10 छोटी नैतिक कहानियां हिंदी में – Moral short story in hindi

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छोटी नैतिक कहानियां पढ़ने का मुख्य उद्देश्य कम समय में उस कहानी से मिलने वाली प्रेरणा को समझना हैं। इसके अलाव इस तरह की कहानियां बच्चे मन लगाकर सुनते हैं। इसलिए, कहानीज़ोन के इस लेख में आज हम आपको 10 छोटी छोटी नैतिक कहानियां सुनाने जा रहे हैं, जोकि इस प्रकार से हैं:

1. ईश्वर का सहारा – Ishvar ka shara:

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किसी गाँव में एक नाई और पंडित रहते थे। उस गाँव के आसपास कई गाँवों में और कोई नाई और पंडित नहीं था। लोग किसी भी प्रयोजन में अपने घर पर उन्ही दोनों नाई और पंडित को बुलाते थे। इस तरह से दोनों हर जगह पर एक साथ आते-जाते थे। जिससे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी। नाई जब भी पंडित से मिलता था तो वह पंडित से तरह-तरह के सवाल किया करता था। जिसका जबाब पंडित जरूर देता था।

एक बार नाई और पंडित किसी आयोजन से वपास अपने घर जा रहे थे। नाई पंडित से सवाल किया – “लोग कितने परेशान हैं, लोगों को नौकरी नहीं मिल रही हैं, लोग भूखे मर रहे हैं, लोगों के पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं हैं, बारिश भी नहीं हो रही हैं, जिसके कारण सूखा भी पड़ गया हैं। भगवान को कुछ दिखता क्यों नहीं हैं।”

पंडित नाई से कुछ नहीं बोला, वह पैदल चलते चला जा रहा था। अचानक रास्ते में वह एक भिखारी के पास रुका। पंडित, नाई को उस भिखारी को दिखाते हुए कहा- “इसके दाढ़ी और बाल इतने बड़े-बड़े हैं, तुम नाई हो तुम्हारा फर्ज हैं इसके बाल काटना, तुम्हारे होने से क्या फ़ायदा? नाई ने पंडित को जबाब दिया- ”महाराज, यह इंसान जब मेरे पास आएगा, तभी तो मैं इसके बाल काटूँगा।”

पंडित उसे फिर से समझाया कि यही तो बात हैं- जब तक इंसान ईश्वर का सहारा नहीं लेगा तो उसके कष्ट कैसे कटेंगे। इसीलिए, वह इंसान दुखी रहता हैं।

नैतिक सीख:

ईश्वर के ऊपर अटूट विश्वास तथा उसके सहारे के साथ अपना जीवन जीना चाहिए।

2. बिल्ली और कुत्ता की कहानी:

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एक धोबी था, जिसने एक कुत्ता और बिल्ली पाल रखा था। धीरे-धीरे दोनों बड़े हो गए। एक बार बिल्ली बिना वजह कई दिनों से म्याऊं-म्याऊं की आवाज निकाले जा रही थी। जिसके कारण धोबी सो नहीं पा रहा था। उसने पता किया कि बिल्ली को कोई दिक्कत तो नहीं हैं। लेकिन, उसे कोई कारण नहीं मिला।

एक दिन धोबी बहुत थका-हारा घर आया और जल्दी खाना खा कर सो गया। कुछ समय बाद बिल्ली फिर से जोर-जोर से म्याऊं-म्याऊं की आवाज करने लगी। धोबी गुस्से से भरा हुआ उठा और एक डंडा लेकर बिल्ली को यह कहते हुए पीटने लगा कि दिन-रात म्याऊं-म्याऊं करती रहती हैं। इससे शांत बैठे नहीं जा रहा।

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उसकी पिटाई को देख वहीं बैठा कुत्ता सोचने लगा शांत रहने में ही भलाई हैं। उसी रात धोबी के घर में चोर को जाते देख कुत्ता नहीं भौंका । जिसके कारण उसके घर में चोरी हो गई। सुबह उठ कर धोबी कुत्ते की पिटाई करते हुए कहा। तुम्हें किस लिए पाल रखा हैं। हमारे घर में चोरी हो गई और तुम मौन बैठे रहे।

