माता-पिता अपने बच्चे के लिए कुछ इस प्रकार की कहानियां खोजते हैं जो बच्चे को गहराई तक सोचने के लिए मजबूर कर दे। जबकि, कहानी रुचिपूर्ण तथा ज्ञानवर्धन करने वाली होनी चाहिए। यही वह कारण हैं कि ‘कहानीज़ोन’ इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए आपके बच्चों के लिए प्रेरणा देने वाली मजेदार कहानियां कम शब्दों में लाते रहते हैं। आज की कहानियां कुछ इस प्रकार से हैं:
1. अपंग सेठ:
बहुत समय पहले की बात हैं किसी नगर एक सेठ रहता था। उसका कारोबार बहुत बड़ा था। उसके पास बहुत बड़ी हवेली थी। जिसमें कई नौकर-चाकर थे। सेठ के पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। पर दुख एक ही बात का था कि उसे नींद बिल्कुल नहीं आती थी। जब वह किसी तरह से सोने का मन भी बनाता तो उसे बहुत डरावने सपने आते थे। जिसके कारण वह जग जाता था।
सेठ ने बड़े से बड़े डाक्टरों से इलाज करवाया। लेकिन, उसे किसी भी तरह से राहत नहीं मिली। बल्कि, उसकी बीमारी और बढ़ती जा रही थी। अब सेठ और परेशान रहने लगा। एक दिन एक महात्मा सेठ के दरवाजे से गुजर रहे थे। उन्हें देख सेठ दौड़कर महात्मा के चरणों में गिर पड़ा। रोते हुए सेठ ने कहा, “महाराज अब मुझे आप ही बचा सकते हो।”
महात्मा जी ने सेठ से पूछा क्या बात हैं? “तुम इतना परेशान क्यों लग रहे हो।” सेठ सारी बात महात्मा जी से बता देता हैं। उसकी बातों को सुनकर महात्मा मुस्कुराये और बोले, आप तो अपंग हो। तभी यह घटना आपके साथ घट रही हैं। महात्मा की बातों को सुनकर सेठ क्रोध से भर गया। लेकिन, अपने मन को समझाते हुए कहा, “महराज! आप देखो मेरे हाथ पैर सही सलामत हैं और आप मुझे अपंग कह रहे हैं, ऐसा क्यों?”
महात्मा जी मुस्कुराते हुए कहा, “मित्र अपंग वह नहीं जिसके हाथ पैर नहीं हैं। बल्कि अपंग वह हैं जो इसका उपयोग नहीं करता। तुम मुझे बताओ अपने इस शरीर से पूरे दिन में कितना काम लेते हो? सेठ महात्मा को जबाब नहीं दे सका। क्योंकि, वह हर छोटे बडे काम के लिए नौकर- चाकर लगा रखा था।
महात्मा जी ने सेठ को और समझाते हुए कहा, “क्या आपको पता हैं कि जिस पानी में बहाव नहीं होता, जैसे तालाब का पानी एक समय के बाद पड़े-पड़े पानी में सड़न होने लगती हैं। ठीक इसी प्रकार आप के साथ भी हो रहा हैं। आप अपने शरीर से जितना हो सके काम लो। जिससे आपके अंदर चेतनता आ सके। तभी आपकी बीमारी दूर हो पाएगी, अन्यथा नहीं होगी।
उसी दिन से सेठ अपने शरीर से अधिक काम लेने लगा। जिसके कारण वह पसीने से तर-बतर हो जाता था। काम अधिक करने के कारण उसे थकान अधिक लगती थी। जिससे उसे अच्छी नींद आना शुरू हो गई। मानो उसके जीवन में एक नया उजाला हो गया हो।
नैतिक शिक्षा:
खुश रहने के लिए शरीर को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी हैं।
2. हिन्दी कहानियां – जीने का ढंग:

अकबरपुर गाँव के किनारे एक बड़ा और विषैला साँप रहता था। उस गाँव का जो भी व्यक्ति उस रास्ते से निकलता साँप उसके पीछे पड़ जाता और उसे काट लेता था। गाँव वाले बहुत परेशान रहने लगे। जिसके कारण उस गाँव के लोग साँप से तंग आकर उस तरफ आना-जाना छोड़ दिए। एक दिन उस गाँव में एक साधु महात्मा आए। गाँव के लोगों ने महात्मा से साँप के बारें में बताया।
