यह कहानी दो दोस्तों की हैं। एक का नाम रामू तथा दूसरे का नाम श्यामू था। रामू बिना सोचे समझे फैसले लेने के लिए जाना जाता था। जबकि, श्यामू बहुत दिमागदार और किसी भी काम को गहराई से चिंतन करने के बाद ही कोई निर्णय लेता था। दोनों के घर की स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। दोनों अपना कैरियर बनाने के लिए हमेशा चिंतित रहते थे।
एक दिन रामू और श्यामू ने मुंबई शहर जाने का फैसला किया। मुंबई में उसके कुछ रिश्तेदार भी रहते थे। उन्ही लोग के पास रह कर दोनों नौकरी की तलाश में जुट गए। नौकरी को ढूँढते हुए उन्हें कई दिन बीत चुके थे। परंतु दोनों को किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं मिल सकी। दोनों अब बहुत निराश हो चुके थे। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा?
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दोनों को मुंबई में रहते हुए एक महिना बीत चुके थे। एक दिन दोनों ने सोचा कि चलो अपने गाँव चलते हैं, वहीं पर ही कुछ करेंगे। अगले दिन दोनों अपने गाँव जाने के लिए रेलवे स्टेशन पर पहुचे थे। ट्रेन आने में देरी थी दोनों बहुत मायूस थे और सोच रहे थे कि हम अपने गाँव में लोगों को क्या बताएंगे।
तभी एक भले आदमी ने दोनों से पूछा, बेटा! आप दोनों बहुत दुखी लग रहे हो क्या बात है? मुझे कुछ बता सकते हो, शायद मैं आप की कुछ मदद कर सकूं। रामू ने कहा, “क्या बताऊँ चाचा जी, मैं अपने गाँव से इस शहर में नौकरी की तलाश में आया था। लेकिन, हमें कही पर कोई नौकरी नहीं मिल पायी। जिसके कारण हम लोग इस शहर को छोड़ कर जा रहे हैं।
उस व्यक्ति ने कहा, “बस इतनी सी बात पर आप लोग दुखी हो।” आप लोग अगर हमारी कंपनी में नौकरी करना चाहो तो मैं दिलवा सकता हूँ। उनकी बातों को सुनकर दोनों की आँखें खुशी से चमक उठी और एक स्वर में बोलें हाँ! हम दोनों नौकरी करने के लिए तैयार हैं। दोनों दोस्त उस व्यक्ति के साथ उसके घर गए और रात वही पर व्यतीत किया।
अगली सुबह चाचा जी अपने साथ दोनों को अपनी कंपनी ले गए और कंपनी के मालिक से परिचय करा कर सारी बात बता दी। कंपनी के मालिक ने दोनों से कुछ सवाल-जवाब के माध्यम से उनके अंदर के गुणों को जाना। उन्होंने कहा, “आज से तुम दोनों हमारी कंपनी के कर्मचारी हो। लेकिन एक परीक्षा से आप दोनों को गुजरना पड़ेगा। जिसमें सफल होकर आप लोग हमारे कर्मचारियों का नेतृव कर सकते हैं।
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इसके लिए आप दोनों को अधिक तनख़्वाह और रहने खाने की व्यवस्था भी दी जाएगी। इस बात के लिए दोनों मंजूर हो गए। अगली सुबह रामू और श्यामू कंपनी जल्दी आकर अपने मालिक के आने का इंतजार करने लगे। कुछ समय बाद कंपनी का मालिक भी वहाँ आ गए। वह दोनों को समय पर कंपनी में देख खुश हुआ।
रामू को एक बैग देते हुए बोला इसके अंदर दस जोड़े चप्पल और जूते हैं। जिसे आपको यहाँ से कुछ दूर शिवपुर नामक गाँव में बेचकर आना हैं। रामू खुश हुआ और उस बैग को लेकर चला गया।

शिवपुर गाँव पहुँच कर देखा तो किसी के पैर में चप्पल-जूते नहीं थे। रामू सोचने लगा, “इस गाँव में हम चप्पल-जूते कैसे बेचेंगे, यहाँ तो कोई चप्पल-जूते पहनता ही नहीं हैं, कौन लेगा हमारे चप्पल-जूते? यह सब सोच कर रामू वापस कंपनी आ गया। रामू को जल्दी कंपनी में वापस आए देख, मालिक ने बोला। अरे! रामू तुम चप्पल-जूते बहुत जल्दी बेचकर आ गए। रामू ने अपने मालिक को सारी बात दी। उसकी बातों को सुनकर मालिक मुस्कुराए और वहाँ से चले गए।
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इस बार मालिक ने वही बैग श्यामू को देते हुए वही बात फिर से दोहराई। श्यामू शिवपुर गाँव पहुँच कर देखा तो सच में वहाँ कोई चप्पल-जूते नहीं पहनता था। यह सब देख श्यामू के आँखों में खुशी की लहर दौड़ उठी। वह गाँव वालों के पास गया और चप्पल, जूते और उसके फ़ायदे के बारे में लोगों को बताने लगा। देखते ही देखते उसके सभी जूते और चप्पल कुछ ही मिनट के अंदर बिक गये। श्यामू भागते-भागते अपने मालिक के पास पहुँचा।
श्यामू अपने मालिक से कहा, “वहाँ पर किसी के पास चप्पल-जूते नहीं हैं। हम पूरे गाँव को चप्पल-जूते पहना सकते हैं। जोकि गाँव वाले मुझसे और मांग कर रहे हैं।” श्यामू की बातें सुन मालिक ने कहा, “तुम परीक्षा मे सफल हुए, आज से तुम हमारे सभी कर्मचारियों का नेतृव करोगे। जबकि रामू तुम्हारे साथ रहकर सीखेगा। उस दिन के बाद से श्यामू बहुत सारे चप्पल-जूते बनवाने लगा और शिवपुर गाँव के सभी व्यक्तियों को चप्पल-जूते बेच दिये।
नैतिक सीख:
सोच बदलो! जिस नजरिए से लोगों को देखोगे ठीक वैसे आपको यह दुनिया दिखेगी।