चतुर तेनालीराम और राजा कृष्णदेव राय की 5 कहानियां

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राजा कृष्णदेव राय के दरबार में तेनालीराम अपनी बुद्धिमानी के कारण जाने जाते थे। कभी-कभी तो राजा अपने मंत्रियों की बुद्धिमत्ता की परख करने के लिए कुछ अटपटे सवाल भी किया करते थे। जिसका जबाव तेनालीराम बहुत ही आसानी से दे देते थे। इसलिए, राजा तेनालीराम को पुरस्कार से नवाजते भी थे। आज कहानीज़ोन के इस लेख में आपको तेनालीराम की चतुराई भरी 5 कहानियां सुनने को मिलेगी, जोकि इस प्रकार से हैं।

1. राजा और चतुर तेनालीराम – Raja aur chtur tenaliram:

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एक बार राजा कृष्णदेव राय अपने मंत्रियों के साथ दरबार लगाए बैठे थे। राजा ने अपने सभी मंत्रियों की परीक्षा लेने के लिए सोचा। राजा ने भरे दरबार में अपने मंत्रियों से कहा कि आज हम आप लोगों को सौ-सौ सोने के सिक्के देंगे। राजा की बातों को सुनते ही सभी मंत्रियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। राजा आगे कहते हैं कि लेकिन एक शर्त यह भी हैं। जिसे आप लोगों को मानना पड़ेगा।

राजा कहता हैं कि इन स्वर्ण मुद्राओ को बिना मेरे मुख को देखे खर्च नहीं करना हैं। अगर कोई इस नियम को तोड़ेगा तो उसे दंड दिया जाएगा। इस प्रकार से राजा ने पैसों की एक-एक पोटली अपने मंत्रियों को दी। उस पोटली को लेकर सभी मंत्री अपने-अपने घर चले गए। और वे सभी इस चिंता में रहते हैं कि इन स्वर्ण मुद्राओं को कैसे खर्च किया जाए।

कुछ दिन बाद सभी मंत्री राजा के दरबार में आए। राजा ने सभी मंत्रियों से पूँछा कि “आप लोगों ने दिए गए स्वर्ण मुद्राओं को कहाँ-कहाँ खर्च किया”। सबसे पहले एक मंत्री ने दरबार में खड़े होकर कहा, ‘महाराज! हम लोग स्वर्ण मुद्राओं को खर्च नहीं कर पाए, हम स्वर्ण मुद्राओं को वापस करने के लिए आए हैं। राजा ने तेनालीराम से पूँछा, ”तेनाली तुमने पैसों को कहाँ खर्च किया? तेनालीराम ने राजा को जबाब दिया कि, ”महाराज! मैं यह जो आकर्षक कपड़े और आभूषण पहना हुआ हूँ। यह उन्ही पैसों से खरीदें हुए हैं।

राजा ने अपनी कड़क आवाज में तेनालीराम से कहा कि तुम वह शर्त भूल गए क्या? उसने कहा, महाराज मैंने उन्ही शर्तों को ध्यान में रखते हुए कुछ भी खरीदने से पहले सिक्कों पर छपा आपका चित्र देख कर ही पैसे खर्च किए हैं। तेनालीराम की बातों को सुन कर राजा हँसने लगे और दरबार के सभी मंत्री सुन्न पड़ गए। राजा ने तेनालीराम की चतुराई और सूझबूझ के कारण उसे और स्वर्ण मुद्रा दिए।

2. तेनालीराम की कहानी – सबसे बड़ा मूर्ख कौन:

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एक समय की बात हैं, राजा कृष्णदेव राय को घोड़ों से बहुत लगाव था। जबकि, राजा के पास उसके राज्य के सबसे अच्छे नस्ल के घोड़े थे। एक बार राजा अपने अस्तबल के पास खड़े होकर घोड़ों को देख रहे थे। इतने में उसे एक व्यापारी एक घोड़ा लेकर आते हुए दिखाई दिया। वह घोड़ा बहुत ही अच्छी नस्ल का था। जिसे देख राजा कृष्णदेव उसके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो उठे। क्योंकि, वह घोड़ा बहुत आकर्षक लग रहा था।

