5 मजेदार स्टोरी इन हिंदी नैतिक शिक्षा के साथ

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आज के इस डिजिटल युग में बच्चों का मोबाइल, लैपटॉप और टेलीविजन से अधिक लगाव होने के कारण छोटी ही उम्र में आँखों की अत्यधिक समस्या देखी जा रही हैं। जिसके कारण बच्चों को चश्मा लगाने की जरूरत पड़ रही हैं। जबकि, बच्चे इन उपकरणों का प्रयोग मनोरंजन तथा ज्ञानार्जन करने के लिए करते हैं। इसके अलावा, बच्चों का मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानार्जन करने के लिए कहानियां सुनना एक बहुत ही सही और सटीक माध्यम हो सकता हैं। ठीक इसी प्रकार से देखे तो आज कहानीज़ोन के इस लेख में आपकों 5 मजेदार स्टोरी इन हिंदी सुनाने जा रहे हैं, जोकि निम्नलिखित प्रकार से हैं।

1. कौवा और हंस – Kauva aur hans:

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मानसरोवर झील में एक हंस रहता था। जोकि बर्फ के समान सफेद और सुंदर था। हंस उस झील में बहुत खुश रहता था। झील के किनारे पेड़ पर एक कौवा भी रहता था। जिससे हंस की खुशी देखी नहीं जाती थी। वह सोचता हैं कि यह हंस इतना सुंदर और खुश कैसे रहता हैं? कौवा हंस की सुंदरता को देखकर उससे ईर्ष्या करने लगा था। एक बार कौवे ने हंस की खुशी और सुंदरता का राज जानना चाहा। वह पेड़ पर बैठकर पूरे दिन उसे देखता रहा।

इस तरह से कौवे ने सोचा हंस पूरे दिन पानी में तैरता रहता हैं तथा पानी के अंदर के कीड़े-मकोड़े तथा घास को खाता हैं। इसलिए इसके पंख बर्फ की तरह सफेद और सुंदर हैं। कौवे ने सोचा ‘क्यों न मैं भी अपनी दिनचर्या हंस की तरह कर लूँ, जिससे मैं भी हंस के समान सुंदर दिखने लगूँगा।’ कौवा बिना सोचे समझे पूरे दिन झील के पानी में तैरने की कोशिश करने लगा। वह अपने आप को पूरी तरह से पानी में डुबोए रखना चाहता था। जिससे उसके शरीर और पंखों का रंग बदलकर सफेद हो जाए।

इस तरह झील में उसे सुबह से शाम हो गई थी। अब उसे ठंड लगना शुरू हो चुका था। लेकिन कौवा फिर भी अपने आप को पानी में डुबोए जा रहा था। अंततः उसे अधिक ठंड लगने लगी। जिसे वह अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। वह थक-हार कर पानी से बाहर आ गया। उसने देखा कि उसके शरीर का रंग नहीं बदला। जबकि उसके कुछ पंख पानी में ही निकल चुके थे। जिसके कारण बाहर उसे अब और ठंड लगने लगी थी। पूरे दिन पानी में भीगने की वजह से धीरे-धीरे उसकी तबीयत खराब होती चली गई, एक समय ऐसा आया कि उसने अपना दम तोड़ दिया।

नैतिक शिक्षा:

किसी की तरह नकल करने से अच्छा हैं, अपनी अच्छाइयों और ताकत को पहचान कर अपने आप से प्यार करें।

2. चोर और यात्री – Chor aur yatri:

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एक बार गाँव के एक सेठ की दुकान में चोरी हुई। उसके पैसों को लेकर भागते हुए चोर को एक लड़के ने देख लिया। लड़के ने चोर के बारें में सेठ से बता दिया। सेठ चोर का पीछा करने लगा। देखते-देखते गाँव के और लोग भी चोर के पीछे लग गए। चोर भागते-भागते थक चुका था। वह समझ जाता हैं कि मैं और आगे तक नहीं भाग सकता।

