मनोरंजन से भरपूर शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां

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कहानियां शिक्षा और मनोरंजन का एक अभूतपूर्व साधन हैं। जिसके माध्यम से बच्चे खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाते हैं। जबकि, कहानियां बच्चे को सही और गलत में फर्क करना भी सिखाती हैं। इसलिए, हमें अपने बच्चों को अधिक से अधिक कहानियां सुनाना चाहिए।

यही वह कारण हैं कि कहानीज़ोन आपके बच्चों के लिए अच्छी अच्छी शिक्षाप्रद मजेदार कहानियां लाते रहते हैं। आज के इस लेख में हम आपको 5 शानदार कहानियां सुनाने जा रहे हैं, जोकि इस प्रकार से हैं।

1. चतुर गड़ेरिया – Chatur gaderiya:

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रतनपुर गाँव में एक गड़ेरिया रहता था। जिसका नाम सुखदेव था। उसने एक शेर और बकरी पाल रखी थी। शेर बहुत सीधा था, वह किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता था। लेकिन, गड़ेरिया कभी भी शेर और बकरी को एक साथ नहीं छोड़ता था। एक बार गड़ेरिया शेर और बकरी को लेकर पुल के रास्ते नदी के उस पार गया।

शाम को जंगल से वापस आते समय गड़ेरिया अपनी बकरी और शेर के साथ घास का एक बड़ा गट्ठर अपने साथ लेकर आ रहा था। नदी के किनारे पहुँचकर उसने देखा कि नदी पर बना पुल टूटकर गिर गया हैं। अब गड़ेरिया बहुत परेशान हो गया। उसने इधर-उधर देखा। उसे नदी में एक छोटी नाव दिखाई दी। उस नाव में अपने साथ किसी एक को लेकर जा सकता था।

लेकिन, गड़ेरिया के सामने एक बड़ी समस्या यह थी कि अगर वह अपने साथ पहले चक्कर में शेर को लेकर नदी को पार करे तो बकरी घास को वही खाकर खत्म कर देगी। अगर वह घास को ले जाए तो, हो सकता हैं शेर बकरी को खा जाए। गड़ेरिया दिमाग लगाया, वह पहले चक्कर में बकरी को नाव पर बैठाकर नदी उस पार छोड़ आया।

दूसरी बार गड़ेरिया में वह अपने साथ शेर को लेकर नदी उस पार जाता हैं। जिसे छोड़कर अपने साथ बकरी को लेकर वापस ले आया। नदी इस पार पहुँचकर गड़ेरिया बकरी को छोड़कर घास के गट्ठर को लेकर शेर के पास छोड़ आया। आखिरी बार फिर वह नदी उस पास जाता हैं और अपने साथ बकरी को ले आया। इस तरह से गड़ेरिए ने अपनी चतुराई और सूझबुझ के साथ बिना किसी नुकसान के नदी को पार करके अपने घर चला गया ।

नैतिक सीख:

चतुराई और समझदारी के साथ लिया गया फैसला कामयाबी की ओर ले जाती हैं।

2. राजा और मूर्ख सिपाही – Raja aur murkh sipahi:

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एक बार राजा का प्रमुख दरबारी मर गया। जोकि, उसके दरबार का सबसे बुद्धिमान दरबारी था। वह राजा की बहुत अच्छी तरह से देख-भाल करता था। राजा ने अपनी देख-भाल करने के लिए एक नए दरबारी का चुनाव किया। जोकि हमेशा राजा के साथ रहता था। लेकिन, उसके चुनाव से कुछ दरबारी नाराज थे। क्योंकि, वें नहीं चाहते थे कि यह व्यक्ति राजा का प्रमुख दरबारी बने।

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एक दिन राजा शिकार खेलकर थके-हारे महल में आए। उन्होंने अपने दरबारी से कहा, “उनके सोने का बंदोबस्त किया जाए। दरबारी राजा के कमरे में गया और सोने के लिए सारी व्यवस्था कर दी।” कुछ समय बाद राजा अपने शयनकक्ष में सोने के लिए गया। दरबारी शयनकक्ष के बाहर पहरा दे रहा था।

अचानक दरबारी देखता हैं कि राजा के सिर के आसपास एक मक्खी मँडरा रही हैं। दरबारी तुरंत राजा के पास गया और उस मक्खी को बाहर भागा दिया। लेकिन कुछ समय बाद वह मक्खी फिर से राजा के नाक के पास भिनभिना रही होती हैं। सिपाही उसे देख फिर से राजा के शयनकक्ष में गया और उसे कई बार भगाने की कोशिश करता हैं। लेकिन वह मक्खी नहीं भागी।

