Motivational Story in Hindi for Student

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जब हम छात्रों के लिए प्रेरणादायक कहानियाँ नैतिक शिक्षा के साथ खोज रहे होते हैं तो हम उन कहानियों के माध्यम से मिलने वाली सीख पर अधिक ध्यान देते हैं। क्योंकि, कहानियां बच्चे को पुनः से उठकर कुछ करने का जज्बा देती हैं। इसके अलावा कहानियां अगर मोटिवेशन से भरपूर होती हैं तो बच्चे को कहानी सुनाना सार्थक माना जा सकता हैं।

1. निरंतर प्रयास का प्रभाव – Effect of sustained effort:

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एक बार की बात हैं, राजू की वार्षिक परीक्षा निकट थी। वह उदास और हताश होकर दरवाजे की दहलीज पर बैठा था। उसके दिमाग में एक ही बात बार-बार घूमें जा रही थी कि “मैं परीक्षा कैसे पास कर पाऊँगा” क्योंकि, उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। उसे यह भी चिंता हो रही थी कि अगर “मैं परीक्षा में फेल हो गया तो मेरे पापा-मम्मी, दोस्त, और पड़ोस के लोग क्या-क्या बातें कहेंगे।

राजू की पढ़ाई अच्छी नहीं होने के कारण वह तिमाही और छमाही के परीक्षाओं में एक-एक विषय में फेल हो चुका था। अब उसे लगने लगा था कि वह पास होकर आठवीं कक्षा में नहीं पहुँच पायेगा। उसे ध्यान आया कि कल रात खाना खाते समय पापा ने कहा था, “अगर तुम इस परीक्षा में पास नहीं हुए तो तुम्हारा दोस्तों के साथ खेलना और घूमना-फिरना बंद हो जाएगा।

इसके अलावा पापा ने कहा था कि “राजू! अगर तुम परीक्षा पास कर लोगे तो हम लोग गर्मियों की छुट्टी में तुम्हें घूमाने तुम्हारे नानी के घर ले चलेंगे।” राजू की मम्मी राजू से पहले ही कह चुकी थी कि अगर तुम इस परीक्षा को पास कर लोगे तो तुम्हें एक नई साइकिल दिलाएंगे।

राजू घर की दहलीज पर बैठे-बैठे तरह-तरह की बातें सोचते हुए, सिर नीचे करके बैठा था। तभी उसे एक चींटी दिखी, जोकि मरे हुए झींगुर को खींचते हुए दरवाजे की दहलीज पर चढ़ने का बार-बार प्रयास कर रही थी। राजू उसे बिना पलक झपकाए देखे जा रहा था। अंततः एक बार चींटी उस मरे हुए झींगुर को खींचते हुए दहलीज पर चढ़ने में सफल हो गई।

चींटी की मेहनत और लगन से मिली सफलता को देख, राजू का आत्मविश्वास जगा। उसने सोचा, जब चींटी बार-बार गिरकर दहलीज पर चढ़ सकती हैं तो मैं निरंतर प्रयास से परीक्षा क्यों नहीं पास कर सकता? वह तुरंत उठा और जाकर अपने कमरे में पढ़ाई करना शुरू कर दिया।

इस तरह से राजू का आत्मविश्वास दिनों-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। उसे चींटी की मेहनत और लगन हमेशा पढ़ाई के लिए प्रेरित करती जा रही थी। जिसके कारण उसका मन अब पढ़ाई में भी अधिक लगने लगा था।

नैतिक शिक्षा:

निरंतर प्रयास मेहनत और लगन से सफलता कदम चूमती हैं।

2. विनम्रता की ताकत – Power of Humility:

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एक समय की बात हैं। एक नदी को अपने प्रचंड बहाव के ऊपर अत्यधिक घमंड हो गया। वह सोचने लगी की मेरे अंदर इतनी ताकत हैं कि मैं जो चाहूँ वह उखाड़ सकती हूँ। चाहे वह इंसान, मकान, पेड़, पत्थर या फिर कोई जानवर क्यों न हो। मैं सब को बहा कर समुद्र में मिला सकती हूँ। नदी को दिन-प्रतिदिन अपने आप पर गुरूर होता जा रहा था।

