रामू एक ईमानदार सीधा-साधा अनपढ़ किसान था। वह अपने गाँव के जमींदार के खेतों का काम देखता था। वह अपने जमींदार की हर बात को अपना धर्म मानकर काम करता था। रामू किसी भी काम को बिना जमींदार से पूछे नहीं करता था। इसके विपरीत जमींदार बहुत ही चालाक था। वह रामू जैसे अनपढ़ लोगों का फायदा उठता था।

रामू की पहली पत्नी धनिया मर चुकी थी। उससे एक बेटा मोहन था। मोहन काफी समझदार था। रामू की दूसरी पत्नी से एक बेटी थी। उसका नाम सरिता था। मोहन पढ़ना चाहता था। परंतु गाँव में कोई स्कूल नहीं था। उसने अपने पिता से शहर जाकर पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। रामू ने जमींदार से मोहन की इच्छा के बारें में बतायी। जमींदार नहीं चाहता था कि कोई गाँववासी पढे-लिखे। उसने रामू को शिक्षा के कई नुकसान बताए।
जमींदार ने रामू से कहा, “तुम्हारा बेटा मोहन शिक्षित होते ही बदल जाएगा और तुम्हें छोड़कर कही चला जाएगा।” वह बुढ़ापे में तुम्हें परेशान करेगा तुम्हें वृद्धाश्रम में छोड़ देगा। इसके अलावा जमींदार ने मोहन को किसी काम पर लगाने की सलाह भी दे दी। रामू घर आकर अपने बेटे मोहन को शहर जाकर पढ़ाई करने से मना करते हुए कहा, तुम कोई छोटा-मोटा काम धंधा खोजों और उसे करो पढ़ाई नहीं करनी हैं।
लेकिन, मोहन पढ़ाई करने की धुन लगाए रखा। वह पढ़ना चाहता था। वह बड़ा होकर वकील बनाना चाहता था। वकील बनकर वह अशिक्षित लोगों को न्याय दिलाना चाहता था। उसने बार-बार अपने पिता से स्कूल जाने की रट लगाए रहा। उसकी जिद्द के कारण रामू को गुस्सा आ गया उसने मोहन को पीट-पीट कर घर से बाहर निकल दिया।
मोहन रात भर पैदल चलता रहा। जब सुबह हुई तो अपने आप को एक शहर में पाया। थका-हारा वह एक स्कूल के दरवाजे पर जाकर बैठा था। अचानक स्कूल के प्रिंसिपल की नजर उसके ऊपर पड़ी।

प्रिंसिपल ने उसे अपने पास बुलाकर उसके बारे में जानना चाहा। मोहन रोते-रोते अपनी पूरी कहानी प्रिंसिपल से बता दी। प्रिंसिपल बहुत ही दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे। मोहन के पढ़ने की इच्छा को देखकर प्रिंसिपल काफी प्रभावित हुए। मोहन के बारें में जानने के बाद उसे अपने गले से लगा लिया।
प्रिंसिपल ने मोहन को अपने घर में रख लिया। अगले दिन से मोहन स्कूल जाना शुरू कर दिया। उसने कड़ी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई करना शुरू कर दिया। उसकी लगन देखकर प्रिंसिपल उसे हमेशा प्रेरित करते रहते थे।
और देखें: मोटिवेशनल स्टोरी: कैसे जिए आराम से
इस तरह से मोहन मास्टर जी की मदद से पढ़ाई करने लगा। प्रिंसिपल साहब ने मोहन को कुछ पैसे के लिए सरकारी मदद भी की जिससे वह अपने स्कूल का खर्च चलाता था। धीरे-धीरे मोहन बच्चों को कोचिंग पढ़ाना शुरू कर दिया। जिससे उसे कुछ और पैसे भी मिलने लगे।
मोहन अच्छे अंक के साथ बारहवीं परीक्षा भी पास कर ली। जिसके कारण उसे स्कूल में सम्मानित किया गया। उधर रामू की अशिक्षा का जमींदार खूब फायदा उठता रहा। वह कम रुपये देकर ज्यादा पर अंगूठा लगवाता रहा। इस तरह से रामू धीरे-धीरे अधिक कर्ज में डूब गया।
रामू की लड़की सरिता शादी के योग्य हो चुकी थी। एक दिन रामू ने सरिता के लिए रिश्ता पक्का कर लिया। लेकिन, रामू के पास पैसे नहीं थे जिससे वह सरिता की शादी कर सके। उधर जमींदार की नजर रामू के महँगी जमीन पर थी। यह खबर मोहन तक पहुँच चुकी गयी।
एक दिन रामू अपने जमीन के कागज को लेकर जमींदार के पास गिरवी रखकर पैसे लेने के लिए गया। जमींदार इसी मौके के इंतजार में था। वह चाहता था कि रामू की जमीन कौड़ियों के भाव हड़प ले।
अचानक मोहन अपने प्रिंसिपल के साथ गाँव पहुँचा। जमींदार उसे अनपढ़ समझता था। अंगूठा लगवाने से पहले जमींदार यह कहते हुए उसने मोहन को कागज दिखाया कि अगर रामू यह पैसा वापस नहीं दे सका तो यह जमीन मेरी हो जाएगी।

मोहन ने उस कागज को पढ़कर गाँव वाले के सामने सुना दिया। कागज में लिखी बातों को जानकार गाँव वाले दंग रह गए। कागज में लिखा था कि आज की तारीख से इस जमीन का मालिक जमींदार होगा। इस जमीन पर रामू का कोई अधिकर नहीं हैं। जबकि रामू उस जमीन को गिरवी रख रहा था न की बेच रहा था।
गाँव वालों के सामने जमींदार शर्मिंदा हो गया। वह अपना चेहरा छिपाकर दबे पाँव अपने घर को निकल गया। रामू अशिक्षित होने के कारण अपने आप को बहुत कोसा। यदि आज मोहन शिक्षित न होता तो वह बर्बाद हो जाता। गाँव कर अन्य लोगों की भी आँख खुल गई।
इन्हें भी पढ़ें: Motivational Story in Hindi for Student – प्रेरणादायक कहानियाँ
मोहन को रामू ने अपने गले से लगा लिया और अपने किये पर पछताव हुआ। दोनों को देख प्रिंसिपल साहब भी खुश हुए। मोहन ने बच्चों को कोचिंग के बदले मिले पैसे अपने पिता रामू को देते हुए कहा। “ये पैसे लो इन्ही पैसे से सरिता की शादी कर दो। आपको जमीन गिरवी रखने की जरूरत नहीं हैं।”
गाँव आने के कारण मोहन आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। जिससे उसके वकील बनने का सपना अधूरा ही रह गया। लेकिन, उसने अपने गाँव में ही एक स्कूल खोला जिसके माध्यम से अपने गाँव के बच्चों को शिक्षित करना शुरू कर दिया।
नैतिक शिक्षा:
दुनिया अशिक्षित लोगों का फायदा उठती हैं।