1. तेनालीराम की कहानी – लाल मोर:
एक बार एक बहेलिया एक मोर को लेकर विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुँचा। मोर बहुत ही सुंदर और लाल रंग का था। बहेलिया ने मोर की तारीफ करते हुए राजा से कहा, “महाराज! यह मोर मैंने किसी दूसरे राज्य के जंगलों से पकड़कर लाया हूँ। मैंने ऐसा लाल मोर अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा। मुझे लगता हैं कि यह मोर आपके उपवन की शोभा को और अधिक बढ़ा देगा।
राजा बहेलिया के हाथ में मोर देखकर प्रसन्न हो उठे। उन्होंने बहेलिया को इस मोर के बदले मुँह मांगी राशि एक हजार सोने के सिक्के दिए। बहेलिया तेनालीराम को देखकर मुस्कुराते हुए अपने घर को चला गया। तेनालीराम समझ गया कि लाल मोर हो ही नहीं सकता। इसमें जरूर बहेलिया की कोई चाल हैं।
अगले दिन तेनालीराम ने एक चित्रकार को पकड़कर चार मोर को लाल रंग से रंगकर तैयार करवा दिया। तेनाली राम अपने साथ चारों मोर को लेकर दरबार में पहुँचा। उसने कहा, महाराज! कल आपको बहेलिया ने कहा था कि इस तरह के मोर अपने राज्य में नहीं मिलते। मैंने एक हजार सोने के सिक्के में ही चार मोर ले आया हूँ।
राजा खुश होकर तेनालीराम को दो हजार सोने के सिक्के इनाम में देने लगे। तेनालीराम ने कहा, महाराज! अगर ईनाम देना ही हैं तो इस चित्रकार को दो जिसने अपने हुनर के दम पर इन सभी मोर का रंग बदल दिया हैं। राजा समझ गया कि कल बहेलिया उसे मूर्ख बनाकर चला गया। राजा ने बहेलिया को दरबार में बुलाया और उससे एक हजार सोने के सिक्कों को तेनालीराम को दिलवाते हुए उसे सजा सुनाई।
2. तेनालीराम की कहानी – अनोखा पुरस्कार:
किसी राज्य को जीत कर राजा कृष्णदेव राय ने अपने मंत्रियों, सैनिकों और दरबारियों को संबोधित करते हुए कहा, “यह विजय मेरे अकेले की विजय नहीं हैं। इस विजय में आप सभी का बहुत बड़ा त्याग और बलिदान छिपा हैं। जिसके लिए आप सभी को मैं सम्मानित करना चाहता हूँ। इस पर्दे के पीछे कई तरह के बहुमूल्य और कीमती उपहार रखे हुए हैं। आप लोग अपने-अपने मन पसंद की चीजे ले सकते हैं।
लेकिन एक शर्त यह हैं कि एक व्यक्ति को एक ही समान मिलेगा। राजा की आज्ञा पाकर दरबार में बैठे सभी मंत्री, दरबारी और सिपाही उपहार लेने के लिए टूट पड़े। सभी ने अपने-अपने मनपसंद के उपहार लेकर अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ गए। सब के हाथ में कीमती उपहार थे, जिसके लिए सभी खुश थे।
लेकिन, दरबार के प्रमुख कवि तेनालीराम अभी तक दरबार नहीं पहुँचा था। सब लोग कहने लगे आज तो तेनालीराम को लेट होने की सजा मिल ही जाएगी। हम लोग तेनालीराम को अपना पुरस्कार दिखाते हुए चिढ़ाएंगे। तभी तेनालीराम दरबार में प्रवेश करता हैं। उसे देख सभी दरबारी हँसने लगते हैं। राजा की आज्ञा के अनुसार तेनालीराम उपहार में बचे चांदी के प्लेट को दोनों हाथों से उठाया और उसे सिर पर लगाकर अपने दुपट्टे से ढककर लेकर जाने लगा।
तेनालीराम के किस्से: तेनालीराम की कहानी: एक तीर से दो शिकार
