रहे। जब बारिश और तूफान खत्म हो गया तो दोनों बाहर आकर अपने घर को देखे और बहुत दुखी हुए। तभी रमेश ने अपनी माँ से पूछा, “माँ आप अक्सर कहती हो जो भी होता हैं अच्छे के लिए होता हैं। आज तूफान से हमारा घर टूट गया, इसमे क्या अच्छा हैं।
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उसकी माँ बहुत दुखी थी, लेकिन वह साहसी थी। उसने अपने बच्चे से कहा, “बेटा जब भी पेड़ से पत्ते टूटकर गिरते हैं तो वहाँ पर नए पत्ते जरूर आते हैं।” इसलिए हमें विश्वास रखना चाहिए कि इसमें भी कुछ न कुछ अच्छा जरुर होगा। अगले दिन उस गाँव के मुखिया तूफान से नुकसान हुए घरों का पाता लगाने आए।
उन्होंने रमेश के घर की तरह कई घर की लिस्ट बनाकर अपने जिलाधिकारी तक पहुँचा दिया। जिलाधिकारी अगले दिन उस गाँव का निरीक्षण करने के लिए आए। उन्होंने लोगों की हालत देख पक्के मकान बनवाने का आदेश दे दिया। कुछ ही दिन में रमेश का पक्का मकान बनकर तैयार हो गया।
एक दिन उसकी माँ ने कहा, “बेटा देखा मैंने कहा था, जो भी होता हैं अच्छे के लिए होता हैं।” अगर आज हमारा घर नहीं टूटा होता तो हम पक्के मकान कभी नहीं बना पाते। इसलिए बेटा, हमें किसी भी परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए। हमें धैर्य और संयम बनाकर रखना चाहिए। इसके अलावा हमें एक बात पर हमेशा विश्वास रखना चाहिए कि आज दुख हैं, तो कल सुख जरूर आएगा। बशर्ते आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
नैतिक सीख:
किसी भी परिस्थिति में अपने धैर्य को कभी नहीं खोना चाहिए।
3. शिक्षा से बढ़कर कोई धन नहीं:

सुरेश के पिता साइकिल का पंचर बनाने का काम किया करते थे। सुरेश कभी-कभी अपने पिता की दुकान पर जाया करता था। दुकान पर बैठे-बैठे उसके पिता उसे व्यवहारिक ज्ञान दिया करते थे। जिससे उसकी अच्छे-बुरे में पहचान करने की समझ विकसित होती थी। इसके साथ-साथ वह लोगों की बोली भाषा और उनके रहन-सहन को भी सीखता था। सुरेश बहुत ही होनहार बच्चा था। वह किसी भी चीज को एक बार में ही सीख जाता था।
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अपने पिता के साथ रहते हुए उसने साइकिल पंचर बनाना भी सीख लिया था। एक दिन उसके पिता की तबीयत खराब हो गई। जिसके कारण वे दुकान पर नहीं जा सके। सुरेश शाम को जब स्कूल से घर आया तो उसने देखा कि उसके पिता की तबीयत ठीक नहीं थी। उसने सोचा क्यों न मैं ही जाकर दुकान खोल देता हूँ। वह अपनी दुकान खोलकर बैठा था। तभी एक व्यक्ति सुरेश के पास आया।
उसने कहा, “मेरी साइकिल में पंचर लगा दो, सुरेश उसकी साइकिल ठीक करने लगा।” बातों-बातों में उस व्यक्ति ने सुरेश से पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि वह कौन सा धन हैं जिसे कोई चुरा न सके।” सुरेश ने कुछ देर सोचकर कहा, “भैय्या मुझे नहीं पता, कृपया आप ही बता दो। उस व्यक्ति ने सुरेश से कहा, “सुरेश शिक्षा वह धन हैं, जिसे कोई चाहकर भी नहीं चुरा सकता।”
उस दिन से सुरेश शिक्षा की तरफ और अधिक मेहनत करने लगा। वह अपने मन में एक ही बात बार-बार मनन करता रहता था कि मेरे पास आगे बढ़ने का एक मात्र साधन शिक्षा हैं। उसे लगने लगा था कि अगर हमें अपने घर के हालत को ठीक करना हैं तो मुझे शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा ग्रहण करना पड़ेगा।
नैतिक सीख:
शिक्षा वह चाबी हैं जिससे जीवन के हर दरवाजे खोले जा सकते हैं।