सविता और महेश भाई-बहन थे। दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों हमेशा एक साथ स्कूल आते-जाते थे। उनके माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने का भरसक प्रयास करते थे। दोनों पढ़ने में भी बहुत अच्छे थे। सविता बड़ी तथा महेश छोटा था। दोनों हमेशा एक दूसरे की बात मानते थे। धीरे-धीरे दोनों बड़े हो चुके थे। उनकी पढ़ाई भी लगभग पूरी हो चुकी थी। कुछ ही दिन बाद सरिता की नौकरी लग गई।
अब वह अपने भाई को और और पढ़ने के लिए प्रेरित करने लगी। महेश भी मन लगाकर पढ़ाई करता था। देखते-देखते महेश की भी नौकरी लग गई। अब उनके घर की स्थिति बदल चुकी थी। भाई-बहन ने अपने और अपने माता-पिता के शौक की हर चीजें खरीद ली थी। जिसके कारण अब उन्हें किसी चीज की कमी नहीं लगती थी।

एक दिन सविता के माता-पिता ने सविता की शादी के लिए रिश्ता पक्का कर दिया। इस बात की खबर सुनकर महेश बहुत दुखी हुआ। उसे लगने लगा कि अब वह अकेले हो जाएगा। वह अक्सर मायूस रहने लगा था। उसका मन ऑफिस में भी नहीं लगता था। वह अपनी बहन के सामने भी जल्दी नहीं पड़ता था। सविता महेश के अंदर चल रही सारी बातों को समझ रही थी। लेकिन वह कुछ कह नहीं पा रही थी।
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एक दिन सविता ने महेश से पूछा, “क्या बात हैं महेश, आजकल तुम बहुत उदास रहते हो।” उसकी बातों को सुनते ही वह कुछ टाल-मटोल करने लगा। लेकिन सविता ने फिर से पूछा, “महेश आखिर बात क्या हैं, जो तुम किसी से ज्यादा बोलते नहीं हो।” महेश कुछ नहीं, कहकर अपना मुँह पीछे की तरफ कर लिया। उसकी आँसू रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सरिता सामने से देखी तो दोनों फफककर रो पड़े।
महेश के माता-पिता ने दोनों को बहुत समझाया। सविता की शादी हो गई। वह अपने ससुराल चली गई। अब महेश कुछ दिन अकेला महसूस करता रहा। उसके माता-पिता ने सोचा क्यों न हम महेश की भी शादी कर दे, जिससे महेश को अकेला महसूस न हो। कुछ दिनों बाद महेश की भी शादी हो गई। लेकिन, महेश अपने बचपन की यादें नही भुला पा रहा था।
महेश सप्ताह में लगभग दो बार अपनी बहन से मिलने जाता था। दोनों मिलकर अपने पुराने दिनों की बातें करते और खूब हँसते थे। सविता कोई भी त्योहार महेश के साथ ही मानती थी। सविता और महेश के बच्चे भी हो चुके थे। लेकिन दोनों के अंदर अभी भी वही लगाव देखने को मिलता था। कुछ साल बाद उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई।
सविता उस दिन बहुत अचंभित हुई। जब महेश ने सविता को कोर्ट में पहुचने के लिए कहा। सविता के अंदर तरह-तरह के ख्याल चल रहे थे कि उसका भाई उसे कोर्ट में क्यों बुलाया हैं। कोर्ट पहुंचकर महेश ने सविता को फ़ाइल में रखे कई पेजों पर दस्तखत करने के लिए कहा। सविता ने महेश से पूछा यह किस चीज के कागज हैं। महेश ने कहा, बहन यह हमारे घर के जमीन जायदाद के पेपर हैं जिसपर तुम्हारा भी हक हैं।
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इसलिए मैं आधे हिस्से में तुम्हारा नाम लिखवा रहा हूँ। सविता ने महेश से पूछा तुम ठीक तो हो न, क्या जरूरत हैं यह सब करने की हमारे पास सबकुछ हैं। हमें कुछ भी नहीं चाहिए। महेश ने कहा, “हमारे माता-पिता के पास पहले कुछ जमीन जायदाद नहीं थी। लेकिन जब हम दोनों की नौकरी लगी तो हमने कई जमीन खरीदें और बहुत सारी चीजें बनाए। जिसपर तुम्हारा भी हक हैं। लेकिन सविता ने महेश के किसी भी बात को स्वीकार्य नहीं किया।
महेश की सोच और उसकी दरियादिली देख सविता बहुत खुश हुई। वह भगवान से हर जन्म में महेश जैसा भाई मिलने की कामना की। इस तरह से महेश और सविता ने बहन-भाई की एक बेहतरीन मिसाल पेश की।
नैतिक सीख:
माता-पिता के बनाए वसीयत में जितना हक बेटे का हैं उतना ही हक बेटी का भी हैं।