हरीराम नाम का एक व्यक्ति था। जोकि, एक छोटी सी दुकान चलाता था। उसका एक बेटा था, जिसका नाम राहुल था। वह अपने पापा के साथ दुकान में हाथ बटाता था। एक दिन उसके पिता की मृत्यु हो गई। अब घर की सारी जिम्मेदारी उसके बेटे के ऊपर आन पड़ी। राहुल को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अपने घर का खर्च कैसे चलाए।
अपनी माँ के कहने पर राहुल ने अपने पापा की दुकान को चालान शुरू किया। वह अपने पिता की तरह ही दुकान खोलते ही सबसे पहले छोटे से पूजा घर में जाकर कुछ देर पूजा करता था। वह अपने पिता की तरह ही प्रभु परमात्मा का शुक्र करता। वह ईश्वर का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता। राहुल के पिता का व्यवहार अच्छा था।
देखते-देखते उसकी दुकान पर ग्रहकों की भीड़ लगने लगी। वह सुबह-सुबह अपनी दुकान खोल देता और देर रात तक दुकान को चलाता था। अब राहुल अपनी दुकान में बहुत व्यस्त रहने लगा। लक्ष्मीजी की कृपा से वह बहुत बड़ा धनवान व्यक्ति बन गया। उसने अपने पुराने घर को तुड़वाकर बड़ा और आलीशान घर बनवा दिया। उसने एक सुंदर अमिर घर की लड़की से शादी भी कर ली।
सुबह-सुबह ग्रहकों की अधिक भीड़ होने की वजह से अब उसने पूजा-पाठ भी करना बंद कर दिया। अब उसे यह ऐहसास होने लगा कि मैं मेहनत करता हूँ, इसलिए हमारी तरक्की हो रही हैं। इसमें भगवान का कोई ऐहसान नहीं हैं। एक दिन उसकी दुकान में सामान रखने की जगह नहीं बची। उसने नौकर से बोलकर पूजाघर का सामान हटवा दिया और उस जगह पर दुकान का कुछ सामान रखवा दिया।
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राहुल अब नास्तिक बन चुका था। वह अधिक धनवान बन गया था। जिसके कारण समाज में उसकी प्रसिद्धि के कारण लोकप्रियता अधिक हो गई थी। एक बार ग्राम के सामाजिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए राहुल को आमंत्रण मिला। सभा का संचालन कर रहे व्यक्ति ने राहुल को बुलाते हुए कहा आज आप बहुत बड़े व्यापारी बन चुके हो, इसका श्रेय आप किसको देना चाहते हैं। क्या यह सब प्रभु परमात्मा की कृपा से हुआ हैं?

राहुल ने अपने भाषण की शुरुआत यह कहते हुए शुरू किया कि प्रभु-परमात्मा सब झूठ हैं। किसी की सफलता के पीछे भगवान का हाथ नहीं खुद की मेंहनत होती हैं। ईश्वर है ही नहीं, अगर वह है तो- “मैं यहाँ पर खड़ा हूँ, आकर वह मेरा काम-तमाम कर दें”। राहुल की बातों को सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। सब लोग एक दूसरे का मुँह देखने लगे। कुछ समय बाद राहुल हा-हा-हा करके हँसने लगा। आप लोगों ने देखा कि अगर भगवान होते तो मेरे प्राण अभी तक शरीर से जुदा हो चुके होते।
तभी बीच सभा से एक बुजुर्ग व्यक्ति उठा और बोला – “महाशय एक बात आप से पूछे? जी जरूर पूछिये, राहुल ने कहा। आपके बाल बच्चे हैं। राहुल ने कहा- हाँ, मेरा एक बेटा हैं। अगर वह आपके हाथ में एक बंदूक पकड़ा दे और कहे कि मुझे मार डालिए तो आप वैसा करेंगे?” बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा। बिल्कुल नहीं, मैं उससे प्यार करता हूँ। मैं भला उसे कैसे मार सकता हूँ। राहुल ने जबाब दिया।
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बुजुर्ग व्यक्ति ने राहुल से कहा अब तो आप समझ गए होंगे कि आपको अभी तक भगवान ने कुछ क्यों नहीं किया। क्योंकि आप और हम सभी लोग भगवान के ही बच्चे हैं। अब राहुल को ऐहसास होने लगा कि पैसों की लालच में मैं घमंड और अभिमान से भर गया था। मुझे अपनी सोच को इतना गंदा नहीं करना चाहिए था।
बुजुर्ग अंकल की बात ने उसे उस रात सोने नहीं दिया। उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्यालात आते रहे। अगली सुबह उसने अपनी दुकान पहुंचकर सबसे पहले अपने पूजा घर को खाली कराकर उसमें पूजा-पाठ का सामान रखकर फिर से पूजा करना शुरू कर दिया। उसके बाद ही ग्राहकों को सामान देता था। इस तरह से अब भगवान के प्रति उसकी आस्था और अधिक बढ़ती चली गई।
नैतिक सीख:
जिस तरह बच्चा अपने माता-पिता के सहारे जीवन जीने की कोशिश करता हैं। ठीक उसी प्रकार हमें भी भगवान का सहारा लेकर जीवन जीना चाहिए।