कहानी ऐसी होनी चाहिए जिसमें बच्चे का लगाव अधिक हो। कहानी को बच्चा बहुत सहज होकर सुने। इसके अलावा कहानी बहुत सरल और कम शब्दों में लिखित होनी चाहिए। जिसके कारण बच्चे के अंदर उत्सुकता देखने को मिलेगी। इसके अलावा, बच्चे को उस कहानी से मिलने वाली सीख के बारें में भी बताना चाहिए। इसलिए, कहानीज़ोन के इस लेख में छोटे बच्चों की कहानी कुछ इस प्रकार से हैं।
ऐसी जिंदगी क्या फ़ायदा:

एक बार की बात हैं, एक व्यापारी अपने व्यापर को बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे गाँवों में कंपनियां खोल रहा था। क्योंकि, गाँव में उसे कम तनख़्वाह लेने वाले मजदूर भी आसानी से मिल जाते थे। एक दिन व्यापारी कंपनी खोलने के लिए किसी ऐसे गाँव में जा रहा था। जहाँ पर उसे नदी से नाव के सहारे जाना था।
अगर वह, सड़क के रास्ते जाता तो उसे लंबा सफर तय करना पड़ता। उसने सोचा समय बहुत कीमती हैं। क्यों न मैं नदी के रास्ते नाव से निकल जाऊँ। व्यापारी नदी के किनारे जाकर देखा तो एक नाव वाला जिसे (मल्लाह) कहते हैं। वह चप्पू और नाव लेकर नदी के तट पर बैठा था। व्यापारी ने मल्लाह के पास गया।
उसने कहा, “अरे भाई! क्या तुम मुझे नदी के उस पार ले चलोगे? मल्लाह ने कहा, क्यों नहीं साहब! मैं तो आपकी सेवा के लिए ही बैठा हूँ। व्यापारी नाव में बैठ गया, मल्लाह अपने चप्पू से नाव को पानी चलाने लगा। दूसरा किनारा दूर था, व्यापारी ने मल्लाह से बातें करते हुए जा रहा था। उसने मल्लाह से कहा, “भाई क्या तुम, मुझे पहचानते हो? मल्लाह ने कहा “नहीं साहब! मैं आपको नहीं पहचानता।”
व्यापारी ने हँसते हुए कहा, “तुम अखबार नहीं पढ़ते क्या? आए दिन मेरी फ़ोटो अखबार में छपती रहती हैं।” मल्लाह ने कहा, “साहब! जब मैं छोटा था तो मेरे माता-पिता जल्दी ही गुजर गए। जिसके कारण मैं पढ़ाई नहीं कर सका।” व्यापारी ने हँसते हुए कहा, “अच्छा! तो तुम अनपढ़ हो? ‘ऐसी जिंदगी का क्या फ़ायदा।’ उसकी बातों को सुनकर मल्लाह को बुरा लगा।
व्यापारी ने कहा, क्या तुम्हें पता हैं, मैं तुम्हारे गाँव के पास खाली पडे जमीन पर अपनी कंपनी लगाने के सिलसिले में जा रहा हूँ? एक दिन मैं तुम जैसे लोगों को नौकरी दूँगा। हमारी कंपनी यहाँ पर नदी के पानी से मिनरल वॉटर बनाएगी। उसकी बातों को सुनकर मल्लाह ने कहा, “साहब यह मिनरल वॉटर क्या होता हैं।” मल्लाह की बातों को सुनकर व्यापारी चिढ़ सा गया। उसने कहा, “तुम्हें मिनरल वॉटर के बारें में नहीं पता।”
मल्लाह ने कहा, नहीं साहब मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता। तुम शहरों में देखे होंगे। एक लीटर की छोटी-छोटी बोतल में जो पानी बिकता हैं। उसे मिनरल वॉटर कहते हैं। यह पानी पीने में बहुत अच्छा और लाभदायक होता हैं। मल्लाह ने व्यापारी से कहा, “साहब! मैं तो कभी शहर गया ही नहीं इसलिए ऐसे बोतल में पानी बिकते हुए कभी नहीं देखा।” व्यापारी उसे आश्चर्य से देखा और उसके ऊपर जोर-जोर से हँसते हुए कहा, “फिर तो ‘ऐसी जिंदगी क्या फ़ायदा।’
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व्यापारी की बातों को सुनकर मल्लाह बहुत दुखी हुआ। उसे सच में लगने लगा की मेरी जिंदगी बेकार हैं। जिसे मुझे इस नदी और नाव के अलावा कुछ और नहीं पता, वह चिंतित हो उठा। उसने अपना चप्पू चलाना भी बंद कर चुका था। तभी उसकी नाव एक बडे टीले से टकरा गई। जिससे उस नाव में पानी भरने लगा। उस स्थान पर नदी की गहराई बहुत अधिक थी। उसे समझ आ गए कि यहाँ से नाव के साथ निकल पाना असंभव हैं।
मल्लाह, घबराते हुए तेज आवाज में व्यापारी से कहा, “साहब नाव डूबने वाली हैं, आपको तैरना तो आता हैं ना?” व्यापारी ने कहा, “तुम यह क्या कह रहे हो? मुझे बिल्कुल तैरना नहीं आता” मल्लाह ने हँसते हुए कहा, “साहब ऐसी जिंदगी का क्या फ़ायदा” आपको तैरना नहीं आता। व्यापारी उसकी बातों को सुनकर लज्जित महसूस करने लगा। उसने कहा, मैं तुम्हें दुनिया का हर वह चीज दूँगा जो तुम माँगोगे। प्लीज! मेरी जान बचा लो।