वह अविवेकी कुत्ता सोचा कल शोर मचाने के लिए बिल्ली की पिटाई हो गई और आज शोर न मचाने के लिए मेरी पिटाई हो गई। अब कुत्ता बहुत चिंतित होकर सोचने लगा कि “शांत रहना अच्छा हैं, या बोलना? इसलिए, कहा जाता हैं सही समय पर सही निर्णय न लेना, दिशाहीन व्यक्ति की निशानी होती हैं। जिसे आए दिन पछतावा ही मिलता हैं।

नैतिक सीख:

किसी के गुणों को देखकर सीखना अच्छी बात हैं। लेकिन हू-बहू उसी की तरह नकल करना बहुत गलत हैं।

3. जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि – Jaisee drishti, vaisee srishti:

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एक मुनि आश्रम में अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। तभी वहाँ पर एक राहगीर आया। उसने मुनिवर को प्रणाम करते हुए कहा- “महाराज, मैं इस गाँव में रहना चाहता हूँ। लेकिन इससे पहले यह जानना चाहता हूँ कि यहाँ के लोग कैसे हैं? मुनिवर कहते हैं- “आप जिस गाँव से आए हैं उस गाँव के लोग कैसे हैं? राहगीर अपने गाँव वालों को दुष्ट, लोभी और अत्याचारी बताता हैं।

मुनिवर उस व्यक्ति से कहा, “ठीक इसी प्रकार के लोग इस गाँव में भी रहते हैं।” मुनिवर की बातों को सुन राहगीर उस गाँव में नहीं रुका वह आगे की ओर चला गया हैं। कुछ समय बाद फिर एक राहगीर मुनिवर के पास आकर पूछा कि इस गाँव के लोग कैसे हैं? मुनिवर फिर से उस व्यक्ति से पूछते हैं कि आपके गाँव के लोग कैसे हैं? वह व्यक्ति कहता हैं- “मेरे गाँव के लोग बहुत सरल, विनम्र हृदय वाले हैं।

वे हमेशा एक दूसरे की मदद करते हैं। मुनिवर, उस व्यक्ति से कहता हैं – ठीक इसी प्रकार के लोग इस गाँव में भी रहते हैं। राहगीर, मुनिवर को प्रमाण करके उस गाँव की तरफ चला जाता हैं। वही बैठे एक शिष्य ने गुरुजी से पूछा- गुरुजी क्षमा कीजिएगा! “आपने दोनों व्यक्तियों को एक ही स्थान के बारे में दो तरह के जबाब क्यों दिए।”

मुनिवर अपने शिष्य से कहते हैं- “आमतौर पर हमें कुछ चीजें वैसी नहीं दिखती, जैसी कि वह हैं। बल्कि हम वैसा देखते हैं, जैसे हम स्वयं हैं। शिष्य अपने गुरु की बातों को समझ जाता हैं।

नैतिक सीख:

जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि!

4. माँ की ममता – Maa ki mamta:

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मोहन अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। जिसकी परवरिश बहुत अच्छे ढंग से हुई थी। उसे उसकी माँ ने बहुत लाड़-प्यार से पालकर बड़ा किया। उसकी शादी एक अमीर घर की लड़की के साथ हो गई। कुछ सालों बाद उन्हे एक लड़का पैदा हुआ। लेकिन अनहोनी को कौन टाल सकता है। कुछ महीने बाद मोहन के पिता की मृत्यु हो गई।

अब मोहन की पत्नी उसकी माँ की देखभाल करने से कतराने लगी थी। उसने किसी तरह मोहन को मना कर उसकी माँ को वृद्धाश्रम छुड़वा दी। कभी-कभी मोहन अपने बच्चे के साथ अपनी माँ को देखने वृद्धाश्रम जाता था। धीरे-धीरे समय बीता वृद्धाश्रम में उसकी माँ अब बीमार रहने लगी। मोहन के पास एक दिन वृद्धाश्रम से फोन आया कि तुम्हारी माँ बहुत ज्यादा बीमार हैं।

वह आप से मिलना चाहती हैं। मोहन अपने बेटे के साथ वृद्धाश्रम पहुंचकर देखा कि उसकी माँ आखिरी साँसे ले रही होती हैं। वह अपने बेटे मोहन से कहती हैं। “बेटा, यहाँ पर एसी और फ्रिज रखवा दो। जिससे यह कमरा ठंडा रहे और रात का खाना खराब न हो।” मोहन अपनी माँ से पूछता हैं- “माँ अभी तक आपने इन सभी उपकरणों के लिए कभी नहीं कहा, “आज अंतिम समय आप ऐसा क्यों कह रही हो”?

