1. बिना बिचारे जो कहे, सो पाछे पछताए:
एक बार की बात हैं। दो किसान एक दूसरे के अच्छे मित्र और पड़ोसी भी थे। एक का नाम रामू और दूसरे का श्यामू था। दोनों प्रतिदिन एक साथ खेत में जाया करते थे। एक दिन रामू और श्यामू में किसी बात पर कहा-सुनी हो गई। जिसके कारण रामू ने श्यामू को बहुत खरा-खोटा सुना दिया।
दोनों आपस में लड़-झगड़ कर अपने-अपने घर चले गए। जब रामू रात को आराम से सारी बात सोचने लगा, तो उसे लगा की उसने श्यामू को बहुत कुछ उल्टा-सीधा बोल दिया। जबकि, श्यामू का कोई दोष नहीं था। अब रामू को अपनी गलती का ऐहसास हुआ और वह बहुत दुखी हो गया।
रामू अगले दिन सुबह उठते ही वह गाँव के एक बुजुर्ग और समझदार व्यक्ति के पास गया। उसने सारी बात उस बुजुर्ग व्यक्ति से बता दी और अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा। उस बुजुर्ग ने रामू को खूब सारे पंख दिए और कहा कि यह गाँव से शहर को जाने वाले रास्ते के बीचों-बीच रख आओ।
रामू ने वैसा ही किया। अब बुजुर्ग ने सारे पंख वापस लाने को कहा। रामू थोड़ा हैरान हुआ पर वह पंख लेने चला गया। परन्तु वे सब पंख अब उड़ चुके थे। जिससे रामू को खाली हाँथ ही वापस आना पड़ा। तब बुजुर्ग ने कहा की ठीक ऐसे ही हमारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता हैं।
हम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हैं, परंतु चाह कर भी वापस नहीं ले सकते। इसलिए हमें बहुत ही सोच समझकर बोलना चाहिए।
नैतिक शिक्षा:
सोच समझकर कहे गए शब्द दुखदाई नहीं होते।
2. स्वार्थी मेंढ़क और सांप:

किसी तालाब में बहुत सारे मेंढ़क रहते थे। उन सब मेंढ़को का मुखिया बहुत ही सज्जन था। लेकिन, उन मेंढ़कों में चमकू मेंढ़क बहुत चालाक था। वह मुखिया मेंढ़क से बहुत जलता था। वह मुखिया मेंढ़क को मार कर स्वयं मुखिया बनना चाहता था। चमकू मेंढ़क मुखिया को अपनी ताकत से नहीं मार सकता था।
मुखिया से सभी मेंढ़क बहुत प्यार करते थे। एक दिन चमकू मेंढ़क घूमता हुआ पास के जंगल में चला गया। तभी एक सांप उस पर झपट पड़ा। सांप को देखकर चमकू घबरा गया। लेकिन, तभी वह सम्भलकर बोला, “अरे भाई! मुझे क्यों मार कर खाते हो? मेरी बात सुनो। मैं तुम्हें ऐसी जगह ले चलता हूँ, जहाँ तुम्हें सैकड़ों मेंढ़क खाने को मिल सकते हैं।”
चमकू की बात सुनकर सांप को लालच आ गया। सांप चमकू के साथ तालाब के पास पहुँचा। चमकू ने सांप से कहा, “देखो! इस तालाब में सैकड़ो मेंढक रहते हैं। मैं तुम्हारे लिए रोज एक मेंढक को अपने साथ लाऊँगा। तुम उस मेंढ़क को मार कर खा जाना।”
सांप ने चमकू की बात मान ली, सांप वहाँ एक पेड़ के नीचे बने बिल में छिप कर बैठ गया। चमकू अगले दिन सुबह एक मेंढ़क के साथ वहाँ आया। तभी सांप ने झपटकर उस मेंढ़क को पकड़ लिया और पलक झपकते ही निगल गया। अगले दिन चमकू फिर एक दूसरे मेंढ़क को साथ लेकर आया।
सांप उस मेंढक पर झपटा और उसे भी निगल गया। एक-एक करके चमकू ने आधे से अधिक मेंढक सांप के शिकार बनवा दिए। एक दिन जब सारे मेंढक समाप्त हो गए तो चमकू ने मुखिया को भी सांप का शिकार बनवा दिया।