एक दिन नदी समुद्र से बोली, “आप जिसे कहो, मैं उसे आप से मिला सकती हूँ। मेरे अंदर अथाह और प्रचंड बहाव हैं। समुद्र समझ गया कि नदी अपने अभिमान में चूर हैं। क्यों न इसको इसका आईना दिखा दें। समुद्र ने नदी से कहा- “क्या आप मेरे लिए एक छोटा सा काम करोगी? नदी ने कहा, “जरूर आप हुक्म तो करो।”

इन कहानियों को भी देखें: मनोरंजन और शिक्षा से भरपूर छोटे बच्चों की कहानी

समुद्र ने कहा, “आप मेरे लिए दूब घास को बहा कर ले आओ।” नदी मुस्कुरा कर बोली इतनी सी बात, अभी दूब घास का ढेर लगा देती हूँ। नदी अपने प्रचंड वेग से खेतों में लगे दूब घास को उखाड़ने को कोशिश करने लगी। लेकिन, जब पानी का बहाव आता तो घास नीचे बैठ जाती। इस तरह से नदी कई बार प्रयास करती रही। लेकिन दूब को उखाड़ नहीं सकी।

नदी थक हार कर खाली हाथ समुद्र के पास पहुँची और पूरी घटना को सुना दी। समुद्र ने नदी की बात सुनकर कहा, “तुम्हारी बातों को सुनकर मुझे ऐहसास हो गया था कि तुम अभिमान से भरी हुई हो। लेकिन, तुम्हें इस बात का ऐहसास दिलाना बहुत जरूरी था।

समुद्र ने नदी को समझाते हुए कहा- “जो पेड़ और पत्थर की तरह कठोर होते हैं। उन्हें उखाड़ने में देरी नहीं लगती। उन्हें चाहे पानी का बहाव हो या हवा का झोंका एक ही झटके में उखाड़ देती हैं।

परंतु अगर जिसके अंदर दूब घास की तरह लचीलापन और नम्रता होती हैं। उन्हें कोई भी किसी तरह से हानि नहीं पहुँचा सकता। नदी, समुद्र से अपने अभिमान का पछतावा करते हुए माँफी मांगती हैं। इस तरह से नदी का घमंड चूर-चूर हो गया।

नैतिक शिक्षा:

घमंड इंसान को पतन की ओर ले जाता हैं।

3. व्यावहारिक शिक्षा – Practical Education:

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सोनू को गुड़ खाने का बहुत शौक़ था। उसके माता-पिता उसे कई बार समझा चुके थे कि अधिक गुड खाने से दाँत सड़ जाते हैं। लेकिन, वह मानता नहीं था। वह कभी माता-पिता के सामने तो कभी चोरी छिपे गुड़ खाया करता था। सोनू के माता-पिता चिंतित थे।

एक दिन सोनू को लेकर उसकी माँ एक साधु के पास जाकर बोली, “महाराज! कृपया मेरे बच्चे को कुछ समझाए। यह गुड़ बहुत खाता हैं। सोनू की माँ की बात को सुनकर साधु कुछ देर चिंता में डूब गए।

फिर सोचकर बोला, “इस बच्चे को लेकर अगले सप्ताह मेरे पास आना, फिर इसका उपचार बताऊँगा।” एक सप्ताह बाद सोनू और उसकी माँ फिर से उसी साधु के पास गए और बोले, “महाराज! आज एक सप्ताह बीत चुका हैं। कृपया, कोई उपचार बताए।”

और कहानी भी देखें: अहंकारी राजा की कहानी

साधु ने बच्चे से बात की और उसे गुड़ से होने वाले नुकसान को उदाहरण देकर समझाया। बच्चे ने साधु की बात मान ली। और उस दिन से उसने गुड़ खाना छोड़ दिया। सोनू की माँ ने साधु से कहा, “महाराज! जब हम पहली बार आए थे तो आपने यह शिक्षा क्यों नहीं दी?” साधु ने सोनू की माँ से कहा, “तब मैं भी गुड़ खाता था। फिर मैंने उसी दिन से गुड़ खाना छोड़ दिया।

यही कारण हैं कि आज मैं बच्चे को गुड छोड़ने के लिए कह पाया। क्योंकि, किसी भी चीज का असर तब होता हैं, जब वह उसी तरह हो।

नैतिक सीख:

किसी को बदलने से पहले, खुद को बदलना सीखो।

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