1. गुप्त खजाना – Secret Treasure:

शहर से बाहर बाबू रामदास का ईंटों का एक भट्ठा था। उस भट्टे पर आस-पास के गाँव के लोग काम करने आते थे। जोकि, भट्टे से ईंटोंं को निकाल कर टोकरी के माध्यम से चट्टानों पर रखने के लिए ले जाते थे। जिसके बदले में श्रमिकों को भट्टे से निकाली गई ईंटोंं के हिसाब से कुछ पैसे मिलते थे। यह काम बहुत ही मुश्किल भरा था। मजदूर अधिक पैसे कमाने के लिए अधिक से अधिक ईंटों को उठाना चाहते थे। जिसके कारण उनकी हालत बहुत खराब हो जाती थी। वें पसीने से भीगे हुए रहते थे।
श्रमिकों की हालत देख बाबू रामदास को दुख होता था। लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सकता था। क्योंकि, उसे भी अपना कारोबार चलाना था। उन्ही श्रमिकों में एक पंद्रह साल का लड़का भी काम करता था। एक बार सभी श्रमिक पंक्ति में लगकर अपनी मजदूरी ले रहे थे। जब बाबू रामदास के पास उस लड़के का नंबर आया तो उसने अपने मुंशी से पूँछा कि “आप ने इतने छोटे बच्चे को काम पर क्यों रखा हैं?” मुंशी ने बाबू रामदास को लड़के के बारें में बताते हुए कहा- “इस लड़के का नाम रामू हैं, यह लड़का दो दिन पहले हमारे पास काम माँगने के लिए आया था।
इसके घर की स्थिति ठीक नहीं हैं तथा इसके घर में कोई कमाने वाला भी नहीं हैं। कुछ दिन पहले रामू के पिता का देहांत भी हो गया था। रामू अपनी माँ के साथ रहता हैं, जोकी बीमार रहती हैं। अपना घर चलाने के लिए यह लड़का अब मजदूरी करना चाह रहा हैं। मुंशी रामू के काम को लेकर बहुत खुश था। रामू किसी से बात नहीं करता था। वह सिर्फ अपने काम में लगा रहता था।
एक बार किसी गाँव में चोरी होती हैं। चोर लूटे हुए खजाने को लेकर अधिक दूर तक भाग न सके। जिसके कारण वें लूटे हुए खजानों को ईंट के भट्टे में छिपा देते हैं। अगले दिन होली का त्यौहार था, जिसके कारण उस भट्टे पर मजदूर काम करने के लिए नहीं आए थे। लेकिन, रामू अकेले ईंटों को निकालकर चट्टान पर रख रहा था। अचानक रामू की नजर छिपाए हुए खजानों पर पड़ती हैं। जिसे देख रामू बहुत घबरा जाता हैं। रामू दौड़ते हुए मुंशी से मिलने के लिए जाता हैं। लेकिन, मुंशी भी वहाँ से जा चुका होता हैं। उसे भट्टे पर और कोई भी व्यक्ति नहीं मिलता हैं।
रामू उस बैग को अपने साथ घर ले जाता हैं। घर पहुँचकर अपनी माँ से सारी बातें बताता हैं। उसकी माँ कहती हैं- “बेटा कल तुम इस बैग को मुंशी को दे देना, हमें इस तरह के पैसे को लेने का कोई अधिकार नहीं हैं।” अगली सुबह रामू बैग को लेकर भट्टे पर पहुंचता हैं। जहाँ पर उसकी मुलाकात भट्टे के मालिक बाबू रामदास से होती हैं, रामू बैग देते हुए सारी घटना को बताता हैं।
रामू की ईमानदारी देख बाबू रामदास कहता हैं- “रामू तुम्हारी ईमानदारी से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, अब तुम कल से भट्टे पर काम करने नहीं आओगे। बल्कि तुम अपनी पढ़ाई करोगे। बाबू रामदास ने अपने मुंशी से कहा- “रामू का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करवा दो तथा उसकी माँ और रामू के खाने-पीने की भी व्यवस्था कर दो। इस तरह से रामू को उसकी ईमानदारी की बदौलत उसे एक नई उड़ान मिल गई।
