चतुर बगुला और मूर्ख केकड़ा – The story of heron and crab

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कहानी एक ऐसा माध्यम हैं जिसके द्वारा हम अपने बच्चे के मानसिक विकास को बढ़ावा देने और बच्चे के सोचने समझने की क्षमता को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। अगर हम कहानियों की बात करें तो कई दशकों से हम कहानी के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन और ज्ञानवर्धन करते आ रहे हैं। जबकि, कहानियां बच्चे को गहराई से सोचने के लिए मजबूर करता हैं। इसके साथ-साथ बच्चे के बौद्धिक विकास को तीव्र गति से बढ़ाने में भी मदद करता हैं। कहानीज़ोन के इस लेख में आज हम आपके लिए एक बहुत शानदार कहानी लेकर आए हैं, जोकि इस प्रकार हैं।

बहुत समय पहले की बात हैं रामपुर गाँव के पास जंगल के किनारे एक तालाब था। जिसे लोग मानसरोवर के नाम से जानते थे। जोकि, हमेशा पानी से भरा रहता था। जिसके कारण उस तालाब में बहुत सारे अनेकों प्रकार की मछलियाँ, कछुआ, जीव-जन्तु रहते थे। यह तालाब इतना सुंदर और साफ-सुथरा था कि रामपुर गाँव के लोग इसी तालाब से पानी पीते थे। शाम ढलते गाँव के अधिकतर लोग उसी तालाब के पास जा के बैठते थे, जिससे उनको शुद्ध और ताजी हवा भी मिलती थी।

मानसरोवर तालाब में कई बगुले रहते थे जो समय के साथ उस तालाब को छोड़ कर जंगल से दूर एक नदी में जाकर रहने लगे, बगुलों को वहाँ पर और अच्छे-अच्छे जीव-जन्तु खाने को मिलने लगे था। एक समय ऐसा आया मानसरोवर तालाब के सारे बगुले उड़ कर दूर नदी में चले गये। जिसके कारण उस तालाब के अंदर रहने वाले सभी जानवरों के अंदर खुशी की लहर दौड़ पड़ी।

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लेकिन, उन बगुलों में एक बगुला उस तालाब को छोड़ कर नहीं गया। क्योंकि, वह बहुत आलसी और निकम्मा था। वह अपने भोजन के लिए बिल्कुल मेहनत नहीं करना चाहता था। जबकि वह प्रतिदिन किसी टीले पर बैठकर बड़े-बड़े सपने देखता रहता था। जिसके कारण वह बगुला कभी-कभी बिना कुछ खाये ही सो जाता था। यही वह कारण था कि बगुला दिनों-प्रतिदिन बहुत कामजोर होता चला गया।

एक दिन आलसी बगुले ने सोचा हमारे सारे दोस्त भी यहाँ से चले गए जो चापलूसी के कारण कभी-कभी उसे कुछ खाने को भी दे देते थे, अब उस तालाब में उसका कोई नहीं बचा। बगुले ने फिर सोचा अगर ऐसे चलता रहा तो समय से पहले मैं मर जाऊंगा। अब तो उम्र भी बहुत हो चुकी हैं खाने के लिए कुछ न कुछ जतन करना पड़ेगा और वह चिंतित हो उठा।

अगली सुबह आलसी बगुला के दिमाग में एक चतुराई भरा उपाय सूझा, वह सुबह-सुबह नदी के किनारे एक बड़े पत्थर पर जाकर बैठ गया और बहुत जोर-जोर से रोने लगा तथा मोटे-मोटे आँसू बहा रहा था। ऐसा करते हुए उसे सुबह से दोपहर हो चुकी थी। तभी उसके पास उस नदी का सबसे बुजुर्ग केकड़ा उसके पास आया और बोला बगुले दोस्त क्या हुआ क्यों इतना तेज-तेज रो रहे हो?