राजा, व्यापारी से पूछता हैं कि यह घोड़ा कहाँ से लाए हो। व्यापारी उस घोड़े की खासियत के बारे में बताता हैं कि यह घोड़ा अरब से लाया हूँ। इसकी चाल ऐसी हैं कि जब यह घोड़ा दौड़ता है तो हवा से बात करता हैं। इसके अलावा व्यापारी घोड़े के बारे में कई अन्य खूबियों को गिनाता हैं। राजा उसकी खूबियों के बारें में जानकारी पाकर बहुत खुश होता हैं। वह उस घोड़े को खरीदने के बारें में कहता हैं। व्यापारी को घोड़े को बेचने के लिए मुँह माँगी कीमत मिलती हैं।

व्यापारी राजा से कहता हैं इसी नस्ल के मेरे पास दो घोड़े और हैं जिसे मैं बेचना चाहता हूँ। राजा उन दोनों घोड़ों को भी खरीदना चाहता हैं। वह व्यापारी को पाँच हजार सोने के सिक्के एडवांस में दे देता हैं। व्यापारी यह कहते हुए चला जाता हैं कि वह दो दिन में उसे घोड़े लाकर दे देगा। इस तरह से धीरे-धीरे दो दिन, दो सप्ताह और दो महीने भी बीत गए लेकिन, व्यापारी घोड़े को लेकर नहीं आया।

एक शाम राजा और तेनालीराम महल के उपवन में घूम रहे थे। तेनालीराम को एक पर्ची में कुछ लिखते हुए देख, राजा बड़ी उत्सुकता के साथ उस पर्ची के बारे में जानने की कोशिश करने लगे। तेनालीराम के मना करने के बावजूद भी राजा ने उस पर्ची को अपने हाथ में लेकर पढ़ने लगे। जिसमें सबसे ऊपर लिखा था, ‘मूर्ख व्यक्तियों की लिस्ट’। उस लिस्ट में राजा कृष्णदेव राय का नाम सबसे ऊपर था।

जिसे देख राजा, तेनालीराम के ऊपर क्रोधित हो उठे। राजा ने तेनालीराम से अपने नाम को सबसे ऊपर लिखने का कारण पूछा। तेनालीराम ने राजा को जबाब देते हुए कहा, “आपने एक अनजान व्यापारी को पाँच हजार सोने के सिक्के दे दिए, जिसे दो दिन से दो महीने बीत गए अभी तक वापस नहीं आया। राजा ने कहा अगर वह व्यापारी आ गया तो, तेनालीराम ने जबाब दिया तो “मूर्ख व्यक्तियों की लिस्ट में मैं उसका नाम सबसे ऊपर लिख दूंगा।

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3. तेनालीराम की कहानी – गधों को प्रमाण:

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राजा कृष्णदेव राय के राज्य में एक तथाचार्य नाम का रूढ़िवादी शिक्षक रहता था। वह हर किसी को हीन भावना से देखते थे। जब भी कोई अन्य समुदाय के लोग उनके पास जाते तो वह अपना मुँह ढँक लेते थे। उनके इस वर्ताव से दरबार के सभी मंत्री तथा अन्य लोग बहुत परेशान हो चुके थे। एक दिन दरबार के सभी लोग राजा के सबसे बुद्धिमान मंत्री तेनालीराम को तथाचार्य के व्यवहार के बारें में बताया।

तेनालीराम तथाचार्य से मिलने के लिए उसके घर गए। उन्हें देखकर तथाचार्य अपना मुख ढक लेते हैं। तेनाली राम तथाचार्य से पूछते हैं आप ऐसा क्यों कर रहे हो? तथाचार्य ने कहा, “अगर मैं तुम्हें या फिर किसी अन्य समुदाय के लोगों को देखूँगा तो मैं पाप का भागीदार हूँगा और अगले जन्म में मैं गधा बनूँगा। इसलिए, मैं अपना मुँह ढक लेता हूँ।”

