बच्चों की मनपसंद मजेदार कहानियाँ नैतिक शिक्षा के साथ

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1. शेखचिल्ली और मरियल घोड़ा:

शेखचिल्ली के पास एक घोड़ा था। वह देखने में मरियल जैसा था। शेखचिल्ली घोड़े पर ध्यान नहीं देता था। लेकिन उसका उपयोग हर जगह करता था। एक दिन शेखचिल्ली अपनी बीवी के साथ ससुराल जाने के लिए तैयार हुआ। सूट-बूट पहनकर वह घोड़ा लेकर पत्नी के साथ ससुराल की तरफ निकल पड़ा।

कुछ दूर चलने के बाद शेखचिल्ली ने अपनी बीवी को घोड़े पर बैठा दिया और वह पैदल चलने लगा। रास्ते में कुछ लोगों ने यह नजारा देखा तो हँसते हुए बोले, ” देखो, कितना मूर्ख आदमी हैं। खुद तो पैदल चल रहा हैं और बीवी को घोड़े पर बिठा रखा हैं।” राहगीरों की बात सुनकर शेखचिल्ली ने बीवी को नीचे उतारकर खुद घोड़े पर सवार हो गया।

आगे बढ़ने पर रास्ते में कुछ राहगीर उसे देखकर हँस पड़े और बोले, खुद तो घोड़े पर सवार हैं उसकी बीवी पैदल चल रही हैं। यह सुनकर शेखचिल्ली ने बीवी को भी घोड़े पर बैठा लिया। कुछ दूर और आगे चलने के बाद कुछ लोग और मिले उन्होंने कहा, “कितना मूर्ख इंसान हैं, इतने मरियल घोड़े पर बीवी के साथ बैठकर जा रहा हैं। इस जीव पर दया भी नहीं आती।

लोगों की बात सुनकर शेखचिल्ली को गुस्सा आ गया। दोनों घोड़े से उतर कर नीचे आ गए। अब दोनों घोड़े की रस्सी पकड़कर पैदल-पैदल चलने लगे। कुछ दूर और आगे जाने के बाद कुछ लोगों ने कहा, “देखो, यह कितना मूर्ख व्यक्ति हैं। घोड़ा साथ में होने के बाऊजूद भी दोनों पैदल चल रहे हैं। यह सुनकर शेखचिल्ली को गुस्सा आ गया। उसने मरियल घोड़े के चारों पैर रस्सी से बांधकर उसे कुएं में डाल दिया।

नैतिक शिक्षा:

दूसरों की बातों को मानने से पहले उस पर विचार करना चाहिए। हम सभी को संतुष्ट नहीं कर सकते।

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2. सोनू का दशहरा:

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दशहरे का त्योहार था। शाम का समय होने को आ चुका था भरत-मिलन का समय होने वाला था। सभी खुशियाँ मना रहे थे। चारों तरफ रौनक थी। सभी लोग दशहरा का मेला देखने जा रहे थे। सोनू की दादी कुछ चिंतित थी। क्योंकि उसका पोता सोनू पहली बार अकेले अपने दोस्तों के साथ दशहरे का मेला देखने जा रहा था।

सोनू लगभग सात वर्ष का दुबला पतला लड़का था। बीमारी के कारण माता-पिता के गुजर जाने के बाद वह बूढ़ी दादी के साथ ही रहता था। उसकी दादी घर चलाने के लिए सीमित साधनों के उपयोग करती थी। जिसके कारण वह सोनू को उसकी मनपसंद चीजें नहीं दिला पाती थी। दशहरे के मेले के लिए उसने चालीस रुपये जमा कर रखा था।

सोनू को चालीस रुपये देकर दशहरे का मेला देखने के लिए उसके दोस्तों के साथ भेज दिया। लेकिन, उसकी दादी डर रही थी कि कही उसे गिरकर चोट न लग जाए। सोनू ने मेला जाते समय अपनी दादी से कहा, “आप चिंता मत करो मैं जल्दी वापस आ जाऊँगा।” मेले में पहुंचकर सभी बच्चे बहुत खुश थे। किसी ने जलेबी खाई तो किसी ने आइसक्रीम तो किसी ने झूला झूला। लेकिन सोनू के पास पैसे कम थे इसलिए उसने ऐसा कुछ नहीं किया।

सोनू ने अपने दोस्तों के साथ पूरे मेले में घूम लिया। लेकिन अभी तक उसने अपने लिए कुछ खरीदा नहीं था। तभी उसके दोस्त एक खिलौने की दुकान पर रुके। सभी अपने-अपने मन पसंद खिलौने खरीद रहे थे। सोनू उसी दुकान के बगल बर्तन की दुकान पर गया। उसने एक चिमटा उठाकर उसका दाम दुकानदार से पूछा, “दुकानदार ने कहा, यह चिमटा पचास रुपये का हैं।”

सोनू ने कहा अंकल जी अगर चालीस रुपये का देना हो तो बताओ। क्योंकि मेरे पास सिर्फ चालीस रुपये ही हैं। दुकानदार ने चिमटे को चालीस रुपये में दे दिया। तभी उसके दोस्तों ने अपने अपने खिलौने दिखाते हुए सोनू से पूछा, “तुमने क्या लिया? सोनू ने अपने हाथ में लिया लोहे का चिमटा दोस्तों को दिखा दिया। सभी एक साथ जोर से हँस पडे।

सोनू ने पूछा आप लोगों का खिलौना कितने दिन तक चलेगा। कम से कम यह चिमटा तो कुछ साल तक चल जाएगा। सोनू की बातों को सुनकर सभी बच्चों के सिर नीचे झुक गए। सभी ने उसे उसके सही फैसले के लिए सराहा। चिमटा लेकर सोनू घर पहुँचा। उसके हाथ में चिमटा देख उसकी दादी चौंक गई।

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उसने पूछा! बेटा मेले से क्या लाए हो। यह क्या! ये चिमटा कहाँ से लाए हो? और कितने का हैं। सोनू ने कहा, चालीस रुपये का हैं। उसकी दादी ने कहा- मैंने तुम्हें सिर्फ चालीस रुपये ही दिए थे जिसका तुम चिमटा ले आए। अपने लिए कुछ भी नहीं लिया होगा। सोनू ने कहा, “दादी जी खाना पकाते समय अब आपका हाथ नहीं जलेगा। सोनू की बातें सुनकर दादी की आँखों में आँसू भर आए उसने सोनू को अपने गले से लगा लिया।

नैतिक शिक्षा:

जरूरत की चीजों पर पैसा खर्च करना चाहिए।

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