मोहन की माँ कहती हैं- “बेटा जब तुम मुझे यहाँ लाए थे तो मैं जैसे-तैसे ठंडी, गर्मी, बरसात और खराब हुआ खाना खा कर बर्दाश्त कर लेती थी। लेकिन, मुझे डर हैं कि जब तुम्हारा बच्चा यहाँ पर तुम्हें लाएगा तो तुम यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाओगे। मोहन बच्चे के सामने माँ की ऐसी बातों को सुनकर अपनी माँ के चरणों में गिर गया और यह कहते हुए जोर-जोर से रोने लगा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, माँ! मुझे माँफ कर दो।

नैतिक सीख:

जैसा करोगे, वैसा भरोगे

5. चूहा और व्यापारी – Chuha aur vyapari:

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एक बार एक चूहा किसी व्यापारी की हीरे की अंगूठी निगल गया। व्यापारी बहुत क्रोधित हुआ। उसने सभी चूहों को मारने के लिए शिकारी से कहा- “शिकारी वहाँ पहुँचकर देखा कि वहाँ पर चूहों का एक झुंड बना हुआ हैं।” वहीं बगल में एक मोटा चूहा अभिमान से भरा हुआ अकेला बैठा हुआ हैं।

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शिकारी बिना देरी किए उसे तुरंत पकड़ लेता हैं। वह उसके मुँह में अपनी बंदूक डालता हैं, जिससे अंगूठी बाहर निकल आई। व्यापारी शिकारी से पूछा, तुमने इतने सारे चूहों मे से अंगूठी खाने वाले चूहे को कैसे पकड़ लिया। शिकारी जबाब देता हैं। “जब मूर्ख व्यक्ति धनवान बन जाता हैं तो वह अपने आपको बादशाह समझने लगता हैं। और वह अपने समाज से अलग होकर रहने की सोचता हैं। और समाज वालों को नीचा समझता हैं।

नैतिक सीख:

हमें हर परिस्थिति में एक समान रहना चाहिए।

6. झूठी माँ – jhuthi maa:

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बात बहुत पुरानी हैं। किसी गाँव में नाई उसकी पत्नी और एक बेटा रहते थे। नाई का बेटा अपनी माँ को बहुत प्यार करता था। कुछ समय बाद किसी बीमारी के कारण उसकी माँ की मृत्यु हो गई। नाई कुछ दिन शोक में रहा, फिर उसने दूसरी शादी कर ली। नाई की दूसरी पत्नी उस बच्चे को अपना बच्चा नहीं मानती थी।

एक बार वह बच्चा द्वार पर बैठा था। उसे उसका पिता अपने पास बुलाकर पूंछता हैं। तुम अपनी नई माँ और पुरानी माँ में कुछ अंतर बताओ। लड़के ने बहुत धीरे स्वर में कहा- “मेरी पुरानी माँ झूठी थी, और नई माँ सच बोलती हैं।” बच्चे की बातों को सुनकर नाई को ताज्जुब हुआ। वह कहने लगा “जिसने तुझे जन्म दिया पाल-पोष कर इतना बड़ा किया उसी को तू आज झूठी बोल रहा हैं।