वह पैसों से भरा बैग सड़क के किनारे छोड़कर कहीं छिप गया। सड़क पर दो साथी यात्री पीछे से आ रहे थे। एक ने बैग को देखा और दूसरे ने उसे उठा लिया । पहला यात्री कहता हैं- “मैंने यह बैग गिरा हुआ पाया लगता हैं इसमें पैसे होंगे।” दूसरा यात्री उसे समझाता हैं- मैंने नहीं, हमने एक बैग गिरा हुआ पाया। लेकिन, वह अपने दोस्त की बात को नहीं मानता हैं। वह कहता हैं- “इस बैग को सबसे पहले मैंने देखा हैं, इसलिए यह मेरा हैं।” तभी पीछे से आवाज आती हैं- “पकड़ो-पकड़ो, चोर को पकड़ो” वह घबरा जाता हैं।

सेठ और गाँव वाले उसके पास पहुँचकर उसके हाँथ से पैसों से भरा बैग छीन लेते हैं। यात्री कहने लगा कि हमें यह बैग सड़क के किनारे पड़ा मिला था। दूसरे व्यक्ति ने अपने दोस्त को समझाते हुए कहा- “हमें नहीं, मुझे बोलो इस बैग से मेरा कोई लेना-देना नहीं हैं। जब तुम्हें यह बैग मिला था तो तुम मैं, मैं कर रहे थे। अब पकड़े जाने पर हमें, हमें क्यों कर रहे हो? इस प्रकार से सेठ उस लालची व्यक्ति को पकड़कर पुलिस के हवाले कर देता हैं।

नैतिक शिक्षा:

लालच बुरी बला हैं।

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3. गड़ेरिया और सूअर – Gaderiya aur suar:

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एक गड़ेरिया प्रतिदिन नदी के किनारे अपनी भेड़ों को चराने ले जाया करता था। एक दिन उसे उसकी भेड़ों के पास एक जंगली सूअर दिखाई दिया, जोकि उसकी भेड़ों के आसपास घूम रहा था। उसने सोचा चलो इसे पकड़कर बाजार में बेच देंगे। जिसके मुझे कुछ पैसे मिल जाएंगे। वह सूअर को पकड़ने का जतन करने लगा। गड़ेरिया दबे पाँव सूअर का पीछा करने लगता है लेकिन सूअर उसे देख धीरे-धीरे पीछे हटने लगता हैं।

इस तरह से सूअर को समझ आ जाता हैं कि गड़ेरिया उसे पकड़ना चाहता हैं। वह धीरे-धीरे जंगल की तरफ जाने लगता हैं। गड़ेरिया भी पीछा करने लगता हैं। सूअर बीच जंगल में पहुँचकर गड़ेरिए को अपने पास आते देख तेजी से घने जंगल की ओर भाग गई।

उधर गड़ेरिए की भेड़ों को अकेला देख एक भेड़िया उसकी भेड़ों का शिकार कर लेता हैं। जब गड़ेरिया जंगल से वापस आया तो देखता हैं कि उसकी कुछ भेड़े मरी पड़ी थी। अब गड़ेरिया अपने आप पर बहुत पछतावा करता हैं। क्योंकि, उसके हाथ से सूअर भी निकल गई और उसकी भेड़ों को भेड़िया भी खा गया।

नैतिक सीख:

अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।

4. मुर्गा, लोमड़ी और कुत्ता – Murga, lomadi aur kutta:

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कुत्ता और मुर्गा अच्छे दोस्त थे। एक बार कुत्ते ने मुर्गे से कहा- “चलो हम दोनों दुनिया देखने चलते हैं। यह दुनिया बहुत खूबसूरत हैं, हमें एक ही जगह नहीं रहना चाहिए। दोनों अपने प्लान के अनुसार घूमने निकल पड़े। चलते-चलते उन्हे किसी जंगल में अंधेरा हो गया। उन दोनों को उस जंगल में एक ऐसा पेड़ दिखाई दिया जोकि अंदर से खोखला था। कुत्ता उस खोखले पेड़ के अंदर रात बिताने के लिए चला गया।