नैतिक शिक्षा:
मेहनत और ईमानदारी के साथ किया गया काम एक दिन रंग जरूर लाता हैं।
2. बूढ़ी औरत और पैसों की पोटली – The old woman and the bundle of money:

एक समय की बात हैं, झोपड़ी में एक बूढ़ी औरत रहती थी। एक बार उसने तीर्थयात्रा पर जाने के लिए सोचा। वह अपने पैसों को एक रेशम के कपड़े में बांधकर गाँव के एक व्यक्ति के पास लेकर गई, जिसका नाम पंडित विष्णु था। उसे पैसों की पोटली को देते हुए कहा- “मैं तीर्थयात्रा पर जा रही हूँ, कृपया आप कुछ दिन के लिए मेरे पैसों को अपने पास सुरक्षित रख लो। पंडित विष्णु ने कहा- “मैं घर पर बहुत कम रहता हूँ, मुझे देने से अच्छा हैं किसी अच्छी जगह जमीन में दबा दो।
बूढ़ी औरत ने सोचा की वह अपने घर के पास आम के पेड़ के नीचे इस पोटली को दबा देगी। लेकिन, पंडित विष्णु बहुत दुष्ट व्यक्ति था। वह बूढ़ी औरत को पैसे की थैली को दबाते हुए पेड़ के पीछे छिपकर देख रहा था। जब बुढ़िया तीर्थ पर चली गई, तो विष्णु रात को उस जगह पर गया और पैसों की पोटली को निकाल कर उसी तरह दूसरी पोटली में ताँबे के सिक्के डालकर वहीं पर फिर से दबा देता हैं। जब बुढ़िया तीर्थ यात्रा से वापस आई तो उसने आम के पेड़ के नीचे छिपाए पैसों की पोटली को निकाला और देखा कि उसकी थैली और सिक्के बदले हुए होते हैं।
जिसे देखकर बुढ़िया फूट फूट कर रोने लगी। अगली सुबह बुढ़िया ने राजा के पास जाकर सारी घटना को बता दिया। राजा ने अपने राज्य के दर्जी को बुलाया। बुढ़िया से मिली थैली की दिखाते हुए पूँछा- “यह थैली तुमसे किसने बनवाई थी? दर्जी उस थैली को देखते ही पहचान गया और उसने पंडित विष्णु के बारें में बताया। राजा ने विष्णु को बुलाकर बुढ़िया के पैसों के बारें में पूँछा तो उसने साफ-साफ मना कर दिया।
लेकिन, उसकी नजर जब वहीं पर बैठे दर्जी पर पड़ी तो उसका चेहरा पीला पड़ गया। राजा ने फिर से दर्जी को अपने समक्ष बुलाया और उसी कपड़े के बारे में पूंछा। दर्जी विष्णु के बारें में ही बताता हैं। दर्जी की बातों को सुनकर विष्णु का सिर शर्म से झुक जाता हैं। विष्णु राजा के सामने उस पोटली के बारें में सच-सच उगल देता हैं। जिससे बुढ़िया को उसकी पैसों की पोटली मिल जाती हैं। राजा पंडित विष्णु को सजा के तौर पर कुछ दिन के लिए कारावास में डाल देता हैं।
नैतिक शिक्षा:
सूझ-बुझ के साथ हम अच्छे बुरे की पहचान कर सकते हैं।
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3. संगत का असर – Effect of company:

एक समय की बात हैं, किसी राज्य में एक राजा रहता था। राजा बहुत ही नेक इंसान था। उसके न्याय की चर्चा आस-पास के राज्यों में बहुत होती थी। लेकिन, राजा की एक सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसकी कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण राजा अपने राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर बहुत चिंतित रहता था। एक बार राजा के राजमहल में एक संत का आगमन हुआ उसने राजा की समस्या के बारें में सुन रखा था। संत महात्मा का राजा ने बहुत भव्य स्वागत किया जिससे वह बहुत पसन्न हुए।