तेनालीराम को ऐसा करते देख राजा ने कहा, “तेनाली, प्लेट को क्यों ढक रहे हो? जबकि उस प्लेट में कुछ हैं भी नहीं। तेनालीराम ने जबाब दिया, महाराज! हर बार मुझे अशरफ़ियों से भरी थल मिलती थी। इस बार मुझे खाली चांदी का प्लेट मिला हैं। इसलिए, मैं इस प्लेट को ढक रहा हूँ कि लोग यह न सोचे कि राजा अब गरीब हो गया हैं। जिससे तेनालीराम को खाली चांदी का प्लेट मिला।
राजा तेनालीराम की चतुराई भरी बातों को सुनकर अपने गले में पहने हीरो को माल निकलकर तेनालीराम के प्लेट में रख दिया। वहाँ बैठे सभी दरबारी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। एक बार फिर तेनालीराम ने अपनी चतुराई का लोहा मनवा दिया।
3. तेनालीराम की कहानी – उधार का बोझ:
राजा कृष्णदेव राय के दरबार में तेनालीराम अपनी बुद्धिमत्ता और हास्य कवि के लिए जाने जाते थे। तेनालीराम किसी भी समस्या का समाधान चुटकियों में कर देते थे। एक बार तेनालीराम के घर में धन की कमी पड़ गई। उसने अपनी पत्नी के कहने पर राजा कृष्णदेव राय से कुछ पैसे उधार ले लिए।
धीरे-धीरे समय बीतता गया तेनालीराम दिए हुए समय पर राजा का पैसा वापस नहीं कर पाया। तेनालीराम के पास धन भी नहीं था, की वह जाकर राजा का पैसा वापस कर दे। तेनालीराम राजा के पैसे न चुकाने के लिए एक योजना बनाई। उसने अपने बेटे के हाथ राजा को एक पत्र भेजवाया। जिसमें लिखा था कि वह बहुत बीमार हैं।
तेनालीराम की चतुराई से राजा अच्छे से वाकिफ था। उसने सोचा तेनालीराम कई दिनों से दरबार में नहीं आ रहा, चलो उसके घर पर चल के देख लेते हैं। कही पैसे लौटने के लिए वह बहाना तो नहीं बना रहा। राजा तेनालीराम के घर पहुंचकर देखा कि तेनालीराम खाट पर कंबल ओढ़कर लेटा हुआ हैं।
उसकी पत्नी ने राजा को आदर सम्मान से बैठाया। राजा ने तेनालीराम की पत्नी से पूछा क्या हो गया तेनाली को? उसकी पत्नी ने जबाब दिया, “महाराज! शायद आप से लिए पैसे न चुका पाने की चिंता के कारण बीमार हो गए हैं। राजा ने तेनालीराम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम्हें मेरे पैसे वापस करने की जरूरत नहीं हैं। चिंता छोड़ो जल्द स्वस्थ हो जाओ और दरबार आओ।”
राजा की बातों को सुनते ही तेनालीराम ओढ़े हुए कंबल को झट से नीचे फेककर खाट से नीचे कूद गया और हँसते हुए राजा को प्राणम किया। राजा ने तेनालीराम से कहा, “इसका मतलब तुम बीमार नहीं थे, तुम मुझे मूर्ख बना रहे हो। राजा गुस्से से भरे स्वर में बोला। ‘नहीं-नहीं महाराज! मेरी इतनी हिम्मत कहाँ कि आपको मैं मूर्ख बना सकू, तेनालीराम ने कहा।”
महराज! मैं तो आपके उधार के बोझ तले दबा था, जिसके कारण मैं बीमार हो गया था। जैसे ही आपने मेरा कर्ज माँफ किया मैं स्वस्थ महसूस करने लगा। राजा तेनालीराम की चतुराई भरी बातों को सुनकर और कुछ नहीं कह सका।
4. तेनालीराम की कहानी – ऊँट का कूबड़:
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय एक बार तेनालीराम की बुद्धिमानी और चतुराई से समस्या का हल निकालने से खुश होकर अपने राज्य के एक पूरे नगर को देने की घोषणा कर दी। तेनालीराम राजा का हुक्म सर-माथे पर रखकर स्वीकार कर लिया। धीरे-धीरे हफ्ते, और महीने बीत गए। लेकिन, राजा तेनालीराम से किया हुआ वादा भूल गए।