जब सारे मेंढक समाप्त हो गए तो सांप चमकू के बेटे को निगल गया चमकू अपने बेटे की मौत से बहुत दुखी हुआ। लेकिन, उस भयंकर सांप के सामने वह कर भी क्या सकता था? एक दिन सांप ने चमकू को ही पकड़ लिया। चमकू ने सांप से कहा, “मैंने तुम्हें इतने मेंढ़कों का शिकार कराया, अब तुम मुझे भी खा जाना चाहते हो। यह तो गलत बात है।”
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“मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। अब तो तुम्हें ही खाकर पेट भरना होगा।” सांप ने कहा। चमकू अपने फैलाये जाल में स्वयं फँस चुका था। मरता क्या न करता। सांप उसे भी निगल गया। किसी ने सच ही कहा है जो व्यक्ति अपने लोगों को धोखा देते है, एक दिन उसके साथ भी धोखा होता है। चमकू अपने परिवार के साथियों को समाप्त करवा देने के बावजूद वह नहीं बच सका और उसे भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
नैतिक शिक्षा:
जो व्यक्ति दूसरों को धोखा देते हैं। एक दिन वे बहुत बुरा फँसते हैं।
3. गधा मूर्ख क्यों बना:

जंगल में एक दिन गधे ने सोचा- ‘क्यों न एक अस्पताल खोला जाए। जिसमें कुबड़ों का इलाज किया जाए। कुबड़ों के इलाज से धन भी अधिक मिलेगा।’ बस दूसरे ही दिन गधे ने जंगल के एक अखबार में विज्ञापन निकाला हर तरह के कुबड़ों का शर्तियां इलाज। सौ फीसदी कामयाबी।”
यह विज्ञापन पढ़कर जंगल का एक कुबड़ा भेड़िया उसके पास अपना इलाज कराने पहुँचा। भेड़िए को जब आपरेशन रूम में ले गए तो वह बेहद खुश था। सोच रहा था- “कुबड़ ठीक हो जाएगी तो मुझे लोग अपने बिरादरी में फिर से शामिल कर लेंगे।”
गधे के पास इलाज के काम आने वाले यंत्रों के नाम पर केवल दो लकड़ी के तख्ते थे। उसने एक तख्ते पर कुबड़े भेड़िया को लेटा दिया और दूसरा तख्ता उसके शरीर पर रखकर मजबूती के साथ बांध दिया। इसके बाद वह उस पर खड़ा होकर जोर-जोर से कूदने लगा।
इस तरह कुबड़े भेड़िये का शरीर तो सीधा हो गया। लेकिन उसके प्राण उसके शरीर से निकल गए। जब कुबड़े भेड़िये का बेटा गधे से बहस करने लगा, तो वह बोला- “मैंने सिर्फ मरीज के शरीर को सीधा करने की बात कही थी, उसके जीने मरने के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूँ।”
यह सुनकर उसके बेटे ने अपना सिर जोरों से पीटते हुए कहा- “तुम सिर्फ पैसों के लालची हो, और अव्वल दर्जे के मूर्ख हो।” तभी वहाँ वनदेवी प्रकट हुई और मृत भेड़िये के बेटे से बोली- “तुम भी इस गधे के चक्कर में कैसे पड़ गए’ अब तुम्हारे पिता तो फिर से जीवित नहीं हो सकते। अच्छा तुम्ही बताओ इस गधे को क्या दंड दूँ।”
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भेड़िये का बेटा- “इसे ऐसी सजा दो कि दुनिया के तमाम गधे इसकी खातिर हमेशा उपहास का शिकार बनते रहे।” वन देवी ने कहा- “ठीक हैं, अब से पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक गधा मूर्ख कहलाएगा, उसमें बुद्धि जरा भी नहीं रहेगी।” बस तब से ही गधे मूर्ख बन गए।
नैतिक शिक्षा:
चतुराई और बुद्धि के बिना कोई फैसला लेने वाला व्यक्ति मूर्ख की श्रेणी में आता हैं।
4. राजा और सूरदास:

एक बार राजा की सभा में दूसरे देश का एक मंत्री आया और बोला- राजन! सुना है आपके दरबार में बड़े पारखी जौहरी है। मेरे पास ये दो चमकीले पत्थर हैं। ये देखने में एक जैसे हैं। लेकिन, इनमें से एक बहुमूल्य हीरा है। अगर आप की सभा में कोई पहचान कर ले तो मैं मान जाऊँगा कि आपके पास नायाब जौहरी है।
