1. मेहनत का फल – Fruits of Hard Work:
कुछ समय पहले की बात हैं। मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था तो पहली बार अपने घर से कुछ दूर गणित वाले भैया के पास ट्यूशन पढ़ने जाना शुरू ही किया था। मुझे उनके पास आते-जाते देख मोहल्ले की आंटी, अंकल, बड़े भैया और दीदी ने कहा- “मुकेश क्या तुम पढ़ाई में कमजोर हो जो ट्यूशन पढ़ने जाते हो?”
मैं बिना कोई उत्तर दिए घर लौटा और माँ की गोद में सिर रखकर रोया कि सब मुझे पढ़ाई में कमजोर कह रहे हैं। माँ ने बहुत समझाया तो मैं फिर सबकी नजरों से छुप-छुप कर गणित पढ़ने जाने लगा। उस समय ट्यूशन में जाकर पढ़ना शर्म की बात मानी जाती थी। आज ट्यूशन जाना शर्म की बात नहीं गौरव की बात समझी जाने लगी है।
आजकल ट्यूशन क्लासेस का चलन बढ़ता जा रहा है। माता-पिता और छात्र की यह सोच बनती जा रही है कि बिना ट्यूशन के टॉप पर पहुंचा नहीं जा सकता। लेकिन, हकीकत यही है कि कितनी भी ट्यूशन क्लासेस जॉइन की जाए। लेकिन, बिना सेल्फ स्टडी या मेहनत के अच्छे परिणाम प्राप्त कर पाना आसान नहीं है।
इससे ज्यादा महत्व इस बात को दिया जाना चाहिए की पढ़ाई का तरीका क्या है। पढ़ाई के लिए सही तरीका अपनाया जाना चाहिए। अगर सही तरीके से यदि अध्ययन किया जाए तो परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक ही होगा। स्वयं अध्ययन करने का क्रमबद्ध तरीका क्या होना चाहिए? इस पर विचार करें।
पढ़ाई विद्यार्थी जीवन का ऐसा हिस्सा हैं, जहाँ भविष्य की तैयारी होती हैं। इसलिए, इसे सही तरीके से पूरा करना हर विद्यार्थी की पहली जिम्मेदारी हैं। और यह तभी संभव हैं, जब पूरे वर्ष सही तरीके से पढ़ाई की जाए। सफलता-असफलता हमारे द्वारा की गई मेहनत का फल हैं।
जिनका कर्म में विश्वास होता हैं वे फल की चिंता नहीं करते। ‘मेहनत के बिना सपने पूरे नहीं होते।’ श्रम के बिना कुछ हासिल नहीं होता। सोचो, बीज को भी अंकुरित करने और वृक्ष बनाने के लिए हमें नियमित खाद-पानी देना पड़ता हैं। इसके बिना बीज मर जाएगा। सफलता विश्वास से शुरू होती हैं। विश्वास पर ही खत्म होती हैं।
कहानी से सीख:
खुद के ऊपर अटूट विश्वास, मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता हैं।
2. स्वच्छता का महत्त्व – Importance of cleanliness:

एक बार की बात हैं। किसी नगर में एक राजा रहता था। राजा अपने राज्य में साफ-सफाई के लिए जाना जाता था। उसे गंदगी बिल्कुल पसंद नहीं थी। एक बार वह कुछ महीनों के लिए किसी दूसरे राज्य को चला गया। जब वह वापस लौटा तो एक दिन अपना भेष बदलकर राज्य में घूमने निकल पड़ा। वह देखता हैं कि उसके राज्य में जगह-जगह गंदगी फैली हुई हैं।
वह दरबार वापस आकार अपने मंत्रियों को फटकार लगाने लगा। एक मंत्री ने राजा को सलाह देते हुए कहा- “महाराज! मेरा मानना हैं की राज्य की प्रतिदिन सफाई होती हैं। लेकिन, प्रजा के लोग फिर से गंदगी फैला देते हैं। राज्य को स्वच्छ रखने के लिए प्रजा का सहयोग बहुत जरूरी हैं।
इसलिए, महाराज! अगर आप एक बार सभा बुलाकर लोगों को सफाई के महत्त्व के बारें में बताएंगे तो उसका असर लोगों पर अधिक पड़ेगा। जिससे गंदगी की रोकथाम भी की जा सकती हैं। अगले दिन राजा ने एक सभा बुलाई और स्वच्छता के बारें में समझाते हुए कहा- स्वच्छता हमारे जीवने के लिए बहुत अनिवार्य हैं। जो हमें अनेकों बीमारियों से बचाता हैं।
इसलिए, कूड़ा कूड़ेदान में ही फेंके। राजा ने राज्य में कुछ और सफाई कर्मी की नियुक्त कर दिया। अब लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने लगे और राज्य में कही भी गंदगी नहीं होती थी।
