बच्चों को हिन्दी स्टोरी सुनाने का प्रमुख कारण भाषा के विकास के साथ-साथ उस कहानी से मिलने वाली सीख होती हैं। ठीक इसी प्रकार से देखें तो यह कहा जा सकता हैं कि कहानियों से कई तरह की सीख मिलती हैं। जो जाने अनजाने में हमारे सोच को बदलने में सहायता प्रदान करते हैं। कहानीज़ोन के इस लेख में आज हम प्रेरणा से भरपूर hindi stories नैतिक कहानियाँ सुनाने जा रहे हैं। जोकि निम्न प्रकार से हैं:
1. बुद्धिमान बच्चा:

उमेश, निडर और साहसी बच्चा था। उसकी उम्र लगभग बारह साल थी। उसे कभी किसी चीज से डर नहीं लगता था। एक दिन शाम को उमेश की दादी की तबीयत खराब हो गई। उसके मम्मी पापा दादी को लेकर हास्पिटल चले गए। उमेश घर में अकेला था। रात हो चुकी थी, उमेश के पापा ने फोन पर कहा कि वह खाना खा ले। वे लोग हास्पिटल से सुबह आएंगे।
उमेश खाना खा कर सोने के लिए अपने विस्तार पर लेटा था। उसे नींद नहीं आ रही थी, तभी उसे लगा कि छत पर कोई हैं। वह जानता था कि छत से घर में घुसना कोई मुस्किल काम नहीं हैं। उसने अपना दिमाग लगाया। वह किचन में गया और उसने एक प्लेट में मिर्च पाउडर भरकर छत से आने वाली सीढ़ी के नीचे छिप गया। फिर क्या, जैसे चोर कमरे के अंदर पहुचा उसने मिर्च पाउडर को उसकी आँखों में डाल दिया।
जिससे चोर कुछ समझ नहीं सका। वे झटपटाने लगा, वीर ने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया। और तो और वीर ने एक ताला लेकर कमरे को बाहर से बंद कर दिया जिससे चोर भाग न सके।
नैतिक शिक्षा:
डर नाम की कोई चीज नहीं होती। इसलिए हमें आगे बढ़कर बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए।
2. जैसे को तैसा:

एक बार की बात हैं, किसी गाँव में मलमल राम नाम का एक सेठ रहता था। वह व्यापार के सिलसिले से कभी-कभी शहर जाया करता था। एक बार सेठ मलमल राम अपना काम खत्म करके शहर से वापस आ रहा था। तभी अचानक तेज तूफान के साथ बारिश शुरू हो गई। सेठ को वही पास में एक सराय दिखाई दिया। वहाँ जाकर सेठ ने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगा।
तभी अंदर से चौकीदार की आवाज आई। इस दरवाजे की चाबी खो गई हैं। यह दरवाजा सिर्फ चांदी के सिक्के से खुलता हैं। सेठ ने दरवाजे के नीचे से एक चांदी का सिक्का डाल दिया। चौकीदार ने दरवाजा खोला सेठ को अंदर आने के लिए कहा। अंदर आते ही व्यापारी ने चौकीदार से कहा, “मुझे जोरों की भूख लगी है। तुम जल्दी से मेरे लिए खाना ला दो।
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चौकीदार खाना लेने चला गया। व्यापारी ने दरवाजे को बंदकर लिया। जब चौकीदार खाना लेकर आया तो उसने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया व्यापारी ने अंदर से आवाज दी, यह दरवाजा चांदी के सिक्के के बिना नहीं खुलता। उसकी बातों को सुनकर चौकीदार लज्जित होगा। उसे मजबूर होकर चांदी के सिक्के वापस करने पड़ें।
नैतिक शिक्षा:
जैसे को तैसा कभी न कभी मिल जाता हैं।
3. लक्ष्य पर नजर:

एक बार गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के साथ जंगल में घूम रहे थे। उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने की सोची। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा तुम लोग पेड़ पर बैठी इस चिड़िया को देख रहे हो न। तुम्हें इस चिड़िया पर निशाना लगाना हैं। लेकिन जब तक मैं नहीं कहूँगा कोई बाण नहीं चलाएगा। गुरु द्रोणाचार्य ने सभी को चिड़िया पर निशान लगाने के लिए कहा।
गुरु जी सभी शिष्य के पीछे एक-एक करके गए और पूछें। तुम्हें पेड़ पर क्या दिख रहा हैं? किसी ने कहा, “चिड़िया, फल, पत्ते आदि। इसी प्रकार से सभी का जबाब रहा। जब गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन के पास पहुँचे तो उनसे भी यही प्रश्न पूछा। अर्जुन ने कहा, “गुरुदेव! मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख ही आँख दिख रही हैं। अर्जन का उत्तर पाकर गुरु द्रोणाचार्य बहुत खुश हुए। उस दिन से उन्हें अपना परम शिष्य मानने लगे।
नैतिक शिक्षा:
हमें अपने लक्ष्य पर निगाह बनाए रखना चाहिए। किसी भी भटकाने वाली चीजों की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए।
4. लालच का फल:

एक पेड़ पर दो कौवे रहते थे, दोनों भाई-भाई थे। एक दिन दोनों को जोरों की भूख लगी। बडे भाई ने कहा, “छोटू तुम घोंसले और अंडे का ध्यान रखना। मैं कुछ खाने का जतन करता हूँ।” कौवा उड़ते-उड़ते किसी घर के आँगन से एक रोटी ले आया। जिसे लेकर वह डाल पर बैठ गया। कौवा रोटी के दो भाग कर रहा था कि एक हिस्से में आधे से ज्यादा रोटी चली गई। जिसे वह खुद खाने के लिए ले लिया। दूसरा हिस्सा अपने छोटे भाई को दे दिया।
बडे भाई को रोटी का ज्यादा हिस्सा लिए देख छोटे भाई ने कहा, ”तुम रोटी का हिस्सा ज्यादा क्यों लिए हो? उसने कहा, “मैं बहुत मुश्किल से यह रोटी लाया हूँ। इसके अलावा मैं तुमसे बड़ा हूँ। इसलिए बड़े वाले हिस्से पर मेरा अधिकार हैं। इस तरह दोनों में बहस होने लगी। तभी नीचे से एक लोमड़ी दोनों को देख पूछी, अरे भाई तुम दोनों लोग लडाई क्यों कर रहे हो।
कौवे ने पूरी कहानी सुन दी। लोमड़ी ने कहा, लाओ मैं बराबर हिस्से का बँटवारा कर देती हूँ। लोमड़ी ने छोटे वाले हिस्से को यह कहते हुए खा लिया की यही हिस्सा लडाई की जड़ हैं। इसलिए इसे पहले खत्म करो। उसने फिर से रोटी के छोटे-बडे दो हिस्से कर दिए। इस बार बड़ा हिस्सा कौवे के छोटे भाई को दे दिया। जिससे बडे भाई को जलन होने लगी। उसने फिर से कहा ऐसा बँटवारा मैं नहीं मानूँगा।
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लोमड़ी ने फिर से छोटे वाले हिस्से को खा लिया, बाकी के बच्चे हिस्से में दो भाग कर दिया। लेकिन कौवे को फिर से सहमति नहीं हुई इस बार लोमड़ी ने पूरी रोटी ही खा गई। बोली भैया लो मैंने झगड़े की जड़ ही खत्म कर दिया और लोमड़ी वहाँ से चली गई। बाद में दोनों को ऐहसास हुआ की हमें आपस में झगड़ने से सामने आया हुआ भोजन भी चला गया।
नैतिक सीख:
सबसे बड़ा फल संतोष का होता हैं। जिसके पास सहनशीलता होती हैं वह हमेशा प्रसन्न रहता हैं।
5. हरी की सूझबुझ:

हरी एक गड़ेरिया था। वह गाँव भर की भेड़ों को चराने के लिए ले जाता था। जिसके बदले में गाँव वाले उसे कुछ खाने-पीने को दे देते थे। उसके माता-पिता बहुत गरीब थे, जिसके कारण वह स्कूल नहीं जाता था। लेकिन वह अधिक बुद्धिमान था। जिससे लोग उसे प्यार करते थे। एक दिन की बात हैं। हरी पहाड़ी की तलहटी में भेड़ें चरा रहा था। अचानक जोर की आंधी के साथ बारिश होने लगी।
हरी ने सभी भेड़ों को इकट्ठा करके एक गुफा में छिपा दिया। तभी उसने देखा कि कुछ भेंड कम हैं। उसने फुर्ती से गुफे को बडे पत्थर से ढककर और भेड़ों को खोजने निकल गया। आंधी बहुत तेज थी वर्षा भी हो रही थी। हरी ने देखा की पहाड़ी से जाने वाली रेलवे लाइन पर दो बडे-बडे पत्थर रखे हुए हैं। उसने सोचा अगर रेलगाड़ी इससे टकरा जाएगी तो बहुत बड़ी दुर्घटना हो जाएगी। वह उस पत्थर को हटाने के लिए जोर मसक्कत करने लगा।
लेकिन बहुत कोशिशों के बाऊजूद वह उस पत्थर को हटा नहीं सका। तभी उसे रेलगाड़ी की हार्न सुनाई दी। वह लाल रंग का अपना गमछा उतारकर रेलगाड़ी की तरफ भागने लगा। रेलगाड़ी तेज स्पीड से आ रही थी हरी अपनी जान की बिना परवाह किए हुए। सामने खड़े होकर लाल रंग का गमछा दिखाता रहा।
रेलगाड़ी के ड्राइवर ने लाल रंग के गमछे को देखकर गाड़ी रोक दी। नीचे उतर कर देखा तो रेलवे लाइन पर बड़ा सा पत्थर रखा हुआ था। दुर्घटना से बचाने के लिए हरी को ड्राइवर ने प्रोत्साहित किया और उसे रेलवे में काम करने का मौका भी मिल गया। इस तरह हरी की जिम्मेदार और लगन उसे नए मुकाम तक ले गई।
नैतिक शिक्षा:
बुद्धिमानी और सूझबुझ से किया गया काम व्यक्ति को उचाइयों पर ले जाती हैं।