आज जो ये नई-नई तुम्हारी माँ आई हैं, वह तुझे सच्ची लग रही हैं। लड़का फिर से कहा- “मेरी पुरानी माँ हमेशा कहती थी कि अगर तू पढ़ाई नहीं करेगा, अन्य लड़कों के साथ खेलेगा तो मैं तुझे खाना नहीं दूँगी” जबकि, मैं खूब खेलता और मस्ती करता था फिर भी, वह शाम को मुझे बैठाकर अपने हाथों से खाना खिलाती थी। मेरी नई माँ कहती हैं अगर तू खेलने जाएगा मस्ती करेगा तो मैं तुझे खाना नहीं दूँगी। और आज सच यह हैं कि मैं तीन दिनों से भूखा हूँ।

नैतिक सीख:

जन्म देनी वाली माँ से बढ़कर इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकता।

7. एकता में बल होता हैं – Ekta main bal hota hai:

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शाम को स्कूल की छुट्टी होते ही गोलू और भोलू साथ-साथ गप्पे मारते चले आ रहे थे। गोलू शरारती स्वभाव का लड़का था। जबकि, भोलू बहुत सीधा-साधा बच्चा था। भोलू आज स्कूल में पढ़ाए गए विषय के बारें में बात करता आ रहा था। तभी गोलू को रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिला। उसने उससे एक कुत्ते को मारा, कुत्ता चिल्लाता हुआ दूर भाग गया।

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भोलू उसे समझाते हुए कहने लगा कि, “कुत्ते ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? जो तुमने बिना किसी वजह से उसके ऊपर पत्थर मार दिया।” तुम्हें पता हैं कि यह अकेला था तो तुमने उस पर वार कर दिया। अगर वह झुंड में होता तो वह तुम्हारे ऊपर वार कर सकता था। तुम्हारी शैतानी कभी न कभी तुम्हें ले डूबेगी, इतना कहते हुए वह अपने घर की तरफ मुड़ गया।

गोलू का घर थोड़ा और आगे था। तभी उसे एक पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता दिखा, गोलू ने अब छत्ते पर पत्थर मार दिया और तेजी से भागने लगा। लेकिन वह ज्यादा दूर भाग नहीं सका, उसे मधुमक्खियों ने घेर लिया। और काट-काट कर फुला दिया। जिसके कारण वह अब कई दिन स्कूल नहीं जा सका।

नैतिक सीख:

एकता में बल होती हैं।

8. अनाथालय से वृद्धाश्रम तक -Anathalay se vrddhaashram tak:

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एक दिन बुद्धिराम ने अनाथालय से एक बच्चा गोद लिया। उसने उस बच्चे को खूब पढ़ाया-लिखाया और उसे काबिल बना दिया। जबकि, उसने अपने बच्चे को कभी यह पता नहीं चलने दिया कि वह उसे अनाथालय से लाया था। बुद्धिराम अपने बेटे की शादी कर दिया। उसकी पत्नी बहुत तेज थी। वह उसके बेटे को अपने अनुसार चलाती थी।

धीरे-धीरे समय बीतता चला गया। अब बुद्धिराम को चलने-फिरने में परेशानियाँ आने लगी। जिससे बुद्धिराम को अधिक देख-रेख की जरूरत पड़ती थी। उसका बेटा पूरे दिन अपने काम से बाहर रहता था। बुद्धिराम की देख-भाल उसकी पत्नी को ही करनी पड़ती थी। एक दिन उसका बेटा अपनी पत्नी के कहने पर, अपने पिता को वृद्धाश्रम छोड़ने के लिए चला जाता हैं।

वृद्धाश्रम में छोड़कर वापस आते समय उसके पास पत्नी का फोन आता हैं। वह कहती हैं, वापस जाकर अपने पिता से कह देना कि- “वह घर अपने पोते को देखने के लिए भी न आए” वह वापस वृद्धाश्रम जाकर देखता हैं कि उसका पिता और वृद्धाश्रम का प्रबंधक दोनों साथ बैठकर जोर-जोर से ठहाके मार कर हँस रहे थे।

उन्हें देख उसका बेटा उस व्यक्ति से पूंछता हैं- ‘आप हमारे पिता को कब और कैसे जानते हो। प्रबंधक हँसते हुए कहा। पहले यह वृद्धाश्रम अनाथालय था। तब तुम्हारे पिता जी तुम्हें यहाँ से ले गए थे। तब से तुम्हारे पिताजी की और मेरी गहरी दोस्ती हैं। अनाथालय के प्रबंधक की बातों को सुनकर उसका लड़का अपने पिता के चरणों में गिर गया और अपने किए की माँफी माँगने लगा।