कहानी से सीख:
अपने आसपास की जगह को स्वच्छ रखना हमारा परम कर्तव्य हैं।
3. पेड़-पौधे और मनुष्य में समानता:

एक बार नामू को उनकी माँ ने काढ़े के लिए पलास की छाल लाने के लिए जंगल भेजा। जंगल में बहुत खोजने के बाद पलास का पेड़ मिल गया। वह अपने कुल्हाड़ी से पेड़ की छाल उतार लाया। घर आते समय उसके मन में कई तरह के सवाल चल रहे थे। घर पहुंचकर नामू अपने माँ को छाल को देकर घर के सामने लगे नीम के पेड़ के नीचे खाट पर बैठकर कुछ सोचने लगा।
कुछ समय बाद उसकी माँ उसे खाने के लिए बुलाती हैं। अचानक नामू के पैर पर खून बहता देखकर उसकी माँ आश्चर्य से बोली- “यह तुम्हारे पैर पर खून कैसा? उसका पैजमा ऊपर उठाते हुए देखा की उसके पैर का मांस छिला हुआ था। वह कहती हैं- यह सब कैसे हुआ? “उसने अपनी माँ से कहा- “मैंने अपने पैर की चमड़ी कुल्हाड़ी से छील दी।”
नामू! तू बड़ा मूर्ख हैं। कोई अपने पैर पर कुल्हाड़ी चलाता हैं? तुम्हें पता हैं इस तरह के घाव से तुम्हारे पैर में सड़न पैदा हो सकती हैं। जिसके कारण तुम्हारा पैर कटवाना भी पड़ सकता हैं। जिससे तुम लंगड़े हो जाओगे। नामू ने अपनी माँ से कहा आपके कहने पर मैंने पेड़ की छाल उतरकर लाया। फिर तो उन्हें भी दर्द हुआ होगा। क्या पता मेरे छाल उतारने की वजह से वह पेड़ सूख जाए और उसे काटना पड़े।
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“पेड़ों में और जीव-जन्तुओ में भी मनुष्य जैसा जीव होता हैं। जिसे चोट लगने पर दर्द होता हैं।” नामू की बातों को सुनकर उसकी माँ रो पड़ी। उसने कहा- ऐसा लग रहा है, तू आगे चलकर महान साधु बनेगा। बड़ा होने पर यही नामू “प्रसिद्ध भक्त नामदेव” के नाम से जाना गया।
कहानी से सीख:
मनुष्य की तरह ही पेड़-पौधे, और जीव जन्तुओं को क्षति पहुँचाने पर दर्द होता हैं।
4. लालच का फल – Lalach ka fal:

एक जंगल में चार चोर घोड़े पर सवार होकर घूम रहे थे। तभी उनको कोई उनकी तरफ भागता हुआ दिखाई दिया, जैसे ही वह पास आया चोरों ने देखा कि वह एक साधु महात्मा थे। बाल और दाढ़ी बिखरे हुए थे। वे हाँफ रहे थे। चोरों ने पूछा- “क्या बात है बाबा, आप हाँफ क्यों रहे हैं?”
महात्मा बोले- “उस तरफ मत जाना। आगे मौत खड़ी है।” इतना कहकर महात्मा वहाँ से चले गए। चोरों ने सोचा चलो देखा जाए। फिर वे चारों उस तरफ चल दिए, जहाँ से वह महात्मा आए थे। आगे जाकर देखा कि जंगल में एक झोपड़ी बनी हुई हैं। वे चारों घोड़े से उतरकर झोपड़ी के अंदर गए तो देखा कि झोपड़ी में सोने के टुकड़े बिखरे हुए थे।
उन्होंने सोने के टुकड़ों को उठाया और एक पोटली बना ली और वापस लौटने लगे। रास्ते में उन्हें भूख लगी। एक चोर बोला- “तुम दो आदमी बाजार से खाना ले आओ, हम दोनों रखवाली करेंगे, खाना खाकर बंटवारा कर लेंगे।” दोनों चोर घोड़ों पर सवार होकर खाना लेने बाजार की तरफ चले गए।
इतना सोना उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। दो चोर, जो रखवाली कर रहे थे। उनके मन में लालच आ गया। पहला चोर अपने चोर साथी से बोला- “इतना सोना जिंदगी में मैंने कभी नहीं देखा। यदि यह हम दोनों को मिल जाए तो जिंदगी में कभी चोरी करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।” दूसरा चोर बोला- “सच कह रहे हो।” पहला चोर- मैंने एक उपाय सोचा है।”
दूसरा चोर- “क्या उपाय सोचा है।” पहला चोर- “हम दोनों झाड़ियों में छुप जाएंगे, जैसे ही वे दोनों खाना लेकर आएंगे, हम उन दोनों को गोली मार देंगे और फिर सोना दोनों का हो जाएगा।” दूसरा चोर- “यह अच्छा उपाय हैं।” उसके बाद दोनों चोर बंदूकें लेकर झाड़ियों में छुप गए।