तेनालीराम ने तथाचार्य की बातों को गांठ बांध लिया। एक बार राजा कृष्णदेव राय अपने मंत्रियों तथा दरबारियों के साथ राज्य घूमने गए हुए थे। वापस आते समय रास्ते में राजा की मुलाकात तथाचार्य से हुई। राजा उनका हाल-चाल पूछ ही रहे थे कि अचानक तेनालीराम को कुछ गधे दिखाई दिए। तेनालीराम तेजी से भागते हुए उन गधों को प्रणाम करने लगे। उसे देखे राजा ने पूछा तेनाली तुम गधों को प्रमाण क्यों कर रहे हो।

तेनालीराम ने जबाब दिया, “मैं तथाचार्य के पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त कर रहा हूँ। जोकि, हम लोगों के मुँह को देखने के बाद गधा बन गए हैं। उसकी बातों को सुनकर तथाचार्य ने अपने आपको राजा के सामने लज्जित महसूस किया। उसी दिन से तथाचार्य ने किसी के सामने अपने मुँह को ढकना बंद कर दिया।

4. तेनालीराम की कहानी – कौवों की गिनती:

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राजा कृष्णदेव राय को तेनालीराम से अटपटे सवाल पूछने में बहुत मजा आता था। जबकि, तेनालीराम बहुत विद्वान होने के कारण राजा के हर सवाल का जबाब बहुत आसानी से दे देते थे। एक बार भरे दरबार में राजा ने तेनालीराम से एक सवाल का जबाब माँगा। राजा ने कहा तेनालीराम क्या तुम्हें पता हैं हमारे राज्य के कौवों की संख्या कितनी हैं? तेनालीराम ने कहा, हाँ महाराज! मुझे पता हैं कि अपने राज्य में कौवों की संख्या कितनी हैं।

राजा ने तेनालीराम से फिर कहा, “अगर तुम्हें सही जानकारी नहीं हैं तो तुम अब भी मना कर सकते हो। हम तुम्हें कोई दंड नहीं देंगे। लेकिन, अगर तुम बाद में नहीं बता पाए या फिर गलत जानकारी दी, तो तुम्हें सीधा मृत्यु दंड मिलेगा। राजा की बात सुनकर दरबार में बैठे अन्य मंत्री मन ही मन खुश होने लगे। वे लोग आपस में चर्चा करने लगे की पूरे राज्य में कौवों की संख्या का पता लगा पाना असंभव हैं।

तेनालीराम राजा के प्रश्नों जबाव देने के लिए तैयार हो गया। राजा ने तेनालीराम को कौवों की संख्या बताने के लिए कहा, ”तेनालीराम राजा से कहता हैं, “महाराज आपके राज्य में दो लाख दस हजार पाँच सौ तीन कौवें हैं।” राजा तेनालीराम का जबाब पाकर आश्चर्य में पड़ गया और वह कहने लगा क्या हमारे राज्य में इतने कौवें हैं? तेनालीराम ने फिर से कहा हैं महाराज यह संख्या न तो काम हैं, न ही ज्यादा। अगर आपको विश्वास नहीं हैं तो आप कौवों की संख्या की गिनती करवा सकते हैं।

राजा ने कहा, अगर संख्या पता कराने के बाद कुछ कम ज्यादा हुए तो, तेनालीराम ने जबाब दिया- महाराज! पहली बात यह संख्या घट बढ़ नहीं सकती। अगर कौवों की संख्या घटती हैं तो जरूर अपने राज्य के कुछ कौवें अपने रिश्तेदारों से मिलने गए होंगे। अगर यह संख्या बढ़ती हैं तो अवश्य ही किसी राज्य के कौवें इस राज्य के रिश्तेदारों से मिलने आए होंगे। इसी दशा में कौवों की संख्या घट-बढ़ सकती हैं। वरना आपको मेरे बताए गए संख्या के आधार पर कौवें मिलेंगे।