नैतिक सीख:

माता-पिता के न रहने पर उनकी अहमियत का पता चलता हैं।

9. लक्ष्य पर नजर – Lakshy per najar:

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एक समय की बात हैं गुरु द्रोणाचार्य के पास कुछ शिष्य धनुर्विद्या सीख रहे थे। सभी शिष्य धनुर्धर बनने के लिए वन में अपनी-अपनी प्रतिभा को दिखा रहे थे। इन्ही शिष्यों में पांडवों का महान धनुर्धर अर्जुन भी गुरु द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या सीख रहा था। एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने अपने सभी शिष्यों की परीक्षा लेना चाहा।

वें अपने सभी शिष्यों को लेकर वन में गए। वहाँ पर किसी पेड़ पर बैठी एक चिड़िया को दिखाते हुए उस पर निशाना साधने के लिए कहा। सभी शिष्य अपने-अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर पेड़ पर बैठी चिड़िया को भेदने के लिए तैयार थे। वे अपने गुरु की आज्ञा का इंतजार कर रहे थे। तभी गुरु द्रोणाचार्य सभी से एक एक करके पूंछते हैं कि तुम्हें पेड़ पर क्या दिख रहा हैं? किसी शिष्य ने चिड़िया, किसी ने पेड़, किसी ने पत्ते, और किसी ने फल भी बता दिया।

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लेकिन जब गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन के पास गये और उनसे पूछा कि शिष्य तुम्हें क्या दिख रहा हैं? अर्जुन अपने गुरु को उत्तर देते हुए कहा- “गुरुदेव मुझे सिर्फ चिड़िया की आँख दिख रही हैं।” अर्जुन की बात सुनकर गुरु द्रोणाचार्य बहुत प्रसन्न हो गए। उस दिन से अर्जुन को निपुर्ण शिष्य के रूप में मानने लगे।

नैतिक सीख:

हमारा लक्ष्य बहुत साफ होना चाहिए। जिससे हमारा ध्यान आसपास की चीजों पर न भटके।

10. यह भी समय बीत जाएगा – Yah bhi samay beet jayaega:

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एक राजा शिकार करते-करते रास्ता भटक कर किसी साधु के आश्रम में पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर राजा अपना परिचय दिया और महात्मा जी उनका बहुत आदर और सम्मान के साथ स्वागत किए। जब राजा अपने महल को वापस जाने लगा तो महात्मा जी उन्हें एक ताबीज देते हुए कहा- हे राजन! यह ताबीज अपने गले में पहन लो आप जब भी किसी बड़ी मुश्किल में पड़ोगे तो इसे खोल कर देख लेना आपको आपकी मुश्किल का हल मिल जाएगा।

लेकिन, हाँ मुश्किल वक्त से पहले इस ताबीज को मत खोलना। एक बार राजा के राज्य पर पड़ोसी राज्य के राजा हमला कर दिए। युद्ध में राजा परास्त हो गया और वह भागकर किसी और राज्य में शरण ले लिया। उसका राज्य छिन जाने के कारण राजा बहुत निराश रहने लगा। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। एक दिन नहाते समय उसे उसके गले में ताबीज दिखा।

उसे याद आता हैं कि महात्मा जी ने कहा था, इस ताबीज को मुश्किल समय पर ही खोलना। राजा सोचता हैं कि इससे बुरा समय अब क्या होगा। राजा उस ताबीज को खोलकर देखता हैं तो उसमें एक भोजपत्र डाला हुआ होता हैं। जिस पर लिखा होता हैं- “यह भी समय बीत जाएगा” राजा को अपने आप पर विश्वास हुआ।

कुछ समय बाद वह फिर से अपनी एक सेना तैयार करके अपने छीने हुए राज्य पर आक्रमण कर दिया और वह उस राज्य को दुबारा से जीत लिया।

नैतिक सीख:

समय बलवान होता हैं, इसलिए अपने समय की पहचान करें और आगे बढ़ें।

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