जब महात्मा वापस अपनी कुटिया को जाने लगे तो राजा से कहा – “हे राजन मैं आप की सेवा सत्कार से बहुत प्रभावित हूँ, मांगों जो मांगना हैं। राजा ने अपने राज्य को सभालने के लिए राजकुमार की कामना की, संत महात्मा ‘तथास्तु’ कहकर महल से चले गए। कुछ समय बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा को अथाह खुशी प्राप्त हुई। उसने एक समारोह आयोजित करवाया जिसमें अपने राज्य के सभी लोगों का खूब सेवा सत्कार किया तथा लोगों को मिठाइयाँ, कपड़े और बहुत सामान बाँटे।
धीरे-धीरे राजकुमार बड़ा हुआ, एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ जंगल में शिकार करने गया था। लेकिन सुबह से शाम हो गई उसे कोई शिकार हाथ नहीं लगा। राजकुमार अपने दोस्तों के साथ वापस घर को जा रहा था। रास्ते में अचानक उसे एक भागता हुआ हिरण दिखाई दिया। राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर उस हिरण के पीछे पड़ गया। हिरण भागते-भागते एक छोटी बस्ती में जाकर गुम हो गया। वह बस्ती डाकुओं की थी। हिरण का पीछा करते हुए राजकुमार उसी बस्ती के किसी घर के पास पहुंचा, जहाँ पर एक पिंजरा लटका हुआ था, जिसमें एक तोता बैठा था।
तोते ने जैसे ही राजकुमार को अपनी तरफ आते हुए देखा वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा “आओ, जल्दी आओ, पकड़ो इसे, इसके पास कीमती आभूषण हैं। सब कुछ लूट लो भागने न पाए।” उसकी आवाज सुनकर राजकुमार को अंदेशा हो गया कि वह गलत जगह पर आ गया हैं। उसने सोचा अगर थोड़ी देर और यहाँ पर रुका तो उसकी जान को खतरा हो सकता हैं। उसने अपने चेतक घोड़े को तेजी से भागने के लिए बोला। लेकिन, देखते ही देखते उसके पीछे कई सारे डाकू पड़ गए। लेकिन राजकुमार का चेतक हवा से बात करता था।
जिसके कारण वह राजकुमार की जान बचाकर काफी दूर आगे निकल आया। आगे चलकर उसे एक सुरक्षित स्थान दिखाई दिया, वहाँ पर आश्रम बने हुए थे। लेकिन, वहाँ भी पिंजरें में एक तोता कैद था, जोकि शांत बैठा हुआ था। राजकुमार को फिर से संदेह होने लगा कहीं यह जगह भी डाकुओं की तो नहीं हैं। राजकुमार ने अपने चेतक को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा। तोता जोर-जोर से बोलने लगा। आइए राजकुमार जी हमारे इस आश्रम में आपका हार्दिक स्वागत हैं। ठहरो, मैं अपने गुरदेव को बुलाता हूँ।
तोते के आवाज लगाने के कारण आश्रम से एक मुनिवर निकलकर आए। जिन्हें राजकुमार ने अपना परिचय देते हुए सारी घटना बता दी। आगे राजकुमार ने मुनिवर से पूँछा जब मैं डाकुओं के बीच पहुँचा तो वहाँ पर भी मुझे एक तोता मिला और यहाँ पर भी मुझे एक तोता मिला। लेकिन एक मुझे पकड़ने और मेरे जेवर लूटने की बात कर रहा था। जबकि यहाँ पर दूसरा तोता हैं जोकि मेरा अभिवादन कर रहा हैं और मेरी मुलाकात आप से करा दी। जबकि दोनों एक ही प्रजाति के हैं, यह कैसे संभव हैं।