तेनालीराम का जबाव पाकर राजा बहुत खुश हुए। उन्हें कुछ स्वर्ण मुद्रा भी दी गई। दरबार में बैठे अन्य मंत्रियों के चहरे पर उदासी छा गई।

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5. तेनालीराम की कहानी – मनहूस कौन:

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एक बार कृष्णदेव राय के राज्य में चेलाराम नाम के व्यक्ति को लेकर खबर फैल गई कि सुबह-सुबह जो भी व्यक्ति चेलाराम का मुँह देख लेता हैं उसे पूरे दिन भोजन नसीब नहीं होता। वह इंसान पूरे दिन भूखा ही रहता हैं। जिसके कारण सुबह-सुबह लोग चेलाराम का मुँह देखना नहीं चाहते थे। अब उसके आसपास के लोग बहुत परेशान रहने लगे थे।

इस बात की खबर राजा कृष्णदेव राय को मिलती हैं। राजा कहता हैं कि यह सब अंधविश्वास है। राजा इस बात के बारें में गहन जानकारी प्राप्त करने के लिए चेलाराम को अपने दरबार में कुछ दिन रहने के लिए कहता हैं। दरबारियों के द्वारा चेलाराम को राजा के विश्राम कक्ष के बाहर एक कमरे में रहने के लिए कहा जाता हैं।

एक दिन राजा सुबह-सुबह नींद से उठा ही था कि वह खिड़की से देखता हैं कि चेलाराम अपने कमरें में बैठकर योगा कर रहा हैं। लेकिन, राजा बिना कुछ कहे अपनी दिनचर्या की ओर बढ़ जाता हैं। राजा जब सुबह-सुबह नाश्ते के लिए बैठा तो उसने देखा कि उसके नाश्ते में मक्खी पड़ी हुई हैं। उसने अपने रसोइयों को बुलाकर डांट लगई। और वह गुस्से में आकर बिना नाश्ता किए उठ कर चला गया।

इस प्रकार से जब राजा दोपहर के भोजन पर बैठा ही था तो उसे खबर मिलती हैं कि उसके राज्य पर हमला होने वाला हैं। इस खबर को सुनते ही वह बिना खाना खाए अपने सैनिकों को आदेश देने के लिए चला जाता हैं। इस तरह से धीरे-धीरे शाम हो जाती हैं और राजा की भूख मिट जाती हैं।

शाम को वह खाना खाकर जब विश्राम कर रहा था तो उसे अचानक याद आता हैं कि आज सुबह-सुबह मैं उस मनहूस व्यक्ति चेलाराम की शक्ल देखकर उठा था। जिसके कारण आज मुझे पूरे दिन भोजन नसीब नहीं हुआ। अगली सुबह राजा चेलाराम को मनहूस व्यक्ति होने के कारण उसे फांसी की सजा सुनाते हैं। इस खबर को सुनकर चेलाराम की पत्नी तेनालीराम के पास भागी-भागी पहुँचती हैं।

तेनालीराम चेलाराम की पत्नी की बात सुनकर कहते हैं, ‘तुम शांत रहो सब ठीक होगा।’ अगले दिन जब चेलाराम को फांसी होने वाली ही थी कि तेनालीराम चेलाराम को एक पर्ची देते हुए उसके कान में कुछ फुसफुसाया। राजा ने चेलाराम से पूँछा तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या हैं? चेलाराम ने एक पर्ची देते हुए राजा से कहा कि आप इस पर्ची को एक बार पढ़ ले।

राजा पर्ची खोलकर देखता हैं तो उसमें लिखा होता हैं, “लोग कहते हैं कि सुबह-सुबह मेरा मुँह देखने से पूरे दिन भोजन नसीब नहीं होता, लेकिन, जो कोई सुबह-सुबह राजा का मुँह देख लेता हैं उसे फांसी नसीब होती हैं, तो मनहूस इंसान मैं हूँ या फिर राजा। पर्ची पढ़तें ही राजा चेलाराम की फांसी रुकवा देता हैं। राजा समझ जाता हैं कि इस तरह का ज्ञान सिर्फ तेनालीराम ही दे सकता हैं।

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