कुछ समय पहले की बात हैं, अलीपुर नामक गाँव में हरिया नाम का एक अहीर रहता था। वह बहुत-सीधा, शांत और नेक इंसान था। जिसके कारण लोग उसकी बड़ाई करते थे। हरिया के पास लगभग दस गाय और भैंस थी। उसे अपने सभी जानवरों से बहुत लगाव था। प्रतिदिन सुबह शाम उसके घर पर दूध लेने वालों की भीड़ लगी रहती थी। क्योंकि, वह दूध में पानी नहीं मिलाता था।
धीरे-धीरे उसके ग्राहक बढ़ने लगे। अब ग्राहक उसके घर पर समय से पहले आकर अपने डिब्बों को लाइन में लगाकर बैठ जाते थे। क्योंकि, कभी-कभी अधिक मांग होने के कारण लोग बिना दूध लिए ही वापस लौट जाते थे। एक बार दीपावली से एक दिन पहले उसके दूध की इतनी ज्यादा मांग बढ़ गई कि उसका दूध, चंद मिनटों में ही खत्म हो गया।

दूध की मांग अधिक देख, वह अगले दिन एक और भैंस लेने हरियाणा चला गया। हरिया भैंस खरीद कर वापस अपने घर आ रहा था। उसने सोचा क्यों न हम जंगल के रास्ते निकल चले जिससे घर जल्दी पहुँच जाए। उसी जंगल में उसकी मुलाकात एक लट्ठबाज बिशनदास से हुई। वह अपने पास हमेशा एक लाठी रखता था। इसलिए, लोग उसे लट्ठबाज कहते थे।
लट्ठबाज हरिया से कहा- “अरे! ओ दूधवाले! रुको, कहाँ जा रहे हो? हरिया कहा- भैया, आपको कैसे पता मैं दूधवाला हूँ? लट्ठबाज उससे कहा, मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश मत करो। ये बताओ तुम यह भैंस कहाँ से चोरी करके ला रहे हो? हरिया बहुत ही नम्र स्वभाव से उससे बोला- भैया मैं इस भैंस को हरियाणा से खरीद कर ला रहा हूँ। अगर आप चाहो तो मैंने जहाँ से खरीदा हैं, उससे आप पूछ सकते हो।
लट्ठबाज फिर कहता हैं- “तुम मुझे मूर्ख नहीं बना सकते, मैं इंसान को देखकर पहचान लेता हूँ। अगर तुम इस भैंस को खरीदकर ला रहे होते तो जंगल के रास्ते नहीं आते। तुम मेन रोड से होकर जाते। हरिया ने कहा- ” भैया अंधेरा होने से पहले जल्दी घर पहुँचने के लिए मैंने जंगल का रास्ता चुना था।
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लट्ठबाज ने उससे कहा, अब मुझे तुम्हारी सफाई नहीं चाहिए। “लाओ भैंस मुझे दे दो नहीं तो मैं तुम्हारी ऐसी हालत करूंगा कि तुम अपने आप को नहीं पहचान पाओगे। उसकी बातों को सुन हरिया डर गया। उसने अपनी भैंस की रस्सी उसको पकड़ा दिया। लट्ठबाज फिर से उससे कहता हैं, तुम तो बहुत बड़े डरपोक हो, एक ही बार कहने पर ही बहुत आसानी से भैंस दे दी।
हरिया ने कहा, “भैया, आपकी इस लाठी से मार खाने से अच्छा हैं कि भैंस ही दे दूँ।” लट्ठबाज ने कहा, “चलो अब यहाँ से चले जाओ नहीं तो यह लाठी तुम्हारे ऊपर गिर ही जाएगी। हरिया ने थोड़ा सोच कर लट्ठबाज से कहा, “भैया! मैंने अपनी भैंस आपको दे दी हैं। मेरी पत्नी ने कहा था कि ‘खाली हाथ मत आना’, अगर आपकी यह लाठी मिल जाए तो मुझ पर बहुत बड़ा एहसान होगा।

लट्ठबाज ने बिना सोचे समझे लाठी दे दी। हरिया तुरंत लपककर लाठी लेकर कहता हैं, “मेरी भैंस मुझे वापस कर दो, नहीं तो इसी लाठी से तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा। लट्ठबाज, हरिया की कडक आवाज सुनकर समझ गया कि जिस लाठी के बल पर उसने उसकी भैंस ली थी। वह अब उसके पास नहीं हैं। उसने चुपचाप भैंस की रस्सी हरिया को पकड़ दी। और कहने लगा कि, “मैंने तुम्हारी भैंस तुम्हें लौटा दी, अब तुम भी मेरी लाठी वापस लौटा दो।”
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हरिया समझ गया था कि अगर इस बार इसके हाथ में लाठी गई तो भैंस मेरे हाथ से निकल जाएगी। उसने फिर से कडक आवाज में उसे जबाब दिया- “कौन सी लाठी? कैसी लाठी, भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो मैं इस लाठी से मार-मार कर तुम्हारा बुरा हाल कर दूंगा।” इस तरह से लट्ठबाज घबरा जाता हैं। और वहाँ से भाग जाता हैं और हरिया भैंस लेकर अपने घर आ जाता हैं। तभी से यह कहा जाता हैं कि “जिसकी लाठी उसकी भैंस”। इस मुहावरे का अर्थ – “शक्तिशाली अपने बल के सहारे कुछ भी हासिल कर सकता हैं”।