इस बार मक्खी राजा के नाक पर बैठी हुई होती हैं। दरबारी गुस्से में आकर तलवार से मक्खी के ऊपर वार कर देता हैं। लेकिन, मक्खी उड़ गई और राजा की नाक कट गई। राजा जोर-जोर से चिल्लाते हुए उठा। उसने अपने सिपाहियों से कहा, “इस दरबारी पकड़ लो, राजा उसे पकड़कर दंड देता हैं।”

नैतिक सीख:

बिना समझदारी और गुस्से में उठाया गया कदम अक्सर हमें नुकसान पहुँचाता हैं।

3. राजा और अनाथालय – Raja aur anathalay:

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एक समय की बात हैं किसी राज्य में एक राजा रहता था। राजा बहुत न्यायप्रिय तथा दयालु था। उसके राज्य के लोग उसे बहुत पसंद करते थे। राजा को एक ही बात की चिंता रहती थी कि उसके राज्य को संभालने के लिए कोई उत्तराधिकारी नहीं था। एक बार एक साधु महात्मा राजा के दरबार में आए। वें राजा को चिंतित देख बोले, राजन मैं आपका दुख समझ सकता हूँ।

लेकिन, इस तरह चिंता में डूबे रहने से किसी समस्या का हल नहीं निकलेगा, क्योंकि चिंता चिता के समान होती हैं। महात्मा ने राजा से कहा, “आपके महल में किलकारी गूंजना असंभव हैं। आपको एक बच्चे को गोद लेना पड़ेगा वही आगे चलकर इस राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा। आप कुछ दिन के लिए मेरे साथ चलिए, मैं आपके राज्य का उत्तराधिकारी खोजने में मदद करूंगा।

राजा साधु महात्मा के साथ एक अनाथालय गया। वहाँ पर बच्चों के खाने के लिए एक बड़े टब में ब्रेड से बना बंद भरकर रख देता हैं। बंद छोटा और बड़ा था बच्चे एक दूसरे के ऊपर टूट पड़े और बड़े-बड़े आकार का बंद लेने लगे। उसी अनाथालय में एक लड़की रहती थी, जिसकी उम्र लगभग 5 साल की थी। सबसे आखिरी में उसे एक छोटा बंद का टुकड़ा मिला। वह उसे लेकर चली गई।

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राजा फिर अगले दिन ठीक ऐसे ही करता हैं। उस दिन भी लड़की को एक छोटा बंद का टुकड़ा मिला। जिसे वह अपने साथ लेकर चली गई। जब वह अपने कमरे में जाकर बंद का टुकड़ा तोड़ती हैं तो उस छोटे टुकड़े में एक सोने का सिक्का मिलता हैं। लड़की तेजी से दौड़ती हुई साधु के पास आकर कहती हैं- “यह सिक्का इस बंद में मिला था हो सकता हैं, गेंहू के आटे में किसी का गिर गया हो।”

राजा और साधु उस बच्ची के धैर्य तथा ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुये। इस तरह से राजा उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया। आगे चलकर वह लड़की उस राज्य का उत्तराधिकारी बनी।

नैतिक सीख:

धैर्य तथा ईमानदारी व्यक्ति को जीवन में बहुत आगे तक ले जाती हैं।

4. बड़ी सोच का असर – Badi soch ka asar:

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रामू नाम का एक लड़का था। जोकि, प्रतिदिन अपने घर से दूर रेलवे स्टेशन पर काम करने जाया करता था। रामू बहुत गरीब था, उसके पिता का देहांत हो चुका था। उसकी माँ बहुत बीमार रहती थी, उसके दो भाई बहन भी थे। अभी रामू की उम्र बहुत छोटी थी। इतनी सारी जिम्मेदारियाँ होते हुए भी वह बहुत धैर्य के साथ काम लेता था। उसके घर में पैसों की तंगी के कारण ठीक से खाने-पीने को नहीं हो पाता था।

एक दिन रामू स्टेशन गया हुआ था। सुबह से काम करते हुए उसे शाम होने को आ गई। लेकिन उसे खाने का समय नहीं मिला। रामू ने शाम के समय सोचा कि भूख लग रही है, चलो कुछ खा लेते हैं। वह प्लेटफार्म पर बैठकर अपने साथ लाए हुए दोपहर के खाने के डिब्बे को खोलता हैं। वह देखता हैं कि उसमें सिर्फ रोटियाँ ही हैं। उसके साथ कोई सब्जी नहीं थी।