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महात्मा जी साँप के पास गए और उसे समझाते हुए कहा, “यह जन्म बहुत ही भाग्य से मिला हैं। जोकि, बार-बार नहीं मिलता। ऐसा जीना क्या जीना जिसके लिए लोग तुम्हारे बारें में तरह-तरह की बातें कहें और गालियाँ दें। साँप ने कहा, “मुनिवर! मुझे सही मार्ग दिखाओ। महात्मा जी ने कहा, तुम लोगों को परेशान करना छोड़ दो। सबके साथ प्रेम और सदभाव के साथ पेश आओ।”
साँप ने महात्मा की बातों को मान लिया। उस दिन से उसने लोगों को काटना छोड़ दिया। अब वह बाग में ऐसे बैठा रहता था। जब लोगों को मालूम हुआ की साँप अब काटना छोड़ दिया तो उस बाग में लोग आजादी के साथ घूमने फिरने लगे। गाँव के बच्चे उसके ऊपर पत्थर फेंकते उसके शरीर में लकड़ियाँ चुभाते थे। लेकिन, वह किसी को नुकसान नहीं पहुँचता था।
एक दिन वही महात्मा उसी रास्ते से गुजर रहे थे तो देखा कि साँप बहुत बुरी अवस्था में पड़ा था। महात्मा ने साँप से पूछा, “तुम्हें यह सब क्या हो गया।” तुम्हारे शरीर में इतने घाव कैसे हैं। साँप ने अपनी सारी व्यथा महात्मा जी को सुना दी। महात्मा जी ने कहा, “हे नागराज! मैंने तुम्हें काटने से मना किया था। लेकिन फुफकारने से नहीं। जो व्यक्ति अपने तेज को प्रकट नहीं करता। यह दुनिया उसे जीने नहीं देती।”
इस तरह से साँप को महात्मा की बात समझ में आ गई। उस दिन से उसने अपने बचाव के लिए फुफकारने लगा। अब उसे कोई परेशान भी नहीं करता था। इसके पहले उसने लोगों को काटना भी छोड़ चुका था। अब साँप और गाँव वाले दोनों सुखी-सुखी रहने लगे।
नैतिक सीख:
हाथ पर हाथ रखने से कुछ नहीं होगा अपनी सुरक्षा खुद करनी पड़ेगी।
3. मौत का डर:
किसी राज्य में एक बलशाली राजा रहता था। राजा कई राज्यों पर आक्रमण करके उसे जीत चुका था। लेकिन, अब वह बूढ़ा हो चुका था। राजा का एक बेटा था। जोकि राज्य का देख-भाल ठीक ढंग से नहीं करता था। जिसके कारण राजा बहुत चिंतित रहने लगा। एक बार किसी राज्य के राजा ने उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिसमें उसका बेटा मारा गया।
राजा भागकर कही और चला गया। अब बूढ़े राजा को इस बात का डर सताने लगा कि कोई उसकी हत्या न कर दे। एक दिन वह बैठे-बैठे सोच रहा था कि क्यों न ऐसा महल बनवाया जाए जिसमें खिड़की, दरवाजा, रोशनदान जैसी कोई चीज न हो। सिर्फ एक दरवाजा हो जिससे वह आ जा सके।
राजा ने अपने सोच के अनुसार महल बनवा दिया। एक दिन उसी महल के पास से एक फकीर गुजर रहा था। राजा फकीर को अपना महल दिखाने के लिए ले आया। राजा ने फकीर को अपना विश्राम कक्ष दिखाते हुए पूछा, “कैसा लगा मेरा शयनकक्ष?” फकीर ने कहा, “रजन् आपका विश्राम कक्ष दुश्मनों से सुरक्षित हैं।”
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लेकिन, इसमें एक खराबी हैं। राजा ने उत्सुकता से पूछा क्या खराबी हैं? फकीर ने कहा, “आपके दरवाजे से दुश्मन तो नहीं आ सकता। लेकिन मौत आ गई तो क्या करोगे।” इसलिए, आप इस कमरे के अंदर अपने आप को बंद करके दरवाजे पर दीवार चुनवा दो। फकीर की बातों को सुनकर राजा समझ गया कि मैं मौत से बचने के लिए जो बंदोबस्त कर रहा हूँ। मौत को आने से दुनिया की कोई भी दीवार और दरवाजा नहीं रोक सकती।
नैतिक शिक्षा:
जीवन-मरण एक सत्य हैं ,जो आया हैं वह जाएगा। इसलिए अपना जीवन को खुश होकर जिए।