कादीपुर गाँव में मुनिराज नाम का एक प्रचंड बुद्धिमान ब्राम्हण रहता था। उसके घर में चार बच्चे और उसकी पत्नी रहती थी। पंडित मुनिराज सुबह-सुबह अपने जजमानी में पूजा-पाठ कराने निकल जाता था। जबकि उसकी पत्नी पूरे दिन घर के काम और बच्चों के पीछे ही लगी रहती थी। बच्चों और घर परिवार को संभालना उसकी पत्नी के लिए मुश्किल सा होता जा रहा था। अब वह परेशान रहने लगी थी।
एक दिन पंडित मुनिराज रात्री का भोजन कर रहे थे। उसकी पत्नी ने कहा, “पंडित जी अब घर के काम और बच्चों को संभालना मेरे लिए मुश्किल हो रहा हैं। आए दिन मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती। आप अपने शास्त्र विद्या से कुछ ऐसा विधान बनाओ, जिससे घर का काम आसानी से हो जाए। अगर हम किसी काम करने वाली नौकरनी को रखेंगे तो हमें उसके पीछे-पीछे ही रहना पड़ेगा। जिसका हमें कोई फ़ायदा नहीं होगा।
पंडित मुनिराज को पंडिताइन की बात खूब पसंद आई। उसी दिन पंडित अपने घर रखे शास्त्र विद्या का अध्ययन करने लगे। उन्हें विचार आया की वे एक जिन्न प्रकट कर सकते हैं। जोकि घर का पूरा कार्य कर सकता हैं। इसके लिए हमें उसे कुछ देना भी नहीं पड़ेगा। पंडितजी अपने घर पर पूरे विधि-विधान के साथ यज्ञ करना शुरू कर दिए। अचानक यज्ञ में से एक जिन्न प्रकट हुआ। उसने पंडितजी और उनकी पत्नी को प्राणम करके उनकी ख़्वाहिशयें पूछी।
पंडित जी जिन्न को अपनी सारी ख़्वाहिश बता दी। जिन्न ने कहा, लेकिन मेरी भी एक शर्त हैं, जिसे आपको मानना पड़ेगा। पंडित जी ने कहा, जी बिल्कुल बताइए। जिन्न ने कहा, “अगर मुझे काम नहीं मिला तो मैं तुम्हें मारकर खा जाऊंगा।” पंडित जी ने कहा, “ठीक हैं हमारे घर में ऐसे ही बहुत काम हैं।” जिन्न ने कहा हुक्म करो मेरे आका, पंडित जी ने घर पर पड़े जूठे बर्तन धुलने और झाड़ू पोंछा करने के लिए कहा।
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जिन्न कुछ ही क्षण में घर का सारा काम खत्म करके पंडित जी के पास आ गया। उसने कहा, “हुक्म करो मेरे आका” पंडित जी उसके काम को देख अचंभित हो उठे। उन्हे विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई इतनी जल्दी कैसे काम कर सकता हैं। पंडित जी ने उसे अपने खेत में ले गए और उसे की जुताई करने के लिए कहा। जिन्न ने कुछ ही क्षण में खेत का भी सारा काम खत्म कर दिया।
अब पंडित मुनिराज को लगने लगा था कि उसे जिन्न मारकर खा जाएगा। क्योंकि उसके पास कोई काम कराने लायक नहीं बचा था। लेकिन पंडित बहुत होशियार और बुद्धिमान था। उसने जिन्न को एक मटका दिया जिसमें छेद किया हुआ था। पंडित ने कहा, “इस मटके में नदी से पानी भरकर लाओ। जिन्न बहुत होशियार था। उसने छेद को अपने हाथों से बंदकरके मटके में पानी भर लाया।

पंडित को कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। जिन्न ने कहा, “मेरे आका मुझे हुक्म करो नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा।” पंडित को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि जिन्न को कौन सा काम दे। उसने कहा, अब मेरे पास कोई काम नहीं हैं। आप मुझे खा सकते हो। जिन्न बहुत खुश हुआ। उसने पंडित को खाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि पंडित ने कहा, “एक बार मैं अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ फिर आप मुझे खा लेना। क्योंकि मैंने अपनी पत्नी के कहने पर ही तुम्हें बुलाया था।
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जिन्न ने कहा जल्दी जाओ, मैं तुम्हारा इंतजार बाहर कर रहा हूँ। पंडित मुनिराज घर के अंदर जाकर सारी कहानी अपनी पत्नी से बता दी। उसकी पत्नी ने कहा- घबराओ मत, मैं आपको एक उपाय बताती हूँ। उसने पंडित जी के कान में पूरी बात बता दी। पंडित जी घर से बाहर आए उन्होंने जिन्न से कहा, मैं तुम्हें एक काम बता रहा हूँ उसको खत्म करने के बाद तुम मुझे खा सकते हो।
पंडित जी ने एक मोटा और लंबा बाँस घर के सामने गाड़ दिया। जिन्न को आदेश दिया, इस बाँस पर तुम्हें चढ़ना उतरना हैं जब तक कि मैं मना नहीं करूँ। जिन्न अब उसी बाँस पर पूरे दिन चढ़ता उतरता रहता था। यह काम कभी खत्म नहीं होता था। इस तरह से पंडित जी को जब भी कोई काम करवाना होता था। तो वे उसे रोककर दूसरे काम को करने के लिए कह देते। काम खत्म होने पर फिर से उसी बाँस पर चढ़ने-उतरने के लिए कहते थे।
इस तरह से पंडिताइन की वजह से पंडित जी की जान बच गई और उन्हें हमेशा के लिए एक नौकर मिल गया। जो किसी भी काम को पल भर में कर देता था।