मल्लाह ने कहा, “साहब, घबराओ मत! मुझे और कुछ नहीं आता लेकिन, मुझे तैरना अच्छे से आता हैं। मुझ पर विश्वास रखो, मैं आपको डूबने नहीं दूँगा। मल्लाह व्यापारी को डूबने से बचा लिया। वह बाहर आकर मल्लाह से कहा, “मुझे आपके साथ ऐसी बातें नहीं करनी थी। जिससे तुम्हें दुख पहुचे। आपका यह ऐहसान मेरे ऊपर कर्ज रहेगा।
नैतिक सीख:
हर इंसान के अंदर एक न एक अच्छाई जरूर होती है। जोकि इस दुनिया में किसी के पास नहीं होती हैं। हमें उस इंसान के अंदर उस अच्छाई को खोजना चाहिए, न की उसके बुराइयों को देखना चाहिए।
हाथी और महावत – Elephant and mahout:

सरयू नदी के किनारे रामलाल नाम का एक महावत झोपड़ी में रहता था। उसने तीन हथियाँ पाल रखा था। रामलाल को हाथियों से बहुत लगाव था। उसके परिवार में उन्हीं तीन हाथियों के अलावा और कोई नहीं था। रामलाल सुबह से शाम तक हाथियों के साथ ही लगा रहता था। इसलिए, वह हाथियों के दुख-दर्द को अच्छे समझता था। हथियों को भी रामलाल से अत्यधिक लगाव था।
एक दिन रामलाल की तबीयत खराब हो गई। वह सुबह अपने विस्तार से उठ नहीं सका। एक हाथी ने रामलाल को देखा और तुरंत पास के वैद्य को बुलाने चला गया। दूसरी हाथी जंगल से कुछ फल लाने के लिए चली गई। जबकि, तीसरी हाथी नदी से पानी लेने चली गयी। इस प्रकार सभी हाथी रामलाल को ठीक करने के लिए प्रयास करने लगे।
हाथियों का रामलाल से लगाव को देख वैद्य बहुत अचंभित हुआ। उसने रामलाल का इलाज किया और वह ठीक हो गया। अगली सुबह रामलाल के घर पर वही वैद्य फिर से आया। उस समय रामलाल अपने हाथियों को नहलाने के लिए नदी के पास ले गया था। नदी से लौटने के बाद रामलाल अपने घर पर वैद्य का आने का कारण पूछा।
रामलाल इसके पहले वैद्य से कुछ पूछता, वैद्य ने बोलना शुरू कर दिया, “रामलाल, तुम कितने भाग्यशाली हो आज के इस युग में लोगों के पास इतना बड़ा परिवार, पत्नी और बच्चे होने के बावजूद उनकी कोई देखभाल करने वाला नहीं हैं। तुम्हें ठीक करने के लिए तुम्हारे सभी जानवरों ने भली प्रकार से देखभाल की जोकि बहुत ही सराहनीय हैं।
महावत ने कहा, “मेरा जीवन इन्ही हाथियों के लिए समर्पित हैं।” वैद्य ने उससे उसके स्वास्थ्य और हाथियों से जुड़ी बहुत सारी बातें की। जानवरों के प्रति उसके लगाव को देखकर वैद्य बहुत प्रभावित हुआ। वैद्य अपने घर जाने लगता हैं कुछ दूर ही जाने पर, अचानक वैद्य वापस रामलाल के पास आकर पूछता हैं। मैं एक बहुत ही अहम सवाल आपसे पूछना भूल ही गया था।
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रामलाल कहा, “वैद्य जी, वह कौन बात हैं जो आप पूछना चाहते हैं?” वैद्य ने कहा, “आपके पास तीन हथियाँ हैं जोकि बहुत शक्तिशाली होती हैं, जो एक ही झटके में बड़े से बड़े पेड़ को उखाड़ कर फेक सकते हैं। आप उनको किससे बांधते हो?
रामलाल, वैद्य को हाथियों के बाधने वाले स्थान पर ले गया। उसने वैद्य को रस्सी और खूँटा दिखाते हुए कहा, “मैं हाथियों को इन्ही रस्सी और खूँटे से बांधता हूँ। जिसे देख वैद्य आश्चर्यचकित रह गया। वैद्य ने रामलाल से कहा, इतनी कमजोर रस्सी और खूंटें को हाथी क्यों नहीं तोड़ पाते हैं?
रामलाल ने कहा, “यह वही रस्सी और खूंटा हैं, जब हाथी का बच्चा पैदा हुआ था तो हमने इसी में बंधा था। उस समय हाथी के बच्चे के लिए यह बहुत मजबूत था। जिसे वह बहुत प्रयास करने के बावजूद भी तोड़ नहीं सकता था। धीरे-धीरे हाथी बड़े हो गये लेकिन उनके दिमाग में यह बात घर कर गई कि यह रस्सी और खूंटा वह नहीं तोड़ सकते।”
रामलाल ने कहा, “इसी को कहते हैं मानसिक गुलामी। यह सभी हाथी जो काम बचपन में नहीं कर सके, अब वह बड़े होकर भी, उस काम को करने का प्रयास भी नहीं करती हैं। क्योंकि, इनके दिमाग में यह बात बैठ गई हैं कि यह रस्सी वह कभी नहीं तोड़ सकते। उसकी बात सुनकर वैद्य को बहुत बड़ी सीख मिली और वह वपास अपने घर को चला गया।
नैतिक सीख:
हमें अपनी मानसिक गुलामी तोड़कर आगे बढ़ने की सोचना चाहिए।