जबकि, मुर्गा ऊपर डाल पर बैठकर सो जाता हैं। अगले दिन सुबह-सुबह मुर्गा उठा और अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए जोर-जोर से बाँग लगाना शुरू कर देता हैं। जैसे ही उसकी आवाज उस जंगल की लोमड़ी के कान में पड़ती हैं। उसके मुँह में पानी आ जाता हैं। वह जंगल से उसकी तरफ भागती हुए आती हैं।

लोमड़ी पेड़ पर बैठे मुर्गे को देखकर बोली। “श्रीमान कॉकजी हमारे क्षेत्र में आपका हार्दिक स्वागत हैं।” बताए मैं आपकी कैसी सेवा करू? आपको यहाँ देखकर मुझे अथाह खुशी हो रही हैं। हम आपके साथ दोस्ती करना चाहते हैं। मुर्गा उसकी चापलूसी भरी बातों को सुनकर उसकी चतुराई समझ जाता हैं।

मुर्गा बोलता हैं पेड़ के अंदर से एक रास्ता हमारे पास आता हैं। मेरे पास आ जाओ हम दोनों बातें करेंगे। लोमड़ी पेड़ के चारों तरफ चक्कर लगाती हैं। जैसे वह कुत्ते के पास पहुंचती हैं कुत्ता उसे अपना शिकार बना लेता हैं।

नैतिक शिक्षा:

जो लोग दूसरे के लिए गड्ढा खोदते हैं, वे खुद उसी गड्ढे में गिरते हैं।

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5. साँप और मेंढक – Sanp aur mendhak:

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किसी गाँव के पास एक छोटा तालाब था। उस तालाब के जलीय जीव-जन्तु किसी को हानि नहीं पहुंचाते थे। एक बार अत्याधिक बारिश होने के कारण कहीं से उस तालाब में अधिक मेंढक आ गए। जोकि आए दिन उस तालाब के मेंढकों से झगड़ते रहते थे। एक बार सभी मेढकों ने मिलकर उस तालाब के सबसे बुजुर्ग मेंढक को अपना राजा चुन लिया जिसकी बातें सभी मेंढक मानते थे।

लेकिन वह बुजुर्ग मेंढक दूसरे तालाब से आए मेढकों से बहुत जलता था। उनके साथ न्याय नहीं करता था। एक बार एक जहरीला साँप उस तालाब में आ गया। उसने मेढकों के राजा से विनती की कि मैं कुछ दिन आपके तालाब के पास रहना चाहता हूँ। मैं आपकों विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं आप लोगों को हानि नहीं पहुचाऊँगा, सभी मेंढक उसकी बात से सहमत हो गए।

एक दिन साँप ने मेंढकों के राजा को बुलाया और कहा- “चलो मैं आप लोगों को जंगल की सैर करवाकर आता हूँ। मेढकों ने बोला हम कैसे चलेंगे। साँप ने कहा तुम लोग मेरी पीठ पर लाइन से बैठ जाओ और मैं तुम्हें घूमाकर लाता हूँ। सभी मेंढक साँप के ऊपर लाइन से बैठ गए। कुछ दूर चलने के बाद साँप मेढकों के राजा से कहता हैं। अधिक भूख लगने के कारण मुझसे अब नहीं चला जा रहा हैं।

मेढकों का राजा साँप से कहता हैं- “तुम अपनी पीठ पर बैठे सबसे आखिरी वाले मेढक को खा लो।” साँप ठीक ऐसे ही करता हैं। इसी तरह साँप कुछ दूर और चलता हैं फिर वह भूख लगने का नाटक करता हैं। ऐसे-ऐसे करके वह सारे मेढकों को खा लेता हैं। अब आखिरी में मेढकों का राजा ही उसकी पीठ पर बचता हैं। फिर वह उसे भी खा जाता हैं।

नैतिक शिक्षा:

बिना सोचे समझे निर्णय लेना हानिकारक हो सकता हैं।

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