राजा ने सुना और सोचा कि ये तो मेरी नाक की बात हैं। उसने तुरंत अपने जौहरियों को बुलवाया और कहा- “लो देखो और परखो इनको और बताओ कौन-सा हीरा हैं और कौन-सा कांच? सभी ने अपनी तमाम कोशिशें कर डाली। लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आया।
राजा उनकी परेशानी देख समझ गया कि अब बेज्जती हो कर रहेगी। उसने सारे नगर में मुनादी करवा दी कि हर कोई आकर अपना-अपना हुनर आजमाए। बहुत लोग आए पर सब विफल रहे। इतने में सभा में एक सूरदास गिरते-पड़ते पहुँचे। बोले सुना है कुछ हीरे परखने की बात चल रही है क्या मैं कोशिश करके देखूँ।
सब लोग हँसने लगे। लेकिन राजा ने सोचा अगर सबके सामने कह रहा है तो हो सकता है। इसके पास कोई कला हो, इसलिए इसे मौका देना चाहिए। लाओ दोनों पत्थर मेरे हाथ पर रख दो और जरा मुझे बाहर धूप में ले चलो धूप में पहुँचकर उसने दोनों पत्थरों को अपनी हथेली पर रखा और बैठ गया।
फिर कुछ क्षण बाद उठा और उन्हें छूकर कहने लगा यह जो दाएं हाथ में है वह हीरा है, जो बाएं हाथ में है वह केवल कांच है। राजा हैरान रह गए। उन्होंने पूँछा कैसे पता किया? नेत्रहीन होते हुए भी सही परख कैसे कर ली? सूरदास ने कहा- जरा सी धूप में जो तप जाए वह कांच ही हो सकता है, हीरा नहीं।
नैतिक शिक्षा:
ज्ञानी व्यक्ति बहुत ही सहनशील और हर परिस्थितियों में एक समान रहते हैं। जबकि, अज्ञानी लोग बात-बात में क्रोध से भर जाते हैं।
5. सम्मान परिश्रम और गुणों का:

विद्यालय में रामू का सभी अध्यापक और विद्यार्थी बहुत सम्मान करते थे। क्योंकि, रामू प्रति वर्ष विद्यालय में प्रथम श्रेणी से पास होता था। वह सभी अध्यापकों और विद्यार्थियों का सम्मान करता था, आवश्यकता अनुसार सभी की सहायता भी करता था। और कड़ी परिश्रम भी करता था।
वह विनम्र, सेवाभावी और अनुशासनप्रिय भी था। रामू का इस तरह से सम्मान होता देखकर उसका सहपाठी कालू मन ही मन बहुत जलता था। क्योंकि, उसका कोई सम्मान नहीं करता था। वह ना तो परिश्रमी था और ना ही कोई अच्छे गुण थे उसमें।
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एक दिन रामू ने कालू को अपने पास बुलाकर समझाया- ‘देखो कालू, तुम समझते हो कि सब लोग मेरा सम्मान करते हैं। यह बात बिल्कुल गलत है। क्योंकि मेरा तो कोई सम्मान नहीं करता है। सच्चाई तो यह है कि मेरे परिश्रम और मेरे गुण का ही सब लोग आदर सम्मान करते हैं।
क्योंकि, यदि मैं परिश्रम ना करके फेल हो जाऊँ तो मेरा कोई सम्मान नहीं करेगा। इसलिए यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारा सम्मान हो तो मेरे वाले सारे गुण तुम्हें भी अपनाने होंगे। क्योंकि, इस संसार में सभी लोग किसी व्यक्ति का सम्मान नहीं करते, उसके गुण और अच्छाइयों का सम्मान करते हैं।
यह सुनकर कालू को अच्छी तरह से बात समझ आ गई। अब कालू भी रामू की तरह मेहनत करने लगा और उसके जैसा बनने का प्रयास करने लगा। धीरे-धीरे कालू का भी अब लोग सम्मान करने लगे थे। क्योंकि अब वह भी अच्छे अंकों से पास होने लगा था और रामू की तरह वह अब दयालु, विनम्र और अनुशासनप्रिय विद्यार्थी बन गया था।
नैतिक शिक्षा:
इंसान की पहचान उसके कर्मों और गुणों के द्वारा होता हैं।