रामू ने एक रोटी निकाली जिसके छोटे टुकड़े किए और खाने के डिब्बे में डूबाते हुए चारों तरफ घुमाया और उसे खा लिया। इस तरह से वह रोटियों को खा रहा था। प्लेटफ़ॉर्म पर बैठा एक यात्री उसे देखे जा रहे थे, कि यह लड़का ऐसा क्यों कर रहा हैं। जबकि, इसके डिब्बे में कोई सब्जी भी नहीं हैं। आखिरकार एक बुजुर्ग यात्री ने उस लड़के से पूछा- “बेटा तुम इस डिब्बे में रोटी को डूबा कर क्यों खा रहे हो? जबकि तुम्हारे डिब्बे में कोई सब्जी नहीं हैं।”

रामू जबाब दिया कि- ‘मैं ऐसा मानता हूँ कि इस डिब्बे में आचार हैं, जिसे मैं रोटी के साथ लगाकर खा रहा हूँ। बुजुर्ग अंकल कहते हैं- क्या तुम्हें आचार का स्वाद भी आ रहा हैं। रामू कहता हैं- हाँ, मुझे आचार का स्वाद भी आ रहा हैं। इसीलिए मैं खाने को बड़े चाव के साथ खा रहा हूँ।

बुजुर्ग अंकल उस लड़के से कहते हैं। “जब तुम्हें आचार का स्वाद आ रहा हैं तो तुम आचार ही क्यों सोचते हो तुम इस खाली डिब्बे में हलवा, पूड़ी, मटर पनीर जैसी चीजे भी सोच सकते हो। जब बड़ा सोचोगे तभी बड़ा कर पाओगे। रामू के दिमाग में बुजुर्ग अंकल की बात बैठ जाती हैं। वह अपनी सोच को ऊँचा किया। इसके साथ-साथ वह दिन रात लगन के साथ मेहनत करने लगता हैं।

उसकी बड़ी सोच के कारण धीरे-धीरे उसके घर की परिस्थितियाँ बदलने लगती हैं। एक दिन ऐसा आता है कि रामू शानदार जिंदगी जीने लगता हैं।

नैतिक सीख:

बड़ी सोच तथा कड़ी मेहनत और लगन के साथ कामयाबी को जल्द हासिल किया जा सकता हैं।

5. साधु और लकड़हारा – Sadhu aur lakdhara:

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किसी गाँव में भीमा नाम का एक लकड़हारा रहता था। वह प्रतिदिन जंगल से लकड़ियाँ काटता और उसे बेचकर अपने घर के खर्च चलाता था। सर्दी का दिन था। वह एक दिन शाम को जंगल से लकड़ियाँ काटकर अपने घर जा रहा था। लकड़हारे को घर वापस जाते समय रास्ते में एक साधु महात्मा मिले। वे ठंड के कारण काँप रहे थे। लकड़हारा साधु को देखकर उनके सामने अपनी कुछ लकड़ियों को जला देता हैं। जिससे साधु महात्मा को ठंड से राहत मिल गई।

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लकड़हारे की दया भावना देख साधु महात्मा उसको एक अंगूठी देते हुए एक मंत्र बताते हैं। साधु महात्मा लकड़हारे से कहते हैं- “जब भी तुम्हें पैसों की जरूरत लगे इस अंगूठी को पहनकर यह मंत्र तीन बार बोलना हैं।” आपके सामने पैसे का एक पेड़ उग आएगा। आप जितना चाहो उतने पैसे उसमें से ले सकते हो।

लकड़हारा अपने घर पहुँचकर अपनी पत्नी को वह अंगूठी दिखाते हुए रास्ते की सारी घटना को बताया। यह सब सुन उसकी पत्नी बहुत खुश हुई। अब दोनों को जब भी पैसे की जरूरत पड़ती, वे उसी पैसे के पेड़ से पैसे ले लेते थे। यह सब करते हुए एक दिन उसे उसके घर के सामने वाला व्यक्ति देख लिया। वह मौका पाकर लकड़हारे के घर से अंगूठी चुरा लिया।

वह पैसों का पेड़ उगाने के लिए अपने हाँथ में अंगूठी पहन लेता हैं। लेकिन कोई पैसे का पेड़ नहीं उगा। एक दिन लकड़हारा उस अंगूठी को बहुत खोजा। लेकिन अंगूठी नहीं मिली। वह दुबारा से साधु महात्मा के पास जाकर अंगूठी के गायब होने के बारे में बताया। साधु महात्मा अपने मंत्र विद्या से पता कर लेते हैं कि उसकी अंगूठी उसके घर के सामने वाले व्यक्ति ने चोरी की हैं।

लकड़हारा और साधु उस व्यक्ति के पास गए और उससे अंगूठी के बारें में उसकी पत्नी से पूछा। उसकी पत्नी उस अंगूठी के बारें में सच-सच बता दी। इतने में वह व्यक्ति भी घर आ गया। वह साधु की फटकार खाने के बाद अंगूठी वापस कर देता हैं।

नैतिक शिक्षा:

हमें एक दूसरे के प्रति दयावान होना चाहिए।

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