मुनिवर मुस्कुरा कर बोले शिष्य यह अंतर सिर्फ संगत का हैं। डाकुओं के बीच रहकर वह तोता लूटमार और छल-कपट को देख रहा हैं। इसलिए उसके अंदर ऐसी ही भावना भरी हुई हैं। जबकि, हमारी कुटिया में जो तोता हैं वह हमारे संस्कार से भली भांति परिचित हैं। इसलिए, उसने हमारे जैसा व्यवहार आपके साथ किया। “कहा जाता हैं, जिस संगत में हम रहते हैं उसी प्रकार की रंगत का प्रभाव हमारे ऊपर देखने को मिलता हैं।
नैतिक शिक्षा:
जैसी संगत, वैसी रंगत
4. शरारती गिलहरी और चिड़िया – Naughty squirrel and bird:

किसी जंगल में एक बरगद के पेड़ पर एक गिलहरी रहती थी, जिसका नाम शानू था। उसी पेड़ पर अन्य पक्षी भी रहते थे। गिलहरी बहुत चंचल थी, वह हमेशा इधर-उधर, उँछल-कूद लगाए रहती थी। एक बार उसे कुछ ज्यादा ही शरारत सूझी, उसने पेड़ पर लगे एक घोंसले को उठाया और नीचे किसी खेत में रख आई। जब चिड़िया पेड़ पर आई तो उसे उसका घोंसला नहीं मिला।
चिड़िया ने बहुत पता लगाया तो उसे एक पक्षी ने बताया कि आपका घोंसला शानू गिलहरी को ले जाते हुए देखा था। जब चिड़िया ने शानू गिलहरी से पूछा तो वह जोर-जोर से हँसी और कहने लगी आपके घोंसले को मैंने पेड़ के पास के गेहूं के खेत में देखा था। इतना बोलते ही शानू गिलहरी झट से पेड़ पर चढ़ गई। चिड़िया को बहुत दुख हुआ, वह समझ गई कि उसी ने उसके घोंसले को पेड़ से नीचे गेहूं के खेत में रखा होगा।
अब चिड़िया ने किसी अन्य पेड़ पर अपना घोंसला बना लिया। कुछ दिन बाद शानू गिलहरी ने फिर कई चिड़ियोंं के घोंसले को नीचे गिरा दिया। सभी चिड़ियाँ उसकी शैतानी हरकत से उस पेड़ को छोड़कर किसी और पेड़ पर चली जाती हैं। जिसके कारण अब वह गिलहरी उस पेड़ पर अकेली ही रहती थी।
एक बार उस पेड़ के नीचे गेहूं के खेत मे आग लग गई। देखते ही देखते आग की लपक पेड़ के चारों तरफ होते हुए भयानक होती जा रही थी। अब गिलहरी के पास नीचे उतरने का कोई मौका नहीं था। कुछ ही समय में पेड़ की टहनियों ने भी आग पकड़ ली। गिलहरी अपनी जान बचाने के लिए सबसे ऊंची टहनियों पर जा कर बैठ गई। लेकिन, आग की लपक इतनी खतरनाक थी कि गिलहरी अपनी अंतिम साँसे ले रही थी।
तभी पेड़ के ऊपर दो चिड़िया अपने पंजे में एक डंडे को पकड़कर आई और गिलहरी को डंडे के बीच में पकड़कर लटकने के लिए बोली। किसी तरह से दोनों चिड़ियोंं ने उसे वहाँ से निकालकर अपने पेड़ पर ले गई। गिलहरी ने वहाँ पर और कई चिड़ियों को देखा, जिन्हे वह पहले परेशान किया करती थी। गिलहरी ने सभी के सामने शर्मिंदा होकर अपने सिर को झुका लिया और आगे से किसी भी पक्षी को परेशान न करने की कसम भी खाई।
नैतिक शिक्षा:
हमें समाज में हर किसी की जरूरत पड़ती हैं। इसलिए हमें संगठित रहना चाहिए।
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5. कौवा चला हंस की चाल -Kauwa chala hans ki chaal:

किसी तालाब में एक बगुला रहता था। उसी तालाब के किनारे जामुन के पेड़ पर एक कौवा भी रहता था। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। लेकिन, कौवा जब कभी बगुले को देखता था तो मन ही मन बहुत दुखी होता था। वह अपने काले रंग के कारण अपने आपको बहुत कोसता था। वह चाहता था कि मैं बगुले जैसा सफेद शरीर वाला बन जाऊँ। एक दिन कौवे ने बगुले से कहा – “मैं भी तुम्हारे जैसा सफेद शरीर वाला बनना चाहता हूँ, तुम अपने सफेद रंग का राज मुझे बता दो।”