उधर दोनों चोर एक होटल से खाना लाए। पहले ने बोला-“मैंने कभी इतना सारा सोना नहीं देखा” मेरे दिमाग में एक विचार हैं। हम दोनों यही खाना खा लेते हैं और उन दोनों के लिए जो खाना ले चलेंगे उसमें जहर मिला देंगे। जिससे सारा सोना हम दोनों को मिल जाएगा।
दोनों खाना खाकर घोड़े से झाड़ी की तरफ पहुँचे ही थे कि पहले और दूसरे चोरों ने झाड़ी में छिपकर गोली चला दी। जिससे तीसरे और चौथे चोर की मृत्यु हो गई। उनके मरते ही दोनों झाड़ियों के बाहर आए और खाना लेकर झोपड़ी में जाकर खाने लगे।
दोनों बड़े प्रसन्न हो रहे थे परंतु उन्हें यह नहीं मालूम था कि यह खुशी चंद मिनटों की है। जहर मिला खाना उन दोनों ने खा लिया और वहीं पर दोनों ढेर हो गए। सोना वहीं का वही पड़ा रह गया। चारों चोर की मौत हो गई। अगर वह साधु महात्मा की बात मान लेते तो बच जाते।
कहानी से सीख:
लालच का फल बुरा होता हैं।
5. जल ही जीवन हैं – Jal hi jivan hain:

रोहित पढ़ाई में बहुत होनहार था, उतना ही वह लापरवाह भी था। सबसे ज्यादा वह पानी के प्रयोग में लापरवाही बरतता था। वह पानी को अंधाधुंध बर्बाद करता था। उसे ऐसा करने में मजा आता था। वह अक्सर अपने घर के नल को खुला छोड़ देता था। अपनी साइकिल की धुलाई वह घंटों तक करता रहता था।
जब वह अपने दोस्तों के साथ कही जा रहा होता था तो उसे कोई नल दिखता तो उससे निकलने वाले पानी से खूब खेलता। लेकिन, वह घर जाते समय नल नहीं बंद करता था। उसकी इस आदत के लिए उसके माता-पिता उसे कई बार समझा चुके थे कि पानी बहुत अमूल्य हैं। जिसे हमें बर्बाद नहीं करना चाहिए।
लेकिन, उसे माता-पिता की बातों का कोई असर नहीं पड़ता था। वह फिर भी पानी को बर्बाद किया करता था। एक बार वह अपने पापा के साथ किसी दूसरे शहर को जा रहा था। अचानक बीच रास्ते में लंबा जाम लग गया। उसके पापा ने गाड़ी को दूसरी तरफ मोड लिया, जोकि एक घनी बस्ती के बीच से होकर जाता था।
उस बस्ती में गंदगी देखकर रोहित ने अपना मुँह सिकोड़ लिया। तभी उसका ध्यान वहाँ लगी भीड़ पर गई। उसने देखा की एक नल पर लोग लाइन लगाकर बाल्टियों, मटकों और डिब्बों में पानी भर-भर कर अपने-अपने घरों को ले जा रहे थे। रोहित के पापा को उसे समझाने का सुअवसर मिल गया।
उन्होंने रोहित को समझाते हुए कहा- “बेटा देख रहे हो लोग पानी के लिए कितनी लंबी लाइन लगाए खड़े हुए हैं।” नल से पानी समय -समय पर आता हैं। समय हो जाने पर इन लोगों में से कितने लोग तो खाली मटके लिए वापस अपने-अपने घरों को लौट जाएंगे। अगलें दिन फिर पानी आने का बेसब्री से इंतजार करेंगे।
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अपने पिता की बात सुनकर रोहित चुप सा हो गया। वह वहाँ की दयनीय स्थिति देखकर अब वह पानी की बचत करने लगा। गर्मियों की छुट्टियाँ हुई। उसके दोस्त मिलकर प्लान बनाने लगे कि इस बार क्या किया जाए। रोहित ने बस्ती में देखी समस्या को अपने दोस्तों को बताया।
सभी दोस्तों ने मिलकर कई गाँवों में एक सर्वे किया जहाँ पर पानी नहीं आता। उस गाँव में सभी दोस्तों ने मिलकर नल लगवा दिया। जिससे उन सभी बच्चों की चर्चा अधिक होने लगी। जब स्कूल खुला तो बच्चों की तारीफ प्रिंसिपल तक पहुँच गई। प्रिंसिपल ने बच्चों को बुलाकर अवकाशकाल के समय को व्यर्थ न करने के लिए उन्हें सम्मानित किया।
कहानी से सीख:
जल हैं तो कल हैं!, इसलिए हमें इस प्राकृतिक संसाधन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।