अब तेनालीराम बहुत ही असमंजस में थे कि वह राजा को उनके द्वारा किया गया वादा कैसे याद दिलाए। तेनालीराम अब मौके का इंतजार करने लगा। एक दिन विजयनगर राज्य में एक व्यक्ति अरब से ऊँट लेकर आया। राज्य के लोग कभी इस तरह के जानवर नहीं देखे थे। इसलिए सभी के अंदर देखने की अधिक उत्सुकता थी।
ऊँट को देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। राजा और तेनालीराम एक साथ खड़े थे। राजा ने तेनालीराम से कहा, “तेनाली यह तो बहुत ही विचित्र जानवर हैं। इसकी गर्दन कितनी लंबी हैं। इसके पीठ पर कूबड़ भी हैं जो पता नहीं किस काम आता हैं। भगवान को इस तरह के बेढंग जानवर को नहीं बनाना चाहिए।
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तभी तेनालीराम ने कहा, “महाराज! मुझे पूरा यकीन ही नहीं, विश्वाश हैं कि यह जानवर पिछले जन्म में जरूर एक राजा रहा होगा। इसने किसी से पूरा नगर देने का वादा करके भूल गया होगा। इसलिए, भगवान ने इसे ऐसा बना दिया। तेनालीराम की बातों को सुनकर राजा को उसकी बात मजाक वाली लगी। लेकिन, कुछ ही देर बाद राजा को तेनालीराम से किया वादा याद आया।
राजा कृष्णदेव राय ने अपने मंत्री को बुलकर तेनालीराम को एक पूरा नगर तुरंत भेंट करने के लिए कहा। राजा ने तेनालीराम को चतुराई के साथ उनका वादा याद दिलाने के लिए धन्यवाद कहा।
5. तेनालीराम की कहानी – अपराधी चरवाह:
एक बार एक चरवाह राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुँचा। उसने महाराज से प्रार्थना किया कि महाराज! ‘मुझे न्याय दिलाओ।’ राजा ने पूछा, क्या हुआ तुम्हारे साथ? चरवाहे ने कहा, मेरा पड़ोसी बहुत ज्यादा कंजूस हैं। उसने अपने दीवार की कभी मरम्मत नहीं कराई। जिसके कारण उसकी दीवार गिर गई, जिसके नीचे मेरी बकरी दबकर मर गई।” कृपया मुझे हर्जाना दिलवाया जाए।
चरवाहे की बात सुनकर राजा असमंजस में पड़ गया। उसने तेनालीराम को इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा, “तेनालीराम ने कहा, “महराज! मुझे अपराधी को पता करने में थोड़ा समय लगेगा। राजा ने तेनालीराम को अपराधी का पता लगाने की इजाजत दे दी। तेनालीराम ने चरवाहे के पड़ोसी को बुलाकर उसे बकरी का हर्जाना देने के लिए कहा।
पड़ोसी ने कहा, श्रीमान! इसमें मेरी क्या गलती है? “इस दीवार को मैंने जिस मिस्त्री से बनवाई थी उससे पूछा जाए।” मिस्त्री को बुलाया गया। उसने यह कहते हुए अपने आप को दोषमुक्त कर लिए कि इसमे मेरी कोई गलती नहीं हैं। गलती तो गारा देने वाले की हैं। जिसने रेत और मसाले को बराबर से नहीं मिलाया।
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तेनालीराम ने रेत मिलाने वाले मजदूर को बुलाया। मजदूर ने कहा, महाराज! “मैंने रेत ढंग से मिलाई थी, इसमें गलती पानी डालने वाले की हैं जिसने आधिक पानी डाल दिया। पानी डालने वाले व्यक्ति को बुलाया गया। उसने कहा, “महाराज इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं, रेत में पानी अधिक डालने के लिए मुझे चरवाहे ने कहा था। उसकी बात सुनकर चरवाहे का सिर शर्म से झुक गया।
तेनालीराम ने राजा से कहा, “महराज! फैसला हो चुका हैं। अपराधी आपके सामने हैं। जिसकी वजह से इसकी दीवार गिर गई। राजा ने चरवाहे को सजा सुनाते हुए कारागार में डलवा दिया।