बगुला कौवे के ऊपर हँसता हैं, और कहता हैं – “कौवा भाई भगवान ने हमें जिस रूप में बनाया हैं, उसी तरह हमें अपने आप को स्वीकार करना चाहिए।” कौवे ने अपने बदले हुए सुर में बगुले से कहा- “रहने दो, मत बताओ, तुम नहीं चाहते तुम्हारे जैसा कोई और पक्षी दिखे।” लेकिन, आज मैं तुम्हें एक बात बता रहा हूँ, तुम देखना एक दिन मैं तुमसे भी सफेद शरीर वाला बनकर दिखाऊँगा” और वह कांव कांव करते हुए वहाँ से उड़ गया। आकाश में उड़ते-उड़ते वह बहुत दूर निकल आया और नीचे देखा कि बहुत सारें कौवे कुछ खा रहे होते हैं।
नीचे से एक बूढ़े कौवे ने आवाज दी- “नीचे आ जा भाई, तुम भी कुछ खा लो” उस कौवे ने ऊपर से ही कहा कि “तुम्हारा और हमारा कोई मेल नहीं है, एक दिन देखना तुम काले-कलूटे कौवोंं से अच्छा बगुला और हंस जैसा बनकर दिखाऊँगा” और आगे चला जाता हैं। कौवा उड़ते-उड़ते किसी घर के आँगन में नीम के पेड़ पर जाकर बैठता हैं। नीचे देखता है की एक औरत अपने बच्चे को नहला धुलाकर तेल पाउडर लगा रही होती हैं। जिसके कारण बच्चे का रंग सफेद हो जाता हैं। कौवे के दिमाग में विचार आता हैं। वह चुपके से पाउडर के डिब्बे को लेकर उड़ जाता हैं।
वह एक झील के किनारे पहुँचकर सोचता हैं, चलो इस पाउडर को लगाते हैं। जब वह पाउडर को लगाकर अपने पंखों को उड़ने के लिए फड़फड़ाता हैं तो सारा पाउडर नीचे गिर जाता हैं। लेकिन कौवे ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी, वह फिर से अपनी उड़ान भरता हैं। देखते-ही देखते वह एक झरने के पास पहुंचता हैं। जहाँ पर उसकी मुलाकात एक हंस से होती हैं। कौवा बड़े मीठे स्वर में कहता हैं- “हंस भैया मैं आपके जैसा सफेद शरीर वाला बनना चाहता हूँ, मुझे काले रंग से नफरत हैं। कोई तरकीब मुझे बताओ”।
हंस ने मुस्कुराते हुए कहा- मेरे जैसा सफेद शरीर वाला बनना चाहते हो? “हमें कुदरत ने जैसा रंग रूप और जो भी आकार दिया हैं। उसी में हमें संतुष्ट रहना चाहिए। हमें किसी की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कौवे ने हंस से कहा-“ठीक हैं अपने जैसा बनने का रहस्य मत बताओ। लेकिन मेरी एक बात ध्यान से सुन लो, एक दिन मैं सफेद शरीर वाला बनकर जरूर दिखाऊँगा”। कौवा वहाँ से उड़ गया, उड़ते-उड़ते एक घर देखता हैं जिसकी सफेदी हो रही होती हैं। जिसके कारण घर का रंग सफेद होता जा रहा हैं।
उसने उस घर के पास एक पेड़ पर बैठ कर अपना दिमाग चलाया और घर की पुताई के लिए भिगोए गए चुने की बाल्टी में डुबकी लगा दी। बाल्टी से बाहर निकलते ही उसके आँखों में जलन तथा शरीर में खुजली शुरू हो गई। किसी तरह वह उड़ते हुए एक तालाब के पास गया और उसमें डुबकी लगा दी। कुछ घंटों बाद उसको थोड़ी-बहुत राहत मिली। अब उसको सफेद शरीर बनाने का भूत निकल गया। अब वह जैसा हैं वैसे ही अपने आप को स्वीकार करने लगा।
नैतिक शिक्षा:
हम जैसे भी हैं, जिस परिस्थितियों में हैं, उसी में अपने आप को स्वीकार करना चाहिए।