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बगुला अंदर से भरे मन से बोला क्या बताऊँ मामा जी, और फिर जोर-जोर से रोने लगा। दुबारा केकड़े ने फिर से पूछा, बताओ तो सही! बगुले ने केकड़े से बोला,”मामा जी कई दिन पहले मैं पेड़ पर बैठा था तभी मुझे इस दुनिया के मालिक त्रिलोकीनाथ से मुलाकात हुई, उन्होंने बोला यह तालाब बहुत जल्द सूख जाएगा, तुम कही और चले जाओ”।

बगुला ने फिर बोला, मामा जी देखो “मैंने तब से मच्छलियों को खाना छोड़ दिया हूँ। जिसके कारण मैं पतला दुबला हो गया हूँ। मेरा क्या मेरी तो कुछ ही दिन उम्र बची हैं”। लेकिन इस तालाब में रह रहे सभी जीव जन्तु हमारे भाई बहन की तरह हैं। तालाब सूख जाने की वजह से इनका क्या होगा। और वह जोर-जोर से फिर रोने लगा। बगुले की सारी बाते ,बूढ़े केकड़े ने तालाब के सभी जीवों को बता दी। सभी इकठ्ठा होकर बोले चलो बगुला महाराज के पास चलो, वही कुछ हमें बचने का उपाय बताएंगे।

बूढ़े केकड़े के साथ सभी जीवों को बगुला अपने पास आते देख उसके मुहँ में पानी आ गया। केकड़े ने बोला बगुला मामा आप ही बताओ हम लोग कैसे बचे क्या करे? बगुला, केकड़े की बात सुन शांत हो उठा कुछ नहीं बोल। फिर सभी जीव बोलने लगे बगुला महाराज बचा लो हमें।

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फिर बगुले ने बोला मेरे पास एक उपाय हैं आप सभी को एक-एक करके अपनी पीठ पर बैठा के दूर नदी में छोड़ आऊँगा। उसकी बात सुन सभी खुशी से झूम उठे और जोर-जोर से बोलने लगे बगुला महराज की जय! अब बगुला अपने शिकार अपने पास देख खुशी से गदगद था।

उसी दिन से बगुले ने अपनी पीठ पर, एक-एक को बैठा कर तालाब के बगल एक पहाड़ी पर ले जाता और उस जीव को मारकर खा जाता। देखते-देखते बगुले के सेहत में सुधार होने लगा। तालाब के सभी जानवर एक दूसरे से बोलने लगे देखो, बगुला महाराज जब से हम लोगों की मदद कर रहे हैं इनकी सेहत भी ठीक हो चुकी हैं। यह सब देख केकड़े को संदेह होने लगा वह बगुले की सेहत का राज जानना चाहता था।

अगले दिन केकड़े ने बगुले से बोला हमें कब ले चलोगे? बगुले ने बोला आओ मामा जी आज आपको ही छोड़ आता हूँ। केकड़ा बगुले के ऊपर बैठा कुछ दूर चलते ही, उसको बहुत सारी हड्डियाँ और अस्थिर-पंजर नीचे दिखने लगे। केकड़ा सहम गया और बगुले से बोला, बगुला महराज ये नीचे क्या हैं।

बगुला जोर-जोर से हंसने लगा और बोला मैं यहीं सभी को लाकर मारकर खा जाता हूँ आज तुम्हारा नंबर हैं। तभी केकड़े ने अपने नुकीले पंजों से बगुले की गर्दन को दबोच कर पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक बगुला मर नहीं गया। केकड़ा वहाँ से तेजी से भागते हुए उसी तालाब में आ पहुँचा और सारी बाते सभी को बताई जिसको सुनकर सभी जीव सन्न हो गये और बोले हमें बगुले के ऊपर भरोसा नहीं करना चाहिए था।

नैतिक सीख:

हमें किसी अंजान की बातों में नहीं आना चाहिए, हमेशा अपने आप पर विश्वास रखना चाहिए कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हो हमें उसका सामना डट कर करना चाहिए।

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